Wednesday, May 9, 2012

जीवन भर मुस्काये गीत - सतीश सक्सेना

जीवन भर मैं रहा अकेला  
कहीं  हथेली, न  फैलाई  ! 
गहरे  अन्धकार के  रहते  ,  
माँगा कभी दिया न बाती
कभी न रोये मंदिर जाकर ,
सदा मस्त रहते थे गीत !
कहीं किसी ने, दुखी न देखा, जीवन भर मुसकाए गीत !

कितने लोग मिले जीवन में 
जिनके पैर पड़े  थे,  छाले !
रोते थे हिचकी,  ले लेकर
उनको  घर में दिए सहारे !
प्यार न जाने, यार ना माने,
बड़े लालची थे वे मीत ! 
घायल हो होकर  पहचानें  , गद्दारों  को मेरे गीत  !

रूप गर्विता, जहर बुझे ये  
तीर चले ,  आक्षेपों   के  !
किस रंजिश से पागल हो, 
पर, नोचे एक कबूतर के  ?  
अभी से क्यों घबराए दिखते,
पाप सदा करता भयभीत  !
कहाँ सुरक्षा  तुम  पाओगे ,  पीछा   करते , मेरे गीत  !

चार दिनों का जीवन लाये  
खूब  अकड़ते   घूम रहे  ! 
चंद  तालियों  को सुनकर 
ही खुद को राजा मान रहे !
प्रजा समझ कर जिसे रुलाया,
वही करेगी तुमको  ठीक !
कुछ  वर्षों के  बाद तुम्हीं पर, खूब  हँसेंगे   मेरे   गीत  !

दम भरते हो धर्मराज का 
करते काम कसाई   का !
पूरे दिन, मृदु वचन सुनाओ  
रात को नशा, शराबी का !
कुछ दिन में जनता सीखेगी,
ध्यान से पढ़ना मेरे गीत !
बड़ी दुर्दशा तुम झेलोगे , जिस  दिन जागें मेरे गीत  !

जब जब  मेरा  घोंसला  
नोचा, घर के पहरेदारों ने 
तब तब आश्रय दिया मुझे 
कुछ हंसों के  दरवाजे ने  !    
बच्चों तक ने सेवा की थी,
जब मुरझाये थे ये गीत !
कभी न वे दिन भुला सकेंगे, कर्ज़दार हैं मेरे गीत !

याद मुझे अपमान, अश्रु का
जिसे देख, कुछ लोग हँसे थे
सिर्फ तुम्हारी ही आँखों से ,
दो दो आंसू , साथ बहे थे  !
उन्हीं  दिनों लेखनी उठी थी,
अश्रु पोंछ कर, लिखने गीत !
विश्वविजय का निश्चय करके, निकले दिल से मेरे गीत !

दावानल के समय हमेशा 
रिमझिम बारिश होती है !  
जलती लपटों के समीप
जल भरी गुफ़ाएँ होती हैं !
शीतल आश्रय आगे आते,
जब जब झुलसे  मेरे  गीत !
चन्दन लेप लगा ममता ने, खूब सुलाए, घायल गीत !

हर खतरे में साथ रहे थे,
हर आंसू में साथ खड़े थे
जब भी जलते तलुए मेरे
तुमने अपने हाथ रखे थे !
ऐसे लोगों के कारण ही ,
जीवन में लगता  संगीत  !
इनकी धीमी सी आहट से , निर्झर झरते मेरे गीत !

धोखे की इस दुनिया में  ,
कुछ  प्यारे बन्दे रहते हैं !
ऊपर से साधारण लगते
कुछ दिलवाले रहते हैं  !
दोनों  हाथ  सहारा देते ,  जब भी ज़ख़्मी देखे गीत  !
अगर न ऐसे कंधे मिलते, कहाँ  सिसकते मेरे गीत  !
  

