Friday, January 29, 2010

अमन की आशा !!

                            "अमन की आशा" टाइम्स ऑफ़ इंडिया और जंग (Pakistan )द्वारा उठाया गया एक बेहद मीठा और स्वागत योग्य कदम है ! आज के बेहद कडवे माहौल में, जब दोनों देशों में सिर्फ एक दूसरे के प्रति मारने काटने की बातें ही हवा में हो रही हों, कट्टरता के मध्य अमन की आशा बहुत हिम्मत वाला और अलोकप्रिय कदम है ! एक व्यावसायिक संस्थान ने लाखों लोगों की मधुर आशाओं को जगाने के लिए, एक अव्यवसायिक और खर्चीला कदम उठाया है , मैं तहे दिल से शुभकामनायें दे रहा हूँ ! 
इसके प्रणेता देश के स्थापित शांति पुरस्कार के वास्तविक हकदार हैं ! 
भगवान् इस पुनीत कार्य में टाइम्स ऑफ़ इंडिया की मदद करें !
दुबारा शुभकामनायें !!

22 comments:

  1. थोड़ा सतर्क विवेचन करें। यह बस एक 'मार्केटिंग' अस्त्र है जिसे जनता पर आजमाया जा रहा है।
    भारत पाक में कभी आपसी अमन नहीं हो सकता क्यों कि पाकिस्तान की बुनियाद ही घृणा है जिसे इतने वक़्त तक पाला पोसा गया है और अभी भी फीड किया जा रहा है। इस तरह के कथित अमन प्रयास कॉस्मेटिक हैं जिनका उद्देश्य भावनात्मक शोषण है, और कुछ नहीं।

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  2. इस पुनीत कार्य हेतु मेरी भी शुभकामनाएँ.

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  3. @बेनामी ,
    एक बार उद्देश्य पर, दुबारा निष्पक्ष होकर विवेचन करें, आप आशा का ही त्याग कर रहे हैं ... आशा जीवन का मूल आधार है , अगर उसे ही छोड़ दिया जाये तो कुछ बचेगा ही नहीं ! समाज और परिवार राजनीतिक विचारधारा से नहीं चलते... बात दिलों से नफरत निकालने की है फिर प्रयास क्यों न करें ? मेरा यह मानना है कि कोई धर्म नफरत कभी नहीं सिखाता, सिर्फ अशिक्षा और गलत समझ के कारण क्रोध हमें आपस में लडवा रहे हैं ! आप दिल में अपनापन लेकर, एक बार अपने छोटे भाई के साथ बैठकर तो देखें... बहुत प्यार है दोनों धर्मों में और दिलों में भी सिर्फ थोडा स्नेह चाहिए ....
    सादर !!

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  4. शांति और प्रेम से अच्छा क्या हो सकता है?

    मगर आप किससे आशा करते हो? दूध कितना ही पिलाओ साँप जहर ही उगलेगा. बार बार घाव खाकर भी जो प्रेम की अपेक्षा करे उसे क्या कहें और कैसे कहें "साधूवाद"?

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  5. भाई हम भी बेनामी ओर संजय बेंगाणी जी की बात से सहमत है, जो घर बना हो लाशो पर ओर घृणा पर आप उन से प्यार की उम्मीद रखते है???

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  6. एक रोग स्टेट से ज्यादा उम्मीद मुझे तो नहीं। हां, किसी पाकिस्तानी से इण्डीवीजुअल के रूप में दोस्ती जरूर पसन्द आयेगी।

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  7. संजय बेगानी जैसे लोगों को कभी भी अच्छी चीज़ भली नहीं लगती और सभी बीमारी की जड़ में मुसलमान और इस्लाम ही नज़र आता है.ऐसे लोग जब पत्रकारिता में हो तो देश की गंगा-जमनी संस्कृति के बारे में आप सोच सकते हैं.
    मेरा हमेशा मानना रहा है कि ऐसे प्रतिक्रियावादी ही अल्पसंख्यक, दलित और नारी विरोधी होते हैं.
    विवेकानद ने कभी कहा था कि जब साम्प्रदायिकता अपने चरम पर होती है तो वो उसे ही भूल जाती है जिनसे उसने खून-पानी प्राप्त किया था.और लोग न जाने क्यों ऐसे लोगों को खून-पानी मुहैय्या कराते रहते हैं.
    बाल ठाकरे या फिलहाल पाकिस्तानी हुक्मरानों की मिसाल लें:
    ठाकरे परिवार जब तक मुसलामानों को गलिया रहे थे तो हिन्दू-सम्राट रहे.लेकिन जब ही वो बिहारियों के विरुद्ध हुए सभी आग-बगुला हो उठे!!
    ऐसा ही पाकिस्तानी हुक्मरान जब आतंकवादियों को अपने लिए इस्तेमाल करने के लिए पोसते रहे तो वो जिहादी कहलाये लेकिन जब उनहोंने लाहौर और करांची में बम फोड़ना शुरू किया तो वो आतंकवादी हो गए!!

