Tuesday, April 19, 2011

मेरे गीत कौन गायेगा - सतीश सक्सेना

इस चमक दमक की दुनियां में
रंगों की महफ़िल ,सजी हुई  !
मोहक  प्रतिमाएं  थिरक रहीं 
दामिनि जैसा  श्रृंगार  किये  !
इस समाज में इस महफ़िल में,
कौन भला मातम गायेगा ?  
मेहँदी रचित हाथ  लेकर , अब  मेरे गीत  कौन गायेगा   ?

सूरज की पहली किरन साथ
फागुन के रंग बरसते  हैं  !
संध्या होने से पहले   ही ,
स्वागत होता दीवाली का  !
नव मस्ती के  इस योवन में , 
रोदन क्यों कोई गायेगा   ?
हाला, मधुबाला साथ  लिए, अब मेरे गीत कौन गायेगा ? 

हर मन में चाहत , रंगों की ,  
महसूस व्यथा को कौन करे ?
गर्वित हों  अपने योवन से
अहसास  पराया कौन करे ?  
रणभेरी बजते अवसर पर , 
वेदना कौन अब  गायेगा  ?
उन्माद भरे इस मौसम में, अब मेरे गीत कौन गायेगा ?

कोई गोता खाए, बालों में  
कोई डूबा गहरे प्यालों में 
कोई मयखाने में जा बैठा 
कोई सोता गहरे ख्वाबों में
जलते घर माँ को छोड़ चले, 
बापस क्यों  कोई आएगा ?
निष्ठुर लोगों  की नगरी में , अब मेरे गीत कौन गायेगा ?

69 comments:

  1. आदरणीय सतीश सक्सेना जी
    नमस्कार !
    अहसासों का बहुत अच्छा संयोजन है ॰॰॰॰॰॰ दिल को छूती हैं पंक्तियां ॰॰॰॰ आपकी रचना की तारीफ को शब्दों के धागों में पिरोना मेरे लिये संभव नहीं

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  2. इस चमक दमक की दुनियां में
    रंगों की महफ़िल ,सजी हुई !
    मोहक प्रतिमाएं थिरक रहीं
    दामिनि जैसा श्रृंगार किये !
    शब्दों को चुन-चुन कर तराशा है आपने
    कमाल की लेखनी है आपकी लेखनी को नमन बधाई
    ...प्रशंसनीय रचना......सतीश जी

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  3. priy saxena ji
    utkrisht bhavon ko liye samvedanshil kavy shilp gahan chintan ka pratinidhitwa karta hai. marmik rachana
    shukriya .

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  4. अत्यंत मधुर, भावगम्य, और गेय रचना.

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  5. खुद गाईये अपने गीत इस खुदगर्ज होती दुनिया में ..बढियां गीत

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  6. कई प्रश्न उठाती अच्छी रचना

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  7. हमने गुनगुनाने की कोशिश की. ''मोहक प्रतिमाएं थिरक रहीं'' की प्रतिमाओं को कठपुतलियां सोचा.

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  8. हमें गाना तो नहीं आता लेकिन आपके इस गीत को गुनगुनाने का मन हो रहा है। शुक्रिया।

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  9. .
    आह आह... भई वाह वाह !

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  10. hum-sab bhai-bandhu 'mere geet'......
    apke saath gungunayega......aur fir..
    gayega........

    pranam.

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  11. किसी और के भरोसे क्यों रहना....खुद गाइए....हम साथ हैं....
    जबरदस्त लिखा है....

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  12. ka baat hai yeh sab kiya chal raha hai ..... sab theek hai....
    jai baba banaras...

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  13. जब सुबह नाश्ते में पहले
    फल, दूध और दलिया लेते.
    व्रत, उपवास और अनशन
    रोगों को 'दमन-दवा' देते.
    मुख का अब स्वाद बदल गया, भूखा ना भूख मिटाएगा.
    हाजमा आज़ जैसा भी हो, वह जंक फ़ूड ही खायेगा.

    सुनते थे जब 'जयमाला' के
    हम विविध भारती पर गाने
    टीवी दिखलाता 'चित्रहार'
    तब थे पडौस के पहचाने.
    मनोरंजन लिमिट बदल गयी, अब कोई पास कराहेगा.
    जब इयरफोन हो कान लगा, मन फिर भी गाने गायेगा.

    ......... आपकी कविता का साँचा मन को बहुत रुचा. और इस साँचे में ढाल दिये कुछ भाव.