62 comments:

  1. बड़े प्रभावी मेरे गीत -
    मेरे गीत जिताते आये, जीवन की हर बाजी मीत |
    मेरे गीत बताते आये, जन मन की मनमोहक प्रीत |
    मेरे गीत सिखाते आये, दुनिया की हर सुन्दर रीत |
    मेरे गीत मिटाते आये, ईर्ष्या नफरत,दंगा, भीत ||

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    Replies
    1. आपका जवाब नहीं रविकर भाई...

      Delete
    2. यह पंक्तियाँ मेरे काम आएँगी

      Delete
    3. शुक्रिया ||

      Delete
  2. दावानल के समय हमेशा
    रिमझिम वारिश होती है
    जलती लपटों के समीप
    जल भरी गुफाएं होती हैं

    ..वाह! यही आशावाद हमें जीवन जीने की शक्ति देता है।

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  3. दोनों हाथ सहारा देते , जब भी ज़ख़्मी देखे गीत !
    अगर न ऐसे कंधे मिलते,कहाँ सिसकते मेरे गीत !

    वाह !!!! क्या बात है बहुत सुंदर गीत,....सतीश जी

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  4. चंद दिनों का जीवन पाकर
    खूब अकड़ते घूम रहे !
    चंद तालियों को सुनकर
    ही खुद को राजा मान रहे


    बहुत सुंदर गीत.....

    ReplyDelete
  5. वाह , क्या बात है बहुत सुंदर गीत......

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  6. इस गीत में आज के समाज की व्यथा-कथा निहित है।

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  7. वाह वाह ..............................
    बहुत बहुत सुंदर गीत सतीश जी.....
    एक एक पंक्ति मानों शब्द और भाव चुन चुन कर लिखी....

    घायल हो होकर पहचाने , गद्दारों को मेरे गीत !
    अगर न ऐसे कंधे मिलते,कहाँ सिसकते मेरे गीत !
    इन दो पर तो मर मिटे...

    सादर.
    अनु

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  8. गीत आपके जीवन की कथा कहने में सक्षम हैं, ऐसे जिये गये गीत सुनने में भी मधुर होते हैं।

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    Replies
    1. शुक्रिया प्रवीण भाई !

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  9. अच्छा आत्मावलोकन !

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  10. धोखों की, इस नगरी में,
    कुछ प्यारे बन्दे रहते हैं !
    ऊपर से साधारण लगते
    कुछ दिलवाले रहते हैं !

    बहुत सुन्दर गीत ....

    ReplyDelete
  11. चंद दिनों का जीवन पाकर
    खूब अकड़ते घूम रहे !
    चंद तालियों को सुनकर
    ही खुद को राजा मान रहे
    प्रजा समझ कर जिसे रुलाया,वही करेगी तुमको ठीक !
    कुछ वर्षो के बाद तुम्ही पर, खूब हँसेंगे मेरे गीत !

    सुन्दर रचना सतीश जी ..अब ये चेतावनी इनको जरुरी भी है ...बिभिन्न रंगों को समेटती अच्छी रचना
    जय श्री राधे
    भ्रमर ५
    प्रताप गढ़ साहित्य प्रेमी मंच

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    Replies
    1. स्वागत है आपका ....

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  12. कहीं,किसी ने दुखी न देखा,जीवन भर मुस्काये गीत !
    कितना मोनोटोनस लगता होगा कभी-कभी।

    ऐसे ही हर पद के अंत की लाइन के बारे में सोचा लेकिन फ़िर मटिया दिये। सोचा क्या मौज लेना। कोई बुरा मान गया तो बवाल होगा। :)

    अब गीत की तारीफ़ करके बात खतम करते हैं।

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    1. आभारी है आपके अनूप जी....

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  13. धोखों की, इस नगरी में,
    कुछ प्यारे बन्दे रहते हैं !
    ऊपर से साधारण लगते
    कुछ दिलवाले रहते हैं !
    बहुत सुंदर .... आपके गीत नयी ऊर्जा देते हैं ...

