Saturday, August 16, 2008

ये समझ नहीं आता इनको -सतीश सक्सेना

स्वतंत्रता दिवस पर उग्रवादियों और तथाकथित जेहादियों को एक संदेश ! 

लूटें घर को, मारें मां को
पल पल में, हुंकारे भरते
गर्दन ऊंची, छाती चौडी,
है शर्म नाम की चीज नहीं,
जब बाल पकड़ यमराज इन्हें,

परदेश में लाकर मारेगा !
तब आँख, फटी रह जायेगी , कोई न बचाने  आयेगा  ! 


किसको धमकी तुम देते हो ,
लाखों मरने को हैं तैयार !
बच्चों का रक्त बहाने को
आओ लेकर सब हथियार!

मारो बम कितने मारोगे, 
इक दिन ऐसा भी आयेगा !
जब, मौत तुम्हारी आने पर , आंसू कोई न बहायेगा !

तुम मासूमों का खून बहा,
ख़ुद को इंसान बताते  हो
औ मार नमाजी को बम से
इस को जिहाद बतलाते हो

जब मौत तुम्हारी आयेगी,
तब कोई न फूल चढ़ायेगा !
मय्यत में कंधा देने को , घर से भी न कोई आयेगा !


10 comments:

  1. बहुत सुन्दर व्यंग्य है। बधाई

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  2. तुम मासूमों का खून बहा
    ख़ुद को शहीद कहलाते हो
    औ मार नमाजी को बम से
    इस को जिहाद बतलाते हो
    " truely said, good thoughts with appropriate words"

    Regards

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  3. मारो बम कितने मारोगे
    तुम कितना खून बहाओगे
    पर,मौत तुम्हारी आने पर
    आंसू कोई न बहायेगा,


    बहुत जोरदार लिखा है सतीश जी !
    बहुत बहुत शुभकामनाएं आपको !

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  4. तुम मासूमों का खून बहा
    ख़ुद को शहीद कहलाते हो
    औ मार नमाजी को बम से
    इस को जिहाद बतलाते हो

    अच्छी सोच को नमन .
    कितना सच लिखा है, मैं ऐसे कई अब्बू को जानता हूँ जिनके लड़के ज़रा अपराधिक गतिविधियों में शामिल हुए कि उनके पिता ne बेटे को आक़ कर दिया.
    आक़ का मतलब परित्याग कर देना.

    सतीश जी .आपने सरोकार का लिंक दिया है, आभार.

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  5. are mahoday ka kahna hai.
    prnaam sir.bahuh hi badhya likhe hain aap.

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  6. तुम मासूमों का खून बहा
    ख़ुद को शहीद कहलाते हो
    औ मार नमाजी को बम से
    इस को जिहाद बतलाते हो


    क्या खूब कहा है, बहुत अच्छे!

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  7. तुम मासूमों का खून बहा
    ख़ुद को शहीद कहलाते हो
    बहुत खुब आज बदमाश ओर गुण्डे भी शहीद कहलाने लगे हे, ओर शहीद .....
    धन्यवाद

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  8. आप सब का यहाँ आने के लिए धन्यवाद !
    @शहरोज भाई ! हम यह सब जानते हैं की कुछ उग्रवादी संगठनों की सोची समझी चाल है कि इस देश के दोनों घरों में दरार कैसे डाली जाए ! मेरा संदेश भी यही है कि अगर पथभ्रष्ट लड़का इस अंत में पहुंचा तो यकीनन घर के अन्य लोग इनका साथ नही देंगे !

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  9. सरलतम पर सत्य को उखेलती रचना

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  10. तुम मासूमों का खून बहा
    ख़ुद को शहीद कहलाते हो
    औ मार नमाजी को बम से
    इस को जिहाद बतलाते हो
    जब मौत तुम्हारी आएगी,
    तब बात शहादत की छोडो
    मय्यत में कन्धा देने को,
    अब्बू तक पास न आयेंगे

    सतीश जी
    बेहद सच्ची रचना! दिल छु लिया!
    उम्मीद है की आगे भी अमन और भाई चारे का पैगाम देती और सच्चाई का निरूपण करती ऐसी साहसिक रचनाये पढने को मिलती रहेंगी

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- सतीश सक्सेना

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