    सतीश जी की भावनाओं को नमन!!दिल मेरा भी यही कहता है जो आपका मन!!

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  8. श्री शहरोज जी से पूर्णरूपेण सहमत

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  9. सतीश जी, बात धर्म की नहीं दो देशों की है जो एक थे लेकिन कृत्रिम रूप से स्वार्थ के कारण अलगा दिए गए। आधार घृणा थी। एक देश ने सही राह पकड़ी और दूसरे ने गर्त की। नतीजा सामने है। धर्म का मामला होता तो पूर्बी बंगाल बंगलादेश न बनता और न पाकिस्तान में मोहाजिर होते। वहाँ की सोसिओ पॉलिटिकल सीनेरियो ऐसी है कि उन्हें भारत से नफरत की खुराक पर ही जिन्दा रहना है। You know diplomacy is not an exercise in morality and idealism. जलता यथार्थ सामने है और आप टुच्ची मार्केटिंग गिमिक की चौंध में देख नहीं पा रहे हैं।
    थोड़ा पाकिस्तान का इतिहास देखें, जंग का इतिहास देखें और ये भी देखिए कि lead India कैम्पेन से क्या लाभ हुआ?
    ...यथार्थ परक हो सोचिए बस यही निवेदन है।

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  10. इन्डिया-पाकिस्तान रंजिश इस दुनिया में पहली रंजिश नहीं है, और भी बहुत से देशों में युद्ध और शीत युद्ध हुए हैं ! हम पड़ोसी से बहुत अधिक शक्तिशाली हैं उसके बाद भी अगर हम मित्रता का पैगाम मुस्कान के साथ देते हैं तो विश्व इसका स्वागत ही करेगा !
    रंजिश और दुश्मनी को कम करने का प्रयत्न ही हमेशा सही ठहराया गया है और यही मानवता का लक्ष्य होना भी चाहिए ! इतिहास में आज तक, दुश्मनी और रंजिश के कारण, कोई भी देश या धर्म किसी दुसरे देश या धर्म को नेस्तनाबूद नहीं कर पाया है ! फिर इस रंजिश से क्या मिलेगा ?? सिर्फ आने वाली पीढ़ियों में हमेशा के लिए नफरत, गुस्सा और असुरक्षा की भावना !!
    हम इसे खत्म करने का प्रयत्न करें अथवा हमेशा इस आग में घी डालें ?? पडोसी देश के नेता भारत विरोध के बल पर जिन्दा हैं, तो क्या हम भी, कमोवेश वही नहीं कर रहे ! आप इसमें टुच्ची मार्केटिंग कैसे देख पा रहे हैं जबकि यह एक अलोकप्रिय काम है ?

    आप विद्वान् हैं कृपया गुस्सा थूक कर खुले मन से विचार करें !

    मुझे तो लगता है कि शांति के साथ हँसते हुए रहना अधिक सुखकर है, खासतौर पर तब ...जबकि आप प्रतिद्वंद्वी से अधिक शक्तिशाली हों !

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  11. सतीश जी कद्र करता हूँ आपकी भावनाओ का , लेकिन जिस अमन चैन की बात यहाँ की जा रही है वह अब तो बिती बात जैसी लगती है , हमेशा इसको लेकर पहल की जाती रही, लेकिन हुआ क्या हमेशा भारत को मूहं की खानी पड़ी, इसलिए ये समय अमन कायम करने की नहीं बल्कि पाकिस्तान में अमन खत्म करने की है , घर में घुस के मारेंगे, तब जाके अमन और शान्ति फैल पायेगी ।

