Monday, May 26, 2008

श्री राम - सतीश सक्सेना

भरत भूमि में आज लुट रही मर्यादा श्रीराम की !
जाति पांति और भेदभाव
के नाम चढ़े भगवान भी
नास्तिक आज बचाने जाते जन्मभूमि श्रीराम की !

राजनीति के लिए ख़रीदे
जाते हैं भगवान भी
रामनाम को बेच रहे हैं धर्म के ठेकेदार भी !

अन्तिम सच को भूल
फिरें इतराते झूठी शान में
धर्म आड़ में लेकर लड़ते क़समें खाते राम की !

मानवता की बली चढाते
सीना ताने खून बहाते
रक्त होलिका खेलें, फिर भी गाते महिमा राम की !

दिल में घ्रणा समेटे मन
में बदले की भावना लिए
राज्यपिपासु खोजने जाते, जन्मभूमि श्रीराम की !

परमपिता परमात्मा की भी
जन्मभूमि सीमित कर दी
मां शारदा निकट नही आईं, करते बातें ज्ञान की !

प्राणिमात्र पर दया, धर्म
सिखलाता बारम्बार है
पवनपुत्र के शिष्य, लुटाते मर्यादा श्रीराम की !

2 comments:

  1. सुन्दर भाव और सुन्दर अभिव्यक्ति।

    ReplyDelete
  2. दिल में घ्रणा समेटे मन
    में बदले की भावना लिए
    राज्यपिपासु खोजने जाते, जन्मभूमि श्रीराम की !
    क्या बात है सतीशजी क्या वास्तविकता बयान की है. इतनी सुन्दर कविता देने के लिये बहुत-बहुत आभार स्वीकारें.

    ReplyDelete

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- सतीश सक्सेना

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