Thursday, August 16, 2012

परिहास तुम्हारे चेहरे पर -सतीश सक्सेना

नीचता की पराकाष्ठा की बाते हम अक्सर सुनते हैं , मगर जब लोग इस सीमा को भी आसानी से लांघ जाते हैं तब शायद हमको क्रूरता और नीचता की नयी परिभाषाएं पता चल पाती हैं ! इतिहास गवाह है कि अक्सर बेहतरीन लोग, अपनों के द्वारा बड़ी निर्दयता से, बिना उफ़, क़त्ल किये गए ! यह सब आज भी चल रहा है बस समय , स्थान और परिस्थितियां ही बदली हैं ! अपने ही एक अभिन्न मित्र के प्रति नफ़रत, मानव मन की निष्ठुरता और क्रूर स्वभाव  की इस तस्वीर पर गौर फरमाएं 

कब दिन बीता कब रात गयी 
कब बिन बादल बरसात हुई  !  
कब बिना कराहे, दिल  रोया ,    
कब  सोये - सोये , घात  हुई ! 
जब घेर दुश्मनों ने मारा था, 
राज तिलक के  मौके पर  !
अपनी गर्दन कटते देखा , संतोष तुम्हारे  चेहरे  पर  !

जब समय लिखे इतिहास कभी 
जब  मुस्काए,  तलवार   कभी, 
जब शक होगा, निज  बाँहों पर ,
जब इंगित करती, आँख  कहीं,    
जब बिना कहे दुनिया जाने,
कृतियाँ, जीवित कैकेयी   की !
हम बिलख बिलख जब रोये थे, परिहास तुम्हारे चेहरे पर !

क्यों बेमन साथी संग चलें
ऐसे क्यों जग में हंसी उड़े !
यह कैसा संग दिया तुमने 
पीछे से धक्का दिया मुझे !
गहरी खाई में गिरते दम  , 
वह  दर्द भरा, क्रन्दन  मेरा  !  
विस्फारित आँखों से देखी , इक जीत तुम्हारे चेहरे पर !

क्यों नाम हमारा   आते  ही  ? 
मुस्कान, कुटिल हो जाती थी 
बच्चों सी निश्छल हंसी देख
मन में, कडवाहट आती थी  ?
अभिमन्यु  जैसा वीर गया,
यह व्यूह सजाया था किसने  ?
इतिहास तड़प उठता, देखे, जब चमक तुम्हारे चेहरे पर  !

जब गिरा जमीं पर थका हुआ 
वह धूल धूसरित,रण योद्धा !
तब  अर्धमूर्छित प्यासे  को,
तुम जहर, पिलाने आये  थे,
धुंधली  आँखों ने देखी थी,
तलवार तुम्हारे हाथों में  !
अंतिम साँसें  लेते  देखी , मुस्कान तुम्हारे चेहरे पर !

129 comments:

  1. गम्भीर वैचारिक सोच से उद्भूत एक सुंदर कविता बधाई भाई सतीश जी

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  2. गम्भीर वैचारिक सोच से उद्भूत एक सुंदर कविता बधाई भाई सतीश जी

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  3. बहुत गहरे जख्म दिखाई दे रहे हैं । अपनों के दिए दर्द वास्तव में गहराई तक मार करते हैं ।
    आज का गीत तो बेमिसाल लगता है भाई जान ।
    अति सुन्दर ।

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  4. धुंधली आँखों ने देखी थी , तलवार तुम्हारे हाथों में !
    दिल में कटार घुसते, देखी, मुस्कान तुम्हारे चेहरे पर !

    गुस्सा थूक दीजिए सतीश जी. माफ़ी से बड़ा कोई उपहार आप अपने मित्र को नहीं दे सकते.

    गुस्सा अपनी जगह, पर कविता बहुत सुंदर है. बधाई.

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  5. आपके गीत पसन्द आ रहे है ....शुक्रिया..

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  6. क्यों जग के सम्मुख हंसी उड़े
    क्यों बेमन साथी साथ चलें ?
    क्यों साथ उठायें कसमें हम ?
    क्यों ना पूरे , अरमान करें ?
    गहरी खाई में गिरते दम , वह दर्द भरा क्रंदन मेरा !
    विस्फारित आँखों से देखी, इक जीत तुम्हारे चेहरे पर !

    लाज़वाब! एक एक पंक्ति सटीक तीर सी दिल में उतर जाती है..आज आपकी रचना ने निशब्द कर दिया..तीन बार पढाने पर भी दिल नहीं भरा..बहुत उत्कृष्ट रचना..बधाई!

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  7. .

    सतीश जी ,

    बहुत ही सुन्दर रचना है ।

    पहले से ही मन उदास था , ये रचना और भी उदास कर गयी । फिर भी यही कहूँगी, प्यार में जो ताकत है वह किसी में नहीं । प्रेम क्षमा करना सिखाता है ।

    .

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  8. गहरी खाई में गिरते दम ,वह दर्द भरा क्रंदन मेरा !
    विस्फारित आँखों से देखी इक जीत तुम्हारे चेहरे पर !
    इसे कहते है भावों की अभिव्यक्ति और शब्दों का चयन इसके आगे कुछ नहीं ....

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  9. .

    सतीश जी ,

    बहुत ही सुन्दर रचना है ।

    पहले से ही मन उदास था , ये रचना और भी उदास कर गयी । फिर भी यही कहूँगी, प्यार में जो ताकत है वह किसी में नहीं । प्रेम क्षमा करना सिखाता है ।

    .

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  10. हाय!! किसकी गरदनज़दनी हुई, कौन मुस्कुराया ???? :)

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  11. is behtreen aujpoorn rachna ke liye
    shubhkamnaye

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  12. समय मिले तो इस ब्लॉग को देखकर अपने विचार अवश्य दे
    देशभक्त हिन्दू ब्लोगरो का पहला साझा मंच - हल्ला बोल

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  13. जितनी सशक्त रचना है उतना ही प्रभावी है पोस्ट की शुरुआत में दिए आपके विचारों का अर्थ ........ बेहतरीन प्रस्तुति

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  14. जग के चलन को इंगित करती बेहतरीन कविता...
    शायद इसीलिये मुँह में राम बगल में छुरी जैसी कहावत इजाद हुई होगी ।

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  15. आदरणीय सतीश सक्सेना जी नमस्ते !
    वर्तमान परिपेक्ष्य में आप की यह कविता बेहद ही सटीक है...
    मेरी ओर से आपको हार्दिक शुभ कामनाएं!!

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  16. क्या बात है सक्सेना साहब!
    एक दम से दिनकर की याद दिला दी आपने।
    प्रवाह, लय, अर्थ, शैली सब अद्भुत! आज के दौर में यह सब और ऐसा कहां मिलता है पढ़ने को।

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  17. क्यों जग के सम्मुख हंसी उड़े
    क्यों बेमन साथी साथ चलें ?
    क्यों साथ उठायें कसमें हम ?
    क्यों ना पूरे , अरमान करें ?
    गहरी खाई में गिरते दम , वह दर्द भरा क्रंदन मेरा !
    विस्फारित आँखों से देखी, इक जीत तुम्हारे चेहरे पर !

