Tuesday, September 2, 2008

हिन्दी ब्लाग और पुरूष मानसिकता !

यह लेख मेरे और एक महिला हिन्दी ब्लॉगर के मध्य हुए पत्राचार का हिस्सा है जो यहाँ प्रदर्शित करना आवश्यक समझता हूँ चूंकि सुझाव बेहद सटीक हैं अतः यहाँ देना मेरे विचार से उचित है , शायद समाज के कुछ कार्य आए ! सम्मानित महिला ब्लागर ने मेरे लिखे एक पिता का ख़त पुत्री को ! (प्रथम भाग ) पर एक आपत्ति प्रकट करते हुए कहा था, कि हर पिता पुत्री को ही शिक्षा क्यों देता है ?

----- Original Message -----
From: सतीश सक्सेना
To: रचना सिंह
Sent: Tuesday, September 02, 2008 10:32 AM
Subject :हिन्दी ब्लाग और पुरूष मानसिकता !
On 9/1/08, Rachna Singh wrote:

" its high time we educated our man folk satish "

पुरूष मानसिकता के बदलने के सवाल पर आप ठीक हैं रचना जी ! भारतीय समाज के पारंपरिक रूप में पुरूष का अस्तित्व विश्व समाज के समक्ष टिक नही पायेगा ! पुरूष मानसिकता, (जिसमें अहम्, पुरुषत्व,शक्ति तथा कमजोर को सुरक्षा देना जैसे तत्व प्रधान हैं,) से यह हटा पाना कि " यह मेरी है " बेहद मुश्किल कार्य है, शिक्षित और समझदार की मानसिकता बदल सकती है मगर अधिकतर भारतीय परिवार इस परिप्रेक्ष्य में शिक्षित हैं ही नहीं, न स्कूल से और न सामजिक परिवेश से !

"सतीश बहुत जरुरत है कि केवल बेटी को शालीनता की शिक्षा ना दी जाये"

अगर आप मेरे गीत में लिखी मेरी रचना " एक पिता का ख़त पुत्री को ! (प्रथम भाग ) " के सन्दर्भ में कह रही हैं तो यह कविता एक ऐसे पिता का चिंता वर्णित कर रही है जो पारंपरिक रूप से भारतीय समाज और उसी पुरूष समाज का प्रतिनिधित्व कर रहा है इसमे अपनी जान से भी प्यारी पुत्री को पारस्परिक समझ और सामंजस्य के बारे में समझाता है, कि बेटी २४-२५ वर्ष की कच्ची उम्र में नए लोगों के साथ रहकर उनका दिल कैसे जीत पायेगी !

"अगर हम सब बेटो को भी वही पाठ पढाये जो बेटी को तो भारतीयता को बदनाम करने बाले लोग लोग धीरे धीरे समझदार होंगे "

आप इस बात का समर्थन करेंगी कि विवाह के समय, वर पक्ष का, नयी वधू के प्रति जितना उत्साह होता है उतना ही वधू पक्ष अपनी पुत्री के प्रति चिंतित होता है ! अगर ऐसे में पुत्री शंकित मन से न जाकर , नए उत्साह से अपने नए परिवार को अंगीकार के, और दोनों घरों से शंका तथा चिंता का माहौल हटा कर नया उत्साह भरे तो काफ़ी कष्ट प्रद मौकों से छुटकारा मिल सकता है ! इस पूरी कविता में पुत्री को उसकी ताक़त का अहसास दिलाते हुए प्यार से अपने बड़ों का दिल जीतने की बात कही गयी है ! हाँ इसमे, एक और सच्चाई, जिसको बहुत कम नारी लेखिकाओं ने लिखा होगा, को भी स्थान दिया गया है, नवविवाहित पति की मनोदशा को समझना परिवार के सबसे बड़े सुख के अवसर पर, पति सबसे अधिक तनाव ग्रस्त रहता है और उसकी इस मनोदशा को नववधू और उसके अपने परिवार के लोग समझना भी नही चाहते ! पुरूष के इस पक्ष को नारी वादी आन्दोलन के प्रणेता बिल्कुल महत्व नही देते जहाँ नारी के कष्टों पर खूब हाय तौबा रहती है वहीं नवविवाहित लड़के के बारे में कोई सोचता तक नहीं !


