Saturday, June 4, 2011

वे आँखें - सतीश सक्सेना

यह दर्द उठा क्यों दिल से है 
यह याद कहाँ की आई है  !
लगता है कोई चुपके से 
दस्तक दे रहा चेतना की 
वे भूले दिन बिसरी यादें ,
क्यों मुझे चुभें शूलों जैसी ! 
लगता कोई अपराध मुझे, है याद दिलाये करमों की !

रजनीगंधा सी सुन्दरता 
फूलों की गंध  उठे  ऐसे 
उन भूली बिसरी यादों से 
ये गीत सजे अरमानों के 
मैं कभी सोचता  क्यों मुझको,
संतोष,  नहीं है जीवन में  !
यह क्यों उठती अतृप्त भूख, सूनापन सा इस जीवन में !

लगता है, जैसे इंगित कर 
है ,मुझको याद करे कोई !
लगता ,कोई हर समय मेरी 
भूलों पर , रोता है   जैसे  !
वे कोई भरी भरी आँखें , 
यादों से जुड़ी हुई ऐसे  !
दिल में कैसा भी दर्द उठे, सम्मुख जीवित होती आँखें !  


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