Saturday, November 13, 2010

जिन्हें भरा हम समझ रहे थे वे खाली पैमाने निकले -सतीश सक्सेना

आज विनोद कुमार पाण्डेय की एक रचना पढ़ते हुए लगा कि ब्लाग जगत की कहानी पढ़ रहा हूँ  ! हमारे समाज की हकीकत दिखाती यह कविता मेरे व्यक्तिगत विचार से एक कालजयी रचना है , मैं इसे हमेशा के लिए अपने संकलन में रखना चाहूंगा ! इतनी कम उम्र में विनोद पाण्डेय की संवेदनशीलता और ईमानदारी उनकी कविताओं की जान है और माँ शारदा का वरदान इस नवयुवक को शीघ्र ही उन ऊँचाइयों पर पंहुचा देगा जिसके लिए लोग बरसों से सपने देखते हैं !!
आधुनिक समाज  की हकीकत दर्शाती यह रचना देखिये 

जो अंधों में काने निकले 
वे ही राह दिखाने निकले

उजली टोपी सर पर रख कर
सच का गला दवाने निकले 

चेहरे रोज़ बदलने वाले 
दर्पण को झुठलाने निकले 

बाते सत्य अहिंसा की हैं 
पर चाकू सिरहाने निकले 

जिन्हें भरा हम समझ रहे थे 
वे खाली पैमाने निकले   !

मुश्किल में जो उन्हें पुकारा 
उनके बीस बहाने निकले  ! 

कल्चर को सुलझाने वाले 
रिश्तों को उलझाने निकले 

नाले ,पतनाले  बारिश में ,
दरिया को धमकाने निकले !

आज के समय में इंसान के नैतिक मूल्यों में गिरावट से परेशान, विनोद के उदगार  लगता है आंसू बनकर छलक पड़े हैं  ! इंसानियत को देख भगवान् भी परेशान हैं कि मैंने क्या बनाया और यह क्या बन गया  !


कल रात ही एक और ने भी हार मानी भूख से 
पाए गए आंसू जमीन पर रो पड़ा था चाँद भी !

स्वभाव से बेहद विनम्र विनोद ने अपने परिचय में लिखा है कि अगर मैं आपके किसी काम आ सकूं तो समझूंगा कि इंसान बनने की शुरुआत हो गयी ! इंसानियत और संवेदना भूलते जा रहे हम लोगों की भीड़ से  , विनोद अपनी रचनाओं से हमारी प्रसन्नता की अपेक्षा करते है ! 
मुझे लगता है वे अपने कार्य में सफल रहे हैं !
हार्दिक शुभकामनायें !   
 

41 comments:

  1. अच्छा तो होना ही है हमारे शहर से जो है | अब किसी को बताने की जरूरत है क्या की वहा से कितने कवी साहित्यकार निकाले है | उनकी रचना मुझे भी अच्छी लगी उम्मीद है ये ईमानदारी और संवेदनशीलता आगे भी बनी रहे यही शुभकामना है |

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  2. ऐसी रचना केवल एक सहृदय व्यक्ति ही लिख सकता
    सच्चाई को वयां करती हुई रचना , बधाई

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  3. stish ji bhut kub bhut bhut achchi prstuti he mubark ho dil ke khyaalon ko bs rchnaa men uker diya yhi smaaj ka aasli chehra bhi he. akhtar khan akela kota rajsthan

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  4. सरल स्वाभाव के व्यक्ति , विनोद की यह कविता हमें भी बहुत भायी थी । इसे मान देकर आपने एक सच्चे व्यक्ति का सम्मान किया है ।

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  5. कविता ने पहले ही दिल जीत लिया था आज आपने भी दिल जीत लिया।
    ब्लॉगिंग का रचनात्मक पहलू यह भी है..वाह!

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  6. सुन्दर कविता.

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  7. पैमाना अच्‍छा है
    माना सच्‍चा है
    विनोद और व्‍यंग्‍य
    तीखा विद तरंग।

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  8. कांधों पर जिनको बैठाया
    वही आज लतियाने निकले
    गोदी पाके जिन्हें घूमते
    वही आज धमकाने निकले
    बात वोही हैं सुनी सुनाई
    नई बता कर गाने निकले


    टिप्पणी में खालिस तुकबंदी को प्रशंसात्मक समझियेगा :)

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  9. यह रचना विनोदजी के ब्लॉग पर भी पढ़ चुकी हूँ...... बहुत सुंदर भाव समाये हैं... इसमें.....
    आपने फिर एक बेहतरीन रचना की बात की अच्छा लगा.....

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  10. शुक्रिया सतीश जी आपने इतनी अच्छी रचना से हमें रु-ब-रु करवा दिया. आजकल सभी लिंक्स पर नहीं पहुँच पाती इसलिए इन्हें बहुत दिन से नहीं पढ़ पाई.
    विनोद जी ने बहुत बहुत अच्छी नज़्म पेश की.
    आप दोनों का बहुत शुक्रिया.

