Saturday, May 24, 2008

कचरा - सतीश सक्सेना

देवी जी ने मूड बनाया , 
कविता लिखनी कचरे पर 
कागज कलम उठा कर उसने 
करी चढ़ाई कचरे पर !
चार दिनों से यारो घर में 
भोजन बनता कचरे सा !
कविता बनें यथार्थ वादी घर को बदला कचरे सा 

कचरे वालों को बुलवाने 
बेटा भेजा कचरे पर 
इंटरव्यू  देने को आये 
सड़े भिखारी कचरे से 
देवी जी का दिल भर आया 
हालत देखी कचरे की !
घर में उस दिन बनी न रोटी यादें आयीं कचरे की 

लिख लिख कागज फाड़ के 
फेंके,ढेर लगाया कचरे का 
गृह सुन्दरता रास न आये 
किचन बन गया कचरे सा 
जैसे कभी नहीं खाली हो
सकती धरती कचरे से !
वैसे उनकी यह रचना भी अमर रहेगी  कचरे सी !

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- सतीश सक्सेना

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