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  14. @ प्रतुल वशिष्ठ,
    आपके आगमन और विचारों ने इस पोस्ट को सुन्दरता प्रदान कर दी ! सम्मान स्वीकारें ...

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  15. गीत तो गाने के‍ लिए ही होता है सतीश भाई। कोई सुख में गाता है कोई दुख में। पर गाता जरूर है।

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  16. जलते घर माँ को छोड़ चले, बापस क्यों कोई आएगा ?
    निष्ठुर बेटों की नगरी में , अब मेरे गीत कौन गायेगा ?
    उत्कृष्ट,अनुपम ! आपने दिल ही निचोड़ डाला हैं इस भावपूर्ण दिल को छूती अभिव्यक्ति में.बहुत बहुत आभार आपका इन शानदार भावों की प्रस्तुति के लिए.

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  17. स समाज में इस महफ़िल में,
    कौन भला मातम गायेगा ?
    मेहँदी रचित हाथ लेकर ,
    अब मेरे गीत कौन गायेगा ?

    bahut sundar

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  18. इस चमक दमक की दुनिया में
    रंगों की महफ़िल, सजी हुई !
    मोहक प्रतिमाये थिरक रही
    दामिनी जैसा शृंगार लिए !
    इस समाज में इस महफ़िल में , कौन भला मातम गायेगा ?
    मेहँदी रचित हाथ लेकर,अब मेरे गीत कौन गायेगा ?
    गीत के भाव सुंदर है पर किंचित उदास, इसके बदले में किसी कवि की सुंदर पंक्तियाँ है !
    और सभी मिल जाते केवल वही न मिलता
    चाह करो जिसकी, दुनिया का यही नियम है,
    सारे स्वर सध जाते केवल वही न सधता
    जो प्रिय हो मनको, जीवन ऐसी सरगम है !
    तुम्ही न अर्पण मेरा जब स्वीकार कर सकी,
    यह सारी दुनिया अपनाए,क्या होता है!
    क्यों न हम अपने गीत खुद ही गाए खुद ही,गुनगुनाये!

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  19. सतीश जी लगता है इस रंग बदलती खुदगर्ज़ दुनिया में अपने गीत खुद ही गाने पड़ेंगे :-(

    रचना के माध्यम से बहुत ही सशक्त रूप से दिल की बात व्यक्त की है आपने.

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  20. गुरु भाई !
    खुश रहो !

    हर मन में चाहत , रंगों की ,
    महसूस व्यथा को कौन करे..????
    जो व्यथा का एहसास कर सकता है ...
    वो ही व्यथा मेहसूस करेगा ...???

    अशोक सलूजा !

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  21. सचमुच आज मौत का ताडंव चारों ओर है फिर भी हम उसे भुलाकर सपनों की दुनिया में जिए चले जा रहे हैं आपकी कविता बहुत कुछ सोचने पर विवश करती है ! सार्थक पोस्ट !

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  22. सतीश भाई, ऐसा क्यों कहते हैं...

    हम जैसे आपके बहुत सारे चाहने वाले हैं ये गीत गाने के लिए...

    बस मुए ये फिल्मी गीतों से फुर्सत मिले तब ना...

    जय हिंद...

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  23. आपकी गलत फ़हमी है कि कोई आपके गीत या विचार अपनाएगा भी या नहीं... आपकी सोच गंभीर ज़रूर है पर वह ज़िन्दगी और समाज के करीब है उसका हिस्सा है| बाद में कोई गायेगा या नहीं यह सवाल तो तब होता है कि जब आज कोई नहीं अपना रहा हो| आप आज भी कई लोगों के प्रेरणा स्त्रोत हैं...

    कविता कि द्रिष्टि से आपकी भाषा पर पकड़ और लय-बद्धता अच्छी है|

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  24. "सूरज की पहली किरन साथ
    फागुन के रंग बरसते हैं!
    संध्या होने से पहले ही,
    स्वागत होता दीवाली का"

    बढ़िया गीत सुंदर भाव लिए हुए सशक्त प्रस्तुति.

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  25. आपके गीतों का प्रवाह और शब्द संयोजन इतना सुन्दर होता है.कि मन करता है गुनगुना लिया जाये .

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  26. naya sur aur naya andaz......bahut achcha laga.

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  27. निष्ठुर लोगों की नगरी में , अब मेरे गीत कौन गायेगा ?