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  11. विनोद जी की इस तीखी एवं धारदार रचना को पढवाने के लिए आपका बहुत-बहुत आभार

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  12. बहुत सुन्दर रचना ...
    विनोद जी सम्वेदनशील रचनाकार हैं

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  13. विनोद पांडे जी एक सिद्धहस्त रचनाकार हैं ,उन्हें आपने अपने ब्लॉग पर लिया आपका ब्लॉग गौरवान्वित हो गया ..
    दोनों रचनाएं शिल्प और कथ्य दोनों लिजाह से बेजोड़ हैं ..उन्हें बहुत बहुत शुभकामनायें !

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  14. "....आज विनोद कुमार पाण्डेय की एक रचना पढ़ते हुए लगा कि ब्लाग जगत की कहानी पढ़ रहा हूँ !..."
    आई ऑब्जैक्ट मी लॉर्ड! यूँ, ब्लॉग जगत भी आम मानवीय मूल्यों से अटा पड़ा है मगर इसका मतलब ये नहीं कि सड़क पर गोबर ही गोबर या उपयोग कर फेंकी गई प्लास्टिक की पन्नियों पर ही आप अपनी निगाहें रखें! जरा अगल बगल भी झांकें. आपको अट्टालिकाएँ भी दिखेंगीं और महल भी और उनमें लगे हुए जगमगाते हुए रौशनियों की झालरें भी!!

    माफ कीजियेगा... :)

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  15. Suna hai ki aap apni nai photu lagane wale hain

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  16. !


    ठगने लगे हैं लोग अब, इंसानियत के नाम पर
    bahut sunder .

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  17. मैंने भी विनोद जी कि ये प्रस्तुति पढ़ी. कितने सच्चे दिल से लिखी है ये पोस्ट. सोचती हूँ कैसे इतना सब सोच लेते हैं लोग.

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  18. बढ़िया रचना के लिए विनोद जी को बधाई।

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  19. रचना अच्छी है, लेकिन मैं भी रवि रतलामी जी की बात से सहमत हूं... आम दुनिया की तरह ब्लॉगिंग की दुनिया के भी कई रंग हैं.. हर रंग बुरा नहीं है..

    हैपी ब्लॉगिंग

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  20. ..

    एक स्वयंभू काने गुरुजी यदि इसका जवाब देंगे, तो वो ऐसा होगा.

    जो अंधों में काने निकले
    वे ही राह दिखाने निकले

    @
    जिनको राह दिखाते थे हम
    वे भी बहुत सयाने निकले.
    हमको काना कहने वाले
    अपने दोष घटाने निकले.

    ................. अयोग्यों में कम योग्य यदि मार्गदर्शक का कार्य करे तो क्या परेशानी है?

    ..

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  21. ..

    उजली टोपी सर पर रख कर
    सच का गला दबाने निकले.

    @
    सच का गला दबाने से क्या
    मौत हुआ करती तथ्यों की.
    जिसने भी ये कोशिश की थी
    उसको अमित भगाने निकले.

    ...................... जब तक सत्य की रक्षा करने वाले प्रहरी मौजूद हैं, उजली टोपियों तले की स्याह इच्छाएँ फलीभूत नहीं होंगी.

    ..

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  22. ..

    चेहरे रोज़ बदलने वाले
    दर्पण को झुठलाने निकले

    @
    चेहरा जितनी बार बदलता
    दर्पण में प्रतिबिम्ब टहलता
    दर्पण को झुठलाने वाले
    मन-दर्पण में नंगे निकले.

    ................ सत्य से जितना भी मुख फेरा जाए सत्य रूप नहीं बदल लेता. वह जगत दर्पण में विकृत कर दिखलाया जा सकता है लेकिन मन-दर्पण में नहीं.

    ..

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  23. ..

    बाते सत्य अहिंसा की हैं
    पर चाकू सिरहाने निकले

    @
    सत्य की रक्षा करने वाले
    शक्ति की भी पूजा करते.
    अबल, अहिंसक, शांत मनों के
    रक्षण को ही चाकू निकले.

    ................ धर्म की रक्षा को हथियार उठाना, अपने सन्त और महापुरुषों की रक्षण के लिये सैन्य-दल गठित करना गुनाह है क्या?

    ..

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  24. ..

    जिन्हें भरा हम समझ रहे थे
    वे खाली पैमाने निकले !

    @
    खाली होना तो है अच्छा.
    अधजल गगरी छलकत जाये.
    नहीं पारखी हो तुम प्यारे
    कम दृष्टि ले नापने निकले.

