Friday, November 12, 2010

उस पार तो कुछ अच्छा होगा -सतीश सक्सेना

ब्लाग जगत में हास्य की याद आते ही भाई बृजमोहन श्रीवास्तव की एक रचना याद आजाती है जिसमें उन्होंने अपनी पत्नी ...( या भगवान जाने किसके लिए ....?) के लिए लिखा था !

"इस पार प्रिये तुम हो , गम हैं ,
उस पार तो कुछ अच्छा होगा "

बेचारे पति की यह बेबसी और फिर भी हिम्मत न हारने का इससे अच्छा उदाहरण अन्यंत्र दुर्लभ है ! दो शब्दों में लगता है सारे पतियों की और से सब कुछ बयां कर डाला ! ;-)

38 comments:

  1. "इस पार प्रिये तुम हो , गम हैं ,
    उस पार तो कुछ अच्छा होगा "

    .....बेहद उम्दा

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  2. वाह सतीश जी... आपको भी अच्छी दो लाइंस याद हैं, वैसे ये हर किसी पर लागू होती है...

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  3. पतियों की दर्द भरी दास्तान

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  4. 5/10

    पत्नी पीड़ितों के लिए यह दो पंक्तियाँ का महाग्रंथ है.
    सिर्फ दो पंक्तियाँ ही क्या कुछ नहीं कह जातीं :)
    इतनी छोटी और इतनी हास्यात्मक पोस्ट पहली बार देखी.

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  5. ha ha ha... Bahut khub.. Patiyon ka dard bayan ho raha hai.

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  6. लेकिन सर आपको क्या हुआ है ?

    :):):)

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  7. हा हा हा ! अच्छा मज़ाक है ।

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  8. मैं कुछ नहीं कहूँगा सतीश भी. वैसे क्या आज रात खाना घर का ही पका हुआ खाया जा होटल जाना पड़ा? ..

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  9. चलो उस पार ही चले ......गम से कुछ दूर रहे

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  10. इन दो पंक्तियों में आधी दुनिया का दर्द समाया हुआ है।

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  11. इस पार प्रिये तुम हो , गम हैं ,
    उस पार तो कुछ अच्छा होगा "


    हरिवंश राय बच्चन ने लिखा था...

    इस पार प्रिय तुम हो
    उस पार न जाने क्या होगा ...

    अब बाकी अपनी अपनी सोच है और भुगता हुआ जीवन ...

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  12. ऊफ हद हो गई है ब्लॉग ना हुआ दिल की भड़ास निकालने की जगह हो गई है | पत्नी के सामने तो किसी की बोलने की हिम्मत नहीं होती है ब्लॉग पर खुलम खुला पत्नियों को इतना कुछ कह जाते है | अब लगता है की सबकी पत्नियों को उनके ऐसे पतियों का ब्लॉग रोज पढाना पड़ेगा तब देखती हु की कितने ब्लॉग पर ये सब लिखा जाता है | :)))

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  13. सतीशजी । चाहते तो दिल से सभी ये है मगर
    ’’जी तो बहुत चाहता है सच बोलें//क्या करें हौसला नहीं होता ’’
    लोगों ने तो डर के मारे गानों के बोल बदल दिये । जिये ंतो जिये कैसे संग आपके की जगह कर दिया जिये ंतो जिये कैसे बिन आपके

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  14. दूर के ढोल सुहाने होते हैं.

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  15. पार लगे तो क्या गम है
    मझधार फंसे तो क्या होगा!

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  16. @मासूम भाई,
    उनको ब्लागिंग में कोई दिलचस्पी नहीं अतः सुरक्षित हूँ ....

    @ अनामिका की सदायें ,
    :-((

    @ शिखा वार्ष्णेय जी ,
    हा..हा..हा..हा...
    शुभकामनायें मानू या कटाक्ष ??
    :-))

    @ अंशुमाला जी ,
    माफ़ कर दो भाई ...अब नहीं लिखेंगे ! प्रामिस

    @ भाई बृजमोहन श्रीवास्तव ,
    हरकतें आपकी...... गालियाँ मुझे दिलवा रहे हो भाई जी !

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  17. प्रियवर सतीश सक्सेना जी
    नमस्कार !
    घर में पत्नी के आते ही घर स्वर्ग और घरवाले स्वर्गवासी … दिल बहलाने को ख़याल अच्छा है ।
    … लेकिन , आप भी मानेंगे कि हम सब बेचारे पति हमारे "उन" बिना रुमाल - तौलिया भी नहीं ढूंढ पाते … और काम तो कल्पना भी मत करो …

    इसलिए सब मिल कर कहें जय हो पत्नी रानी !
    :) ख़ैरियत इसी में है न …

    शुभकामनाओं सहित
    - राजेन्द्र स्वर्णकार

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  18. दोनों के लिए अच्छा होगा -संभावना तो यही है !

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  19. कुछ भी लिखो बुरा-भला "उनको" शामिल किये बिना नही लिख पाओगे...कभी इस पार तो कभी उस पार तो अच्छा ही होगा...