"आप की कविता पर भी मेने यही कहा था मै पुरूष जाति के ख़िलाफ़ नहीं लिखती
मै लिखती हूँ उस मानसिकता के ख़िलाफ़ जहाँ स्त्री को शालीन रह कर सब गंदगी सहने की शिक्षा दी जाती हैं "

आज के समय में, स्त्री को शक्तिशाली बनने की आवश्यकता, समय की पुकार है ! इसके अभाव में देश तो पिछ्डेगा ही, अगली पीढियां भी कुछ सीख नहीं पाएंगी ! भारतीय समाज में स्त्रियों की स्थिति, कमोवेश पिछडी जनजातियों की भांति ही है, जो अपनी स्थिति को नियति मान कर खुश हैं ! स्त्री दशा में सूधार हेतु, बदनामी के भय से , शिक्षा देने बहुत कम महिलायें आगे आ पाती है समाज की गालियाँ, "बहुत तेज" होने, तथा गंदे आरोप जिससे वह समाज में खड़ी भी न हो पाये, थोपना आम बात है ! और यह सब, सबके समक्ष करते हुए लोग गर्वित होते हैं, तथा ब्लॉग जगत के मशहूर लोग या तो भाग खड़े होते है या इस पर मौन व्रत धारण कर मन ही मन प्रायश्चित्त करते है ! यह और कुछ नहीं सिर्फ़ हमारी कायरता है !

आप का कार्य सराहनीय है, इस हिम्मत के लिए मै आपका अभिनन्दन करता हूँ !

16 comments:

  1. बातचीत में गहराई की अपेक्षा थी। मुझे लगा जैसे चीजों को काम चलाउ ढंग से निपटा दिया गया।

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  2. मैं आपकी निराशा से सहमत हूँ और अपना स्पष्टीकरण देना भी चाहूंगा | विषय बहुत बड़ा है, मगर संक्षिप्त करने का कारण मात्र मेरी झिझक है, कि अधिकतर ब्लाग पाठक, यहाँ तक की योग्य सम्मानित पाठक भी बड़ी और विस्तृत लेख को सरसरी द्रष्टि से ही पढ़ते हैं ! यह बहुत अधिक अन्याय होता है अच्छे विषय के प्रति, और उसी विषय पर बार बार लिखना उचित नही होता ! उपरोक्त पत्र में दो विषय उठाये गए है
    १. रचना जी ने पहले इशारा किया हमारे(हिन्दी ब्लागर) बेहूदे लेखन की ओर, जिसमें पुरूष ब्लागर अक्सर ग़लत भाषा प्रयोग करते हैं, ऐसे में महिला ब्लागर को अपनी उपस्थिति दर्ज कराना भी मुश्किल हो जाता है | एक महिला ब्लागर स्मृति के कमेंट्स दे रहा हूँ
    @Satish sexenaji,
    Bus yahi karan hai ki main hindi bloggers ke blog nahi padhti hun. Kyunki yahan log standard girakar baat karte hein. Aur kichd mein kankad feko to khud hi per padta hai...isse achha hai kichad se hi dur raho.
    इसमें आप सबका सहयोग चाहिए !
    २. दूसरा विषय पिता अपनी बेटी तथा बेटों को क्या शिक्षा दे ! उसपर रचना जी के अपने विचार है और मैंने अपने विचार अपनी कविता पिता के ख़त पुत्री के नाम में दिए हैं !

