Friday, August 19, 2011

है अभी स्वप्न, मेरा अधूरा अधूरा !-सतीश सक्सेना

आज की रात में , 
कुछ नया सा लगा 
थक गया था बहुत 
आंख बोझल सी थी 
स्वेद पोंछे,  किसी 
हाथ  ने, प्यार  से  !
फिर भी लगता रहा कुछ, अधूरा अधूरा !

कुछ पता ही नहीं, 
कौन सी गोद थी ,
किसकी थपकी मिली 
और  कहाँ  सो गया !
एक अस्पष्ट चेहरा  
दिखा   था   मुझे    !
पर समझ  न  सका सब, अधूरा अधूरा !

आज सोया, 
हजारों बरस बाद मैं ,
जाने कब से सहारा,
मिला ही  नहीं  ,
रंग गीले अभी,  
विघ्न  डालो नहीं ,
है अभी चित्र  मेरा, अधूरा अधूरा !

स्वप्न आये नहीं थे,
युगों से  मुझे   !
आज सोया हूँ मुझको 
जगाना नहीं  !
क्या पता ,आज
राधा मिले नींद में
है अभी स्वप्न मेरा, अधूरा अधूरा  !

इक मुसाफिर थका  है ,
यहाँ   दोस्तों   !
जल मिला ही नहीं 
इस बियाबान में  !
क्या पता कोई 
भूले से, आकर मेरा  
कर दे पूरा सफ़र जो, अधूरा अधूरा !

43 comments:

  1. आज सोया,
    हजारों बरस बाद मैं ,
    जाने कब से सहारा,
    मिला ही नहीं ,

    जीवन में जब तक एक ऐसा सहारा नहीं मिलता जिस पर पूरा विश्वास कर लें तब तक नींद आना कहाँ स्वाभाविक है .....और अगर ऐसा सहारा मिलता है तो जीवन सुखमय हो जाता है ....मनभावन रचना .....!

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  2. रंग गीले अभी, विघ्न डालो नहीं ,
    है अभी चित्र मेरा, अधूरा अधूरा !........
    सुंदर अभिव्यक्ति.....आभार.

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  3. आपकी 'राधा' तो बाद में मिल सकती है पहले 'रुक्मणी' की थपकी को भी पहचान लो !!नींद अच्छी आना बढ़िया शगुन है !
    प्रेम से सराबोर अभिव्यक्ति !

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  4. @ संतोष त्रिवेदी
    रुकमणि सर्वव्याप्त हैं मास्साब जी और राधा तो स्नेह रूपा हैं .....
    कवि के भाव का अर्थ....??
    आभार !

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  5. हरदम साथ हैं
    पर कभी राधा सी
    कभी रुक्मणी सी ....

    बेहतरीन रचना!

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  6. उनींदी कविता में प्रेम की जागृत अवस्था. वाह!

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  7. आज सोया,
    हजारों बरस बाद मैं ,
    जाने कब से सहारा,
    मिला ही नहीं ,
    रंग गीले अभी, विघ्न डालो नहीं ,
    है अभी चित्र मेरा, अधूरा अधूरा !

    hamesha ki tarah bahut sundar kavita

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  8. जीवन को साधना
    भक्ति बना लूँ
    प्रेम को मै पूजा
    बना लूँ
    भाव दीपों को
    आरती में सजा लूँ
    हे अश्रु सुमनों
    प्रिय पथ सजाओ
    बिखरे सुर-ताल
    सितार पर संवारो
    कभी द्वार आकर न
    तुम लौट जाना
    अभी गीत मेरा
    अधुरा-अधुरा !
    अभी स्वप्न मेरा
    अधुरा-अधुरा !

    सतीश जी,
    आपके इतने सुंदर गीत के लिये
    मेरे पास इससे कोई अच्छी टिप्पणी नहीं है ....