    बहुत खूबसूरती से लिखे हैं भाव ...हर छंद गहन अभिव्यक्ति लिए हुए ..

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  18. itihaas sakshee hai apano se hee ghatak chot hotee hai dard bhee tabhee jyada hota hai..........
    kash insan apane aur paraye ko samajh pata......
    bahut sunder geet......
    aabhar

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  19. अभिमन्यु जैसा लगने लगता है।

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  20. सतीश जी ,
    किस भाग को कोट करूं ये सोचने में काफ़ी समय लगाने के बाद भी मैं फ़ैसला नहीं कर पाई ,,बहुत उम्दा रचना ,बहुत ख़ूब !
    मन को स्पर्श करती ऐसी रचना जो संसार का ऐसा रूप प्रस्तुत कर रही है जिस पर विश्वास करने का मन नहीं करता
    क्योंकि दोस्ती पर मेरा यक़ीन अल्लाह का शुक्र है कि महफ़ूज़ है

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  21. सिक्के का एक पहलू ही दिखाया आपने सतीश जी। इतिहास साक्षी है कि यह संतोष,परिहास,जीत,रंग, मुस्कान सभी करूण क्रंदन में परिवर्तित हुए हैं।
    ..गज़ब का आक्रोश भरा है इस गीत में।

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  22. आज तो बेटा ही मां के ऎसा करता हे आप लोगो की बात करते हे,आप का लेख पढ कर मेरे दिल के जख्म फ़िर से ताजा हो गये...

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  23. जूलियस सीजर प्रसंग का यू टू ब्रूटस याद आया बेसाख्ता -
    एक बहुत ही भाव परवान रचना ....
    वैसे क्रूर परिहास तो प्रकृति भी करती है और अपने कुछ चुनिंदे कैकेयी सरीखे पात्रों से
    करवाती है ....कैकेयी के काम मोह में दशरथ किस तरह निष्प्राण हुए कौन नहीं
    जानता -आज भी कैकेयी कैकेयी घृणित और निन्दित है -दशरथ परिस्थितियों के दास बने
    इसलिए क्षम्य भी !

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  24. कोई गहरे घाव दे गया।
    कवि ने शब्द बाणों से सीना अपना छ्लनी कर दिया।

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  25. आपका जज्बा और जज्बात काबिले-सलाम है।

    “ या अ ब स की तरह बेसबब जीना है
    या सुकरात की तरह जहर पीना है ..! ”(~ कुँवर नारायण )
    ......और आज आपके हाथ में पियाला नहीं :)

    बहुमत ने सुकरात को दोषी कहा था, पर वह स्वयं के प्रति इमानदार था, सो जहर को अमृत समझ पिया। समय-समाज ( बहुमत ) झूठे लोगों के साथ अनेकों बार दिखता है, पर अपने व्यक्तिगत सत्य के साथ जीना अल्प-काल और अल्प-मत के बाद भी सुकून देता है, अगर नजरिया दुरुस्त है ! सो अपने व्यक्तिगत यथार्थ पर लीपा-पोती क्यों करें!! अपना सच जियें , और क्या !! अतः कैकेयी-चरित्र कुछ भी कहें, की फरक पड़दा :)

    इन रचनाओं को पुस्तकाकार रूप में लाइये, ऐसा पहले भी कह चुका हूँ! यह रचना भी देल से बतियाती हुई ! आभार !

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  26. @ यह रचना भी देल से बतियाती हुई !
    -- सुधार ...‘दिल’ से बतियाती हुई !

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  27. ’गढ़ आया पर सिंह गया’ की तर्ज पर ’अनुभव पाया पर मित्र गया।’ जितना गहरा दर्द रहा होगा, उतनी ही मुखर हुई है कविता सो दर्द का अंदाजा तो लगता ही है।
    जाने दीजिये सतीश भाई, जिसके पास जो है वो वही दे सकता है।

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  28. क्यों जग के सम्मुख हंसी उड़े
    क्यों बेमन साथी साथ चलें ?
    क्यों साथ उठायें कसमें हम ?
    क्यों ना पूरे , अरमान करें ?

    उदासी भरी सुन्दर रचना....

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  29. वर्ल्ड कप में भारत-पाकिस्तान सेमीफाइनल मैच से पहले धोनी का नाम लेकर ये एसएमएस बड़ा मशहूर हुआ था-

    आफरीदी-उमर गुल से कौन डरता है साहब, हमें तो नेहरा-मुनाफ़ से डर लगता है...

    जय हिंद...

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  30. आपने तो उफ्फ्फ्फ़ कहने लायक भी नहीं छोड़ा गुरुदेव.. हालेदिल यार को लिखूं कैसे,हाथ दिल से जुदा नहीं होता!!

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  31. bheetar tak cheerta hua geet...

    aag hai
    aag hai
    aag hai

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  32. बहुत ही उदास पर बहुर खूबसूरत रचना.
    शब्द बहुत सुन्दर हैं पर भाव भारी हो गया है.
    दोस्तों से अपेक्षाएं ज़रा कम कर लीजिये ,सतीश भाई,दर्द कम होगा.

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  33. सतीश भाई ,
    आप बहुत दिल से लिखते हैं , ये भी तो नहीं कह सकता कि आपका कलपना , ये उदासियां , ये गिले शिकवे...बहुत खूब , अति सुन्दर !


    अगर वो अपना है मित्र है तो ...

    उसके संतोष के लिए मुस्करा कर गर्दन कटवाने में हर्ज ही क्या है ?

    उसके चेहरे पर परिहास देख , बिलखना क्यों ?

    उसकी जय पर अपनी आँखों को विस्फारित करना कैसा ?

    उसकी तलवार / उसकी कटार / उसकी मुस्कान सहर्ष करो स्वीकार अगर मित्र है वो !

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  34. satish bhai ji
    sabse pahle to main dil se aapse xhma chahti hun ki aswasthata ke chalte bhaut hi vilamb se aapke blog par pahunchi hun.ab thoda thoda koshish kar rahi hun ki aap sab tak pahunch sakun par jyada der nahi baith sakti .
    bhai ji aapki rachna ki haqikat ko kin shabdo me bayan karun .sach me lagta hai itihaas jaise hamesha ki tarah apne aapko duharata hi rahega. kabhi kabhi aisi baat hammare sath ho jaati hai jo ki hammare liye akalpaniy hi hoti hai .
    bahut bahut badhai v sadar naman---
    tere dar pe aayenge jara der se sahi
    par vaada hai mera tujhse aayenge jaroor aayenge jaroor----
    poonam

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  35. mitra vaise to kavita roj padhate hain ,kuchh rachane ka prayas bhi ,parantu aaj aapko padhakar ,arse bad kavy santushti ka bodh hua . srjan ki maulikat,avm utkrishtata parshansniy hai .hriday se aabhar ji.

