Sunday, April 18, 2010

कुरआन शरीफ पर कुछ भी लिखने को मेरी कलम नहीं चलती -सतीश सक्सेना

                             विधर्मियों के लिए, हज़ारों वर्ष पूर्व की परिस्थितियों में लिखी गयीं , अन्य धर्मों की पवित्र पुस्तकें पढ़कर, उनकी मज़ाक बनाना बेहद आसान हो जाता है , और आजकल यह कुछ तथाकथित विद्वानों की मेहनत के कारण और भी आम होता जा रहा है !
                             मैंने जब ब्लागिंग शुरू की थी तो सोचा इस देश के दोनों बच्चों  को  मिलाने का प्रयत्न करूंगा ! बहुसंख्यक होने के नाते यह हमारा फ़र्ज़ है कि अल्पसंख्यक समुदाय को किसी भी हालत में असुरक्षित महसूस न होने दें अतः हम बड़े भाई का फ़र्ज़  अदा करने का पूरा प्रयत्न करें ! 
                                अभी कुछ समय से लगता है कि यहाँ किसी को समझाने की आवश्यकता नहीं है यहाँ तो कमर कस रखी है कि दूसरे धर्मों की कमियां लिख लिख कर बताई जायेंगी ! ५ वक्त की नमाज़ पढने वाले, गीता पढ़ाने का प्रयत्न कर रहे हैं ! और विद्वान् पंडित नमाजियों को नमाज़  सिखा रहे हैं !
                                 नफ़रत की आग में जलते इन लोगों को न कुरआन के सम्मान का ख़याल है और ना शास्त्रों  का ! भगवान् न करे कोई अनहोनी घटे सबसे पहले यही कायर बिलों में जा घुसेंगे और हमारे बच्चों को इस आग में जलते देखने का आनंद लेंगे ! 
                                हे  ईश्वर ! अपने घर में, अपने ही बच्चों को खाने की कोशिश करते , इन विषैले  नागों को सदबुद्धि दे ! 

31 comments:

  1. satish ji namskar,

    mujhe ek baat bataye, aap alpsankhyak kinhe mante hain jinhe surksha ki jarurat hai. yahudi,Jain, Sikh, Baudhh, parasi, bahai . akhir enme se kaun hain jinhe surksha ki jarura hai. thoda spasht karen.

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  2. आपका यह लेख इस बात का प्रतीक है कि आप 'वसुधैव कुटुंबकम' में यक़ीन करते हैं और इंसानियत के हिमायती हैं...
    हम भी इंसानियत में यक़ीन करते हैं, इसलिए मज़हब के ठेकेदारों ने बाकायदा ऐलान कर रखा है कि, हम इंसान तो हैं, लेकिन मुसलमान नहीं...

    जो लोग दूसरे धर्म की पवित्र किताबों और देवो-देवताओं के बारे में अपमानजनक बातें करते हैं, उनका मक़सद सिर्फ़ धार्मिक भावनाएं भड़काकर देश के चैन-अमन के माहौल को ख़राब करना और नफ़रत फैलाना ही है...
    ये लोग अपने गिरेबान में नहीं झांकते... जबकि यहां तो टॉयलेट में जाने से संबंधित आयतें भी हैं...
    ये बहुसंख्यक वर्ग की महानता है कि वो इस तरह की बातों को बीच में नहीं लाते...
    नफ़रत, नफ़रत को बढ़ाती है... और प्रेम, सिर्फ़ प्रेम का माहौल ही पैदा करता है...

    जय हिंद
    वन्दे मातरम्...

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  3. क़ुरआन को मानने वाले अल्पसंख्यक नही हैं।
    सद्बुद्धि ईश्वरहीन रहने से भी आ सकती है - व्यक्ति को स्वयं ईमानदारी पूर्वक सोचना होगा। लेकिन जहाँ बन्दों को बढ़ाने के निर्देश ईश्वर द्वारा ही दिए गए हों, वहाँ इस तरह की सद्बुद्धि की अपेक्षा करना हताशा का कारण होगी।

    ऋक् संहिता के इन कामना मंत्रों को देखें:

    आ नो भद्रा: क्रतवो यंतु विश्वत:।

    संगच्छध्वम् संवदध्वम् संवो मनांसि जानताम
    देव भागम् यथा पूर्वे संजानाना उपासते...
    समानीव आकू पि: समाना हृदयानि व:
    समानमस्तु व मनो यथा व: सुसहासति।

    अन्य धर्म ग्रंथों में भी ऐसी बातें होंगी... लेकिन कई बार वे केवल दीन या पंथ को मानने वालों पर लागू होती हैं। बुतपरस्तों के लिए तो बस दोजख ही निर्धारित है, यहाँ भी और उस कथित ईश्वर के यहाँ भी।

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  4. हमारे बच्चों को इस आग में जलते देखने का आनंद लेंगे !
    और फिर यह आग लगायी ही इसीलिये जाती है. बुझाने वाले कफिर या धर्मभीरू माने जायेंगे. बच्चों की कुर्बानी, निर्दोषों की कुर्बानी तो हमेशा से होती आयी है.

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  5. सतीश जी आप की बात से सहमत नही हुं.
    धन्यवाद

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  6. जैसा गिरिजेश राव ने उद्धृत किया है
    "आ नो भद्रा: क्रतवो यंतु विश्वत:"
    यही हमारी कामना भी है.
    फ़िरदौस ख़ान को नमन.

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  7. कही आपके प्रयास में ही तो कोई कमी नहीं है ?

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  8. क्यों केवल धर्म की खातिर इतने लोग मरे हैं ... किसी ने सोचा है क्या ....

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  9. सतीश जी आपकी चिंता नाहक ही आपको परेशान कर रही है, अब आप और मैं बहुसंख्यक नहीं रहे। क्योंकि हमारे बीच से लोग निकलकर हमारा ही विरोध करते हैं।

    ये कंही अरब से इम्पोर्ट तो हुए नहीं हैं। इनकी सारी पुश्ते राम-राम करती रही। मगर क्या करे इनके बाप दादा तो ठहरे अनपढ़ गंवार, अपने पुरे खानदान मैं तो येही तीनों पढ़े लिखे निकले, और पढ़े भी तो क्या गीता और ved जिसके खानदान मैं कभी किसी ने संस्कृत न बोला हो वो आज संस्कृत के श्लोको का हिंदी मैं अनुवाद करके लोगो को बता रहा है।

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  10. सच कहा आपने सतीश जी।
    दोनों तरह के लोग अपने अपने ढंग से ही सही, गाली तो ऊपरवाले को ही दे रहे हैं। अब देखना है के अगले का पारा कब सातवें आसमान पर पहुँचता है, क्योंकि उसने कभी ज़ात देखकर के सज़ा नहीं दी। है कि नहीं ?

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  11. सतीश जी मैं एक बात और कहना चाहूँगा की हमारी संस्कृत और हमारी सभ्यता ने हमें कभी भी इस बात की इजाजत नहीं दी की हम अपने से बड़ो या अपने से छोटो का मजाक उड़ायें, रही बात धार्मिक किताबो की तो कुरान को मैं उतनी ही इज्जत देता हूँ जीतनी की गीता या रामायण को। और मैं ही क्यों हर भारतीय कुरान को उतनी ही इज्जत देता है जीतनी की मैं देता हूँ। बशर्ते की लोगो की सोच भारतीय हो।

    उत्तर भारत के लोग नवरात्रों मैं मांस -मदिरा छोड़ देते हैं, अपने अपने घरो में लहसुन और प्याज को निकाल देते हैं। क्योंकि उत्तर भारत के लोग माँ के वैष्णव के रूप को पूजते हैं, लेकिन बिहार, बंगाल असाम और नेपाल के हिन्दू लोग नवरात्रों मैं माँ को बकरे की बलि चढाते हैं क्योंकि वो लोग माँ के काली के रूप को पूजते हैं। इसका मतलब क्या हुआ , किधर है विरोधाभास । मेरे समझ से ये विरोधाभास सिर्फ सामाजिक विरोधाभास है न की धार्मिक।