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  14. सिसकते गीत मत रख दीजियेगा पहली पुस्तक का नाम

    ये दरअसल महकते मुस्कुराते गीत हैं

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  15. मेरे गीत कहें या सर्व- जन के गीत कहें ! मित्र ! बड़े मनोयोग से सृजित दिल के नैशर्गिक भाव प्रवाहित हुए ...ये धारा बहनी ही चाहिए .......शुक्रिया जी /

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  16. सतीश भाई ,
    ये भावुकता जो ना कराये ! ज़रा ध्यान दीजियेगा ! कुछ मात्रायें पड़ोसियों के कंधे में टिक गई हैं ! उन्हें वहां से हटा कर सही कांधों का सहारा दीजिए वर्ना दुनिया वाले क्या सोचेंगे :)

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    Replies
    1. चश्मा (ब्राउज़र ) बदल लो मात्राएँ ठीक हो जायेंगी , वैसे पडोसी अच्छे लगते हैं :)

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    2. चश्मा गूगल क्रोम से लिया है ! पड़ोसी और उनके कन्धों पे टिकी हुई मोहतरमायें भली लगने लगें ! ऐसा कौन सा चश्मा लगाऊं :)

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  17. bahut sundar geet.....achchhi prastuti.......

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  18. यह गीत जीवन के कई पक्षों को कई तरह से छूता है.
    चंद दिनों का जीवन पाकर
    खूब अकड़ते घूम रहे !
    चंद तालियों को सुनकर
    ही खुद को राजा मान रहे
    प्रजा समझ कर जिसे रुलाया,वही करेगी तुमको ठीक !
    कुछ वर्षो के बाद तुम्ही पर, खूब हँसेंगे मेरे गीत !

    बहुत सुंदर लिखा है.

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  19. चारों और अज्ञान अंधेरा,
    आक्रोश भरे लगते है लोग।
    सोचा चित्त आनंद मिलेगा,
    पर विषाद भर जाते है ब्लॉग।
    ज्यों दहकते मरूस्थल में,पानी लेकर मिलते मीत।
    विषव्यापी इस चन्दनवन में, शीतल फुहारें तेरे गीत॥

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    Replies
    1. आभार सतीश जी, आपने इस प्रतिक्रिया को अपने आलेख में स्थान दिया।
      वह नखलिस्तान तो आपके गीत है,आपने तो पलटवार कर दिया :)

      दिल से प्रवाहित कोमल मधुर सलिल प्रवाह को नमन!!

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  20. हर पंक्ति हर भाव बहुत अर्थपूर्ण...बहुत सुंदर लगी कविता.

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  21. सुन्दर, निर्मल, शीतल, कल-कल बहती नदिया की धारा जैसा गीत... आभार

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  22. दम भरते हो धर्मराज का
    करते काम कसाई का !
    पूरे दिन मृदु वचन सुनाओ
    रात को नशा, शराबी का !
    कुछ दिन में जनता सीखेगी,ध्यान से पढना मेरे गीत
    बड़ी दुर्दशा तुम झेलोगे , जिस दिन जागें मेरे गीत !

    .... सत्य हों ये गीत

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  23. मुझे बच्चन जी की मधुशाला याद आ रही है.. पहले बात पूरी कर लूँ.. मधुशाला का प्रथम पाठ जब वे कर रहे थे तो प्रत्येक छंद की अंतिम पंक्ति पर सम्पूर्ण सभागार में श्रोताओं का समवेत स्वर "मधुशाला" गूँज उठाता था.. जैसे जगजीत सिंह के कार्यक्रम में सारे श्रोता एक साथ "आहिस्ता-आहिस्ता" का घोष करते थे... आज आपके इस गीत के हर छंद पर "मेरे गीत" का समवेत गान सुनाई दे रहा है मुझे!!

