Wednesday, August 29, 2012

कभी तकलीफ इतनी हो कि जीना बोझ लगता है -सतीश सक्सेना


किसी दोस्त की सहानुभूति ने फिर अनु की याद दिलवा  दी ......
कुछ कष्ट ऐसे हैं कि भुलाए नहीं जाते ...


हमेशा के लिए, घर से गयी, दुःस्वप्न  लगता है !
हमें उस रात से शिव पर,भरोसा बोझ लगता है !

बड़ों के  कंधे पर अर्थी, उठायी जाए बच्चों की !
पिता की जिंदगी में , और जीना  बोझ लगता है !

अभी शादी की,आशीषें भी, उसके काम ना आयीं !  
तो चरणों पर कहीं झुकना,बड़ा ही बोझ लगता है !

अभी मेंहदी भी हाथों से , न छुट पायी थी बच्चे की !   
हमें इन मांगलिक कार्यों का होना , बोझ लगता है !

अरे ! मासूम सी बच्ची को मारा,जिस तरह तुमने !   
हमें मंदिरों  का , सम्मान करना , बोझ लगता है !

वो नित संध्या समय, दीपक जलाती थी तेरे आगे  !
हमें ज़ालिम को, ईश्वर मानना, अब बोझ लगता है !

अगर पुत्री को, लथपथ खून से,  कोई पिता  देखे  !
तो ईश्वर नाम पर, विश्वास करना, बोझ लगता है !

जब अपनी शक्ति की, असहायता पर दया सी आये 
तो दर्पण सामने, आना भी, अक्सर बोझ लगता है ! 

46 comments:

  1. बहुत मार्मिक और संवेदनशील रचना

    ReplyDelete
  2. बातें उदास करने वाली हैं पर सच्चाई के करीब हैं... :(
    आभार इस सुन्दर और गंभीर गीत के लिए...

    ReplyDelete
  3. अगर पुत्री को लथपथ खून से, कोई पिता देखे !
    तो ईश्वर नाम पर विश्वास करना बोझ लगता है !

    ReplyDelete
  4. please satish ji please overcome the grief and divert your self
    i know easier said then done still

    ReplyDelete
  5. बड़ी मार्मिक सम्वेदनाएं………
    विषाद से बाहर आईए सतीश जी
    मृत्यु शाश्वत सत्य है, अमर कोई नहीं आया।
    जिन्दगी के इतने ही क्षण थे अनु की झोली में!!

    ReplyDelete
  6. aap ek pita hain, upar se bahut samvedanshil vyakti hain,isliye apni vyatha ko sabda rup de diye hain.Har sabda hriday ko chhu jata hai. Lekin apne aapko sambhalna hoga.

    ReplyDelete
  7. मार्मिक ... गहरी संवेदनाएं हैं इस रचना में ...
    अक्सर जब कोई करीबी के साथ ऐसा होता है जो जीवन नीरस लगने लगता है ... पर इन सब से उबरना तो पड़ता है ... बाहर आने का प्रयास करना चाहिए ...आपका दर्द समझ सकता हूँ ...

    ReplyDelete

  8. अगर पुत्री को लथपथ खून से, कोई पिता देखे !
    तो ईश्वर नाम पर विश्वास करना बोझ लगता है !... ईश्वर भी फूट फूटकर रोता है... दर्द भरता नहीं ...
    पर अनु के लिए - संभालिये खुद को

    ReplyDelete
  9. बहुत मार्मिक ..मन को छू लिया..

    ReplyDelete
  10. अगर पुत्री को लथपथ खून से, कोई पिता देखे !
    तो ईश्वर नाम पर विश्वास करना बोझ लगता है !
    सतीश भाई एक-एक शे’र में आपने मानवीय संवेदना का ऐसा और इतना समावेश किया है कि मन में भावनाओं की हज़ारों लहरे उठने लगी हैं।

    ReplyDelete
  11. सतीश जी, समय को सहना ही होता है.

    ReplyDelete
  12. सचमुच दुःख बहुत गहरा है..भरते भरते ही घाव भरेंगे.

    ReplyDelete
  13. बहुत ही मार्मिक रचना

    ReplyDelete
  14. ओह ...आपको पीड़ा में देखकर निःशब्द हो जाता हूँ -ईश्वर आपको संबल दें!

    ReplyDelete
  15. 'अगर पुत्री को लथपथ खून से कोई पिता देखे,
    तो ईश्वर नाम पर विश्वास करना बोझ लगता है'
    बहुत मार्मिक....!

    ReplyDelete
  16. 'अगर पुत्री को लथपथ खून से कोई पिता देखे,
    तो ईश्वर नाम पर विश्वास करना बोझ लगता है'
    बहुत मार्मिक....!

    ReplyDelete
  17. इस रचना में एक एक शब्द दर्द से पिरोया है जैसे
    बहुत मार्मिक रचना है, बस एक बात, भगवान जब हमें
    खुशिया देता है तो कभी शिकायत नहीं करते सादर स्वीकार करते है
    किन्तु जब दुःख तकलीफ देता है तो बहुत शिकायत करते है विश्वास
    उठ जाता है उसपर से, यह ठीक नहीं है !नियति के मन में क्या छुपा है कोई नहीं जानता !