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  12. There is no question of anger. 'Goodness' 'Ethics' etc. are very good marketable items. Marketing people use them, nothing wrong as far as their operation is concerned. But there is no place of emotions and even ethics in diplomacy.India has always been defeated because of 'ethical' 'emotional' approach at negotiation table, not in actual war. Compare what happened in 1965, 71 with 1962. What happened after Lahore? What happened after and during Agra summit? Pakistanis are far superior than Indians in such diplomacies. They are not like 'younger' or 'inferior' brothers. A nation which does not take lesson from past, is bound to repeat the blunders. We are facing Kashmir, Siachin, Arunachal, Laddakh because of our emotional approach. ..Pakistan can never change but we can change for better. Remember Krishna and Chanakya.. and remember hardships of our people because of diplomatic blunders of past.

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  13. यह एक ऐतिहासिक सत्य है कि पकिस्तान के हुक्मरान, दशकों से, हमारे देश को झुकाने और कमज़ोर करने में लगे रहे ! यह भी सच है कि आजतक पाकिस्तान ने हमसे अच्छे रिश्ते बनाने की ईमानदार पहल कभी नहीं की मगर क्या वे अपनी जगजाहिर नफरत को लेकर कभी विश्व में सहानुभूति हासिल कर पाए ? यह भी सच है कि हर युद्ध में उन्हें भारी शिकस्त मिली और अगर ईश्वर न करे, भविष्य में कभी युद्ध हुआ तो भी पाकिस्तान को भारी नुकसान होना तय है , मगर गहरे घाव हमें भी होंगे इससे इनकार नहीं किया जा सकता !
    मगर दो राष्ट्रों से अधिक चिंता मुझे अपने घर में हो रही दरारों से है , इन सौतेले बेटों के मध्य होने वाले हर युद्ध से हमारे घर में आपसी शक के कारण यह दरारें और गहरी होने का भय रहता है ! खतरा घर की लड़ाई से है, पाकिस्तान गैर है ...चिंता घर की ज्यादा है और होनी भी चाहिए !
    आज जब संसार से अधिकतर देशों ने युद्ध की बातों से किनारा कर लिया है, उस समय हम युद्ध के लिए ललकारतें फिरें , एक ताकतवर देश होने के कारण हमें शोभा नहीं देता!
    लडाई और सैनिक क्षमता में पडोसी हमसे एक चौथाई भी नहीं है, इसी कमजोरी और खीज के कारण वहां से हम पर चोटें होती रहती हैं , मुस्करा कर जब तक बर्दाश्त है, सहें , उसमें हमारा सम्मान होगा ! अच्छे भविष्य की आशा करना ही बेहतर है....हमारा भविष्य अच्छा है और रहेगा !

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  14. सतीश जी .......... ये प्रयास बहुत अच्छा है ....... ऐसे प्रयास होते रहने चाहिएं ........... जहाँ तक कुछ चिंताओं का सवाल है (जो आपके ब्लॉग पर टिप्पणियों के माध्यम से देख रह हौं) वो अपनी जगह ठीक हैं ..... उनके लिए सचेत रहना चाहिए ....

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  15. @ भविष्य में कभी युद्ध हुआ तो भी पाकिस्तान को भारी नुकसान होना तय है ,
    [ हर युद्ध में भारी नुकसान हमारा भी हुआ है,यह न भूलें। कारगिल को अधिक दिन नहीं हुए। उसके पहले लोग यही कहते थे। हम तो जीत कर भी वार्ता में हारते रहे हैं। पड़ोसी अगर न सुधर रहा हो तो अपना अप्रोच बदल देना चाहिए। आखिर कब तक उसे परखते रहेंगे?]
    @ चिंता मुझे अपने घर में हो रही दरारों से है , इन सौतेले बेटों के मध्य होने वाले हर युद्ध से हमारे घर में आपसी शक के कारण यह दरारें और गहरी होने का भय रहता है ! खतरा घर की लड़ाई से है,& @हम युद्ध के लिए ललकारतें फिरें , एक ताकतवर देश होने के कारण हमें शोभा नहीं देता!
    [ यह समझ में नहीं आया। हमने कभी आक्रमण नहीं किया, कभी ललकारा नहीं। बस प्रतिकार किया। प्रतिकार से भी घर में दरार पड़्ती है क्या? ये आप क्या कह रहे हैं? क्या हमें प्रतिकार भी नहीं करना चाहिए? 'सौतेले बेटों ' तो आप ने खूब कहा - माताओं और पिता का नाम बताएँगे? बेहतर है कि राजनय और कूटनीति में सम्बन्धसूचक शब्दों का प्रयोग न किया जाय। इससे कंफ्यूजन होता है। नज़र धुँधली होती है। बाहरी हमले के समय जो घर वाले नैष्ठिक संकट में पड़ते हों और दरार पैदा करते हों उनका दमन होना चाहिए न कि उनसे डरना चाहिए।] contd.

