कुछ रंग नहीं, कुछ माल नहीं
कुछ मस्ती वाली बात नही,
कुछ खर्च करो, कुछ ऐश करो
कुछ डांस करें, कुछ हो जाए !
यदि मौज नहीं कोई धूम नहीं,हम बात तुम्हारी क्यों माने ?
क्या कहते हो ? क्या करते हो
है ध्यान कहाँ ?कुछ पता नहीं
ना टाफी है, ना चाकलेट ,
ना रसगुल्ला, ना बर्गर है !
हम मस्त कलंदर धरती के, हम बात तुम्हारी क्यों माने ?
रंगीन हैं हम, दमदार हैं हम
मस्ती में नम्बरदार, हैं हम
यह समय बताएगा सबको
पढने में तीरंदाज़ हैं हम ,
हम नौनिहाल इस धरती के, हम बात तुम्हारी क्यों माने ?
हम धूम धाम, तुम टाँय टाँय
हम बम गोले,तुम कांय कांय
हम नयी उमर की नयी फसल
तुम घिसी पिटी भाषण बाजी
हम आसमान के पंछी हैं , हम बात तुम्हारी क्यों माने ?
ना गुलछर्रे, ना हो हल्ला,
हम धूमधाम,तुम सन्नाटा
हम छक्के हैं तेंदुलकर के ,
तुम वही पुराना नजराना
हम रंग जमा दें दुनिया में, हम बात तुम्हारी क्यों माने ?
हम लड्डू हैं तुम हरा साग ,
हम चाकलेट तुम भिन्डी हो
हम मक्खन हैं,तुम घासलेट
हम रंग रुपहले,तुम कालिख
हम मस्ती मारें इस जग में, हम बात तुम्हारी क्यों माने ?
कुछ मस्ती वाली बात नही,
कुछ खर्च करो, कुछ ऐश करो
कुछ डांस करें, कुछ हो जाए !
यदि मौज नहीं कोई धूम नहीं,हम बात तुम्हारी क्यों माने ?
क्या कहते हो ? क्या करते हो
है ध्यान कहाँ ?कुछ पता नहीं
ना टाफी है, ना चाकलेट ,
ना रसगुल्ला, ना बर्गर है !
हम मस्त कलंदर धरती के, हम बात तुम्हारी क्यों माने ?
रंगीन हैं हम, दमदार हैं हम
मस्ती में नम्बरदार, हैं हम
यह समय बताएगा सबको
पढने में तीरंदाज़ हैं हम ,
हम नौनिहाल इस धरती के, हम बात तुम्हारी क्यों माने ?
हम धूम धाम, तुम टाँय टाँय
हम बम गोले,तुम कांय कांय
हम नयी उमर की नयी फसल
तुम घिसी पिटी भाषण बाजी
हम आसमान के पंछी हैं , हम बात तुम्हारी क्यों माने ?
ना गुलछर्रे, ना हो हल्ला,
हम धूमधाम,तुम सन्नाटा
हम छक्के हैं तेंदुलकर के ,
तुम वही पुराना नजराना
हम रंग जमा दें दुनिया में, हम बात तुम्हारी क्यों माने ?
हम लड्डू हैं तुम हरा साग ,
हम चाकलेट तुम भिन्डी हो
हम मक्खन हैं,तुम घासलेट
हम रंग रुपहले,तुम कालिख
हम मस्ती मारें इस जग में, हम बात तुम्हारी क्यों माने ?
उनकी ऊर्जा उन्हें थमने भी कहाँ देती है...... बहुत बढ़िया
ReplyDeleteहम लड्डू हैं तुम हरा साग ,
ReplyDeleteहम चाकलेट तुम भिन्डी हो
हम मक्खन हैं,तुम घासलेट
हम रंग रुपहले,तुम कालिख
हम मस्ती मारें इस जग में, हम बात तुम्हारी क्यों माने ?
रंग -ए- मस्ती ,कातिल हलाल ,गम है गाफिल ,एह्तारामे जमाल ..... आफरीन !...
छुट्टियों के इस मौसम में बच्चों और किशोरों के लिए सुंदर गीत।
ReplyDeleteहम भी कभी बच्चे थे
ReplyDeleteझूठे नहीं सच्चे थे,
दुनियादारी से दूर रहे
नहीं पके थे,अच्छे थे !
सुन्दर प्रस्तुति ।
ReplyDeleteहास्य
बच्चों को अपने मन की करने का अधिकार है-
बस नजर रखिये -
सादर ।।
मोहक अंदाज। वाह!
ReplyDeleteऐसे सूरा करम थोड़े ही मानोगे बच्चू ..जब पड़ेगी तब दौड़ के इधर ही आओगे :)
ReplyDeleteउल्लास से परिपूर्ण ..
ReplyDeletekalamdaan
रंगीन हैं हम, दमदार हैं हम
ReplyDeleteमस्ती में नम्बरदार, हैं हम
यह समय बताएगा सबको
पढने में तीरंदाज़ हैं हम ,
हम नौनिहाल इस धरती के, हम बात तुम्हारी क्यों माने ?
bilkul mat maano ... bharo udaan
खूब तोहफा है खासकर बच्चों के लिए.