    .............. व्यक्तित्व में कितनी गहराई [भराई] है यह आकलन जिस दृष्टिं ने किया ... क्या वह दृष्टि दोषयुक्त है अथवा वह व्यक्ति जिसे खाली समझा जा रहा है?

    ..

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  25. ..

    मुश्किल में जो उन्हें पुकारा
    उनके बीस बहाने निकले !

    @
    'उनकी मुश्किल क्या थी' जानी?
    अपनी मुश्किल की है परवाह.
    जो मन से शुभ इच्छा दे दे
    वो भी तो हित-चिन्तक निकले.

    ...................... शुभचिंतकों का क्या कार्य है? मैं कहूँ कि मेरे ब्लॉग पर कम से कम बीस सार्थक टिप्पणी दिया करो. क्या आपकी शुभ इच्छा का मेरे लिये कोई अर्थ नहीं होगा जब तक आप देना न शुरू कर दें? भई, मैं मुश्किल घडी में ही पुकार रहा हूँ विनोद जी!

    ..

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  26. ..

    कल्चर को सुलझाने वाले
    रिश्तों को उलझाने निकले

    @
    रिश्तों को कुछ नाम न देकर
    बालक बुद्धि उलझे रहते.
    नेचर हो सुलझाने का तो
    कल्चर की सब उलझन निकले.

    ................... सभी का अपना-अपना बौद्धिक स्तर है, सोच है, संस्कृति को समझने का दृष्टिकोण है, आदरणीय गुरुजनों का कार्य है कि वे अपने स्नेह से उन उलझनों को सुलझाते रहें. अपने कनिष्ठों को अपने अनुभव का लाभ देते रहें.

    ..

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  27. ..

    नाले, परनाले बारिश में ,
    दरिया को धमकाने निकले !

    @
    सागर में उद्वेलन कैसा!
    कितने दरिया बहकर आये.
    बच्चे ही हैं बड़े-बड़ों को
    घोड़ा करके पीठ पर निकले.

    ............................. 'क्षमा भाव' और 'सहिष्णुता' .............. बड़े जनों की, शक्ति और सामर्थ्यवानों की ही शोभा है.


    ______________
    मुझे अली जी की टिप्पणी पसंद आयी.

    ..

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  28. गज़ब की कविता है। ऐसे विरोधाभासों से भरी है यह दुनिया।

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  29. @ रवि रतलामी जी ,
    मैं पूर्णतया सहमत हूँ कि ब्लागजगत पूरे देश को नेतृत्व करता है और बेहतरीन विद्वजन यहाँ कार्यरत हैं जिनकी मैं धूलमात्र भी नहीं हूँ ! बेहतरीन विद्वानों के कार्य रत होने से ही मेरे जैसे अकिंचन, उनके सान्निध्य में , अपने आपको समझदार समझने लगते हैं ! उन्ही के कारण यहाँ कार्य करने का मन होता है !
    शांत रहते हुए कार्यरत विद्वानों में से एक आप भी हैं सो सर्वप्रथम आपके आगमन से सम्मानित हूँ !
    आप उसे सामान्य सन्दर्भ में ही लें ऐसा अनुरोध है ! मीलार्ड से लगता है, आप को कष्ट पंहुचा है अतः बिना जाने खेद है ! अगर इसकी जगह भाई कहते तो अधिक अच्छा लगता !
    आभार

    @ तारकेश्वर गिरी ,
    अपनी फोटू बदलने से पहले दीपक बाबा का मुस्कराता फोटो बदलवाते हैं .... :-)

    @ आशीष खंडेलवाल ,
    मैं आपसे सहमत हूँ आशीष भाई !

    @ प्रतुल वशिष्ठ ,
    वाह गुरु देव !
    आपके आने से और कलम उठाने से इस कविता को नया रूप और विस्तार मिला है ! निस्संदेह विनोद कुमार पाण्डेय खुशकिस्मत हैं कि उनकी रचना पर आपने कार्य किया ! मैं चाहूँगा की विनोद खुद आपकी टिप्पणी पर अपनी प्रतिक्रिया दें !

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  30. अली साहब,
    आभार आपका , यह कविता आपको भी पसंद आई, अतः विनोद को बधाई देता हूँ ! आभार आपका !

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  31. आदरणीय सतीश जी, प्रणाम

    आप के प्रेम से अभिभूत हूँ जो आपने मेरी लेखन को इस काबिल समझा..आज मुझे बहुत खुशी हो रही है कि आप जैसे बड़ों का मार्गदर्शन और आशीर्वाद इस प्रकार से मिल रहा है....मैं आगे भी आप के उम्मीद पर खरा उतरूँगा ऐसा विश्वास दिलाता हूँ बस आप सब का आशीर्वाद साथ रहें.....