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  3. आप ने सही कहा नारी की तकलीफ़ों के बारे में चर्चा करते करते हम सब उस निरीह नर को भूल जाते हैं जो शायद जिन्दगी में उतनी ही या उससे ज्यादा मार खाता है, उतना ही डरता है लेकिन फ़िर भी उसे ये सब चुपचाप सहना पड़ता है क्युं कि वो नर है। किसी भी चर्चा में दोनों पक्षों का नजरिया समझना और संतुलन का होना बहुत जरुरी है।

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  4. सतीश जी आप दोनों ही अपने अपने स्थान पर बिलकुल सही हैं। रचना जी। हर बात को अपने अभियान से जोड़ती हैं। जो उन के लिए सही है। लेकिन जब एक पिता अपनी पुत्री को पत्र लिखेगा तो रचना जी का अभियान बीच में नहीं होगा। उस समय उस के ध्यान में होगा वर्तमान समाज और उस में पुत्री की स्थिति। वहाँ आप की वह कविता सही है। मेरे विचार में रचना जी की आपत्ति यह नहीं कि आप पुत्री को ऐसा क्यों कह रहे हैं ? उन की आपत्ति यह है कि कोई कविता ऐसी क्यों नहीं है जिस में आप अपने बेटे को संबोधित करते हों। यह कविता पिता भी लिख सकता है और माँ भी।
    मुझे कविता का अभ्यास नहीं, नहीं तो ऐसी दो कविताएँ मैं लिख देता। आप कवि हैं और लिख सकते हैं। कविता भी समर्थ कवियित्री हैं। वे भी एक कविता लिख सकती हैं। एक माँ को अपने पुत्र से क्या कहना चाहिए जब वह विवाह करने जा रहा है, इस तरह की कविता वे लिख सकती हैं। यह भी हो सकता है कि एक विवाहित बहिन अपने भाई को जो विवाह करने जा रहा है ऐसा पत्र लिखे।

    मैं तो समझता हूँ कि आप दोनों की यह बातचीत बहुत सार्थक है। इस बात चीत को सार्वजनिक करने का अर्थ ही यह है कि इस तरह की ढेर सारी कविताएँ सामने आएँ।
    अनिता जी कहती हैं कि एक नव विवाहित पुरुष के बारे में कोई नहीं सोचता? वे भी कवियित्री हैं। वे इस प्रश्न को कविता में क्यों नहीं उठातीं?

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  5. सतीश जी लगता है आपने बात-चीत को काफी कट-छाँट कर दिया जिससे अधूरापन सा महसूस हो रहा है.
    फिर भी कुछ बातें एकदम साफ़ हैं
    आपका प्रयास भी सराहनीय है

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  6. बच्चे तो दोनों बराबर हैं और दोनों को ही माता पिता ने अपने नजरिये से सीखना है ..लड़का हो या लड़की मेरे ख्याल से आज कल माता पिता को दोनों कि चिंता एक समान रहती है ..क्यूंकि यह बदलता माहौल ही कुछ ऐसा है | बाकी सोच और विचार सबके अपने अपने हैं ..

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  7. सतीश जी आपने जो भी खतोकिताबत का जिक्र किया है उसमे आपको कहीं से कहीं तक ग़लत नही ठहराया जा सकता ! आपकी वह कविता मैंने भी पढी थी और काफी प्रभाव शाली थी ! व्याकरण की दृष्टी से नही , क्यूँ की कविता का व्याकरण अपने पल्ले नही पङता ! उस कविता के जो शब्द थे मैं उनकी बात कर रहा हूँ !

    अब रही बात उन सम्माननीय महिला ब्लॉगर की तो, आप के लिखे अनुसार उनको भी किस्सी भी तरह से ग़लत नही कहा जा सकता ! यह सारी ऊहापोह जो स्त्री -पुरूष के स्तरों को लेकर चलती आ रही है ! मुझे तो वही दिखाई दे रही है ! आपने यह बात सार्वजनिक करके बहुत अच्छा किया ! इसके लिए धन्यवाद !