    चाहने वालों की कमी कहाँ है भाईजी...

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  28. आदरणीय सतीश जी ,
    तारीफ़ करनी पडेगी एक ही रचना में इतने सारे सार्थक सवाल ......आभार !

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  29. जलते घर माँ को छोड़ चले, बापस क्यों कोई आएगा ?
    निष्ठुर लोगों की नगरी में , अब मेरे गीत कौन गायेगा ?

    गहरी वेदना से भरी पंक्तियाँ ...भावपूर्ण दिल को छूती अभिव्यक्ति...

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  30. आदरणीय सतीश सक्सेना जी

    कोई गोता खाए, बालों में कोई डूबा गहरे प्यालों में कोई मयखाने में जा बैठा कोई सोता गहरे ख्वाबों मेंजलते घर माँ को छोड़ चले, बापस क्यों कोई आएगा ?

    बहुत ही बढ़िया आभार इस रचना के लिए

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  31. kitne din chmk rha krti
    kitne din rhti deewali
    kitne din khushiyan aatin hain
    kitne din dukh ki sunvayi
    sb kuchh aata aur jata hai
    is chmk dmk ki duniya me
    hr jn rota aur gata hai
    bhai bdhai

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  32. सतीश भाईजी,
    जरूर गाये जायेंगे आपके गीत(पहले भी गाये जा चुके हैं) और हम सुनेंगे। जिस दिल में औरों के लिये प्यार, संवेदना और अपनापन है उस दिल की पुकार अनसुनी नहीं रह सकती।

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  33. गीतों के गाने के लिए बहुत कद्रदान होते हैं. हर चीज इतनी महत्वहीन नहीं होती कि उसको तुच्छ समझ लिया जाय.सुंदर भावाभिव्यक्ति के लिएआभार.

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  34. वाह!! बहुत प्रवाहमयी भावपूर्ण गीत..

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  35. आदरणीय सतीश सक्सेना जी
    नमस्कार !
    अत्यंत मधुर, भावगम्य, और गेय रचना.

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  36. जब फैली होगी घोर निराशा,
    बची न होगी कहीं जो आशा,
    विषाद मन भरने लगेगा
    कोमल मन निष्ठुर बनेगा
    ऐसे में जीवट जगाने,सत-ईश का ही द्वार खुलेगा।
    जिंदादिली की सांसे भरने,हर दिल वह गीत गुनेगा॥

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  37. सुंदर रचना .....!!
    आजकल का माहौल तो वाकई दुखी करने वाला है ...!!

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  38. आपके गीत के भाव और प्रतुल वशिष्ठ का सांचा --दोनों मिलकर ग़ज़ब ढा रहे हैं ।

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  39. भावुक कर देने वाली प्रस्तुति।
    आभार।

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  40. खुद ही गा लो भैया, यहां कोई किसी के लिए न गाता है न रोता है :)

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  41. बहुत सुंदर रचना जी.

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  42. जिसके मन में दर्द जहाँ का
    दया दीन पर करता हंसकर
    यौवन व्यर्थ नहीं करता हो
    सिर्फ मस्तियों में ही फंसकर

    उन्माद भरे इस मौसम में,गीत वही यह पायेगा ।

    ReplyDelete
  43. जिसके मन में दर्द जहाँ का
    दया दीन पर करता हंसकर
    यौवन व्यर्थ नहीं करता हो
    सिर्फ मस्तियों में ही फंसकर

    उन्माद भरे इस मौसम में,गीत वही यह पायेगा ।

    ReplyDelete
  44. कोई गोता खाए, बालों में
    कोई डूबा गहरे प्यालों में
    कोई मयखाने में जा बैठा
    कोई सोता गहरे ख्वाबों में
    जलते घर माँ को छोड़ चले, बापस क्यों कोई आएगा ?
    निष्ठुर लोगों की नगरी में , अब मेरे गीत कौन गायेगा ?
    बहुत सुंदर !
    ये विधा तो आप की विशेषता है
    बधाई

    ReplyDelete
  45. निष्ठुर लोगों की नगरी में , अब मेरे गीत कौन गायेगा ?
    वाह!
    विवेक जैन vivj2000.blogspot.com

    ReplyDelete
  46. कोई गोता खाए, बालों में
    कोई डूबा गहरे प्यालों में
    कोई मयखाने में जा बैठा
    कोई सोता गहरे ख्वाबों में
    जलते घर माँ को छोड़ चले, बापस क्यों कोई आएगा ?
    निष्ठुर लोगों की नगरी में , अब मेरे गीत कौन गायेगा ?
    kya baat hai ,adbhut bahut khoob .