    ReplyDelete
  18. बड़ों के कंधे पर अर्थी, उठायी जाए बच्चों की !
    तो बूढी जिंदगी में और जीना बोझ लगता है !

    FIRST AND LAST

    ReplyDelete
  19. सतीश जी, बहुत दिनों बाद आपके ब्लॉग में हम आ सके! आप तो शायद हमें जानते भी नहीं होंगे...मगर आपकी रचनाएँ हमें अच्छी लगती हैं!
    मगर...आज ये पढ़कर मन को बहुत बहुत दुख पहुँचा! आपकी हालत समझ सकते हैं...मगर I am Speechless ! Kindly accept my heartfelt condolences .
    With you in grief !
    May the departed soul rest in peace.
    Please take care of yourself and your family !
    God Bless!!!

    ReplyDelete
  20. दुख को बोझ बहे शब्दों में,
    स्मृतियों को मान मिले।

    ReplyDelete
  21. .
    .
    .
    आदरणीय सतीश जी,

    पोस्ट पढ़ी, पीछे गया तो उस दुखद घटना के बारे में पता चला... मेरी संवेदनायें...

    इस पोस्ट पर समझ नहीं आ रहा कि क्या कहूँ... यही कह सकता हूँ कि आप जल्द इस दुख से उबरें... बाकी समय तो अपने आप में सबसे कारगर मरहम है ही...


    ...

    ReplyDelete

  22. एक एक शब्द आपकी पीड़ा को अभिव्यक्त कर रहा है और ये केवल आपकी ही नहीं हमारे पूरे भारतीय समाज की पीड़ा है और इसके पोषक भी हम हैं और शोषित भी हम ही हैं. .तुम मुझको क्या दे पाओगे ?

    ReplyDelete
  23. अरे मासूम सी श्रद्धा को मारा, जिस तरह तुमने
    हमें मंदिरों का सम्मान करना, बोझ लगता है !

    दर्द की इन्तहां

    ReplyDelete
  24. अरे मासूम सी श्रद्धा को मारा, जिस तरह तुमने
    हमें मंदिरों का सम्मान करना, बोझ लगता है !

    शब्द-दर-शब्द पीड़ा को बयां करती कृति, जेहन को झकझोरती और अपने आपसे प्रश्न करती आभार

    ReplyDelete
  25. आपकी पीड़ा इस रचना में अभिव्यक्त हुई है.कुछ घटनाएं ऎसी होती हैं कि असहनीय होते हुए भी उनको सहन करना हमारी मजबूरी होती हैं.मेरी संवेदनाएं आपके साथ हैं.आप शीघ्र इस दुःख से पार पाने में सफल हों

    ReplyDelete
  26. जब अपनी शक्ति की असहायता पर दया सी आये
    तो दर्पण सामने आना भी अक्सर बोझ लगता है !
    ....नियति की आगे कितने असहाय है हम सब ...
    बहुत मार्मिक और संवेदनशील रचना

    ReplyDelete
  27. सतीश जी ,बहुत बड़ा दुख है -लेकिन लाचारी यह कि इंसान कुछ कर नहीं सकता.थोड़ा धैर्य रखें आपसे यह कहने में भी बहुत जो़र पड़ रहा है ,पर इसके सिवा कोई रास्ता नहीं !

    ReplyDelete
  28. दिल को छू गयी आपकी ये पोस्ट...

    ReplyDelete
  29. सही कहा ... बड़ों के कंधे पर अर्थी, उठायी जाए बच्चों की !
    तो बूढी जिंदगी में और जीना बोझ लगता है !...अगर पुत्री को लथपथ खून से, कोई पिता देखे !
    तो ईश्वर नाम पर विश्वास करना बोझ लगता है !..

    अत्यन्त संवेदनशील रचना !
    सादर
    मंजु

    ReplyDelete
  30. अगर पुत्री को लथपथ खून से, कोई पिता देखे
    तो ईश्वर नाम पर विश्वास करना बोझ लगता है,,,

    ईश्वर के आगे हम असहाय हो जाते है,,,,,
    मार्मिक और संवेदनशील रचना,,,,,

    MY RECENT POST ...: जख्म,,,

    ReplyDelete
  31. भैया बहुत भाव भरा होता है आपकी हर बात में हर शब्द में ... पर अपने को सम्भालना तो होगा ही न भैया
    अगर फूलों सी कोमलता को, मसला ऐसे जाता है !
    तो मंदिर में दिया जलना भी मुझको बोझ लगता है !

    ReplyDelete
  32. bahut hi sundar prastuti .....uttam bhav ,

    ReplyDelete
  33. क्या हुआ मुझे जानकारी नहीं,लेकिन आपकी इस रचना में आपका दुख साफ झलक रहा है मगर इस जीवन का एक कड़वा सत्य है मौत जिसे कोई नहीं टाल सकता सतीश जी ,बहुत बड़ा दुख है -लेकिन लाचारी यह कि इंसान कुछ कर नहीं सकता.थोड़ा धैर्य रखें आपसे यह कहने में भी बहुत जो़र पड़ रहा है ,पर इसके सिवा कोई रास्ता नहीं !

