Friday, May 18, 2012

आज कहाँ से लेकर आऊँ,मीठी भाषा मीठे गीत - सतीश सक्सेना

प्यार खोजता,बचपन जिनका  
क्या  उम्मीद  लगायें  उनसे   !
जिसने घर परिवार न जाना 
क्या  अरमान जगाये उनसे  !
जो कुछ सीखा था लोगों से,
वैसी ही बन पायी प्रीत !
आज  कहाँ से लेकर आऊँ,मीठी भाषा, मीठे गीत !

कभी किसी अंजुरी का पानी
इन होंठो से कब छू  पाया  !
और किन्ही हाथों का कौरा
मेरे मुंह में कभी न आया  !   
किसी गोद में देख लाडला,
तड़प तड़प रह जाते गीत !
छिपा के आंसू,दिन में अपने,रातो रात जागते गीत !

क्यों कहते,ईश्वर लिखते ,
है,भाग्य सभी इंसानों का !
दर्द दिलाये,क्यों बच्चे को
चित्र  बिगाड़ें,बचपन का !
कभी मान्यता दे न सकेंगे,
निर्मम  रब को, मेरे गीत !
मंदिर,मस्जिद,चर्च न जाते,सर न झुकाएं मेरे गीत !

बचपन से,ही रहा खोजता 
ऐसे  ,  निर्मम  साईं  को !
काश कहीं मिल जाएँ मुझे  
मैं करूँ निरुत्तर,माधव को !  
अब न कोई वरदान चाहिए,
सिर्फ शिकायत मेरे मीत !
विश्व नियंता के दरवाजे , कभी  ना जाएँ ,  मेरे गीत ! 

प्यार का भूखा,धन की भाषा 
कभी  समझ ना पाया   था !
जो चाहा था,  नहीं मिला था  
जिसे न माँगा ,  पाया  था !
इस जीवन में,लाखों मौके , 
हंस के छोड़े, मैंने मीत  !   
धनकुबेर को सर न झुकाया, बड़े अहंकारी थे गीत !


जिसको तुमने कष्ट दिया,  
मैं, उसके साथ बैठता  हूँ !
जिससे छीना हो सब कुछ
मैं उसके दिल में रहता हूँ !
कभी समझ न आया मेरे,
कष्ट दिलाएंगे जगदीश !   
सारे जीवन सर न झुकाऊँ,काफिर होते मेरे गीत !


क्यों तकलीफें देते, उनको ,
जिनको शब्द नहीं मिल पाए  !
क्यों दुधमुंहे, बिलखते रोते ,
असमय माँ से अलग कराये !
तड़प तड़प रह जाते  बच्चे,
कौन सुनाये इनको गीत !
भूखे   पेट , कांपते पैरों ,  ये   कैसे   गा  पायें  गीत  !   

जैसी करनी, वैसी भरनी  !
पंडित ,खूब सुनाते  आये !
इन नन्हे हाथों की करनी 
पर,मुझको विश्वास न आये
तेरे महलों क्यों न पंहुचती 
ईश्वर, मासूमों की चीख !
क्षमा करें,यदि चढ़ा न पायें अर्ध्य,देव को,मेरे गीत ! 

50 comments:

  1. जैसी करनी वैसी भरनी
    पंडत ,खूब सुनाते आये !
    इन नन्हे हाथों की करनी
    क्या?मुझको बेचैन कराये !

    बहुत मर्मस्पर्शी और संवेदनशील गीत

    ReplyDelete
  2. मीठी भाषा मीठे गीत स्वतंत्रता की लड़ाई सा है .... कैद है शोषण और अहम् में ....

    ReplyDelete
  3. तड़प तड़प रह जाते बच्चे,कौन सुनाये इनको गीत !
    खाली पेट , कांपते पैरों , ये कैसे गा पायें गीत !




    waah bahut marmik par satik....

    ReplyDelete
  4. इन गीतों की स्वर लहरियों सा बरसता जीवन..