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  12. सतीश भाई, हम-आप जैसे 'अल्पसंख्यकों' की चिंता जायज़ है. आज़ादी के ६३ वर्ष गुजर जाने के बाद भी हम वहीं खड़े हैं जहाँ १९२० में थे. इसके पीछे सिर्फ राजनीति को दोषी नहीं ठहराया जा सकता. दरअसल यह मामला वही लोग ख़राब कर रहे हैं जिन्हें धर्म का रत्ती भर ज्ञान नहीं हैं. धर्मग्रन्थ तो लोगों के घरों की अलमारियों, शेल्फों, ताकों और इबादतगाहों में सजा कर रखे जाते हैं. उन्हें पढने की फुर्सत किसे है? जब पढ़ा ही नहीं फिर तो सुनी-सुनाई और अफवाहों को बढ़ावा देकर ही अपने को ज्ञानी बताना होता है.
    एक सबसे महत्वपूर्ण बात, धर्म और पूजा (इबादत) पद्धति का फर्क कितने लोगों को मालूम है? मुझे क्षमा प्रदान करते हुए यह कहने दें कि शायद १०% को भी नहीं. लोगों के अपने सरोकार हैं--- टी.वी., सिनेमा, गेम्स, कम्प्यूटर, इन्टरनेट, रेसोर्ट........इत्यादि. पढना तो मनुष्य इस युग में त्याग चुका है. नई
    नस्ल को तो यह सबसे बेकार काम लगता है. किसी से सवाल कीजिए--- फलां फलां किताब पढ़ी, उसका जवाब होता है, मैं फालतू चीजें नहीं पढ़ता, मैं डिस्कवरी चैनल देखता हूँ.
    इसके बावजूद, आज भी एक बहुत बड़ा वर्ग है जो समझदार है, शिक्षित है, धर्म को धर्म ही समझता है, साम्प्रदायिकता नहीं. किसी धर्म या ग्रन्थ को चार लोगों द्वारा बुरा-भला कहने से तात्कालिक तौर पर कुछ दिमाग भटक सकते हैं, सब नहीं. एक बहुत बड़ी तादाद है इंसानियत को जिंदा-सलामत रखने वालों की. हाँ, अब हमें खामोशी तोडनी होगी. ईंट का जवाब पत्थर नहीं तो ईंट से देने की कोशिश करनी होगी.
    मैं अब भी आशान्वित हूँ सतीश भाई, और आप......!!

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  13. अच्छी प्रस्तुति।

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  14. सतीश जी आप बहुत अच्छे है आप अपनी बात ईमानदारी से पेश करते है आप हमारे बड़े है हम आपकी इज्ज़त करते है आपके अच्छे विचारो की क़द्र करते है और आपकी बात से सहमत है लेकिन कुछ हालात ऐसे होते है कि जवाब देना ज़रूरी हौ जाता है वही जमाल साहब कर रहे है

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  15. @डॉ अयाज़ अहमद,
    आप कौन है और परिचय क्या है ...यह तो नहीं मालूम डॉ अयाज अहमद ! मगर मकसद आपका ..? कभी सोचें जरूर ! आपके इस कार्य से आपसी सद्भाव में कमी आयेगी और यह अक्षम्य है !
    धरम के नाम पर पाखण्ड का पर्दाफाश करना ही चाहिए मगर किसके धर्म की बात कर रहें हैं आप अपने धर्म की ? अथवा हिन्दू या अन्य धर्मों की ? अगर गंदगी साफ़ करने का शौक है तो अपने घर से शुरू करनी चाहिए न कि सफाई करने आप किसी और के घर आ जायेंगे ! किसी और के घर की सफाई करने की कोशिश करने वाले को जाहिल और वददिमाग कहा जाता है !
    आशा है मेरी बात को अन्यथा न लेकर सही तरह से गौर फरमाएंगे !

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  16. डॉ अनवर जमाल ,
    कृपया विश्वास करें मेरा, आप विद्वान् है मेरा अभी भी मानना यही है ! मगर जिस राह आप जा रहे हो उससे माहौल और विषाक्त हो रहा है ...मैं आपको उस राह से रोकने का प्रयास करने हेतु यह लिख रहा हूँ !
    मुझे अब भी यह विश्वास नहीं होता कि आपके मन में वैमनस्य बढाने की ही इच्छा है ...अगर यह सच है तो आप जैसे समझदार लोग समाज को बहुत कुछ देने की क्षमता या लेने की क्षमता रखते हैं ! इंसानियत की दुहाई देने वाले हमारे धर्मग्रन्थ आपको क्या करवाने पर मजबूर कर रहे हैं ! बापस आइये, अपने पूरे ईमान के साथ और कुछ नयी शुरुआत करें अनवर भाई ! यह देश आपका उतना ही है जितना मेरा ... मैं आपको समझाने की ध्रष्टता क्यों कर रहा हूँ ....??