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  36. .
    .
    .
    आदरणीय सतीश सक्सेना जी,

    सुन्दर, बहुत ही भावपूर्ण, दिल को छू गई आपकी यह कृति...

    आभार!




    ...

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  37. जब बिना कहे दुनिया जाने, कृतियाँ, जीवित कैकेयी की !
    हम बिलख बिलख जब रोये थे, परिहास तुम्हारे चेहरे पर !

    पता नहीं किस समय का वर्णन है ये ....महाभारत के समय का ...या आज का ...कुछ बदला नहीं ऐसा लगता है ..!!लेकिन दिख रहा है इन्सान का वो विचित्र चेहरा ....दूसरे के दर्द पर हँसता हुआ ....!!
    बहुत ही गहन और चिंता जगती रचना ...!!

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  38. भावप्रणव रचना है। (बेहतरीन = सोने का दिल + लोहे के हाथ)

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  39. मन को कही गहरे में छु गई रचना !
    बहुत मार्मिक, सुंदर .........

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  40. इस प्रकार की रचनाये कभी कभी ही पढाने को मिलती है| आभार

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  41. आज समय ही नहीं है कुछ सकारात्मक सोचने के लिए..

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  42. जब बिना कहे दुनिया जाने, कृतियाँ, जीवित कैकेयी की !
    हम बिलख बिलख जब रोये थे, परिहास तुम्हारे चेहरे पर !


    इतनी वेदना कहाँ से पाई कविराज,
    क्यों रुदन इतना ... क्यों करदन इतना ..
    जमाने की बेवफाई भी पर बवाल क्यों...
    अपनों की वफ़ा तो देखिये...

    और जी भर कर मुस्कुराइए...
    क्योंकि मेरे गीत सिर्फ
    दर्द भरे चेहरा पर मुस्कराहट लाने के लिए हैं.

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  43. जब गिरा जमीं पर थका हुआ
    वह धूल धूसरित, रण योद्धा !
    तब अर्धमूर्छित प्यासे को,
    तुम जहर पिलाने आये थे,
    धुंधली आँखों ने देखी थी , तलवार तुम्हारे हाथों में !
    दिल में कटार घुसते, देखी मुस्कान तुम्हारे चेहरे पर !"

    बेहद संजीदगी भरी रचना है आपकी -- अपनो का दर्द बया करती एक सशक्त रचना ... दिल के बहुत करीब लगती है ..

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  44. बेशक अच्छी एवँ भावपूर्ण कविता !

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  45. ये घाव बड़ा ही गहरा होता है सतीश जी....एक ऐसा घाव जिसकी कोई दवा नहीं मिल पाती इस दुनिया में...

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  46. itna dard ab saha nahi jata ....

    tab sabd nikal kar aate.....

    jai baba banaras......

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  47. जब गिरा जमीं पर थका हुआ
    वह धूल धूसरित, रण योद्धा !
    तब अर्धमूर्छित प्यासे को,
    तुम जहर पिलाने आये थे,
    धुंधली आँखों ने देखी थी , तलवार तुम्हारे हाथों में !
    दिल में कटार घुसते, देखी मुस्कान तुम्हारे चेहरे पर !
    बहुत बढ़िया भावपूर्ण रचना!

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  48. जब गिरा जमीं पर थका हुआ
    वह धूल धूसरित, रण योद्धा !
    तब अर्धमूर्छित प्यासे को,
    तुम जहर पिलाने आये थे,
    धुंधली आँखों ने देखी थी , तलवार तुम्हारे हाथों में !
    दिल में कटार घुसते, देखी मुस्कान तुम्हारे चेहरे पर !
    Dard ki parakashtha hai yeh rachna, aapne rula diya aaj...

    itana hansmukh chehra apne seene main dard ka samandar liye ghoomta hai, socha naa tha :[

    जब घेर दुश्मनों ने मारा था, राजतिलक के मौके पर !
    अपनी गर्दन कटते, देखा संतोष तुम्हारे चेहरे पर ! brutus ke kshadyantra aur
    जब बिना कहे दुनिया जाने, कृतियाँ, जीवित कैकेयी की !
    हम बिलख बिलख जब रोये थे, परिहास तुम्हारे चेहरे पर !
    kaikayi ki ghaat ko apne jeevan se aapne
    अभिमन्यू जैसा वीर गया,यह व्यूह सजाया था किसने ?
    इतिहास तड़प उठता, देखे, जब चमक तुम्हारे चेहरे पर !
    Abhimanyu ki tarah hi vayakt kiya hai.

    Is anmol geet ke liye NAMAN!

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  49. क्यों नाम हमारा आते ही ?
    मुस्कान, कुटिल हो जाती थी
    बच्चों सी निश्छल हंसी देख
    मन में कडवाहट आती थी ...

    विप्लव हिलोरे लेने लगता है .... बहुत ही जानदार .... जोशीला गीत है सतीश जी ..... मज़ा आ गया ....

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  50. बहुत से लोगों को अभिव्‍यक्ति कर दिया आपने।

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  51. आपकी दरियादिली...लाजवाब है...इतनी बड़ी घटना भी इतने हलके में...सुन्दर...

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  52. आपकी ये पोस्ट पढ़कर मुझे ये वाला शेर याद आ गया:
    एक दो जख्म नहीं सारा बदन है जख्मी
    दर्द बेचारा परेशान है कहां से उठे।


    आप मूलत: प्रेम, भाईचारे, भलमनसाहत के ब्रांड एम्बेसडर हैं लेकिन आपकी हर पांचवी-दसवीं पोस्ट में किसी न किसी के प्रति धिक्कार भाव रहता है। किसी ने आपके साथ धोखा किया, किसी ने दिल तोड़ दिया, किसी ने छल कर दिया और आप शुरु हो गये। आप स्वयं अपनी पुरानी पोस्टें देखियेगा। शायद मेरी बातों से इत्तफ़ाक करें।

    इस पोस्ट की शुरुआत जिस तरह से आपने की नीचता की पराकाष्ठा उससे लगता है कि किसी ने आपका दिल कस के दुखाया है इतना कि वह नीचता की पराकाष्ठा है।

    अगर व्यक्तिगत और गोपनीय दर्द है तो रहने दीजिये लेकिन अगर ब्लागजगत से जुड़ा कोई प्रसंग है तो बताने का कष्ट करें चाहे यहां खुले में या मेल में ताकि हम भी देख सकें कि वह नीचता की पराकाष्ठा क्या है जिसने आपको इतना आवेशित कर दिया कि आप अपनी कविता में पूरा महाभारत लाकर धर दिये। सही में वह नीचता की पराकाष्ठा है या आप किसी तिल को ताड़ बता रहे हैं।

    यह मेरे लिये मात्र एक वीर रस की कविता नुमा चीज नहीं है। पंक्ति-पंक्ति से आपका क्रोध/आक्रोश टपक रहा है। यह वाह-वाह का विषय नहीं है। आखिर हम भी तो जाने कि ऐसी कौन सी चीज है जिससे आप इतना आहत हुये कि आपको शुरुआत नीचता की पराकाष्ठा जैसे बेहद कड़े शब्द से करनी पड़ी।

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  53. क्यों नाम हमारा आते ही ?
    मुस्कान, कुटिल हो जाती थी
    बच्चों सी निश्छल हंसी देख
    मन में कडवाहट आती थी ?
    अभिमन्यू जैसा वीर गया,यह व्यूह सजाया था किसने ?
    इतिहास तड़प उठता, देखे, जब चमक तुम्हारे चेहरे पर !