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  16. @
    आज जब संसार से अधिकतर देशों ने युद्ध की बातों से किनारा कर लिया है,
    [ ऐसा कुछ नहीं है। संसार में युद्ध कम नहीं हुए, उनके रूप बदल गए हैं ]
    @ मुस्करा कर जब तक बर्दाश्त है, सहें , उसमें हमारा सम्मान होगा !
    [ कोई भी देश कमजोर का सम्मान नहीं करता। यह कूटनीतिक सच है। चीन और स्वयं कथित कमजोर पाकिस्तान भारत के साथ क्या करते रहे हैं और कर रहे हैं, वह आप को दिखता ही नहीं ? कमाल है ! .. राष्ट्रों के भविष्य कमजोर लचर आदर्शवाद से नहीं कटु यथार्थ के अनुसार चलने और ढलने से सँवरते हैं। ]
    हमारे जीवन काल में ही भारत कम से कम एक और पाकिस्तानी हमला झेलेगा। इसकी जिम्मेदारी हमारी लचर आदर्शवादिता की ही होगी। उस समय टाइम्स और जंग अपने अपने देश देशभक्ति के राग अलापेंगे और मोमबत्त्ती जलाने वाले टीवी पर कैजुअल्टी की खबरें देख देख माथा धुनेंगे।.. सवाल यह है कि ऐसी नौबत आए ही क्यों? बेहतर है कि हम पुरानी भूलों से सबक लें...

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  17. satish ji ,bahut umda soch hai aapki ,amn ki aasha karna kaise ghalat ho gaya main samajh nahin paa rahi hoon ,tippaniyon ke dwara jo charcha hui hai ismen bahut se mitr ap se sahmat nahin hain lekin main aap se poorntaya sahmat hoon ,yuddh kisi samasya ka hal nahin ,agar ham bhi wahi karen jo pak kar raha hai to ham men aur unmen antar kahan raha ,apne aadarshon ke karan hi aj bharat duniya men samman ki drushti se dekha jata hai phir adarshvad 'lachar' kaise ho sakta hai.
    aapki is bhavna ko mera salam hai .apke sath aj bhi bahut log hain ,mera to kahna hai ki 'hope is the last thing to loose .mubarakbad qubool karen.

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  18. एक आशावादी सोच और सार्थक पहल का आपने स्वागत किया और सहयोग की अपील की, लेकिन टिप्पणियों पर जब नज़र गई तो देख रही हूं कि यहां तो आक्रोश बिखरा पडा है! ऐसे में कोई भी सकारात्मक कदम कैसे अपनी सार्थकता सिद्ध कर सकता है? राजनीति कभी भी दिलों को पास लाने का काम नहीं करती. जहां राजनीति का प्रवेश हुआ, वहीं माहौल गन्दा हो गया. तो यदि राजनीति से परे हम केवल आम आदमी को जोडने की बात करें तो इसमें गलत क्या है? क्यों हम हमेशा हर बात का राजनैतिक पहलू ही देखते हैं? दंगा करने वाला आम पाकी नागरिक नहीं है, वो तो खुद भी अमन-चैन ही चाहता है. बहुत सही है सतीश जी, कि हम पहले अपने घर की दरारों को तो भर लें. मुझे तो इस एक पृष्ठ पर ही पता नहीं कितनी दरारें दिख रही हैं.