    अब लगे हाथ एक बात और ..आपकी टिपणी पर
    एक टिपणी ... योग्य सम्मानित पाठक भी बड़ी और विस्तृत लेख को सरसरी द्रष्टि से ही पढ़ते हैं ! यह बहुत अधिक अन्याय होता है
    आपकी इस बात से मैं बिल्कुल सहमत हूँ ! अच्छी
    भली बात का सत्यानाश अक्सर रोज ही होता है !
    लेख के बजाए दो-चार टिपणी पढ़ कर , उसी लाइन को पकड़ लिया जाता है और दिन को रात बना दिया जाता है ! बहरहाल आपका लेख और टिपणी दोनों हमेशा की तरह सटीक है ! धन्यवाद !

    पुनश्च: : कृपया एडिटिंग के चक्कर में आप बात चीत इस तरह छोटी नही करे ! आज मैं भी आपसे यह शिकायत दर्ज करवा रहा हूँ ! इस लेख में यह कमी बहुत खल रही है ! वैसे आप स्पस्टीकरण दे चुके हैं ! पर जमाने का इतना भी ख्याल मत करिए ! हम है ना आपके शानदार और धारदार लेखन के मुरीद ! :)

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  8. "हिन्दी ब्लाग और पुरूष मानसिकता !"
    सतीश जी
    "हिन्दी ब्लाग और पुरूष मानसिकता !" इस विषय को छोड़ कर हर बात पर कमेन्ट आया हैं . और आप के पास बातचीत के बाकी अंश भी हो तो आप निसंकोच दे अपने ब्लॉग पर लेकिन विषय पर कमेन्ट भी आने चाहिये जिनका आभाव खल रहा हैं . पर इतना कहना हैं की आप ने एक मामूली चाट से जो पोस्ट बनायी हैं उसपर विचार जरुर होना चाहिये . ब्लॉग अभिव्यक्ति का माध्यम हैं पर क्या अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का मतलब हैं की अगर कोई महिला नारी आधरित विषयों पर लिखती हैं तो वह शालीन नहीं हैं ? व्यवस्था मे भेद भाव हैं नारी पुरूष समानता मे , मै नारी पुरूष समानता का मतलब मानती हूँ संविधान मै मिले हर बराबरी के अधिकार की समानता बिना लिंग भेद के आधार पर और इसके लिये मै फिर कहुगी "बेटो को शिक्षित करे " लड़किया अब अकेले रहने मै सक्षम हो रही हैं , परिवार जल्दी टूटे गए अगर अब भी पुरूष समाज नहीं जागेगा . लड़किया हर फील्ड मे बढ़ रही हैं और सबसे ज्यादा वो मानसिक रूप से evolve हो रही हैं जिसकी रफ़्तार पुरूष से ज्यादा हैं सो व्यवस्था को सही करने की कोशिश करनी होगी .

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  9. http://indianwomanhasarrived.blogspot.com/2008/05/blog-post_21.html
    http://indianwomanhasarrived.blogspot.com/2008/06/blog-post_13.html
    एक बार अगर पुरूष वर्ग नारी के प्रति अपनी पूर्वाग्रह को छोड़ वो सब पढ़ने की कोशिश करेगा जो महिला ब्लॉगर लिख रही हैं तो सब को जरुर महसूस होगा हम व्यवस्था बदलने की बात कर रहे हैं और अगर ऊपर दिये गए लिंक्स आप देखे और उप पर दिये गए ब्लोग्स पर आप जाये तो आप को पता चलेगा की नारी जिसको देवी कहा जाता हैं उसको वास्तव मे पुरूष ब्लॉगर किस नज़र से देखते हैं . इस चर्चा को बढाए

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  10. Sir, isse pahle bhi kuch post mujhe kisi aur ke through padhne ko mila aur behad dukh hua padhkar. Fir soch li ki na, perhaps the place hindi blogjagat is not for me kyunki yahan maximum ke kalam talwar ke dhar ke tarah chalte hein aur kabhi bhi kisi ka sir kalam shabdon ke madhyan se kar skate hein. Mujhe isme bahaduri nahi nazar aati hai jo aisa kar apni mahanta sabit karna chahte hein. Main aaplogon se kafi choti hun but aisa padhte dekhti hun to atmsamman per thesh lagne ka dar lagta ahi isliye avoid karna jyada achha manti hun. Anyway, ek post aap yahan padh sakte hein http://rewa.wordpress.com/2008/05/19/try-to-digest-it/

    rgds.