    बेमिसाल गीत..भाव बहुत गहरे है...और शब्द चयन भी बेहतरीन आपसे कभी कभी गीत सुनने को मिलता है पर जब भी मिलता है मन डूब जाता है..अभिव्यक्ति के लिए बधाई

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  54. @ अनूप शुक्ल,
    @ ....किसी के प्रति धिक्कार भाव रहता है...@ यह वीर रस.... ??


    इस रचना को मैं अपनी बेहतरीन रचना मानता हूँ, पर आपके "एक्सपर्ट" कमेन्ट पढ़े और आपकी असंवेदन शीलता का स्वाद भी लिया !

    निस्संदेह यह रचना आपकी समझ में नहीं आई है ! यह आपसे किसने कहा कि कवि रचनाएं आपबीती पर ही लिखता है तब तो मेरी बहुत सी रचनाओं का के अर्थ आप लगा ही नहीं पाएंगे ! संवेदनशील मन औरों का दर्द भी उसी तरह महसूस करता है जैसे अपना !

    बहरहाल किसी भी रचना को समझने के लिए , उसके भाव समझने की कोशिश करनी चाहिए ! संवेदनशील रचना को समझने के लिए संवेदनशील मन आवश्यक है !

    जहाँ तक मेरे आकलन का सवाल है, यह रचना अपने भाव स्पष्ट करने में कामयाब है ...हाँ शिल्प की नज़र से देखें, तो कवित्त शिल्प का जानकार का जानकार न होने के कारण, बहुत सी त्रुटियाँ होंगी ....

    इतनी संवेदनशील रचना पर मैं आपसे अनावश्यक संवाद करने से बचना चाहूँगा ! आशा है मान रखेंगे !

    आप और पाठकों के भाव पढ़े और समझने की कोशिश करते रहें !

    आपको शुभकामनायें !

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  55. सतीश जी ,
    व्यथित न हों ,यह दो नर पुंगवों में असंवादहीनता का प्रगटन है !
    दरअसल अनूप जी (साहित्य की आत्मा वक्र होती है ") वाले कोटि के साहित्यकार हैं और समय के साथ साथ
    आत्मा की वक्रता के शिकार होते गए लगते हैं :)
    भयंकर सिनिसिस्ट हैं मगर हैं एक उच्च कोटि के विद्वान् -कोई शक सुबह नहीं ! जो पूछ रहे हैं उसे जाने का हक़ है उनका और दीगर ब्लागरों का भी ! यह आर टी आई का जमाना है !

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  56. ojpoorn lekhan hai satishji saxsena aapkaa .pravaah aur aaveg vaah kyaa baat hai .!
    veerubhai .

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  57. क्या कहूँ, पीर तो यही है मित्र अपनी भी. सब कुछ वैसे का वैसा ही है. कविता ने मन झकझोर दिया.

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  58. itni safaai se kar gaya katl katil
    ki khu uske kadm-o-dast pe range hina najar aatahai
    kaanun maangta hai jariya-e-ktl bataur-e-subut
    aur khud insaaf se katrata hai...

    dard aur barh jata hai dost hi chhub kar aaghaat karta hai..bada hi katu aur vishaila anubhav...

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  59. बुलाकी दास की पंक्तियाँ याद की आपकी रचना को पढ़कर:

    प्यार दिया करता है पीड़ा, पीड़ा प्यार दिया करती है,
    जब कोई साथ नहीं होता, तब कविता साथ दिया करती है ।

    शोर बहुत होता है उनका, जो कि तल से दूर बसे हैं,
    उनकी आभा का क्या कहना, जो मानस को कसे-कसे हैं,
    काल दिया करता है चिन्तन, चिंता सार दिया करती है,
    जब कोई साथ नहीं होता, तब कविता साथ दिया करती है ।


    फिर विनम्र जी की कुछ बातें याद आईं:

    सजल नयन और तरल हृदय,परपीड़ा से होता है ना
    हम सब में ही छुपा कवि है,बता रही हमको कविता।

    कोई दृश्य, जिसे देखकर भी न देख सब पाते हैं
    कवि मन को उद्वेलित करता, तब पैदा होती कविता।

    कवि की उस पीड़ा का मंथन, शब्द-चित्र बन जाता है
    दृश्य वही देखा-अनदेखा, हमको दिखलाती है कविता।


    -बहुत संवेदनशीलता से पीड़ा को पिरोया है आपने रचना में...

    कुछ कमेन्टस पर भी सरसरी नजर गई.

    यह तो याद नहीं किस महान व्यक्ति के यह वाक्य हैं किन्तु फिर भी वाक्य याद आते हैं:


    १.जिसकी जैसी अकल होती है वह वैसी ही बात करता है।

    २.जो जैसा होता है वैसा ही दूसरों के बारे में सोचता है।


    इस उम्दा रचना के लिए आपको बहुत बधाई.

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  60. जब समय लिखे इतिहास कभी
    जब मुस्काए, तलवार कभी,
    जब शक होगा निज बाँहों पर ,
    जब इंगित करती आँख कहीं
    जब बिना कहे दुनिया जाने, कृतियाँ, जीवित कैकेयी की !
    हम बिलख बिलख जब रोये थे, परिहास तुम्हारे चेहरे पर !
    bahut badhiyaa

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  61. @सतीश सक्सेनाजी,
    सुकून मिला जानकर कि यह आपकी पीड़ा नहीं है! बाकी जब आपने हमको असंवेदनशील बता ही दिया तो और कुछ कहने को रह भी नहीं जाता। खासकर तब जब आप इस बारे में कोई संवाद करना नहीं चाहते।
    @ अरविन्द मिश्र जी,
    अपने साहित्यकार होने का मुगालता मुझे नहीं है। सिनिसिस्ट के दो मतलब बताये गये हैं एक निराशावादी और दूसरा दोष देखने वाला। किस अर्थ में आपने किया है सिनिसिस्ट मेरे लिये बताइयेगा तो यह उपाधि भी अपने लिये सहेज लूंगा।

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  62. १.जिसकी जैसी अकल होती है वह वैसी ही बात करता है।

    २.जो जैसा होता है वैसा ही दूसरों के बारे में सोचता है।
    ha ha ha ah ha ha ha .....