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  20. .

    इस पार की कद्र तो उस पार जाने पर ही समझ आती है।

    .

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  21. दिल्‍ली में एक पोस्‍टर खूब दिखायी देता है और वह है - जब पत्‍नी सताए तो हमें बताएं। ऐसे लोगों को वहाँ पंजीकरण करा लेना चाहिए तत्‍काल क्‍योंकि अगला जन्‍म तो किसने देखा है?
    बच्‍चन जी ने तो लिखा था कि इस पार प्रिये तुम हो, मधु है। उस पार न जाने क्‍या होगा? उन्‍होंने तो व्‍यवस्‍था कर ली थी कि इस पार तुम भी हो और मधु भी है। यहाँ तो आप एक से ही घबरा गए। हा हा हा हा।

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  22. वाह..यह तो गागर में सागर वाली स्थिति है..बढ़िया हास्य प्रधान रचना..धन्यवाद

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  23. "इस पार प्रिये तुम हो , गम हैं ,
    उस पार तो कुछ अच्छा होगा "


    ताज्जुब है आप शादीशुदा होकर भी लट्ठ प्रसाद खाने के आनंद से वंचित हैं? प्रिये (पत्नि) के हाथों लट्ठ तो किसी भाग्यशाली को ही नसीब होते हैं, जो प्राणी इस जन्म में प्रिये के हाथों सुबह २ लट्ठ नाश्ते में, ६ लट्ठ लंच में और ४ लटठ डिन्नर में खाता है वो यह जन्म आनंद पूर्वक व्यतीत करके अंत में स्वर्गारोहण करता है. अत: स्वर्ग प्राप्त करना हो तो तुरंत आज से और अभी से ही यह अति श्रेष्ठ व्रत उपाय शुरू करदें.

    वैसे भाटिया जी भी आ ही गये होंगे उनसे "मेड-इन-जर्मन" लट्ठ प्राप्त कर लें उससे स्वर्ग प्राप्ति में आसानी रहती है.:)

    रामराम.

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  24. वाह ,मगर क्या बात है इन दिनों बस चंद लाईनों में ही निपट ले रहे हैं :)
    डाक्टर की तो सेलिब्रेशन हो जाय :)

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  25. @ डॉ अरविन्द मिश्र ,
    पार्टी पक्की :-))
    मगर पहले डिग्री पढ़ तो लूं ...कल से कोशिश कर रहा हूँ !

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  26. आप भी उस पार की "मारीचिका" में उलझ गये सर जी!कारण तो फिर कुछ भी हो, क्या फर्क पड़ता है :)

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  27. हा हा हा हा ये आरपार की लडाई तो कमाल की निकली सर । आप लोगों के तजुर्बे के आगे हम तो नतमस्तक हैं ..अपना तो हम भी बाद में लिखेंगे ..अभी इसी पार हैं ..

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  28. पढा। अच्छा लगा, पढना।

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  29. एक बार आजमा कर देख लीजिये पता चल जायेगा उस पार क्या है…………………अच्छा या इससे भी बुरा………………तब किधर जायेंगे वापसी का भी जुगाड नही रहेगा……………हा हा हा।

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  30. @ अजीत गुप्ता जी:
    दिल्ली के हमारे जिन पोस्टर्स की, सॉरी, आई मीन हमारी दिल्ली के जिन पोस्टर्स की बात आप कह रही हैं, चैक करियेगा गौर से उनपर यह भी लिखा है, ’सिर्फ़ लिखें, मिलें नहीं’ उन साहब को भी अपना भांडा फ़ूटने का डर होगा शायद।
    बड़े भाई सतीश जी, तसदीक करियेगा,सही कहा न?

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  31. अब हम क्या कहें, चुप रहना ही बेहतर है, ना उस पार ना इस पार

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  32. अभी तो इस पार की बात हो जाए उस पार को किसने देखा है |

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  33. हम तुम दोनों साथ यहाँ,
    सुख दूर कहीं मन मौज रहे।

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  34. ये तो अखिल भारतीय पत्नि पीडित संघ के अध्यक्ष के उद्गार लगते हैं.

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एक निवेदन !
आपके दिए गए कमेंट्स बेहद महत्वपूर्ण हो सकते हैं, कई बार पोस्ट से बेहतर जागरूक पाठकों के कमेंट्स लगते हैं,प्रतिक्रिया देते समय कृपया ध्यान रखें कि जो आप लिख रहे हैं, उसमें बेहद शक्ति होती है,लोग अपनी अपनी श्रद्धा अनुसार पढेंगे, और तदनुसार आचरण भी कर सकते हैं , अतः आवश्यकता है कि आप नाज़ुक विषयों पर, प्रतिक्रिया देते समय, लेखन को पढ़ अवश्य लें और आपकी प्रतिक्रिया समाज व देश के लिए ईमानदार हो, यही आशा है !


- सतीश सक्सेना

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