    प्रणाम

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  32. .
    .
    .
    सुन्दर गजल और उसका आनंद दुगुना करती टिप्पणियाँ भी...
    अच्छा लगा...
    आभार आपका!


    ...

    ReplyDelete
  33. मैं आश्चर्य में पड़ गया हूँ वाकई मैने ऐसा कुछ लिखा दिया..आप सब के प्रेम और आशीर्वाद ने आज मेरे हौसले को बहुत अधिक गति दी है...मैं भविष्य में भी कोशिश करूँगा कि और सार्थक लिख सकूँ..

    डॉ.दराल जी,देवेन्द्र जी,महेंद्र जी,अंशुमाला जी,सुनील जी,अकेला जी,विचार शून्य जी,अविनाश जी,मोनिका जी,अनामिका जी,राजीव जी,वर्मा जी,अरविंद जी,तारकेश्वर जी,पूर्वीया जी, रचना जी,दिव्या जी,अली जी,रवि रतलामी जी,आशीष जी,प्रतुल जी सहित सभी लोगों का शुक्रिया अदा करता करता हूँ जिन्होने मुझे पढ़ा और मेरा आत्मविश्वास बढ़ाया..

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  34. @अली जी,

    आपकी बात बिल्कुल सही है...बातें तो पुरानी है पर अपने ढंग से सब कहने की कोशिश करते है..कुछ ऐसा ही मैने भी किया...आपको पसंद आई हौसला आफजाई के लिए शुक्रिया..

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  35. @प्रवीण जी, प्रणाम,

    बस मैने अपने आस-पास कुछ देखा,महसूस किया और उसे कविता का रूप दे दिया..समाज में अच्छाई के साथ साथ बुराई भी है आम लोगों से साथ बीत रही बातों को पिरोने का प्रयास किया हूँ...बाकी आप सब का आशीर्वाद ...

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  36. आदरणीय रवि जी,प्रणाम

    मेरी कविता को ब्लॉग जगत से जोड़ा जाय यह कतई ज़रूरी नही..आपने बहुत सही बात कही है हमें कमियों को नज़रअंदाज करके अच्छी बातों को ग्रहण करना चाहिए....मैने बस आम आदमी के मन की बात कहने की कोशिश की है जो आज के समाज में अधिक देखना को मिल रहा है,मेरा मानना है की अच्छाइयों की प्रशंसा के साथ साथ बुराइयों की आलोचना भी बहुत ज़रूरी है..

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  37. विनोद जी की रचनाएं बहुत सरल-सहज और गहरी होती हैं..मन पर देर तक असर करने वाली ...उनकी रचना पढवाने का शुक्रिया

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  38. प्रतुल जी, प्रणाम... आपकी टिप्पणियाँ मेरी कविता के विषय में आई निश्चित रूप से मैं बहुत भाग्यशाली हूँ..आप जैसे विद्वान को विनोद का प्रणाम..

    मैने बहुत अधिक विवेचना नही की कविता लिखते समय और ना ही कोई नई बात कही बस देखी-सुनी बातों को शब्दों में ढाल दिया...और अभी आपकी टिप्पणियाँ पढ़ी तो धन्य हो गया आपकी विचारों से बहुत प्रभावित हूँ मैने कभी इस दृष्टिकोण से सोचा ही नही था...

    बहुत बहुत धन्यवाद!!!

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  39. रश्मि जी, बस जो मन में लिख देता हूँ आप सब को अच्छा लगता है..यह मेरे लिए सौभाग्य की बात है..हौसला आफजाई के लिए बहुत बहुत शुक्रिया

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  40. विनोद जी के ब्लॉग पर पहली बार जाते ही हमने उनको फॉलो करना शुरू कर दिया था जी
    विनोद जी सचमुच एकदिन सितारों को छुयेंगें, शुभकामनायें

    आपका भी धन्यवाद इस पोस्ट के लिये

    प्रणाम

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  41. विनोद जी बहुत ही संवेदन शील शायर हैं उन्हें पढवाने का अनेक धन्यवाद ।

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एक निवेदन !
आपके दिए गए कमेंट्स बेहद महत्वपूर्ण हो सकते हैं, कई बार पोस्ट से बेहतर जागरूक पाठकों के कमेंट्स लगते हैं,प्रतिक्रिया देते समय कृपया ध्यान रखें कि जो आप लिख रहे हैं, उसमें बेहद शक्ति होती है,लोग अपनी अपनी श्रद्धा अनुसार पढेंगे, और तदनुसार आचरण भी कर सकते हैं , अतः आवश्यकता है कि आप नाज़ुक विषयों पर, प्रतिक्रिया देते समय, लेखन को पढ़ अवश्य लें और आपकी प्रतिक्रिया समाज व देश के लिए ईमानदार हो, यही आशा है !


- सतीश सक्सेना

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