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  19. sarwat jamal to me
    show details 3:10 PM (2 hours ago)
    आपकी पोस्ट पढ़ कर बहुत अच्छा लगा लेकिन कमेंट्स ने जायका खराब कर दिया. ६३ वर्षों के बाद भी हम वहीं खड़े हैं, दुःख व्यक्त किया जाए या खुशी मनाई जाए, हम यह फैसला भी नहीं कर पाते. दरअसल, नफरत की बुनियाद पर पाकिस्तान वजूद में आया, इस पर किसी को भी शक नहीं है. मगर हम इस नफरत को कब तक ढोते रहें? नंगी सच्चाई यह है कि दोनों ही देशों के हुक्मरानों ने, अपना उल्लू सीधा करने के लिए ही, नफरत को बढ़ावा दिया, युद्ध किए. आज, ग्लोब्लाइज़ेशन के युग में भी हम अगर १९४७ की भाषा का इस्तेमाल कर रहे हैं तो हमें संजीदगी से अपना आकलन करना चाहिए.
    यह भी एक तल्ख हकीकत है कि पाक के नापाक हुक्मरानों ने, भारत के साथ मैत्री सम्बन्धों को सदा न सिर्फ अस्वीकार किया बल्कि उसे जूते की नोक पर ही रखा. लेकिन सवाल ये है कि क्या पाकिस्तान के हुक्मरान ही पूरा पाकिस्तान हैं? पाकिस्तान के उन अवाम को, उनके जज्बात को नफरत की उसी आग में झोंक दिया जाए जो पोलिटिशियन दहका रहे हैं? पाकिस्तान भारतीय फ़िल्में, भारतीय गीत, भारतीय साहित्य, भारतीय संस्कार और जाने क्या क्या भारतीय चीजों के प्रति जो मोह है, उसे भी सरहद के इस पार ही रोक लिया जाए.
    यह सच है कि आतंक की आग पाकिस्तान ने ही सुलगाई और अब, लगातार उसमें भस्म होते रहने के बावजूद, घुसपैठ और भारत में आतंकी हमलों से वो बाज़ नहीं आ रहा है. फिर भी, एक सवाल- क्या ये पाकिस्तानी अवाम कर रहे हैं? कर कौन रहा है- मुट्ठी भर सियासी लोग, क्या इन सियासियों की करनी की सज़ा करोड़ों पाक नागरिक भुगतें? हम कट्टर-कठोर, १९४७,१९६५, १९७१ वाले ही बनें! वसुधैव कुटुम्बकम को भूल जाएं, नकार दें इसे?
    बेनामी भाई! एक अपना ही शेर पेश करके अपनी बात खत्म कर रहा हूँ-
    इस तरफ तिरंगा है, उस तरफ हर परचम
    लाख कीजिए कोशिश, दरमियान हैं चेहरे !!

    Satish Bhayee, your comment box is not ready to accept my viwes, that is why, I'm bound to mail.

    Sarwat M. jamal

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  20. हमारी भी शुभकामनायें ले लीजिये। धन्यवाद्

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  21. टाइम्स ओफ़ इंडिया और जंग का ये प्रयास काबिले तारिफ़ है। भगवान करे उनके ये प्रयास सफ़ल हों। इसके अलावा मैं आशा कर रही हूँ कि महाराष्ट्रा टाइम्स द्वारा टाइम्स ऑफ़ इंडिया बम्बई में भी भाईचारा फ़ैलाने की शुरुवात करेगा और सफ़ल होगा

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  22. सतीश जी, मैं तो बहुत पहले से इसका फैन हूं... वाकई इन अख़बारों की ये पहल काबिले-तारीफ है.. ऐसे वक्त में जब दोनों ही मुल्को में नफ़रत के सौदागर भी मौजूद हों.. वैसे भी आप आम इंसान से पूछिए.. इंसानियत के बीच आज भी कोई दीवार नहीं है.. नफ़रत के बीज तो सियासत ने बोये हैं.. और उनकी बोई फसल आम लोग काट रहे हैं...

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एक निवेदन !
आपके दिए गए कमेंट्स बेहद महत्वपूर्ण हो सकते हैं, कई बार पोस्ट से बेहतर जागरूक पाठकों के कमेंट्स लगते हैं,प्रतिक्रिया देते समय कृपया ध्यान रखें कि जो आप लिख रहे हैं, उसमें बेहद शक्ति होती है,लोग अपनी अपनी श्रद्धा अनुसार पढेंगे, और तदनुसार आचरण भी कर सकते हैं , अतः आवश्यकता है कि आप नाज़ुक विषयों पर, प्रतिक्रिया देते समय, लेखन को पढ़ अवश्य लें और आपकी प्रतिक्रिया समाज व देश के लिए ईमानदार हो, यही आशा है !


- सतीश सक्सेना

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