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  9. अधूरेपन का अनुभव, पूर्णता के अस्तित्व का प्रतीक है।

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  10. प्रेम और सिर्फ प्रेम .. स्वप्न ...विचार....शब्द.... इन सबके मिलन से ही जन्म हुआ है इस अद्भुत कविता का सतीश जी .. दिल से खुशी जहीर कर रहा हूँ इसे पढकर ..
    धन्यवाद.
    विजय
    --------------
    कृपया मेरी नयी कविता " फूल, चाय और बारिश " को पढकर अपनी बहुमूल्य राय दिजियेंगा . लिंक है : http://poemsofvijay.blogspot.com/2011/07/blog-post_22.html

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  11. आज सोया हूँ मुझको
    जगाना नहीं !
    क्या पता ,आज राधा मिले नींद में
    है अभी स्वप्न मेरा, अधूरा अधूरा !


    बहुत ही कोमल भावों वाली अति सुन्दर रचना.
    साधुवाद.

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  12. एक शेर याद आ रहा है अर्ज किया ..
    बाद मुद्दत के मयस्सर हुआ माँ का आंचल,
    बाद मुद्दत के हमें नींद सुहानी आयीं |

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  13. भूले से क्यों,

    याद करके आयेंगे मुसाफिर...

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  14. दो पंक्ति आपके रचना के नाम:

    आज तक किसने जी है पूरी जिंदगी
    हर शख्स मिलता है मुझे अधूरा अधूरा

    बहुत अच्छी रचना है !

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  15. इक मुसाफिर थका है ,
    यहाँ दोस्तों !
    जल मिला ही नहीं
    इस बियाबान में !
    क्या पता कोई भूले से, आकर मेरा
    कर दे पूरा सफ़र जो, अधूरा अधूरा !

    संवेदनशील रचना ...

    ReplyDelete
  16. ऐसा सुकून, तो माँ की गोद में ही मिल सकता है!
    चाहे सपने में ही हो ....
    मुबारक हो ...

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  17. कुछ पता ही नहीं,
    कौन सी गोद थी ,
    किसकी थपकी मिली
    और कहाँ सो गया !
    एक अस्पष्ट चेहरा दिखा था मुझे !
    पर समझ न सका सब, अधूरा अधूरा !

    वह तो पूरा ही मिलता है पर हम ही डरते हैं क्योंकि पूरा मिला तो हम बचेंगे ही नहीं... खुद को बचाने की फ़िक्र में लगे हम अधूरे से ही संतोष कर लेते हैं....

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  18. स्वप्न आते नहीं थे,
    युगों से मुझे !
    आज सोया हूँ मुझको
    जगाना नहीं !
    क्या पता ,आज राधा मिले नींद में
    है अभी स्वप्न मेरा, अधूरा अधूरा !
    ... swapn poore ho

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  19. badee pyaree abhivykti .......

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  20. आज सोया,
    हजारों बरस बाद मैं ,
    जाने कब से सहारा,
    मिला ही नहीं ,

    बहुत ही लाजवाब.

    रामराम.

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  21. जीवन के प्रति सुकून जगाते खूबसूरत भाव ....... सादर !

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  22. बहुत सुन्दर रचना....

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  23. बहुत फिलोसोफिकल रचना है । लगता है आज मां की याद बहुत आ रही है ।
    यादों में भी सुकून दिलाती है मां ।

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  24. जबरदस्त रचना .....आहिस्ता बोलो रोते रोते अभी सोया है लाल मेरा ....
    बहुत सुंदर रचना ...हर दृष्टि से ,भाव और शिल्प दोनों!
    आँधियों में बसेरे मिलेगें
    रंग में हास फेरे मिलेगें
    डूबता सूर्य यह कह गया है
    फिर सवेरे सवेरे मिलेगें .....
    (क्षेम )

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  25. आज सोया हूँ मुझको
    जगाना नहीं !
    क्या पता ,आज राधा मिले नींद में
    है अभी स्वप्न मेरा, अधूरा अधूरा !