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  11. स्मृति की पोस्ट से, हिन्दी ब्लोग्स पर समाज और हिन्दी के लिए कार्य कर रहीं लड़कियों की तकलीफ झलकती है ! यह वाकई दर्दनाक है, एक अन्य ब्लाग पर यह बहादुर लडकी, रचना जी को कहे अपमानजनक शब्दों का प्रतिरोध कर रही थी, तब भी मैंने यही तड़प देखी थी !
    @मगर स्मृति ! तब तो तुमको हिन्दी ब्लाग की की गलतियों के ख़िलाफ़ जनमत तैयार करने में जुटना चाहिए न कि यहाँ से डर कर भाग जाना, यहाँ बहुत अच्छे अच्छे लोग हैं जो यह सब देख रहे हैं और तुम्हे साथ देने अवश्य आयेंगे ! एक दिन तुम अवश्य जीतोगी !

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  12. .

    ऎ भाई लोग, मैं ठहरा एक अदना सा नुस्ख़ा लेखक,थोड़ी बहुत किताबें पढ़ लेने का गुनाह भी करते पाया गया हूँ,

    सो, उनसब को एक किनारे रख, जो मैंने देखा है वही बयान कर दूँ, एक वालिद का अपनी औलाद को ख़त लिखना कोई गैरवाज़िब तो नहीं ? भले वह रूबाइयतों की शक्ल में हो, तो भी !

    इस अहसास को अपने दोस्तों से मिल बैठ बाँटना भी कतई गैरमुनासिब नहीं !

    नर और नारी का शाश्वत संबन्ध ही पृथ्वी पर चल रहे जीवन की उर्ज़ा है, और यह कोई शोषण तो नहीं ? क्यूँकि दोनों ही एक दूसरे के लिये कुछ खोते हैं, तो कुछ पाते भी तो हैं !

    अधिकार... यह अधिकार रूपी प्रवंचना तो मुस्कुराते हुये एकदूसरे की ज़ेब से सहज़ ही निकाले जा सकते है ! लफ़ड़ाइच ही नहीं, बाप !

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  13. सहमत हूँ डॉ साहेब से सौ फीसदी......

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  14. उत्साहवर्धन की शक्तिपुंज सरीखी यह टिप्पणियां वास्तव में बहुत शक्तिशाली हैं, मैं आप सबके स्नेह के लिए आभारी हूँ !
    @अनिताकुमार ! आपके शब्दों से ही एक ममतामयी मां, का वात्सल्य झलकता है ! यह करुणा ही भारतीय नारी की पहचान है !
    @दिनेशराय द्विवेदी ! आपके आने से इस लेख की इज्ज़त में इजाफा हुआ है , आपका शुक्रिया!
    @जाकिर भाई मैं आपको स्पष्टीकरण पहले ही दे चुका हूँ ! मगर भविष्य में इसका ध्यान रखा जाएगा !
    @कविता जी ! लगता है आप नाराज हैं .....:-)
    @रंजना जी ! आखिरी लाइन में सब कुछ कह दिया है !
    @ताऊ रामपुरिया ! जब भी बोरियत हो तो ताऊ की खटिया पर जा बैठता हूँ , और हँसते हुए बापस आता हूँ ! आपने मुझे हरियाणवी सिखा दी ! ब्लाग जगत में दिए जा रहे कमेन्ट के बारे में बड़ी गंभीर चर्चा की आवश्यकता है ! अगर शुरुआत आप करो तो बड़ा मज़ा आएगा ! मगर बख्शियेगा किसी को नहीं, नाम भी मत लेना नही तो ताऊ फिर एक बखेडा खड़ा हो जाएगा ! आशा है आप इस अनुरोध का ध्यान रखेंगे ! आपके स्नेह का सचमुच आभारी हूँ ! मुक्त ह्रदय से प्रसंशा करना हर एक के बस की बात नही, आपने मुझे हमेशा इस गड़बड़ नगरी में, साहस दिलाये रखा !
    @रचना जी ! स्त्री व पुरूष समाज के पूरक हैं ! जिस स्त्री की बात आप कह रही हैं वही मेरी बहिन , मेरी पुत्री और मेरी जननी है ! इनके बारे में मैं क्या कहूं, मगर समस्यायें आधुनिक समाज , आधुनिक शिक्षा, टेलीविजन की शिक्षाएं हैं.....
    @ डॉ अमर कुमार ! आप जहाँ आजाते हो वहाँ रौनक आ जाती है ! आपका धन्यवाद !
    @अनुराग जी ! आपने सस्ते में अपना कम कर लिया , अपेक्स्छा अधिक रही थी !