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  17. Satish ji,
    mujhe nahi lagta ki aam janta is tarah ke kaam karti hai ... na hi alpsankhayak, bahusankhyak jaise khyaal dimag mein laati hai ...... bas unke beech bhai chara hota hai dosti hoti hai jaat paat ka khyaal nahi.....

    jaha ye vichaar man mein aaye ki ham bahushnkhayk hi alapshakhnyak ko bacha sakte hain .......
    mujhe lagta hai ki wahi bahut kuch badal jaata hai .....ye baat khud b khud ladayi ka mudda ban jaati hai
    dabne waale mein virodh ki shuruwaad karti hai ....
    uske man mein ye khyaal aata hai ki aakhir ham kamzor kyu rahe ....
    aur yaha shuru hote hai hai algaav ....

    samanta hi iska solution hai
    aur phir ham hindu bhi kaha bahushakhayk hai
    hamare beech bhi to kayi matbhed hai ... kayi jaat hai
    ab hindu , jain, sikhh, buddhist
    sab to alag hai
    aur to aur ab to in sab religion ke sub religion ho gaye hain

    kuraab aur geeta se aage puraan nikal aaye hain

    Hindu Jain muniyon ka dharm ko ajab maante hain .... mere hi kayi dost dabe swar mein kah dete hain ...

    magar koi use bada nahi banata
    magar kuraan aur geeta ko bas aag ka mudda bana diya jaata hai ....

    bas yahi samjhana hai ki in sab baaton ko bada nahi banaya jaaye

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  18. सतीश जी, शास्त्र कहते है कि दुष्ट को, मूर्ख को और बहके हुए को प्रतिबोध देना अर्थात उसे समझा पाना निहायत ही कठिन कार्य है। ये लोग चिकने घडे हैं, जिन पर चाहे जितना भी प्रेम रूपी जल बरसाओ लेकिन बेशर्मी का तेल उस पर एक बून्द भी नहीं टिकने देगा....

    क्या वास्तव में धर्म एक अनावश्यक ढोंग है ?

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  19. ये एक ऐसी बहस है जो पहले मुर्ग़ी या पहले अण्डा की बहस से भी ज़्यादा जटिल है. मैं जब दुबई में था तो मेरे पड़ोसी,जो पाकिस्तानी थे, मेरे परिवार से काफी घुल मिल गये थे. उन्होंने दीवाली पर कहा कि हमने दीवाली सिर्फ हिंदी फिल्मों में देखी है. हम आपके साथ दीवाली मनाना चाहते हैं. यकीन मानिए हमारे घर के सोफों के कवर पुराने थे. हमारी पड़ोसन, जो मेरी पत्नीकी बहुत अच्छी मित्र थीं, ने सारे दिन बैठकर सारे सोफे के कवर सिल दिये. दोनों परिवारों ने मिलकर दीवाली मनाई. पहली बार अपने परिजनों से दूर होने का अह्सास नहीं हुआ. हम जब कभी भारत आते तो वो हमें क़ुरान मजीद के साये में घर से बाहर निकालती थीं. सम्बंध आज भी बने हुए हैं.
    सतीश जी, जो देश मीडिया की झूठी अफीम से बहक जाता है और उनके स्वर आलापने लगता है, उनसे क्या उम्मीद की जा सकती है. किसी ने भी ईमानदार कोशिश नहीं की कभी. क्योंकि हर रहनुमा अपनी रोटी सेंकने में लगा है, जिसके लिये आग चाहिए, अब ये चाहे नफरत की आग हो या किसी के घर जलने की.