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  63. ब्लॉग जगत में कुछ ऐसे विद्वान कार्यरत हैं जिनके आगे हम निपट मूर्ख समान ही होंगे ! आज यहाँ हमसे न केवल उम्र एवं अनुभव में अपितु विद्वता में कहीं अधिक सम्मानित लोग कार्यरत हैं और आने वाले समय में यह संख्या लाखों में जाएगी ! इस सागर में हम जैसे लोग, बूँद की हैसियत मात्र ही रखते हैं , कुछ समय में हमारी लेखनी से हमारी मानसिकता लोगों को पता चलना शुरू हो जायेगी !

    जिन लोगों कि लेखनी में आकर्षण नहीं है वे अपने चेहरे को दिखाने के लिए शोर्टकट, अपने अपने हिसाब से ढूँढ़ते हैं ! इसमें एक है, किसी स्थापित ब्लोगर से जाकर उलझना अथवा बेसिर पैर का विवाद खड़ा करना जिससे लोग हमारी तरफ ध्यान दे सकें ! चूंकि ब्लॉग जगत में तालियाँ बजवाना बहुत आसान है अतः उन्हें आत्मसंतुष्टि का बोध होता है और वे अपनी डूबती हुई साख को बचाने के लिए, कई जगह अपमान करवा कर भी, यह डुगडुगी लिए मौकों की तलाश में घूमते रहते हैं !
    मुझे भय है कि ऐसे लोग अधिक समय तक अपनी स्थिति को कायम रख पायेंगे !

    हमें चाहिए कि शीघ्र अपनी आँखें खोले और समय का सम्मान करना सीख लें अन्यथा समय किसी को माफ़ नहीं करता !

    यह कमेन्ट मैं अपने सम्मानित दोस्त को नसीहत के उद्देश्य से नहीं लिख रहा बल्कि उनकी संभावित गिरावट में, अपनी हिस्सेदारी से, अपने आपको अलग रखने के लिए लिख रहा हूँ !

    उम्र में बड़ा होने के नाते यह मेरा हक़ भी है कि उन्हें समझाने का कम से कम एक बार प्रयत्न अवश्य करूँ और यह कमेन्ट मेरा वही प्रयत्न माना जाए हालांकि मैं पहली बार निराश महसूस कर रहा हूँ !

    आदर सहित

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  64. बहुत बेहतरीन रचना है। शब्द नहीं हैं इसे व्याख्यायित करने को। शिल्प की दृष्टि से बिना किसी खोट के यह उपस्थित है। एक टाइपोग्राफिक दोष जरूर मिला है कि अभिमन्यु को अभिमन्यू टाइप कर गए हैं।
    रचना तभी सार्थक होती है जब वह भोगा हुआ यथार्थ से सामाजिक यथार्थ हो जाती है। टिप्पणियाँ बता रही हैं कि यह उस श्रेणी तक जा चुकी है।
    ब्लागरी में ऐसा होता रहा है कि व्यक्तिगत पीड़ाएँ रचनाओं के माध्यम से अभिव्यक्त होती रही हैं। अनूप जी यदि ऐसा समझ बैठे तो यह उन का ब्लागरी जुनून ही है। उस से अधिक कुछ नहीं। ऐसा मेरे साथ भी हुआ जब पिछले माह मैं ने दो कहानियाँ लिखीं। चूंकि मैं खुद वकील हूँ इस कारण वकील चरित्र को श्रेष्टता के साथ निभा भी सकता हूँ। कहानियों का पात्र वकील होने से लोगों को यह लगा कि वह मेरे ही घर की कहानी है।
    वस्तुतः हम अपनी कहानी भी कहेंगे तो जब वह कैनवस पर उतरेगी उस में सामाजिक यथार्थ आएगा ही। यदि वह आप बीती हो कर रह गई तो उस का कोई सामाजिक मूल्य भी नहीं होगा।
    अंत में इस श्रेष्ठ रचना के लिए आप को बारंबार बधाई!

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  65. @ दिनेश राय द्विवेदी ,

    धन्यवाद भाई जी ,
    आपकी टिप्पणी पढ़कर अच्छा लगा, अभिमन्यु को ठीक कर दिया गया है ....आभार आपका !

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  66. सतीश भाई, सच कहूं, एक अरसे बाद इतना प्यारा गीत पढ़ रहा हूँ. इस गीत में अपने समय की विद्रूप-मानसिकता को आपने सुन्दर ढंग से रूपायित किया है. पौराणिक प्रतीकों को आधुनिक सन्दर्भ से जोड़ ने के कारण गीत नए अर्थ-लोक तक ले जाता है. यह गीत आपके अनुभव और साहित्यिक-शिल्प-चेतना के नव-विस्तार की तरह भी देख रहा हूँ.

    ReplyDelete
  67. क्यों जग के सम्मुख हंसी उड़े
    क्यों बेमन साथी साथ चलें ?
    क्यों साथ उठायें कसमें हम ?
    क्यों ना पूरे , अरमान करें ?
    गहरी खाई में गिरते दम , वह दर्द भरा क्रंदन मेरा !
    विस्फारित आँखों से देखी, इक जीत तुम्हारे चेहरे पर !

    दूसरों को कष्ट में देख कर कुछ लोगों को संतुष्टि मिलती है। आपकी इस कविता में संबंधों के दोहरे चेहरे की यथार्थ अभिव्यक्ति है।

    ReplyDelete
  68. अनूप जी ,
    distrust of the integrity or professed motives of others " के अर्थ में मैंने सिनीसिस्ट का प्रयोग किया
    मैं भी कई मामलों में सिनीसिस्ट हो उठता हूँ ऐसा लोगों का कहना है ..
    सच्चा सिनीसिस्ट वो है जो कतई यह नहीं मानता कि वह सिनीसिस्ट है :) जैसे मैं :)

    ReplyDelete
  69. बहुत ही सुन्दर और भावनात्मक कविता ... उत्कृष्ट काव्य ! अपनों का दिया हुआ घाव सबसे गहरा होता है ...

    ReplyDelete
  70. बहुत शानदार.

    मेरे ब्लॉग पर आयें, स्वागत है.
    चलने की ख्वाहिश...

    ReplyDelete
  71. बहुत ही सुन्दर और भावनात्मक कविता|धन्यवाद|

    ReplyDelete
  72. जब बिना कहे दुनिया जाने, कृतियाँ, जीवित कैकेयी की !
    हम बिलख बिलख जब रोये थे, परिहास तुम्हारे चेहरे पर !


    jai ho ..... X 1100 baar

    ReplyDelete
  73. बहुत ही गहरी पीढा की बड़ी गहरायी से बड़ी ख़ूबसूरती से बड़े ही अद्भुत तरीके से वर्णन की शब्द तारीफ में फूटते नहीं ... निःशब्द सी हो गयी हूँ मैं ..

    ReplyDelete
  74. जब दर्द की इंतहा होती है तो ऐसे गीत का जन्म होता है...फिर चाहे वह अपना हो या पराया...
    @अली साहब की टिप्पणी असर करती है..