    ReplyDelete
  5. भावमय करती शब्‍द रचना ... आभार आपका ।

    ReplyDelete
  6. जैसी बचपन में पायी था ,वैसी ही बन पायी प्रीत !
    आज कहाँ से लेकर आऊँ,मीठी भाषा मीठे गीत !

    तेरे महलों क्यों न पंहुचती ईश्वर, मासूमों की चीख !
    क्षमा करें,यदि चढ़ा न पायें अर्ध्य,देव को,मेरे गीत !

    संवेदनशील ....!!
    हृदयस्पर्शी गीत ...!!

    ReplyDelete
  7. भीख मांगता बचपन इनका
    क्या उम्मीद लगाए बैठे !
    जिसने घर परिवार न जाना
    क्या अरमान जगाये बैठे !

    बहुत ही भावुक कर देने वाली रचना ... आभार

    ReplyDelete
  8. कभी मान्यता दे न सकेंगे,निर्मम रब को, मेरे गीत !
    मंदिर,मस्जिद,चर्च न जाते,सर न झुकाएं मेरे गीत !

    आपके गीतों में जो दर्द है वह समझ आता है .
    हजारों लाखों मासूमों की बात आप सब तक पहुंचा रहे हैं .
    शुभकामनायें .

    ReplyDelete
    Replies
    1. कह नहीं सकता ये सब क्यों सूझ रहा है शायद माहौल का असर हो ! अनूप जी के पुरस्कार वितरण पर आपकी प्रतिक्रियायें देखीं ! उस दृष्टि भ्रम से उबर नहीं पा रहा हूं ! लगता है जैसे यह कविता पुरुस्कारों के विरुद्ध है ! खास कर १,२,४-८ को इस आलोक में पढ़कर देखें !

      Delete
    2. @ अली सर,
      अनूप शुक्ल गुरु चीज हैं ...वहां सिर्फ हल्का फुल्का मज़ाक हो रहा था ..उसे किसी भी द्रष्टि से न लें भाई जी !

      Delete
  9. तड़प तड़प रह जाते बच्चे, कौन सुनाये इनको गीत !
    खाली पेट , कांपते पैरों , ये कैसे गा पायें गीत !

    बहुत सुंदर दिल को छूती रचना रचना,..अच्छी प्रस्तुति

    MY RECENT POST,,,,काव्यान्जलि ...: बेटी,,,,,
    MY RECENT POST,,,,फुहार....: बदनसीबी,.....

    ReplyDelete
  10. सुन्दर प्रस्तुति |
    बधाई स्वीकारें ||

    ReplyDelete
  11. सुंदर रचना और सुंदर शब्द चयन ...हृदयस्पर्शी गीत ...!!

    ReplyDelete
  12. आपके गीत ... बहुत सुन्दर

    ReplyDelete
  13. जैसी करनी वैसी भरनी
    पंडित ,खूब सुनाते आये !
    इन नन्हे हाथों की करनी
    पर,मुझको विश्वास न आये
    तेरे महलों क्यों न पंहुचती ईश्वर, मासूमों की चीख !
    क्षमा करें,यदि चढ़ा न पायें अर्ध्य,देव को,मेरे गीत !

    सारा दर्द गीतों में माला की तरह पिरो दिया . जीवन का यही विविध रंग कभी कभी रंजो गम में बदल जाता है .

    ReplyDelete
  14. सारे जीवन सर न झुकाऊँ,काफिर होते मेरे गीत !

    बहुत मर्मस्पर्शी और संवेदनशील गीत......

    ReplyDelete
    Replies
    1. शुक्रिया भाई जी ...

      Delete
  15. जैसी करनी वैसी भरनी
    पंडित ,खूब सुनाते आये !
    इन नन्हे हाथों की करनी
    पर,मुझको विश्वास न आये
    तेरे महलों क्यों न पंहुचती ईश्वर, मासूमों की चीख !
    क्षमा करें,यदि चढ़ा न पायें अर्ध्य,देव को,मेरे गीत !