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  15. बहुत ही संवेदनशील विषय पर यहाँ चर्चा करते लोग मिले.
    पता नहीं क्यों स्वस्थ-संवाद की परम्परा अब लुप्त होती जा रही है.
    कुछ एक ने कोशिश की ज़रूर लेकिन संकोच या कोई और आग्रह रहा होगा मन में वो कामयाब नहीं हो पाये.
    मुझ खाकसार के जो पल्ले लगा वो और ज्यादा कहूँ तो ये है कि सतीश जी और रंजना जी भी खुलकर संवाद नहीं कर पाए.ऐसा क्यों हुआ? पता नहीं.

    बावजूद संवाद धर्मिता तो दिखी, जो प्रशंसनीय है.

    हमें ये नहीं भूल जाना चाहिए कि नर-नारी पूरक हैं.

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  16. सतीश जी
    बहुत अच्छा विषय प्रस्तुत किया है आपने. रचना जी बहुत परिश्रम कर रहीं है. उनका अभियान केवल औरत पर आधारित है, उनकी बात भी सत्य होतीं हैं किन्तु आप परिवार की बात कर रहे हैं, परिवार व समाज को नजर अन्दाज नहीं किया जा सकता और न ही किया जाना चाहिये. नर - नारी को अलग करने की अपेक्षा दोनों को साथ लेकर चलना होगा. नर को नारी के हित को सुरक्षित करना ही होगा नारी ब्लोगरों को भी सन्तुलित विचार रखना चाहिये केवल पुरुष के पीछे हाथ धोकर पड जाना किसी के हित में नहीं है. न तो सारे पुरुष अपराधी होते हैं और न ही सारी नारियां देवी. अतः परिवार व समाज को ध्यान में रखकर ही परिवर्तन हो सकता है केवल आलोचना दूरियां बढाती है सुधार नहीं करती. आपके पारिवारिक व प्रेम से भरे गीत में से भी नर-नारी का भेदभाव खोजने की आवश्यकता नहीं होनी चाहिये.

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एक निवेदन !
आपके दिए गए कमेंट्स बेहद महत्वपूर्ण हो सकते हैं, कई बार पोस्ट से बेहतर जागरूक पाठकों के कमेंट्स लगते हैं,प्रतिक्रिया देते समय कृपया ध्यान रखें कि जो आप लिख रहे हैं, उसमें बेहद शक्ति होती है,लोग अपनी अपनी श्रद्धा अनुसार पढेंगे, और तदनुसार आचरण भी कर सकते हैं , अतः आवश्यकता है कि आप नाज़ुक विषयों पर, प्रतिक्रिया देते समय, लेखन को पढ़ अवश्य लें और आपकी प्रतिक्रिया समाज व देश के लिए ईमानदार हो, यही आशा है !


- सतीश सक्सेना

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