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  20. एक बडा ही खूबसूरत गाना है जो मुझे बहुत पसंद है और अपने स्कूल के बच्चो को रोज प्रार्थना की तरह बुलवाती हूँ-
    'तू हिंदू बनेगा न मुसलमान बनेगा
    इंसान की औलाद है इंसान बनेगा.
    मालिक ने हर इंसान को इंसान बनाया
    हमने उसे हिंदू और मुसलमान बनाया......
    .नफरत जो सिखाए वो धरम तेरा नही है,
    इंसा को जो रौंदे वो कदम तेरा नही है,
    कुरान न हो जिसमें वो मन्दर नही तेरा,
    गीता न हो जिसमे वो हरम तेरा नही है ,
    तू अमन का और सुलह का अरमान बनेगा.......''
    मेरे इतने से प्रयास से शायद कुछ बच्चों में 'वो जहर' असर न करे.
    धर्म के नाम पर खूब खुनी खेल खेले गए.मैं चुप नही रहती लोगों को कहती हूँ -'आप लोग बहकावे में क्यों आते हैं,ये धर्म के नाम पर दंगे करने वाले नासमझों को आगे कर देते हैं. क्या किसी धर्म के ठेकेदार का बेटा या भाई मारा गया,उस समय ये सब कहाँ चले जाते हैं? फिर आप ही क्यों....?
    मेरे यहाँ मंदिर के लिए चंदा लेने आये मैंने कहा -'उस जगह स्कूल बनवा दीजिए सब मिल कर मैं अपना सब कुछ दे दूंगी,मंदिर या मस्जिद के नाम पर मेरे पास एक पैसा नही है.स्कूल खुले जहाँ इंसान बनाये जाएँ और इंसानियत का पाठ पढाये जाएँ.नही जानती कितनी सही कितनी गलत हूँ किन्तु कैसे जीऊँ ये मेरा व्यक्तिगत मामला है.
    मेरे घर पर सब धर्मों के सारे त्यौहार मनाये जाते थे /जाते हैं.होली,दिवाली,राखी भी.ईद,गुरु नानकजयंती और क्रिसमस भी.आज भी सभी धर्म के देवताओं की तस्वीरें और मूर्तियां लगी है.केवल इसलिए कि मेरे बच्चे अच्छे इंसान बने और हर धर्म का आदर करना सीखें.
    मैं आप लोगों जितनी ज्ञानी नही.पर अपने बच्चों के आमने एक आदर्श उदाहरण रखने के लिए मैंने इसी और इस्लाम धर्म के रोज़े रखने शुरू किये.मुझे आनंद आने लगा और फिर ब्रों तक रमजान के पूरे पूरे महीने के रोज़े करने लगी सहरी और इफ्तिहार सब हिंदू मुस्लिम मिल कर करते थे,ईदी लेती भी थी देती भी थी.
    जिंदगी को जीने और इंजॉय करने का मेरा अपना तर्रीका रहा है.
    एक ऑफिसर अपने घर वालो को खुशियाँ दे सकता है किन्तु एक अच्छा इंसान जहाँ जाता है पूरी सोसायटी में खुशिया फैला देता है.
    और मैं अपने बच्चों को एक अच्छा इंसान पहले बनाना चाहती थी,थेंक गोड! दोनों बेटे ऑफिसर भी बन गए और मैं खुश हूँ .बचपन से दबंग स्वभाव की होने के कारन किसी को इतनी छूट ही नही दी कि-कोई सवाल करने की हिम्मत कर सके.
    शायद हम इतना भर कर लें हो सकता है आने वाले समय में हमारे बच्चे,एक नई पीढ़ी न हिंदू होगी न मुसलमान सबसे पहले अच्छे इंसान होंगे.
    है न सतीश जी?

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  21. जय हिंद
    वन्दे मातरम्...
    वसुधैव कुटुम्बकम.
    सर्वे भवन्तु सुखिनः, सर्वे सन्तु निरामयाः !
    सर्वे भद्राणि पश्यन्तु, मा कश्चित दुखभाग्भवेत !!

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  22. प्रिय सतीश,

    यह एक सामयिक, लेकिन बहुत ही लघु, आलेख है. विषय एकदम सही है.

    गैर धर्मों की आलोचना बहुत आसान बात है. लेकिन ऐसा करना एकदम नीच कार्य है. खास कर, यदि कोई भारतीय ऐसा करे तो यह और भी नीच बात है क्योंकि अन्य धर्मों की आलोचना करना भारतीयता के एकदम विरुद्ध है.

    लिखते रहें, असर जरूर होगा!