    बहुत ही सुंदर सक्सेना जी । धन्यवाद ।


    Read more: http://satish-saxena.blogspot.com/#ixzz1vEeVRHWQ

    ReplyDelete
  16. बाल-शोषण पर सामयिक कविता !

    ReplyDelete
  17. मेरे गीत राक्स!

    ReplyDelete
  18. बहुत सुंदर....संवेदनशील गीत

    ReplyDelete
  19. जो आक जन के दर्द को अभिव्यक्ति दे सके वही है सच्चा गीत।
    जो मन के दर्द को समझे, वही है जग में सबसे अच्छा मीत।

    ReplyDelete
    Replies
    1. आभार आपका मनोज भाई !

      Delete
  20. जैसी करनी वैसी भरनी
    पंडित ,खूब सुनाते आये !
    इन नन्हे हाथों की करनी
    पर,मुझको विश्वास न आये
    तेरे महलों क्यों न पंहुचती ईश्वर, मासूमों की चीख !
    क्षमा करें,यदि चढ़ा न पायें अर्ध्य,देव को,मेरे गीत

    बहुत अच्छी लगी यह पंक्तियाँ ......हमेशा क़ी तरह अच्छा गीत !

    ReplyDelete
  21. बाल-मन के अभाव सारे जीवन पर अपनी छाया डाल जाते हैं- सुन्दर वर्णन !

    ReplyDelete
  22. बहुत बेहतरीन व प्रभावपूर्ण रचना....
    मेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है।

    ReplyDelete
  23. संवेदनायों से भरी लेखनी ...

    ReplyDelete
  24. नेह का प्यासा,धन की भाषा
    कभी समझ ना पाता था !
    जो चाहा था, नहीं मिला था
    जिसे न माँगा , पाया था !
    इस जीवन में,लाखों मौके , हंस के छोड़े मैंने मीत !
    धनकुबेर को सर न झुकाया, बड़े अहंकारी थे गीत !

    सच्ची संवेदनाए और दिल से उपजे गीत क्या बात हैं ....

    ReplyDelete
  25. क्यों कहते,ईश्वर लिखते ,
    है,खोया पाया,जीवन का !
    दर्द दिलाये,क्यों नन्हे को
    चित्र बिगाड़ें,बचपन का !
    कभी मान्यता दे न सकेंगे,निर्मम रब को, मेरे गीत !
    मंदिर,मस्जिद,चर्च न जाते,सर न झुकाएं मेरे गीत !
    वाचक प्रश्न की मुद्रा लेकर ,
    अड़े हुए हैं मेरे गीत ,
    दर्द टोहते बचपन का खुद रो पड़ते मेरे गीत .
    मेरे गीत के प्रकाशन पर बधाई .मन खुश हुआ .

    ReplyDelete
    Replies
    1. आपके आने का आभार वीरू भाई !

      Delete
  26. जिया हुआ एक एक शब्द जैसे जीवन्त हो उठा है |

    ReplyDelete
    Replies
    1. शुक्रिया अमित भाई ....

      Delete
  27. बहुत बेहतरीन व प्रभावपूर्ण रचना....
    मेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है।

    ReplyDelete
  28. बहुत ही मार्मिक गीत है । प्रवाह एवं प्रभाव दोनों ही तरह से ।

    ReplyDelete
    Replies
    1. यह शब्द मेरे लिए सम्मान हैं गिरिजा जी ...

      Delete
  29. जैसी करनी वैसी भरनी
    पंडित ,खूब सुनाते आये !
    इन नन्हे हाथों की करनी
    पर,मुझको विश्वास न आये
    तेरे महलों क्यों न पंहुचती ईश्वर, मासूमों की चीख !
    क्षमा करें,यदि चढ़ा न पायें अर्ध्य,देव को,मेरे गीत !
    ....bhauk aur samvedana se bhari yatharthparak prastuti man ki bhavbibhar kar gayee....