    ReplyDelete
  34. सतीश जी , कुछ यादों को दिल से निकालना पड़ता है ताकि जिंदगी चलती रहे .
    भावुकता पर नियंत्रण आवश्यक है .
    टेक केयर .

    ReplyDelete
  35. हमारे सामने दम तोड़ जाते है, जवां सपने !
    औ हम बस देखते रह जाए,जीना बोझ लगता है

    बात तो आप की बिल्कुल सही है सतीश जी लेकिन उस नीली छतरी वाले की मंशा को कौन समझ पाया है आज तक ,,लेकिन बस उसी पर ही यक़ीन भी किया जा सकता है
    बस यही दुआ कर सकते हैं हम सब कि आप सब को ईश्वर इस दुख को सहन करने की शक्ति प्रदान करे

    ReplyDelete
  36. ईश्वर से प्रार्थना है कि आप जल्द से जल्द इस दुख से बाहर आएँ...आपकी यह रचना आपके गहरी संवेदनाओं को बता रही है...उसकी मरजी के आगे कोई कर भी क्या सकता है...सिवाय धैर्य रखने के|

    ReplyDelete
  37. अगर फूलों सी कोमलता को, मसला ऐसे जाता है !
    तो मंदिर में दिया जलना भी मुझको बोझ लगता है !
    uf dukh to aesa hota hai jo rah rah kar ubharta hai me aapki manh sthit samajh sakti hoon
    rachana srivastava

    ReplyDelete
  38. सोचती थी कि न पढूं इस पोस्ट को......
    आज नयी पोस्ट पढ़ कर जी हल्का हुआ तब इसको पढ़ा...
    be strong and keep smiling.

    regards

    anu

    ReplyDelete
  39. आपकी इस रचना ने दिल को अभिभूत ,द्रवित कर दिया जो कविता में मर्म छिपा है शायद आपकी जिंदगी की सच्चाई जैसे की और लोगों की टिप्पणियों से इशारा मिला बहुत ही संवेदन शील पंक्तियाँ हैं बस आपको इतना ही कह सकती हूँ की अपने को संभालिये मेरी शुभकामनाएं हैं आपके लिए

    ReplyDelete
  40. यह दुखद प्रसंग क्‍या है, पता नहीं। केवल रचना मार्मिक है फिर भी ईश्‍वर पर भरोसा रखना ही वास्‍तविकता है।

    ReplyDelete
  41. बच्चे की वेदना लिखूंगा !
    Wednesday, August 29, 2012
    कभी तकलीफ इतनी हो कि जीना बोझ लगता है -सतीश सक्सेना
    किसी दोस्त की सहानुभूति ने फिर अनु की याद दिलवा दी ......
    कुछ कष्ट ऐसे हैं कि भुलाए नहीं जाते ...

    बड़ों के कंधे पर अर्थी, उठायी जाए बच्चों की !
    तो बूढी जिंदगी में, और जीना बोझ लगता है !

    हमारे सामने, दम तोड़ जाते है, जवां सपने !
    औ हम बस देखते रह जाए,जीना बोझ लगता है

    अभी शादी की, आशीषें भी उसके काम ना आयीं !
    तो चरणों पर कहीं झुकना बड़ा ही बोझ लगता है !

    अभी तो मेहँदी, भी हाथों से, छुट ना पायी थी उसकी
    हमें अब, मांगलिक कार्यों का होना, बोझ लगता है !

    अभी भी, आखिरी पूजा की तैयारी, नज़र में है !
    हमें भगवान पर,अब तो भरोसा, बोझ लगता है !

    अरे मासूम सी श्रद्धा को, मारा, जिस तरह तुमने
    हमें मंदिरों का, सम्मान करना, बोझ लगता है !

    जो नित संध्या समय, दीपक जलाती थी तेरे आगे
    bahut khoob,

    अगर फूलों सी कोमलता को, मसला ऐसे जाता है !
    तो मंदिर में दिया जलना भी मुझको बोझ लगता है !

    अगर पुत्री को, लथपथ खून से, कोई पिता देखे !
    तो ईश्वर नाम पर, विश्वास करना,बोझ लगता है !

    ReplyDelete

एक निवेदन !
आपके दिए गए कमेंट्स बेहद महत्वपूर्ण हो सकते हैं, कई बार पोस्ट से बेहतर जागरूक पाठकों के कमेंट्स लगते हैं,प्रतिक्रिया देते समय कृपया ध्यान रखें कि जो आप लिख रहे हैं, उसमें बेहद शक्ति होती है,लोग अपनी अपनी श्रद्धा अनुसार पढेंगे, और तदनुसार आचरण भी कर सकते हैं , अतः आवश्यकता है कि आप नाज़ुक विषयों पर, प्रतिक्रिया देते समय, लेखन को पढ़ अवश्य लें और आपकी प्रतिक्रिया समाज व देश के लिए ईमानदार हो, यही आशा है !


- सतीश सक्सेना

Related Posts Plugin for Blogger,