    ReplyDelete
  75. धुंधली आँखों ने देखी थी , तलवार तुम्हारे हाथों में !
    दिल में कटार घुसते, देखी मुस्कान तुम्हारे चेहरे पर !bahut sundar rachna.....

    ReplyDelete
  76. लाजवाब रचना। बधाई।

    ReplyDelete
  77. खूबसूरत गीत ...सुन्दर प्रस्तुति...बधाई.

    ReplyDelete
  78. aap ki kavita nirasha bhartii hai jindgi me. aadikaal se manav kya eeshavar bhi es se bach nahi paya.
    aap ki rachna me bhav hai .

    ReplyDelete
  79. very good composition. Congrats!!!

    ReplyDelete
  80. जब गिरा जमीं पर थका हुआ
    वह धूल धूसरित, रण योद्धा !
    तब अर्धमूर्छित प्यासे को,
    तुम जहर पिलाने आये थे,
    धुंधली आँखों ने देखी थी , तलवार तुम्हारे हाथों में !
    दिल में कटार घुसते, देखी मुस्कान तुम्हारे चेहरे पर !
    बधाई भाई सतीश जी

    विवेक जैन vivj2000.blogspot.com

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  81. पर पीड़ा संतुष्टि वाले व्यक्तित्व का सरल और भावपूर्ण चित्रण। सतीश जी बधाई।

    ReplyDelete
  82. आदरणीय सतीश जी ,
    बहुत अच्छा लिखा है,कहना तो बहुत कम होगा ... आपकी रचना उदास करते हुए भी सोचने को मजबूर करती है । लगता है जितनी जल्दी समझ आ जाये उतना अपने लिये अच्छा है और पीड़ा देने वाले ये काम कर के न चाहते हुए भी कुछ तो भला कर ही जाते हैं.......सादर !

    ReplyDelete
  83. आदरणीय सतीश सक्सेना जी
    बहुत बेहतरीन रचना बहुत गहरे भाव
    इस उम्दा रचना के लिए आपको बहुत बधाई....

    ReplyDelete
  84. जब समय लिखे इतिहास कभी
    जब मुस्काए, तलवार कभी,
    जब शक होगा निज बाँहों पर ,
    जब इंगित करती आँख कहीं
    ....बहुत ही खूबसूरत रचना.

    ReplyDelete
  85. निशब्द कर दिया.. उत्कृष्ट रचना..बधाई

    ReplyDelete
  86. बड़ी गंभीर और बढ़िया रचना है,वाह सतीश जी.

    ReplyDelete
  87. तुम मुस्करा रहे थे जब हम विलख रहे थे, तुम संतुष्ट नजर आये जब हमारी गर्दन कट रही थी , तुम्हारी आखेां मे एक जश्न था, एक जीत का भाव था जब मै गिर गया था। और इतिहास तडप उठता पर याद आया ’’क्या कहीं फिर कोई बस्ती उजडी, लोग क्यों जश्न मनाने आये ’’ मानव मन की निष्ठुरता पर सटीक बात । सही है भाई विश्व में दो ही व्यक्ति ऐसे हैं जो सही शब्दों में मानव है, एक जो मर चुका है , दूसरा जिसने अभी तक जन्म नही लिया है।

    ReplyDelete
  88. क्यों जग के सम्मुख हंसी उड़े
    क्यों बेमन साथी साथ चलें ?
    क्यों साथ उठायें कसमें हम ?
    क्यों ना पूरे , अरमान करें ?

    बहुत खूब कहा है आपने इन पंक्तियों में ।

    ReplyDelete
  89. क्यों नाम हमारा आते ही ?
    मुस्कान, कुटिल हो जाती थी
    बच्चों सी निश्छल हंसी देख
    मन में कडवाहट आती थी ?
    अभिमन्यु जैसा वीर गया,यह व्यूह सजाया था किसने ?
    इतिहास तड़प उठता, देखे, जब चमक तुम्हारे चेहरे पर !
    beautifully penned.:)

    ReplyDelete
  90. aaj to MERE GEET ke geet ne nishabd kar diya. rachna beshak etihasik ghatnao par aadharit hai lekin samsaamyik hai. baki vakil sahab ki baat se sehmat hun.

    रचना तभी सार्थक होती है जब वह भोगा हुआ यथार्थ से सामाजिक यथार्थ हो जाती है।

    ReplyDelete
  91. सक्सेना जी!
    शानदार प्रस्तुति के लिए साधुवाद! दरअसल "लहमों ने खता की है, सदियों ने सजा भोगी।" इतिहास गवाह है सारी समस्याओं की जड़ स्वाथों की टकराहट रही है। यह सिलसिला सदियों से चला आ रहा है। जियो और जीने दो की भावना का पालन इस समस्या का समाधान है। हमें मिल जुल कर भावी संतति के उज्ज्वल भविष्य के लिए प्रयास करना चाहिए।
    ==============
    "रंग लाएगी किसानी।
    यह धरा होगी सुहानी॥
    आने वाली कोपलों का-
    मैं बनूंगा खाद-पानी॥"
    ==============
    सद्भावी -डॉ० डंडा लखनवी

    ReplyDelete
  92. Satish Bhai! Extremely effusive,sentimental emotion filled Geet. I would say one of the touchy &the Best Geet so far in your blog, beautifully depicted. The more you Read the more you get attached to it. You are the Best,Great,Blogger.

    ReplyDelete
  93. @ Anonymous,
    Extremely effusive,sentimental emotion filled Geet. I would say one of the touchy &the Best Geet so far in your blog, beautifully depicted.

    धन्यवाद आपका ...

    इस गीत में दो बेमेल चरित्र दर्शाए हैं एक जो बेहद संवेदनशील , भावुक और भला इंसान है मगर उसका पार्टनर बहुत कठोर दिल, दिखावा पसंद और मन में रंजिश लेकर जीने वाला इंसान है ! नफ़रत और प्यार के मध्य लड़ाई में अक्सर कुटिलता जीतती नज़र आती है ! ब्रूटस और जूलियस सीज़र की कहानी लगभग यही थी !

    इतिहास गवाह है कि भले और सीधे लोग अक्सर धोखा देकर मार दिए गए !

    इस युद्ध में प्यार और क्षमा अंततः लोगों का दिल जीतती है चाहे भौतिक स्वरुप में उनकी हार ही क्यों न हुई हो !

    यह सच है कि यह गीत कम से कम मेरे लिए अद्वितीय है साथ ही अमूल्य भी ! मगर मेरे लिए इस गीत से भी अधिक कीमती, इन बेहतरीन विद्वानों की खुशनुमा प्रतिक्रियाएं हैं जो मुझे मिली हैं ! मैं सोंचता हूँ अगर हिंदी के यह प्रकांड विद्वान, इस गीत पर संतुष्ट हुए हैं तो मेरा अब तक का गीत लेखन सफल हो गया है और मैं लोगों के दिल छू लेने के अपने मकसद में, कामयाब हूँ !

    एक रचनाकार को इससे अधिक संतुष्टि और क्या हो सकती है !