ReplyDeleteहम गीत रचयिता है अव्वल, तो बात हमारी तुम मानो। अच्छे अच्छों को पढ़ा सके इसलिए बात हमारी तुम मानो।
ReplyDeleteबढ़िया, सुंदर बाल अभिव्यक्ति,बेहतरीन मोहक रचना,...
ReplyDeleteMY RECENT POST काव्यान्जलि ...: कवि,...
बहुत सुंदर .... बच्चों का मन सा मन लिए गहन अभिव्यक्ति
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति, आपकी तो हर कविता की बात ही निराली हैं!
ReplyDeletebahut pyari rachna......
ReplyDeleteसही बात ...क्यों माने..
ReplyDeleteवाह भाईसाहब
ReplyDeleteहम बात तुम्हारी क्यों माने :) बहुत खूब!
मस्त मस्त है जी , एकदम मस्त .
ReplyDeleteजोशो खरोश से भरा गीत। बधाई हो
ReplyDeleteबहुत खूब...अति सुंदर गीत... बधाई !
ReplyDeletevaah ,ab kya kahe ,ye baat maanane vale kahan ,yahi lo hae bachapan ka aanand ,
ReplyDeleteek najar mere blaag par bhii
वाह, अब बच्चों की ओर से..
ReplyDeleteउर्जा और प्रवाह से भरा गीत !
ReplyDeleteआभार !
कवि पर लिखी आपकी कविता ....
ReplyDeleteचरितार्थ करता जहाँ न पहुंचें रवि ,वहाँ पहुंचें कवि ....
अथक अविचल अविरल ... बहुत खुबा ...
कवि पर लिखी आपकी कविता ....
ReplyDeleteचरितार्थ करता जहाँ न पहुंचें रवि ,वहाँ पहुंचें कवि ....
अथक अविचल अविरल ... बहुत खुबा ...
सही बात
ReplyDeleteक्यों माने
हम आसमान के पंछी हैं , हम बात तुम्हारी क्यों माने ?
ReplyDeleteउड़ान जारी रहे ... बहुत सुन्दर
बहुत सुन्दर प्रस्तुति आपकी कविता को पढ़ कर महान हास्य कवी काका हाथरसी की याद आ गयी
ReplyDeleteदेवी तुम रबड़ी में बूरा
किसी चतुर हलवाई ने
तुमको रच यश लूटा है
किन्तु मुझे तो श्रमिकों ने
हथियारों से कूटा है
फिर भी उनसे जूझ रहा हूँ
चरण तुम्हारे पूज रहा हूँ
तुम हो सारंगी सी सुन्दर
मै टूटा हुवा तम्बूरा
देवी तुम रबड़ी में बूरा .....
बहुत बहुत धन्यवाद सतीश जी पुरानी याद को पुनः स्मृत करवाने के लिए ...
धन्यवाद मदन भाई ....
Deleteउदाहरण अच्छा लगा ...
हम लड्डू हैं तुम हरा साग ,
ReplyDeleteहम चाकलेट तुम भिन्डी हो
हम मक्खन हैं,तुम घासलेट
हम रंग रुपहले,तुम कालिख
हम मस्ती मारें इस जग में, हम बात तुम्हारी क्यों माने ?
इनकी मस्ती में ही तो ,हम लोगो की खुसी है.
:) :) :)
ReplyDeleteआज बस इतना ही कहूँगा कि क्या बात है!!
ReplyDelete
ReplyDelete♥
हम धूम धाम, तुम टाँय टाँय
हम बम गोले,तुम कांय कांय
हम नयी उमर की नयी फसल
तुम घिसी पिटी भाषण बाजी
हम आसमान के पंछी हैं , हम बात तुम्हारी क्यों माने ?
आहाऽऽहाऽऽ… !
प्रियवर सतीश सक्सेना जी
क्या बात है !
लौटा दिया बचपन को …
कितने खेल , कितने किस्से , कितने गीत आपके मस्त मज़ेदार गीत के बहाने याद हो आए बहुत ख़ूब !!
हम भी अगर बच्चे होते नाम हमारा होता बबलू डबलू …
:)
मंगलकामनाओं सहित…
-राजेन्द्र स्वर्णकार
.
ReplyDelete…और तस्वीर में आपके साथ ये कौन विभूतियां हैं ,
जिनकी संगत से आपका बचपना लौट आया :)
इनको बहुत बहुत Thanks .
अरे ,आप तो फिर से बचपन में पहुँच गये !
ReplyDeleteकिसी की बात न सुनो...अपने दिल की सुनो...वही करो
ReplyDeleteसही है, सही है! :)
ReplyDeleteउत्साह और जोश से भरी बहुत सुन्दर रचना...
ReplyDeleteuffffffff .... आज के बच्चे और उनकी सोच ...
ReplyDeleteकमाल हैं कमाल हैं ....