Tuesday, June 29, 2010

अपनों से अलगाव का दर्द - सतीश सक्सेना

                इस लेख को शायद सबसे अधिक वे महसूस करेंगे  जिनके अपने कभी बिछड़ गए  ! आज खुशदीप सहगल   ने  मजबूर का दिया इस लेख को लिखने को ! कितना दर्द महसूस किया होगा  उन लोगों ने  
  • जिनके परिवार के आधे  लोगों ने पाकिस्तान जाकर रहने का फैसला किया था और जो खुद अपनी मिटटी को नहीं छोड़ पाए ..वे यहीं रहे !  उन्होंने कैसा महसूस किया होगा जब उनके किसी अपने की ख़ुशी और रंज में , वे सरहद पार नहीं जा सके !
  • जिनकी बेटी,बहिन और बड़े बूढ़े जिनकी गोद में वे खेले थे , सरहद पार चली गयी और वे उसे देखने को भी तडपते हैं !
  • बहुत से हिन्दू और मुसलमान आज भी दोनों तरफ स्थिति, अपने जन्मस्थान की याद में तड़प रहे हैं  !
                         अफ़सोस है कि जिन्होंने इस दर्द को महसूस नहीं किया वे इस पर अपनी प्रतिक्रिया देते हैं और लोग बिना इस तकलीफ को समझे नफरत के शोलों को ही हवा देते रहते हैं  ! काश दोनों देशों में अंसार बर्नी  और पैदा हों  तो शायद दिलों का दर्द महसूस कर और प्यार से हम गले मिल सकें ! इस दर्द को समझने के लिए सरबजीत सिंह की बहिन और अंसार बर्नी  के इस फोटो को देखें जिसमें एक बहिन अपने भाई की जान बचाने के लिए किये गए प्रयत्नों के लिए, अपने पाकिस्तानी भाई को शुक्रिया दे रही हैं  ! चित्र में सरबजीत सिंह की बहिन दलबीर कौर और अंसार बर्नी 
       
                          वास्तव में जब तक दोनों देशो की जनता के मध्य खड़ी दीवारें  नहीं हटतीं तब तक यह तनाव कम होना बहुत मुश्किल है  ! ३५ साल से पाकिस्तानी जेलों में बंद  कश्मीर सिंह की रिहाई के लिए जितनी भागदौड़, बिना बदनामी की परवाह किये , एक पाकिस्तानी वकील अंसार बर्नी  ने की, वह आम सोच से परे की चीज है ! इनकी पाकिस्तानी कोर्ट में की गयी बार बार अपीलें  और पाकिस्तानी सरकार से लगाईं गुहार अंततः रंग लाई जब जनरल मुशर्रफ ने इस पर अपनी मुहर लगा दी !  पाकिस्तान को हम जितना कट्टर मानते हैं अगर यही वास्तविकता होती तो शायद यह रिहाई कभी संभव ही न होती !


                           पाकिस्तानी मीडिया में इस घटना को खूब उछाला और अंसार बर्नी और मुशर्रफ साहब को भारत का हमदर्द तक बताया गया ! मैं सोचता हूँ कि अंसार बर्नी के परिवार को और खुद अंसार बर्नी को अपने परिवार में क्या नहीं सुनना पड़ा होगा ! मगर कुछ लोग भीड़ का हिस्सा नहीं होते वे अपने नज़रिए से ही सोचते हैं ऐसे ही लोग भीड़ का नेतृत्व करते हैं !   

21 comments:

  1. पंछी, नदिया, पवन के झोंके,
    कोई सरहद न इनको रोके,
    सरहदें इनसानों के लिए है,
    सोचो तुमने और मैंने क्या पाया इनसां होके...

    जय हिंद...

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  2. अपना नजरिया रखने वाले ही भीड़ का हिस्सा नहीं होते ...
    सहमत !