    ReplyDelete
  94. ओह! दर्द की कटु अभिव्यक्ति के साथ शानदार प्रस्तुति.
    गहरी खाई में गिरते दम , वह दर्द भरा क्रंदन मेरा !
    विस्फारित आँखों से देखी, इक जीत तुम्हारे चेहरे पर !

    ReplyDelete
  95. just speechless...adbhud prashansa me jitne shabd kahun kum hain.kalam ka krodh dekhte hi banta hai.

    ReplyDelete
  96. जाने वो कैसे लोग थे जिनके प्यार को प्यार मिला
    हमने तो जब कलियाँ मांगी काँटों का हर मिला |
    फिर भी प्यार बांटते चलो ........
    सशक्त रचना |

    ReplyDelete
  97. आपकी हर रचना खामोश कर देती है तारीफ़ में शब्द कहना ऐसा लगता है जैसे ..."सूरज को दिया दिखाना"

    क्यों नाम हमारा आते ही ?
    मुस्कान, कुटिल हो जाती थी
    बच्चों सी निश्छल हंसी देख
    मन में कडवाहट आती थी ?
    अभिमन्यु जैसा वीर गया,यह व्यूह सजाया था किसने ?
    इतिहास तड़प उठता, देखे, जब चमक तुम्हारे चेहरे पर !

    जब गिरा जमीं पर थका हुआ
    वह धूल धूसरित, रण योद्धा !
    तब अर्धमूर्छित प्यासे को,
    तुम जहर पिलाने आये थे,
    धुंधली आँखों ने देखी थी , तलवार तुम्हारे हाथों में !
    दिल में कटार घुसते, देखी मुस्कान तुम्हारे चेहरे पर !

    ReplyDelete
  98. बहुत सुन्दर और शानदार रचना प्रस्तुत किया है आपने! उम्दा पोस्ट!

    ReplyDelete
  99. हाय! मेरा क्या होगा? मेरी शैली.. खुद पर लिखना है..सब सवाल करेंगे तो मेरी छोटी सी गुजारिश होगी ..कृपया न पढ़े ..वैसे इतनी अच्छी कविता के अर्थ को ,मर्म को न समझ कर कोई कैसे आपके स्वाभाव से जोड़ देता है.. यहाँ मैं देख रही हूँ .रचनाए गौण हो जाती है और व्यक्तित्व प्रभावी प्रोफाइल के अनुसार ...तथाकथित साहित्यकार साहित्य में कम कारों में ज्यादा रूचि रखते हैं.समीक्षा की उम्मीद ही बेकार है.. बस आह! वाह! से ही खुश हो लें हम .

    ReplyDelete
  100. व्यंग्यकार की नजर पड़ी सुनामी आ गई!

    ReplyDelete
  101. जब घेर दुश्मनों ने मारा था, राजतिलक के मौके पर !
    अपनी गर्दन कटते, देखा संतोष तुम्हारे चेहरे पर !


    दिल से लिखी बात लगती है....... दिल को छू गयी

    ReplyDelete
  102. क्यों नाम हमारा आते ही ?
    मुस्कान, कुटिल हो जाती थी
    बच्चों सी निश्छल हंसी देख
    मन में कडवाहट आती थी ?
    अभिमन्यु जैसा वीर गया,यह व्यूह सजाया था किसने ?
    इतिहास तड़प उठता, देखे, जब चमक तुम्हारे चेहरे पर !

    कितनी सत्य बातें.. गंभीर चिंतन समेटे एक कमाल की रचना...धन्यवाद...मातृ दिवस की हार्दिक बधाई

    ReplyDelete
  103. प्रिय और आदरणीय भैया जी...इस बार सबसे देर से पंहुंचा हूँ आपके पास आप कत्तई मुझे माफ़ मत करना...नहीं तो आपका यह भाई अपनी आदत बिगाड़ लेगा....
    जब गिरा जमीं पर थका हुआ
    वह धूल धूसरित, रण योद्धा !
    तब अर्धमूर्छित प्यासे को,
    तुम जहर पिलाने आये थे,
    धुंधली आँखों ने देखी थी , तलवार तुम्हारे हाथों में !
    दिल में कटार घुसते, देखी मुस्कान तुम्हारे चेहरे पर !


    भैया लगता ही नहीं की ये आज की रचना है आज तो कोई ऐसा लिखता ही नहीं....अब काव्य कहाँ लिखा जाता है भैया जी आज तो लदे के कविता ही किखी जाती है आप सच में समर्थ गीतकार हैं...भाग्शाली हूँ मैं जो आपका सानिध्य मिला !!

    ReplyDelete
  104. अच्छी भावपूर्ण प्रस्तुति "परिहास तुम्हारे चेहरे पे "-भाव कणिकाएं अकसर विरेचन करजातीं हैं ,गांठें मन की खुल जातीं हैं .

    ReplyDelete
  105. आदरणीय सतीश जी ,
    आपके गीत की कुछ पंक्तियाँ कोट करने से कोई बात नहीं बनती | पूरा का पूरा गीत भाव और शिल्प -दोनों से परिपूर्ण है | हर बंद की हर पंक्ति स्वयं को स्वतः अभिव्यक्त करने में समर्थ है | प्रारंभ से अंत तक 'गीत धर्म' का सम्यक निर्वहन हुआ है |
    अब ऐसी टिप्पड़ियों के बारे में मैं तो कुछ समझ ही नहीं पा रहा हूँ कि क्या कहूँ, जिनके परिप्रेक्ष्य में आपको इतना स्पष्टीकरण व्यर्थ में देना पड़ रहा है | रचनाकार अपना ही नहीं, पूरे समाज का दर्द महसूस करता है और समय-समय पर उन्हें ही अपने शब्दों की माला में पिरोकर किसी रचना का रूप देता है |
    पन्त जी के अनुसार ....'वियोगी होगा पहला कवि,
    आह से उमगा होगा गान |
    उमड़कर आँखों से चुपचाप ,
    बही होगी कविता अनजान|

    हरिऔध जी के अनुसार .....मूढन को कविता समझाइबो
    सविता को धरती पे लाईबो है |

    निःसंदेह-- जैसा कि आपने कहा है ' मेरा सर्वश्रेष्ठ गीत है '....वास्तव में आपका गीत प्रवाहपूर्ण , सम्प्रेषण क्षमता युत एक सुन्दर और स्तरीय साहित्यिक कृति है | हर दृष्टि से सराहनीय रचना प्रस्तुत करने के लिए आपको बहुत-बहुत धन्यवाद |

    ReplyDelete
  106. बहुत सुन्दर कविता.

