Saturday, March 7, 2009

नफ़रत या प्यार !

"संकीर्ण सोच" श्रीकांत पराशर के उन लेखों में से एक है जो मुझे बहुत पसंद है और बहुत कुछ सोचने को मजबूर करता है ! अफ़सोस है कि हर समाज का नुकसान करने वाले अधिकतर यही संकुचित सोच वाले "बुद्धिमान" व्यक्ति ही रहे हैं !यह सच है कि संकीर्ण विचारधारा को बदलना अगर असंभव नही तो बेहद मुश्किल कार्य अवश्य है

आज भी ऐसे लोगों की कमी नही है जो हर समय नफरत पालते हैं और नफरत में ही सोना पसंद करते हैं, इन लोगों को प्यार और स्नेह का आनंद ही मालुम नही ! अधिकतर ऐसे लोगों की प्रारिवारिक प्रष्ठभूमि में सहोदर भाई बहनों में भी प्यार की जगह एक दूसरे को नीचा दिखाना तथा पूरे जीवन एक दूसरे के साथ दिखावा करना ही रहा है !

घर में माता-पिता की भूमिका को नकारते समय, हमें यह याद क्यों नही रहता कि भविष्य में यही भूमिका हमारी भी होगी, और हमारी संतान हमें उतना ही महत्व देगी !

8 comments:

  1. नफरत तो बेस नहीं बन सकता व्यक्तित्व का। किसी विशेष टेक्टिक्स का औजार भर ही हो सकता है। अन्यथा यह अवसाद को ही जन्म देगा।

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  2. इतने दिनों के बाद बस केवल इतना ही? वैसे हम भी आपसे सहमत हैं. आभार.

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  3. आपको और आपके परिवार को होली की रंग-बिरंगी भीगी भीगी बधाई।
    बुरा न मानो होली है। होली है जी होली है

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  4. सही लिखा सतीश जी आपने ।

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  5. बड़ी देर की मेह्रबां आते-आते।:)
    होली की रंगबिरंगी शुभकामनायें।

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  6. बात तो आपने बहुत सही कही है. होली की आपको बहुत शुभकामनाएं.

    रामराम.

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    try this, www.quillpad.in

    Jai...Ho....

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एक निवेदन !
आपके दिए गए कमेंट्स बेहद महत्वपूर्ण हो सकते हैं, कई बार पोस्ट से बेहतर जागरूक पाठकों के कमेंट्स लगते हैं,प्रतिक्रिया देते समय कृपया ध्यान रखें कि जो आप लिख रहे हैं, उसमें बेहद शक्ति होती है,लोग अपनी अपनी श्रद्धा अनुसार पढेंगे, और तदनुसार आचरण भी कर सकते हैं , अतः आवश्यकता है कि आप नाज़ुक विषयों पर, प्रतिक्रिया देते समय, लेखन को पढ़ अवश्य लें और आपकी प्रतिक्रिया समाज व देश के लिए ईमानदार हो, यही आशा है !


- सतीश सक्सेना

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