    मन के शानदार भाव, शब्दों में बड़ी बेबाकी से उड़ेल दिए है सतीश जी बधाई

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  26. निशब्द करती पंक्तियाँ.... बहुत सुंदर

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  27. bahut sundar..jane kyun sab paakar bhi adhurapan lgta hai ..jane kyun

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  28. बहुत उम्दा...भावपूर्ण रचना...बहुत पसंद आई.

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  29. लगता है हमराही की सख्त ज़रूरत है:)

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  30. अदभुत रचना...

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  31. गुरुदेव आज तो कम लिखे को ज़्यादा समझो आप, मैं तो बस इतना कहकर खिसकता हूँ कि
    सरहाने सतीश के आहिस्ता बोलो,
    अभी टुक रोते रोते सो गया है!!

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  32. आज सोया,
    हजारों बरस बाद मैं ,
    जाने कब से सहारा,
    मिला ही नहीं ,
    रंग गीले अभी, विघ्न डालो नहीं ,
    है अभी चित्र मेरा, अधूरा अधूरा !
    स्वप्न द्रष्टा को नींद का निहितार्थ उसकी आत्मा का अवचेतन सम्मोह है ,जो जागा तो विचलित करता है ,मजबूर करता है आत्म मंथन को ......./ सुन्दर परिकल्पना ,शुभकामनायें जी /

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  33. @ भाई उदयवीर सिंह,

    इस रचना की आपके द्वारा की गयी व्याख्या अच्छी लगी, भावों को पारिभाषित करने के लिए आपका आभार !

    रमानाथ अवस्थी की एक रचना याद आती है ...

    "मेरी रचना के अर्थ बहुत से है
    जो भी तुमसे लग जाए लगा लेना"

    पाठक आपने अपने हिसाब से अर्थ ढूंढते हैं , पारिभाषित करते हैं !

    शुक्रिया आपका ...

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  34. इस रचना के द्वारा आपने लोगों को कई सूत्र पकड़ा दिए हैं और लोग अपने-अपने हिसाब से इसे देख रहे हैं। लगता है जड़ता को भंग कर लोगों को सोचने का नया दृष्टिकोण प्रदान किया और समाज में बदलाव के लिए आवश्यक ऊर्जा का संचार किया।
    किसी भी गंभीर रचना में यह संभावना तो रहती ही है कि समय के साथ साथ घटनाओं और संदर्भों के मायने बदल जाते हैं, उन्हें समझने और स्वीकार करने का नज़रिया बदल जाता है।

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  35. आभार मनोज भाई !

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  36. पूर्णता कहाँ मिल पाती है कभी,
    जो कुछ भी मिल जाता है अधूरा-अधूरा ।

    आभार सहित...

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  37. @@@
    इक मुसाफिर थका है ,
    यहाँ दोस्तों !
    जल मिला ही नहीं
    इस बियाबान में !
    क्या पता कोई भूले से, आकर मेरा
    कर दे पूरा सफ़र जो, अधूरा अधूरा !..
    वाह,बेजोड़ लाइनें-इस आशावाद को प्रणाम .

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  38. वाह! यह गीत भी बड़ा प्यारा है।

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  39. कविता ने सिक्त कर दिया !
    देर से आई इतनी सुन्दर रचना पढ़ने - नुक्सान अपना ही किया .

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एक निवेदन !
आपके दिए गए कमेंट्स बेहद महत्वपूर्ण हो सकते हैं, कई बार पोस्ट से बेहतर जागरूक पाठकों के कमेंट्स लगते हैं,प्रतिक्रिया देते समय कृपया ध्यान रखें कि जो आप लिख रहे हैं, उसमें बेहद शक्ति होती है,लोग अपनी अपनी श्रद्धा अनुसार पढेंगे, और तदनुसार आचरण भी कर सकते हैं , अतः आवश्यकता है कि आप नाज़ुक विषयों पर, प्रतिक्रिया देते समय, लेखन को पढ़ अवश्य लें और आपकी प्रतिक्रिया समाज व देश के लिए ईमानदार हो, यही आशा है !


- सतीश सक्सेना

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