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  3. बहुत भावुक करने वाली पोस्ट है ।
    जख्म तो धीरे धीरे ही भरते हैं । लेकिन नए जख्म नहीं मिलने चाहिए ।

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  4. सही कह रहे हैं डा. दराल जी । मगर ये घाव शायद कभी भरने वाले नहीं। शुभकामनायें

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  5. अंसार बर्नी जी को बहुत आभार ।

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  6. विचारणीय आलेख परन्तु दोनों देशों के बीच जो गहरी खाई पैदा हो गई है उसे पाटने में वर्षो लगेंगे. ...

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  7. डॉ टी एस दराल से सहमत !

    बढ़िया आलेख पर पकिस्तान पर भरोसा करने का दिल नहीं होता !

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  8. दोनो देशो के लोग तो हमेशा ही मिलना चाहते है, लेकिन यह नेता हरामी है ओर इन सब का सरदार यह मुशर्रफ साहब ही था, इस ने किसी लालच के कारण ही एक आदमी को छोडा हम कार गिल क्यो भुल जाते है... जो इसी कमीने की देन थी, नफ़रत जनता ने नही फ़ेलाई इन नेताओ ने इन मुल्लओ ने फ़ेलाई है, जिसे पटने मै सदियो का समय लगेगा

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  9. @राज भाई !

    मैं आपकी इस कडवाहट से कुछ हद तक सहमत हूँ , मगर कडवाहट लेकर कब तक जियेंगे हम लोग ! और अगर अपने पक्ष की कडवाहट की बात करते हैं तो हर पहलू का दूसरा पक्ष भी तो होता ! सवाल है कि हम वर्तमान कब सम्हालेंगे ? कमियाँ दोनों तरफ से हुई हैं और दोनों को बदलना होगा ! अन्यथा बुरा ही हाथ आएगा और कुछ नहीं !

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  10. सतीश जी ,
    आपने वास्तविक बात कही है , असल में शायद सियासत से दूर आम आदमी के लिए ये अब भी उतना कडवा नहीं है जितना बताया दिखाया जा रहा है मगर सियासतदान तो आम आदमी के जज़्बात असल जगह तक पहुंचने कहां देते हैं । और तो और नए नए घाव ही लगाए जा रहे हैं जबकि अभी तो पिछले ही नहीं भरे हैं

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  11. इस दर्द को मैंने कभी देखा नहीं, लेकिन जिसने दिल की रिहल पर रखकर राही मासूम की “आधा गाँव”, मण्टो की “टोबा टेकसिंह” और गुलज़ार की “रावी पार” पढ़ी हो, वो इस त्रासदी को दिल से महसूस कर सकता है. मेरे एक पाकिस्तानी फैमिली फ्रेंड हैं. सिर्फ चार साल की दोस्ती है हमारी. आज भी जब उनका फोन आता है तो मेरी पत्नी पाँच मिनट की कॉल में ढ़ाई मिनट रोने में बिता देती है. अच्छी यादें समेटीं हैं आपने
    उनका जो काम है वो अहले सियासत जाने
    मेरा पैग़ाम मोहब्बत है जहाँ तक पहुँचे.

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  12. स्व.रमानाथ अवस्थी ने बंटवारे के बाद कविता में अपने भाव व्यक्त करते हुये लिखा था-
    धरती तो बंट जायेगी लेकिन,
    उस नील गगन का क्या होगा,
    हम-तुम ऐसे बिछुड़ेंगे तो
    महामिलन का क्या होगा?

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  13. गुरुदेव अपना बात त हम पहिलहीं कह चुके हैं … इसलिए हमरा हाजिरी लगा लिजिएगा... प्रेजेंट सर!

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  14. पर क्या सरबजीत की रिहाई हो पाई.. मुझे पता नहीं चला.. बर्नी साब और उन जैसे इंसानों को नमन..