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  47. sateesh ji jab bhavnayein itani sundar hon to gaane wale mil hi jayeinge...behtareen...

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  48. समाज को झगझोरती अद्भुत रचना.

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  49. जलते घर माँ को छोड़ चले,
    बापस क्यों कोई आएगा ?
    निष्ठुर लोगों की नगरी में ,
    अब मेरे गीत कौन गायेगा ?

    मार्मिक पंक्तियां....
    भावनाओं का बहुत हृदयस्पर्शी चित्रण ....बधाई

    ReplyDelete
  50. bahur hi sundar or vicharneey parstuti

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  51. कुछ पल के लिए याद कर लिया जब अपनी कक्षा में बैठकर सस्वर पाठ करना ,शिक्षक का प्रोत्साहन और सहपाठियों की तालियाँ हुआ करती थी .भावपूर्ण दिल को छूती अभिव्यक्ति है..गेय रचना....

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  52. छा गए गुरुदेव!!कहाँ भूले बिसराए बैठे थे आप इन गीतों को!!!

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  53. बहुत ही मधुर , भावपूर्ण, मनमोहक गीत..

    हर बंद ...स्वयं को ख़ूबसूरती से बयाँ करता हुआ

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  54. bhai ji, chinta kahe ki....ham gaenge na aapke saath....bas ek kavisammelan karaane bhar ki der hai.....

    jai ho...

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  55. Adarneeya saxena ji namaskar!janaab hukm tho khejiye,Phir sambalna mushkil hojayega ;)
    bahut hi sunder rachna
    naman sweekar karen.

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  56. कोई गोता खाए, बालों में
    कोई डूबा गहरे प्यालों में
    दिल को छू गया गीत।

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  57. जलते घर माँ को छोड़ चले, बापस क्यों कोई आएगा ?
    निष्ठुर लोगों की नगरी में , अब मेरे गीत कौन गायेगा ?

    सशक्त रचना .... अर्थपूर्ण सवाल लिए ....

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  58. गीत वही हम गायेंगे,
    जिनके सुर अब भायेंगे।

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  59. बहुत सुंदर गीत भाई सतीश जी बहुत बहुत बधाई |

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  60. ज़िन्दगी के मीठे खट्टे अनुभवों का यह गीत...आम आदमी का गीत है सतीश जी..बेमिसाल रचना...

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  61. कितना दर्द भरा है आपकी इस कविता में और आप तो जानते ही हैं कि हमारे मधुरतम गीत हमेशा दर्द भरे होते हैं तो इसे तो सब गायेंगे ।

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  62. निष्ठुर लोगों की नगरी में , अब मेरे गीत कौन गायेगा ?.......सचमुच लोग बहुत व्यस्त हो गए है अपने आप में |

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  63. जलते घर माँ को छोड़ चले, बापस क्यों कोई आएगा ?
    निष्ठुर लोगों की नगरी में , अब मेरे गीत कौन गायेगा ? ....bahut badi baat chupi hai in panktiyon me.sachchaai ka saamna karati prastuti.atiuttam.

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  64. आपके गीत हमेशा गाये जायेंगे... निष्ठुर लोग भी ऊपर से जो बोलें अकेले में तो गुनगुनाते ही होंगे :)

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  65. इतनी वेदना!
    मरणोपरान्त कोई गाये तो क्या
    मेरे नाम के बैंड बजाये तो क्या

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एक निवेदन !
आपके दिए गए कमेंट्स बेहद महत्वपूर्ण हो सकते हैं, कई बार पोस्ट से बेहतर जागरूक पाठकों के कमेंट्स लगते हैं,प्रतिक्रिया देते समय कृपया ध्यान रखें कि जो आप लिख रहे हैं, उसमें बेहद शक्ति होती है,लोग अपनी अपनी श्रद्धा अनुसार पढेंगे, और तदनुसार आचरण भी कर सकते हैं , अतः आवश्यकता है कि आप नाज़ुक विषयों पर, प्रतिक्रिया देते समय, लेखन को पढ़ अवश्य लें और आपकी प्रतिक्रिया समाज व देश के लिए ईमानदार हो, यही आशा है !


- सतीश सक्सेना

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