इस समय के नकारात्मक माहौल में डॉ दराल द्वारा धारा के विपरीत लिखा गया यह है दिल्ली मेरी जान ... पढ़कर
ही इस लेख को लिखने की प्रेरणा मिली ! पहली बार देश में इतने बड़े स्केल पर अभूतपूर्व निर्माण कार्य हुआ है ...पहली बार देश में इतने बड़े मेगा स्ट्रक्चर बनाए गए हैं और शायद पहली बार ही इतनी बड़ी संख्या में विदेशी हमारे देश को देखने, इन खेलों के बहाने यहाँ आ रहे हैं ! पिछले ३ वर्षों में तमाम लालफीताशाही और तमाम सरकारी एजेंसियों ने, लाखों रुकावटों के बावजूद जितना कार्य किया गया है वह कार्य पिछले २० वर्षों में पूरे देश में नहीं हो पाया ...... 

याद कीजिये, ५ साल पहले दिल्ली में ट्रेफिक व्यवस्था की क्या स्थिति थी ? अभी हाल में मैंने अपनी यूरोप यात्रा के दौरान जिन रेलों में और मेट्रो में सफ़र किया था मेरा दावा है कि दिल्ली मेट्रो उन सबमें बेहतरीन है और वाकई ऐसी दाग रहित सफाई, हमारे रहनसहन के साथ, आश्चर्य की ही बात थी मगर मैंने आज तक भारतीय मीडिया को मेट्रो के आधुनिकतम कुशल कार्य की तारीफ़ करते नहीं सुना ! हर ३ मिनट के अंतराल पर विश्व के सबसे अच्छी वातानुकूलित तथा प्रदूषणरहित गाड़ियों को दिल्ली में चलते देखना, निस्संदेह बेहद सुखद था ! आटोमेटिक डोर, सीढियाँ , और सिक्यूरिटी को देख, हमें अपने महान देश का गौरव शाली नागरिक होने का बोध क्यों नहीं हुआ ? मेट्रो के आने से पहले कोई सोच भी नहीं पाता था कि चांदनी चौक और चावडी बाज़ार में भी ट्रेन से जाया जा सकता है ! दिल्ली की बनी घनी आबादी और खड़े पुराने भवनों के नीचे से सुरंग बना कर, केवल ८ वर्षों में लगभग २०० किलोमीटर स्टेट आफ आर्ट दिल्ली मेट्रो को चलाना कोई मज़ाक नहीं था ! मगर चौबीस घंटों काम करने का फल मेट्रो इंजीनियरों को , एक मेट्रो गर्डर गिरने पर, गालियों के रूप में दिया गया ! इतने विशाल निर्माण कार्य पर शायद ही किसी पुरस्कार की घोषणा हुई होगी ! यह स्थिति बेहद अफ़सोस जनक है ...राजीव चौक में आमूल चूल परिवर्तन करना, ठीक इसी प्रकार का कार्य है कि जैसे बसे बसाए शहर को, बिना मिटाए दुबारा नए सिरे से बनाया जाए ! कनाट प्लेस के घनी आबादी को बिना छेड़े और विस्थापित किये उनकी सड़ी गली सर्विस सुविधाओं , सीवर लाइन, बिजली और जल सप्लाई को बहाल करते हुए, नया बनाना किसी भी इंजिनियर विभाग के लिए बेहद जटिल और पसीने लाने वाला काम है और विश्व के विकसित देशों में यह लगभग असंभव जैसा ही है मगर बिना इसकी जटिलता जाने राजीव चौक की खुदाई पर इन अनपढ़ों ने जितनी मज़ाक बनाई है उसे देख अपने बाल नोचने का ही दिल करता है ! है मुमकिन दुश्मनों की दुश्मनी पर सबर कर लेना
मगर यह दोस्तों की बेरुखी , देखी नहीं जाती !
इसकी विशाल और भव्य निर्माण कार्य की, हम सबको मुक्त ह्रदय से तारीफ़ करनी चाहिए थी ! मगर हमारी भारतीय मीडिया को चटपटी खबर चाहिए और इस के चलते सैकड़ों कैमरामैन रात दिन इस अभूतपूर्व निर्माण कार्य में कमियां निकालने के लिए दिन रात मेहनत करते रहे और जो कुछ भी मिला,फाल्स सीलिंग की गिरी टाइलों से लेकर भारी बाढ़ के फलस्वरूप पैदा गन्दगी और मच्छरों तक को, दिन में २०-२० बार दिखाया गया ......ऐसा लग रहा है कि पूरे विश्व में हमसे अयोग्य,घटिया, भ्रष्ट और निकम्मा कोई है ही नहीं ! और यह पूरे विश्व को बताना बहुत आवश्यक है कि हम कितने अयोग्य तथा शेष विश्व के लिए बेकार हैं ! आप लोग इस देश में आकर सुरक्षित नहीं हैं ! देश के विश्वास को जितनी ठेस इन दिनों हम भारतीयों ने दी है शायद दुश्मन देश पिछले दसियों वर्षों में नहीं कर पाए थे ! असद बदायुनी का एक शेर मुझे याद आ रहा है !
गैरों को क्या पड़ी है कि रुसवा मुझे करें
इन साजिशों में हाथ किसी आशना का है
इससे भी भयावह है हमारे देश की भीड़ चाल , एक न्यूज़ को सुनकर वही काँव काँव , उसके बाद अन्य न्यूज़ एजेंसी और बाद में आम आदमी ! यही दुर्दशा ब्लाग जगत में देखने को मिली इस मानसिक गरीबी पर क्या खेद व्यक्त किया जाए सिवा अफ़सोस के ! खैर मुझे अपनी दिल्ली में हुए इस अभूतपूर्व निर्माण कार्य पर गर्व है , कि इन राष्ट्र मंडल खेलों के बहाने हम विश्वस्तरीय शहर में रहने लायक हो पाए हैं !
आइये अच्छे कामों पर हम अपने मजदूरों और अभियंताओं को शाबाशी देना सीखें ! दिल्ली के तेजी से बदलते स्वरुप पर आप सब को हार्दिक शुभकामनाये !