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  15. सतीशजी, भारत का विभाजन एक त्रासदी थी, इसके पूर्व भी हम अफगानिस्‍तान को खो चुके थे। पाकिस्‍तान निर्माण में जहाँ जिन्‍ना का हाथ प्रमुख था तो जिन्‍ना को उकसाने में इकबाल का हाथ था। लेकिन आज पूरी दुनिया में न जाने कितने उनके रूप में लादेन उग आए हैं। यह सारे भारतीय राजनेताओं के कारण नहीं हैं। इस मानसिकता को भी समझना होगा। आम जन यदि सहयोगी नहीं हैं तो क्‍यों नहीं आमजन इंकलाब लाता है, क्‍यों‍ लादेन जैसे लोगों के खिलाफ फतवा जारी होता है? यह एक गम्‍भीर समस्‍या है जिससे आज पूरी दुनिया त्रस्‍त है, केवल अपने राजनेताओं को गरियाने से कुछ नहीं होगा। यदि उस समय पाकिस्‍तान नहीं बनता तो न जाने कितनी हिंसा इस देश को झेलनी पड़ती। क्‍योंकि जिन्‍ना ने साफ कह दिया था कि या तो पाकिस्‍तान बना दो या फिर देश में कत्‍लेआम को स्‍वीकार कर लो। यह केवल कथन ही नहीं था बल्कि बंगाल में डायरेक्‍टर एक्‍शन का आदेश देकर लाखो लोगों को कत्‍ल किया गया था।

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  16. फिर क़फ़स में शोर उठा क़ैदियों का और सय्याद
    देखना उड़ा देगा फिर ख़बर रिहाई की

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  17. खेद है कि हम लोग प्रतिक्रिया देते समय लेख की मूल भावना को ध्यान नहीं देते हैं !

    ...इस लेख में एक भारतीय बहिन द्वारा एक पाकिस्तानी नागरिक को दिया गया धन्यवाद है ..कृपया टिप्पणियों को इस भावना के अनुरूप दें तो अधिक बेहतर रहेगा !

    गड़े मुर्दे उखाड़ने की अनुपयोगी बहस इस लेख का प्रमुख अभिप्राय ही नष्ट कर देगी !

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  18. मुझे इस बारे में कोई जानकारी नही ही चाचा जी हालात कुछ ऐसे बन गये है कि अक्सर नये न्यूज़ कुछ दिन बाद ही जान पाता हूँ और तब तक वो पुराने हो जाते है..अंसारी जी जैसे शक्स एक मिशाल है अगर हम सही मुद्दे पर बात करते तो आज विवाद इतना बढ़ ही नही पता वास्तविकता है कोई समझौता चाहता ही नही वरना अपने देश और पाकिस्तान दोनों में बहुत से ऐसे हमदर्द और नेक दिल इंसान है....आपकी पोस्ट हमेशा एक सुंदर मानवीय एहसास जगाती है..

    नतमस्तक हूँ आपके विचारों और भावनाओं के समक्ष...प्रणाम स्वीकारें

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  19. बर्नी साहब सच में मानवता की सेवा कर रहे हैं .... सलाम है उनके जज़्बे को ...

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एक निवेदन !
आपके दिए गए कमेंट्स बेहद महत्वपूर्ण हो सकते हैं, कई बार पोस्ट से बेहतर जागरूक पाठकों के कमेंट्स लगते हैं,प्रतिक्रिया देते समय कृपया ध्यान रखें कि जो आप लिख रहे हैं, उसमें बेहद शक्ति होती है,लोग अपनी अपनी श्रद्धा अनुसार पढेंगे, और तदनुसार आचरण भी कर सकते हैं , अतः आवश्यकता है कि आप नाज़ुक विषयों पर, प्रतिक्रिया देते समय, लेखन को पढ़ अवश्य लें और आपकी प्रतिक्रिया समाज व देश के लिए ईमानदार हो, यही आशा है !


- सतीश सक्सेना

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