    सस्नेह -- शास्त्री

    हिन्दी ही हिन्दुस्तान को एक सूत्र में पिरो सकती है
    http://www.IndianCoins.Org

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  23. @इंदु पुरी गोस्वामी
    बहन, आप इंसानियत की बात कर रही हैं... यहां कुछ लोगों को तो यही बात 'बुरी' लगती है... हो सकता है उन्होंने इस प्यारे गीत का भी बहिष्कार कर रखा हो...
    हम भी इंसानियत की बात करते हैं तो मज़हब के ठेकेदारों ने बाकायदा ऐलान कर दिया कि "हम इंसान तो हैं, लेकिन मुसलमान नहीं..." (दूसरे शब्दों में हम काफिर हैं...)
    अब आप ख़ुद अंदाज़ा लगा सकती हैं कि मज़हब के ठेकेदारों को 'इंसानियत' लफ़्ज़ से ही कितनी नफ़रत है...
    जो लोग इंसानियत में यक़ीन नहीं करते, उन्हें क्या कहते हैं यह बताने की ज़रूरत नहीं... क्योंकि ये पब्लिक है सब जानती है...

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  24. Dipak 'Mashal'19 April, 2010 06:09

    shayad aapka lekh padhne me bahut der kar di maine..

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  25. हिन्दू कहे राम-राम तुर्क कहे रहमाना
    आपस में दोउ लड़ मरे , मर्म काहूँ न जाना |

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  26. सतीश जी ,
    अगर ब्लॉग को और अपनी लेखनी को लेखकों ने ज़हर उगलने ज़रिया बना लिया है तो मुझे कुछ भी नहीं कहना है ,एक शायर हैं ’ज़िया’ ज़ैदी बस उनका एक शेर आप लोगों को पढ़्वाना चाहती हूं

    वो अपने बच्चों से उल्फ़त की क्या करें उम्मीद
    जो उनको विरसे में जंग ओ जेदाल देते हैं

    बस यही विनती है मेरी सारे देशवासियों से कि प्लीज़ अपने बच्चों को इस ज़हर से दूर रखें वरना हमारा देश कब दूसरों के हाथों में चला जाएगा हमें पता भी नहीं चलेगा ,
    अपनी ग़लती का एह्सास तब होगा जब अपने हाथ में कुछ नहीं बचेगा ,
    जय हिंद

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  27. ये तेरा घर ये मेरा घर
    ये प्यारा घर हमारा घर
    ये घर बहुत हसीन हैं........
    फिर ये नालायक इतनी गंदगी क्यों उलीच रहें हैं....

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  28. @ इस्मत जैदी से सहमत.....

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  29. आपने कहा था..लिंक भेज रहा हूँ..

    http://samvedanakeswar.blogspot.com/2010/04/blog-post_21.html

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  30. अब हम त ठहरे देहाती आदमी अऊर उपर से बिहारी ..दुनो क्वालिफिकेसन हमको बेकूफ साबित करने के लिए काफी है.. लेकिन आपको हम एक महीना से पढ रहे हैं.. कमे लिखते हैं बाकि सोलिड लिखते हैं..आपके दोस्त उड़न तश्तरी जी बड़ा नारज बुझा रहे है ई साम्पर्दायिक बात चीत से अऊर लोग बाग को मना भी कर रहे हैं कि मत पढो ई सब चीज... आप समझाइए आँख मूँद लेने से कभी बिलाई से बचा जा सकता है...

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एक निवेदन !
आपके दिए गए कमेंट्स बेहद महत्वपूर्ण हो सकते हैं, कई बार पोस्ट से बेहतर जागरूक पाठकों के कमेंट्स लगते हैं,प्रतिक्रिया देते समय कृपया ध्यान रखें कि जो आप लिख रहे हैं, उसमें बेहद शक्ति होती है,लोग अपनी अपनी श्रद्धा अनुसार पढेंगे, और तदनुसार आचरण भी कर सकते हैं , अतः आवश्यकता है कि आप नाज़ुक विषयों पर, प्रतिक्रिया देते समय, लेखन को पढ़ अवश्य लें और आपकी प्रतिक्रिया समाज व देश के लिए ईमानदार हो, यही आशा है !


- सतीश सक्सेना

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