    दुनाली पर पढ़ें-
    कहानी हॉरर न्यूज़ चैनल्स की

    ReplyDelete
  107. क्यों नाम हमारा आते ही ?
    मुस्कान, कुटिल हो जाती थी
    बच्चों सी निश्छल हंसी देख
    मन में कडवाहट आती थी ?
    अभिमन्यू जैसा वीर गया,यह व्यूह सजाया था किसने ?
    इतिहास तड़प उठता, देखे, जब चमक तुम्हारे चेहरे पर !
    geet me shilp aur kathya dono ka bhut dhyan rakha hai aapne bhaon ke bare me kya khaun nushbd hoon
    ati ati sunder geet
    saader
    rachana

    ReplyDelete
  108. bahut hi achchi rachna ki hai aapne . Congrats/

    ReplyDelete
  109. इंसान की सहनशीलता, प्रेम , दयाभाव ,अपनापन , विश्वास ,श्रद्धा, धैर्य ,मित्रभाव इत्यादि का एक्स्प्लाइटेशन और इनकी बारंबार हत्या, भीतर का हैवान हमेशा से करता आया है । बहुत ही दर्दनाक और भयावह लगता है, मन व्यथित हो जाता है । पर संतोष इस बात का है कि ये इंसानियत और ये भाव अभी तक पूरी मारे नहीं जा सके हैं । आपने एक वास्तविकता का बहुत ही सटीक और प्रभावशाली चित्रण, दिल से किया है । धन्यवाद ।

    ReplyDelete
  110. गीत शानदार और गंभीर विषय को समेटे हुए है.आज जगह-जगह छलनाएँ हमारा इंतज़ार और उपहास कर रही हैं !शब्द-चयन लाजवाब है,हमेशा की तरह !

    कुछ टिप्पणियों को पढकर मन में ठेस लगी.मुझे लगता है कि उन सज्जन ने आपकी निजता को हल्के-फुल्के ढंग से लिया था जिसकी प्रतिक्रिया में आप कुछ ज़्यादा ही गंभीर हो गए !
    मैं तो आपसे ही निवेदन कर सकता हूँ कि कोई लेखक या कवि अपनी आलोचना को अगर सामान्य ढंग से लेता है तो इससे उसका बड़प्पन ही जाहिर होगा .हर प्रश्न या आलोचना के उत्तर का अधिकार आपको भरपूर है,पर कहीं से भी बिलकुल निजी चोट नहीं होनी चाहिए !
    आशा करता हूँ कि मेरी बिन मांगी सलाह को आप अन्यथा नहीं लेंगे !

    ReplyDelete
  111. bhai stish ji ab aisi sundr rchnayen pdhne ko khan milti hain aap ne prkar giti prmpra ka nirvhan krte huye kavy ki anivaryta udatt guno ko rchna me piroya hai vh adbhut hai naron se door rchna ko sahitya ke str tk smahit kite rhna bdi bat hai sahity se aaj yh sb gyb ho rha hai pr yhan abhi bi sahity jivit hai
    sadhuvad v shubhkamnayen

    ReplyDelete
  112. AA GAYE......

    DEKHTE HAIN....AAP CHHA GAYE....


    PRANAM.

    ReplyDelete
  113. आद. सतीश जी,
    बार बार पढ़ने पर भी मन नहीं भरा !
    सुन्दर,सशक्त,प्रभावी,भावपूर्ण !
    इस रचना का सच हम सब का सच है !

    ReplyDelete
  114. बहुत सुन्दर गीत और फोटो भी कमाल की अंकल जी.
    _____________________________
    पाखी की दुनिया : आकाशवाणी पर भी गूंजेगी पाखी की मासूम बातें

    ReplyDelete
  115. kya baat hai satish ji bohot khoob

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  116. अपने से मिले दर्द कि जो प्रातक्रिया होती है
    उस से बाद का आपने अपनी कविता में लिख दिया है
    अति उतम ....बहुत खूब

    अपनों से मिला दर्द
    जो नासूर बन गया
    किस को कहें अपना
    अब विश्वास ही उठ गया .....(अंजु....(अनु )

    ReplyDelete
  117. बढ़िया...भावपूर्ण कविता....

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  118. निश्चित रूप से आपकी बेहतरीन रचनाओं में से एक है यह रचना... दरअसल जब भाव अपने चरम बिंदुओं को छूते हैं तभी कोई ऐतिहासिक रचना जन्म लेती है.. बधाई आपको... ऐसी रचनाओं की आगे भी प्रतीक्षा रहेगी.. उम्मीदें बढ़ गयी हैं...

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  119. आज दुबारा पढी कविता, और फिर जी चाहा कि कमेंट लिखूं। लेकिन क्‍या लिखूं, यह समझ नहीं आ रहा। बस इतना कहूंगा कि मन को छू गये भाव।

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  120. क्यों सम्वेदनाएं घायल है?
    क्यों आग लगी है पानी में?
    बदली से सूरज हुआ दुखी?
    क्यों कष्ट घुला है बानी में?
    जो परपीड़ा से आहत था, उसे पीड़क से क्यों दर्द हुआ!
    समता की धार दिखा देखो, हो धीर तुम्हारे चेहरे पर !

    ReplyDelete
  121. खरगोश का संगीत राग रागेश्री पर आधारित है जो कि खमाज थाट का सांध्यकालीन राग
    है, स्वरों में कोमल निशाद और बाकी स्वर
    शुद्ध लगते हैं, पंचम इसमें वर्जित है, पर हमने इसमें अंत में पंचम का प्रयोग भी किया है, जिससे इसमें राग बागेश्री भी झलकता है.

    ..

    हमारी फिल्म का संगीत वेद नायेर ने दिया है.
    .. वेद जी को अपने संगीत कि प्रेरणा जंगल में चिड़ियों कि चहचाहट से मिलती है.
    ..
    Here is my website : संगीत

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  122. बहुत ही सुंदर प्रस्तुति.......

    ReplyDelete
  123. अक्सर बेहतरीन लोग, अपनों के द्वारा बड़ी निर्दयता से, बिना उफ़, क़त्ल किये गए

    मन को छू गये भाव..............

    tears just came out

    ReplyDelete
  124. अक्सर बेहतरीन लोग, अपनों के द्वारा बड़ी निर्दयता से, बिना उफ़, क़त्ल किये गए

    मन को छू गये भाव..............

    tears just came out

    ReplyDelete
  125. दिल को छू लेनेवाले भाव जो खूबसूरत शब्दों से आपने सजाया,पर जो आपके अपने हैं वे कभी आपके बर्बादी पे ऐसा नहीं कर पायेंगे।

    ReplyDelete

एक निवेदन !
आपके दिए गए कमेंट्स बेहद महत्वपूर्ण हो सकते हैं, कई बार पोस्ट से बेहतर जागरूक पाठकों के कमेंट्स लगते हैं,प्रतिक्रिया देते समय कृपया ध्यान रखें कि जो आप लिख रहे हैं, उसमें बेहद शक्ति होती है,लोग अपनी अपनी श्रद्धा अनुसार पढेंगे, और तदनुसार आचरण भी कर सकते हैं , अतः आवश्यकता है कि आप नाज़ुक विषयों पर, प्रतिक्रिया देते समय, लेखन को पढ़ अवश्य लें और आपकी प्रतिक्रिया समाज व देश के लिए ईमानदार हो, यही आशा है !


- सतीश सक्सेना

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