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  24. मैं अभिभूत हूँ सलिल आपकी भावनाओं से ....
    मैं धूल भी नहीं हूँ उन अग्रजों के आगे ...आदरणीय हरिवंश राय बच्चन ने एक रास्ता दिखाया था सरल रचनाओं के लिए !
    मेरे गीत बनाते समय कभी सोंचा भी नहीं था कि मेरे गीत भी कभी लिखे जायेंगे मगर अरुण चन्द्र राय द्वारा जब, " मेरे गीत " के प्रकाशन की बुनियाद रखी गयी तो कुछ उत्साहित अवश्य हुआ कि कुछ अलग सा लिखना चाहिए !
    नतीजा यह रचना है इसे आगे बढाने कि संभावनाएं अनगिनत लगती हैं और यही चेष्टा होगी !
    सादर

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  25. बहुत बढ़िया गीत सतीश जी ,
    बहुत बहुत बधाई हो .....

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  26. धोखों की, इस नगरी में,
    कुछ प्यारे बन्दे रहते हैं !
    ऊपर से साधारण लगते
    कुछ दिलवाले रहते हैं !.......बहुत सुन्दर साकारात्मक सोच से युक्त भावपूर्ण गीत..

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  27. जीवन बहता जाए निर्झर
    शीतल मंद पवन ज्यूं सरसर
    चुनें,चुगें या चुक जाएंगे
    सुनने से स्रष्टा का मर्मर

    सृष्टि-चक्र में छोड़ें अपने, प्रीत के पद-चिह्नों की रीत
    आओ मिलकर गाएं हम सब,जीवन के स्पंदन-गीत!

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    1. बड़ी प्यारी पंक्तियाँ हैं, इससे गीत की शोभा बढ़ेगी ...इन मधुर लाइनों के लिए आभार कुमार राधारमण !

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  28. सारे गीत अभी सुना दीजियेगा तो किताब में क्या पढेंगे ! :)
    बहुत बढ़िया गीत लिखा है बंधु .
    आपकी यह विधा तो अब निखर कर सामने आ रही है .

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  29. दावानल के समय हमेशा
    रिमझिम वारिश होती है
    जलती लपटों के समीप
    जल भरी गुफाएं होती हैं
    शीतल आश्रय आगे आते,जब जब झुलसे मेरे गीत !
    चन्दन लेप लगा ममता ने,खूब सुलाए,घायल गीत !

    बहुत सार्थक और सत्य वर्णन करते हैं आपके गीत |
    शुभकामनायें |

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  30. क्‍या बात है ..
    बहुत सुंदर सार्थक गीत !!

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  31. क्या बात है सतीश जी .....गीत ऐसे ही मुस्कराते रहें

    ReplyDelete
  32. याद मुझे अपमान, अश्रु का
    जिसे देख कुछ लोग हँसे थे
    सिर्फ तुम्हारी ही आँखों से ,
    दो दो आंसू , साथ बहे थे ...

    बहुत ही प्रभावी गीत ... जो अपने साथ आंसू बहाए ... उसका ऋण मानना चाहिए .. कम ही होते हैं आपसे अपने ... जबरदस्त गीत ...

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  33. टिप्पणी पहले दे चुकी हूँ.इस कविता के साथ एक तुकबंदी करने की कोशिश की है...

    जब मैं उलझा था झाड़ी में
    तब कोई बचाने न आया !
    पग हो गए थे लहुलुहान
    कोई सहलाने न आया !
    अपने दम पे बाहर निकला,ले होठों पर मधुर संगीत !
    अब सब गाते साथ- साथ, कोरस बन गए मेरे गीत !

    ReplyDelete
    Replies
    1. यह आपका स्नेह है मेरे गीत से...
      आभारी हूँ !

      Delete
    2. जब मैं उलझा था झाडी में
      तब कौन बचाने आया था
      जब लहूलुहान हुआ था मैं
      तब कौन सहारा आया था
      खुद ही उठकर बाहर आया होठो पर लेकर संगीत
      केशव की शिक्षा सिखलाये, काम करेंगे मेरे गीत !

