Friday, August 6, 2010

कुछ घर में नफरत फैलाने के खिलाफ भी लिखें - सतीश सक्सेना

                      मेरा यह मानना है कि हिंदी ब्लाग जगत में विद्वानों कि कमी नहीं है , यहं लेख़क ब्लागर से कहीं अधिक संख्या में विद्वान् पाठक हैं जो हमें पढ़ते हैं और हमारी योग्यता और ईमानदारी, पढने, समझने  की पूरी क्षमता रखते हैं !ऐसे पाठक अक्सर कमेंट्स नहीं करते हैं ! ऐसे ताकतवर ब्लागजगत के ज़रिये ,आज मैं आपका ध्यान ब्लाग जगत में चल रहे धार्मिक अतिरंजना और वैमनस्य पर खींचना चाहता हूँ और प्रार्थना करता हूँ कि एक लेख अवश्य इस पर लिखें जिससे देश और समाज में कुछ सार्थक जागरूकता फैलाने में मदद मिले !

                        इस समय कुछ "समझदार" लोग एक दूसरे की धार्मिक आस्थाओं में खोट निकाल कर खूब मज़ाक उड़ा रहे हैं ! जब हम दूसरे की गालियाँ देखते हैं तो बहुत गुस्सा आता है मगर हम खुद क्या लिख रहे हैं , इसको देखने की जहमत नहीं उठाते मगर यदि हम कुछ लोगों के कारण, पूरी कौम पर शक कर रहे हैं, तो हम भयानक भूल कर रहे हैं ...एक ही घर में शंकित मन, के साथ रहते , इन भाइयों के मन में, ये बीज डाल हम अपने बच्चों का सबसे अधिक अहित कर रहे हैं ! आने वाली पीढ़ी हमेशा शक ,रंजिश और एक भय लेकर जीयेगी शायद इस तथ्य को आप भी नकार नहीं सकते ! शक्तिशाली भारत के जनमानस और सरकार के होते अब द्विराष्ट्रवाद की कल्पना भी नहीं की जा सकती तब इस घ्रणित माहौल को ख़त्म करने की चेष्टा क्यों न करें ! आइये क्यों न हम , अल्लाह ओ अकबर और हर हर महादेव के जोशीले नारों के मध्य कमर कस ,घर में बोये गए, नफरती बबूल के यह पेंड़ , उखाड़ने के लिए प्रतिबद्ध होने की कसम खाने की चेष्टा करें !

                        एक ऐतिहासिक तथ्य है कि मुस्लिम भाइयों के आधे रिश्तेदार पाकिस्तान में हैं और इस कारण अब भी हो रहे शादी विवाहों के कारण उनकी दुआ रहती है कि भारत पाकिस्तान से रिश्तें अधिक न बिगड़ें ! मगर युद्ध की दशा में मुस्लिम, आपसी शक के बावजूद ,हमारे दुश्मनों से अपने देश की रक्षा में खूब लडें हैं और शहादत दी है , यह एक तथ्य है ! हम बहुसंख्यक और सहिष्णु हैं इस नाते उनपर शक करना और उनकी मान्यताओं पर चोट करना, छोड़ने का प्रयत्न कर, आशा की लौ तो जगाएं ! यह मत भूलिए कि हम हर धर्म का आदर करते हैं और यह सहिष्णुता ही हमारी पहचान है जो हमें औरों से, अलग पहचान देती है !

                         अफ़सोस है कि हमारे कुछ भाइयों ने कुछ लोगो अथवा अनाम लोगों के कारण, या जान बूझ कर अनाम लोगों का सहारा लेकर, गाली का बदला गाली से देने का विकल्प खोजा हुआ है यकीनन इससे साम्प्रदायिक सद्भाव को कम करने की कोशिश की जा रही है फलस्वरूप अकल्पनीय नुक्सान होगा ! ब्लाग जगत में फैलते, इस विद्वेष का जिम्मेवार किसी व्यक्ति विशेष को ना माने मगर उन लोगों को पहचानने का प्रयत्न करें जो भावनाएं भड़का कर अपने आपको, नेता स्थापित करने का प्रयत्न कर रहे हैं ! 

                         इस विषय की उपेक्षा कर ,आप,अपने आपको, आने वाले विषाक्त बादलों को न रोकने का प्रयास करने में सहभागी पायेंगे ! आशा है देश में फैले इस जहर के खिलाफ आपकी शक्तिशाली कलम जरूर उठेगी ! मैं यह उम्मीद करता हूँ कि संकीर्ण भावनाए भूल कर, आपकी कलम ईमानदारी से आगे आयेगी !

                        अंत में इन तथाकथित विद्वानों से निवेदन है ...अपने धर्म के खिलाफ छींटाकशी करने के विरोध के बहाने, ये कडवाहट तुरंत बंद कर दें ...और अगर मेरे कहे पर विश्वास न हो तो कृपया अपने ही लिखे लेख दुबारा पढ़े यह सिर्फ सौम्यता के साथ एक दूसरे का मखौल उडाना है, और माहौल को जहरीला बनाना है !

