Monday, July 14, 2008

एक पिता का ख़त पुत्री को ! ( तीसरा भाग )

सारा जीवन किया समर्पित परमारथ में नारी ही ने , विधि ने ऐसा धीरज लिखा केवल भाग्य तुम्हारे ही में !उठो चुनौती लेकर बेटी, शक्तिमयी सी तुम्ही दिखोगी !!

दृढ़ता हो, सावित्री जैसी ,
सहनशीलता हो सीता सी !
सरस्वती सी, महिमा मंडित

कार्य साधिनी अपने पति की !
अन्नपूर्णा बनो, सदा ही

घर की शोभा तुम्हीं रहोगी !
पहल करोगी अगर नंदिनी, घर की रानी तुम्हीं  रहोगी !

नारी के सुंदर चेहरे पर,
क्रोध कभी न आने पाये !
क्षमा, दया और ममता बेटी
सदा विजेता होते आये !
गुस्सा कभी पास न आये ,

रजनीगंधा सी  महकोगी  !
पहल करोगी अगर नंदिनी घर की रानी तुम्हीं  रहोगी !


स्वागत मेहमानों का करने 
दरवाजे पर हंसती आये !  
घर के दरवाजे से पुत्री ,
याचक कभी न खाली जाए !
मान करोगी अगर मानिनी,
महिमामयी तुम्हीं  दीखोगी !
पहल करोगी अगर नंदिनी, घर की रानी तुम्हीं  रहोगी !

नर नारी में परम त्याग की 
शिक्षा देती, सारे जग को !
माता, पिता, सहोदर भाई
और छोड़ती है, निज घर को !
भूल पुराने घर को अपने
नयी रौशनी लानी होगी !
पहल करोगी अगर नंदिनी घर की रानी तुम्हीं रहोगी

सारा जीवन किया समर्पित
परमारथ में , नारी ही ने !
विधि ने ऐसा धीरज लिखा
केवल भाग्य, तुम्हारे ही में !
उठो चुनौती लेकर बेटी ,
शक्तिमयी सी तुम्हीं दिखोगी !
पहल करोगी अगर नंदिनी, घर की रानी तुम्हीं रहोगी !

Next http://satish-saxena.blogspot.in/2008/08/blog-post.html

4 comments:

  1. उठो चुनौती लेकर बेटी , शक्तिमयी सी तुम्ही दिखोगी !
    पहल करोगी अगर नंदिनी घर की रानी तुम्ही रहोगी


    --bahut umda!

    ReplyDelete
  2. kya kahne hain...satish sir!! bahut pyari rachna...dil ko chhuti hui:)

    ReplyDelete
    Replies
    1. जैसी माता और पुत्री है और जैसी है पत्नी सुन्दर
      नारी की काया छाया से जग में होता पग पग सुन्दर

      Delete
  3. वाह...बहुत सुन्दर और सार्थक अभिव्यक्ति...

    ReplyDelete

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- सतीश सक्सेना

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