      Delete
  34. अब बहुत अच्छी लग रही हैं ये पंक्तियाँ...

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  35. beautiful :)
    aise hi hanste hansate jeevan guzare - to jeevan hi ek geet hai ...

    sautan film thee - uska geet "zindagi pyar ka geet hai" yaad aa gaya yah geet padh kar | aabhaar aapka :)

    ReplyDelete
  36. दया ज्ञान करुणा हंसी,
    छलनी हैं तन पाप
    मैली चेतन बुद्धि रघु ,
    जागे अपने आप

    जो नहीं करते गुरु रघु पाते नहीं वो पार
    हर लम्हा-लम्हा यूँ ही गुज़रेगा,गाकर उसके भक्ति गीत |

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  37. वाह! ज़बरदस्त सर जी....

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  38. पूरे जीवन का सार निचोड़ दिया...ऐसी बिंदास शख्सियत को मेरा सलाम...

    चार दिनों का जीवन पाकर
    खूब अकड़ते घूम रहे !
    चंद तालियों को सुनकर
    ही खुद को राजा मान रहे
    प्रजा समझ कर जिसे रुलाया,वही करेगी तुमको ठीक !
    कुछ वर्षो के बाद तुम्ही पर, खूब हँसेंगे मेरे गीत !

    बहुत खूब...

    ReplyDelete
  39. बेहतरीन भावोद्गार |

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  40. लाजवाब! सार्थक गीतों के ये दौर यूँ ही चलते रहें!

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  41. जबरदस्त .. भाव
    और फिर सुज्ञ जी के क्या कहने

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  42. हर पंक्ति लाजवाब है..
    बेहतरीन रचना....

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  43. bahut hee lambi geet maala...per ek lambi nadi kee tarah satat bahti hui..prabah kahin ruka nahi...aaj main aapke blog se bhee jud gaya ab garmiyon kee sookhee aaur barish mee unmatt nadiyon ke darshan samaynausar hote rahenge....aaur inse hatkar sabse pahle aapki kitab ke prakashan par aapko hardik badhayee..intezaar rahega ..punah subhkamnaon ke sath

    ReplyDelete
    Replies
    1. आभार आपका डॉ आशुतोष ...
      आपका स्वागत है !

      Delete
  44. " कल-कल छल-छल नदियां बहतीं नीलांबर वसुधा विचलित है" आपकी कविताएं कुछ इसी तरह प्रवाह लिये होती हैं।सार्थक सृजन! आभार!

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    Replies
    1. आपका स्वागत है डॉ आलोक, विद्वानों से हमेशा प्रेरणा मिलती रही है ...

      Delete
  45. aapka vyaktitva, aapaka parichay auron se bahut alag hai.aapse milker achchhaa lagega. kripya apna mob sms karenge.

    ReplyDelete
  46. aapka vyaktitva, aapaka parichay auron se bahut alag hai.aapse milker achchhaa lagega. kripya apna mob sms karenge.

    ReplyDelete
    Replies
    1. आपका स्वागत है विनोद जी , मोबाइल नंबर आपकी मेल पर भेज दिया है, दुबारा दे रहा हूँ ..
      09811076451

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एक निवेदन !
आपके दिए गए कमेंट्स बेहद महत्वपूर्ण हो सकते हैं, कई बार पोस्ट से बेहतर जागरूक पाठकों के कमेंट्स लगते हैं,प्रतिक्रिया देते समय कृपया ध्यान रखें कि जो आप लिख रहे हैं, उसमें बेहद शक्ति होती है,लोग अपनी अपनी श्रद्धा अनुसार पढेंगे, और तदनुसार आचरण भी कर सकते हैं , अतः आवश्यकता है कि आप नाज़ुक विषयों पर, प्रतिक्रिया देते समय, लेखन को पढ़ अवश्य लें और आपकी प्रतिक्रिया समाज व देश के लिए ईमानदार हो, यही आशा है !


- सतीश सक्सेना

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