                        ऐसा करके निस्संदेह आप हमारे देश की शानदार और बेहतरीन सभ्यता के प्रति गुनाहगार सिद्ध होंगे और आपकी आने वाली पीढी भी , दूसरों के धर्म का मज़ाक बनाने वाली, आपकी कलम का सम्मान कभी नहीं करेगी !
                       मैं उन लोगों को भी लानत देता हूँ जो ब्लागजगत में नाम बदल बदल कर, अपमान जनक शब्द बोल कर आपको ऐसा लिखने का सुनहरा मौका देते हैं !


36 comments:

  1. ब्लोगिंग को धर्म का अखाडा बनाना सही नहीं है ।
    गाली का गाली से ज़वाब देने के बजाय उसे उपेक्षित करना ही सही है ।
    ऐसे लेखों को तबज्जो नहीं देना चाहिए ।

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  2. सार्थक अपील .. सार्थक बात
    सद्भाव के माहौल के बिना सार्थक विकास सम्भव ही नहीं है. ब्लागजगत इस विद्वेष को कम करने का माध्यम बनना चाहिये न कि बढाने वाला.

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  3. सार्थक अपील ...!

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  4. धर्मों की ऐतिहासिक भूमिका समाप्त हो चुकी है। ये अब प्रासंगिक नहीं रहे। अब इन का काम सिर्फ और सिर्फ सडांध मारना रह गया है।

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  5. दिनेश जी से सहमत ...

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  6. आपने यह बहुत अच्छी बात कही है...सार्थक अपील...

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  7. .
    .
    .
    हमने तो आपकी आज्ञा का पालन कर दिया है।


    ...

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  8. एक मछली पुरे तालाब को गंदा करती है.. i am with you!

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  9. डॉ.दराल से सहमत हूं
    मुझे और कुछ नहीं कहना है इस विषय पर

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  10. सार्थक पोस्ट

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  11. आप से १००% सहमत हूँ .........एक बेहद उम्दा और सार्थक अपील !

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  12. This comment has been removed by a blog administrator.

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  13. दिनेशराय द्विवेदी जी से सहमत है जी

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  14. समय रह्ते हमें प्रयास कर देने चाहिये।
    सद्भाव के माहौल हेतू किये जाने वाले प्रयासों को समर्थन।

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  15. सतीश जी, अगर टिप्पणी में "सार्थक अपील" "सार्थक प्रयास" "आपके विचारों से सहमत" लिख देने भर से ही खुद को सुधाराकांक्षी साबित किया जा सकता है तो क्या जरूरत पडी है कि खामखाँ पोस्ट लिखने में फालतू में समय नष्ट किया जाए....

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  16. आपसे मुझे यही उम्मीद थी जी। लेकिन मुझे नहीं लगता कि आपकी अपील कोई सुनेगा भी। यहां पर पढकर चले जायेंगें और फिर वही कांव-कांव होगी।

    बल्कि किसी को बुराई ही लिखनी है तो सबसे पहले अपने कुयें की लिखनी चाहिये। जिसका पानी वो जन्म से पीता आया है, जिसमें रहता आया है, जिसमें डुबकी लगाता आया है। दूसरे के कुयें से ज्यादा हमें अपने कुयें के पानी की मिठास का पता होता है।

    धर्मों के नाम से जो उपद्रव है, वह धर्मों का नहीं, अहंकारों का उपद्रव है।
    नहीं तो इतने आदमी कैसे राजी हो जाते

    प्रणाम स्वीकार करें

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  17. आपकी भावनाएँ मेरे लिए इसलिए आदर योग्य हैं क्योंकि ऐसा लगता है जैसे यह बात मैं ही कह रहा हूँ.

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  18. आपकी भावनाएँ मेरे लिए इसलिए आदर योग्य हैं क्योंकि ऐसा लगता है जैसे यह बात मैं ही कह रहा हूँ.

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  19. चन्दन विष व्यापत नहीं लिपटे रहत भुजंग | यदि चन्दन भुजंग का विष आत्मसात नहीं करता तो भुजंग का विष भी चन्दन से लिपटे रहने के बाद भी कम नहीं होता | इस तरह की किसी भी अपील का ऐसे लोगों पर कोई असर नहीं होगा जिनके अन्दर दूसरो के लिए जहर भरा हुआ है चाहे वो धर्म को लेकर हो या वाम पंथ दक्षिण पंथ को लेकर हो | हा एक फायदा है ऐसे लेखो का कम से कम इससे उनकी सोच का पता चल जाता है |

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  20. सर जी! आपकी बात से सहमत भी और नहीं भी.

    देखिये न! आपने भी बहुसंख्यक शब्द का इस्तेमाल हिदू धर्म को मानने वाले के लिये किया जैसे अल्प संख्यक का शब्द का इस्तेमाल आमतौर पर मुस्लिम धर्म को मानने वाले कि लिये किया जाता है!

    यही दिखाता है कि धार्मिक पहचान हमारे मन-मस्तिष्क में कितनी गहरी पैठी हुई है. वरना हम कहते धार्मिक बहुसंख्यक या धार्मिक अल्पसंख्यक.