    ReplyDelete
    Replies
    1. आपका स्वागत है कविता जी ...

      Delete
  30. इतनी साफगोई से अपनी बात वो ही कह सकता है...जिसका दिल निर्मल हो...बधाइयाँ...

    ReplyDelete
    Replies
    1. शुक्रिया वाणभट्ट जी....

      Delete
  31. जिसको तुमने कष्ट दिया,
    मैं, उसके साथ बैठता हूँ !
    जिससे छीना हो सब कुछ
    मैं उसके दिल में रहता हूँ ...

    और जो ये सब कर पाता है वही सही मायने में शिव हो जाता है ,...

    ReplyDelete
  32. सतीश जी, आज पहली बार आपको पढ़ रहा हूँ. उद्दात भावों को आपने प्रवहमान शब्दों का जामा दिया है. कुछ पंक्तियाँ एकदम से दिल को छूती गयी हैं. कुछ को और सटीक व समृद्ध विन्यास दिया जा सकता था. लेकिन जिस लहजे को आपने निभाया है उसके लिये हृदय साधुवाद.
    हार्दिक शुभकामनाएँ.

    -सौरभ, ननी, इलाहाबाद (उप्र)

    ReplyDelete
    Replies
    1. शुक्रिया एवं आभार सारगर्भित टिप्पणी के लिए ...

      जल्दी में की गयी कुछ त्रुटियाँ सुधरने का प्रयत्न किया है , अब पहले से बेहतर है !

      Delete
  33. बहुत खूब! कोमल भावनाओं को शब्दों में यथारूप अभिव्यक्त कर पाना कोई आपसे सीखे!

    ReplyDelete
  34. बहुत बेहतरीन व प्रभावपूर्ण रचना....

    ReplyDelete
  35. कभी किसी अंजुरी का पानी
    मेरे होंठो , कब छू पाया !
    और किन्ही हाथों का कौरा
    मेरे मुंह में कभी न आया !
    किसी गोद में देख लाडला,तड़प तड़प रह जाते गीत !
    छिपा के आंसू,दिन में अपने,रातो रात जागते गीत !

    आपके गीतों में मानवीय संवेदनाओं के स्वर स्पष्ट गूंजते हैं।

    ReplyDelete
  36. जैसी करनी वैसी भरनी
    पंडित ,खूब सुनाते आये !
    इन नन्हे हाथों की करनी
    पर,मुझको विश्वास न आये
    तेरे महलों क्यों न पंहुचती ईश्वर, मासूमों की चीख !
    क्षमा करें,यदि चढ़ा न पायें अर्ध्य,देव को,मेरे गीत !

    बहुत ही प्रभावित करती पक्तियां । मेरे नए पोस्ट अमीर खुसरो पर आपका इंतजार रहेगा । धन्यवाद ।

    ReplyDelete
  37. bhavapoorn rachana prastuti...abhaar

    ReplyDelete
  38. दिल को छूते भावपूर्ण आपके गीत।

    ReplyDelete

एक निवेदन !
आपके दिए गए कमेंट्स बेहद महत्वपूर्ण हो सकते हैं, कई बार पोस्ट से बेहतर जागरूक पाठकों के कमेंट्स लगते हैं,प्रतिक्रिया देते समय कृपया ध्यान रखें कि जो आप लिख रहे हैं, उसमें बेहद शक्ति होती है,लोग अपनी अपनी श्रद्धा अनुसार पढेंगे, और तदनुसार आचरण भी कर सकते हैं , अतः आवश्यकता है कि आप नाज़ुक विषयों पर, प्रतिक्रिया देते समय, लेखन को पढ़ अवश्य लें और आपकी प्रतिक्रिया समाज व देश के लिए ईमानदार हो, यही आशा है !


- सतीश सक्सेना

Related Posts Plugin for Blogger,