    जिस दिन हम आपस में एक दूसरे को सिर्फ भाई या बहन कहेंगें..और हिदू भाई या मुस्लिम बहन कहकर नहीं पहचानेगें तब बात आगे बड़ेगी...

    आपने कहा है कि "यह मत भूलिए कि हम हिन्दू हैं और हम हर धर्म का आदर करते हैं और यह सहिष्णुता ही हमारी पहचान है जो हमें औरों से अलग पहचान देती है !"

    सर, यही मनोविज्ञान हमारी समस्या है,..हिन्दू-मुस्लिम एकता का फलसफा समझाने वाले अंत में अपनें तथाकथित धर्म की विशिष्टता बताने का मोह नहीं छोड़ पाते.

    यही बात किसी मुस्लिम धर्म को मानने वाले (जानने वाले नहीं)नें कही होती तो इस तरह होती शायद:

    "यह मत भूलिए कि हम मुस्लिम हैं और कुरान पाक मानवता का पाठ पढ़ाती है, यही हमारी बात है जो हमें औरों से अलग पहचान देती है !"

    एकता की बात करते हुए कितनी खूबसूरती से अलग हो गये दोनों..हज़ारों साल की धार्मिक वर्चस्व की यह लड़ाई भला यू खत्म होगी, क्या?

    सभी तरह की बातें करनी होंगीं,सभी धर्मों का पोस्ट-मार्टम करना होगा.

    बचते फिरेंगे विवादों से,
    तो हो लिया स्वस्थ चिंतन !!

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  21. अगर धर्म का मतलब हिंसा और घृणा है तो उसे कूड़ेदान में डाल देना चाहिए।

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  22. बहुत अच्छी प्रस्तुति।
    राजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है।

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  23. बहुत सार्थक और सामयिक पोस्ट.

    रामराम

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  24. भाईचारा ज़िन्दाबाद ।धर्म के नाम पर लड-आने वालों से सावधान ।

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  25. माहौल विषाक्त न बनाया जाये।

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  26. समझाने से अगर "समझदार" समझ जाये तो बेहतर हैं पर मुझे आशा नही

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  27. आपकी पोस्ट से सहमत होने का मन करता है।
    लेकिन वत्स जी, अन्तर सोहिल व अंशुमाला के कमेंट्स से ज्यादा सहमत हैं जी हम तो।
    ताली अगर एक हाथ से नहीं बजती तो चौन, अमन, सुख, शांति और सद्भाव जैसी अच्छाईयों(कमियों) की अपेक्षा भी किसी एक पक्ष से नहीं करनी चाहिये।
    आज ही अखबार में कश्मीर की सचित्र खबर थी, महिलाओं व बच्चों को आगे करके सुरक्षा बलों पर हमले की।
    सक्सेना साहब, आपकी भावना से पूरी तरह सहमत हूँ, लेकिन इसके असर से आशान्वित नहीं।
    सादर।

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  28. @ प्रवीण शाह ,
    आपका हार्दिक आभारी हूँ, प्रवीण जी !

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  29. महत्वपूर्ण सुझाव के लिए साधुवाद!



    निज व्यथा को मौन में अनुवाद करके देखिए।
    कभी अपने आप से संवाद करके देखिए।।

    जब कभी सारे सहारे आपको देदें दग़ा-
    मन ही मन माता-पिता को याद करके देखिए।।

    दूसरों के काम पर आलोचना के पेशतर-
    पहले कुछ दायित्व खु़द लाद करके देखिए।।

    क्षेत्र-भाषा-जाति-मजहब सब सियासी बेडि़याँ-
    कभी इनसे आप को आजाद करके देखिए।।

    सद्भावी -डॉ० डंडा लखनवी

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  30. सतीश जी, आपने बहुत ही अहम मुद्दे को बड़ी ही सरलता से पेश किया है , मैं भी आपसे सहमत हूँ !!

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  31. आपने एक ज्वलंत मुद्दे को बड़ी ही सरलता से पेश किया हैं, में भी आपसे सहमत हूँ इस बात पर !!

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  32. ... लेकिन जिन्हें सुनना चाहिए वो सुनें तब न.

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  33. सार्थक और सामयिक पोस्ट. कबूतर की तरह आँख बंद कर लेने समस्या का अंत नहीं होगा. सार्थक प्रयास ही आवश्यक है

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एक निवेदन !
आपके दिए गए कमेंट्स बेहद महत्वपूर्ण हो सकते हैं, कई बार पोस्ट से बेहतर जागरूक पाठकों के कमेंट्स लगते हैं,प्रतिक्रिया देते समय कृपया ध्यान रखें कि जो आप लिख रहे हैं, उसमें बेहद शक्ति होती है,लोग अपनी अपनी श्रद्धा अनुसार पढेंगे, और तदनुसार आचरण भी कर सकते हैं , अतः आवश्यकता है कि आप नाज़ुक विषयों पर, प्रतिक्रिया देते समय, लेखन को पढ़ अवश्य लें और आपकी प्रतिक्रिया समाज व देश के लिए ईमानदार हो, यही आशा है !


- सतीश सक्सेना

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