Friday, February 22, 2013

मैं अब खुश हूँ ... - सतीश सक्सेना

आश्रय देने यहाँ न आना, मैंने जीना सीख लिया !
धीरे धीरे  बिना सहारे , हमने रहना सीख लिया !


मैं अब खुश हूँ तेरी दुनियां,मुझको नहीं बुलाती है ! 
हँसी चुराकर तस्वीरों से, हमने हंसना सीख लिया !

मैं अब खुश हूँ हाथ पकड़ने वाला कोई पास नहीं 
धीरे धीरे घुटनों के बल, हमने चलना सीख लिया ! 

मैं अब खुश हूँ, तेरे  सिक्के, नहीं चले, बाजारों में !

भूखे रहकर धीरे धीरे, कमा के खाना सीख लिया !

मैं अब खुश हूँ, मुझे ठण्ड में,याद न तेरी आती है !

हाथ जले,पर जैसे तैसे आग जलाना सीख लिया ! 

53 comments:

  1. जा को कुछू न चाहिये ,सो ही साहंसाह!

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  2. खुद जीना सीख लिया हर तरह से...... उम्दा ,अर्थपूर्ण पंक्तियाँ

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  3. बहुत सुन्दर वहा वहा क्या बात है अद्भुत, सार्थक प्रस्तुति

    मेरी नई रचना


    खुशबू

    प्रेमविरह

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  4. क्या बात है ...

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  5. ...वाह क्या भरपूर गज़ल है.....इसमें गुरु की ज़रूरत भी नहीं है !

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  6. जब दुनिया ऐंठने लगे तो सीखना ही भला...बहुत सुन्दर कविता..

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  7. इस ग़ज़ल में जो बात हमें सबसे ज्यादा अच्छी लगी वो है-"मैं खुश हूँ....."
    :-)

    बहुत सुन्दर ख़याल...
    सादर
    अनु

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  8. अच्छा किया जो सीख लिया ! वैसे भी, कुछ काम खुद से ही करने होते हैं...चाहे या अनचाहे....
    ~सादर!!!

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  9. बहुत सुन्दर ग़ज़ल |

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  10. स्‍वयं संघर्ष करने के विशेष भावों से युक्‍त प्रेरक पंक्तियां।

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  11. सुन्दर प्रस्तुति |
    आभार ||

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  12. इसे कहते है आत्मनिर्भरता :)

    किसी के गीतों का लेकर सहारा
    हम ने भी गुनगुना सीख लिया !

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  13. बहुत लाजबाब,लेकिन जहां तक मेरी जानकारी मुताबिक़ बिना मतला कहे पूर्ण रूप से गजल नही कहलाती,,,,

    Recent post: गरीबी रेखा की खोज

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    Replies
    1. सक्सेना जी,,बहुत सुंदर मतला लिखा ,,,बधाई ,,,

      यारों की ज़रुरत नहीं हमने मतले को ठीक किया,
      धीरे धीरे, बिना सहारे के, गजल पढ़ना सीख लिया !,,,

      पोस्ट पर आने के लिए शुक्रिया,,,

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  14. अति उत्तम ग़ज़ल ; कहते हैं - अपना हाथ जगन्नाथ ,अति सुन्दर !
    latest postअनुभूति : कुम्भ मेला
    recent postमेरे विचार मेरी अनुभूति: पिंजड़े की पंछी

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  15. मैं अब खुश हूँ, तेरे सिक्के, नहीं चले, बाजारों में !
    धीरे धीरे हमने खुद ही,कमा के खाना सीख लिया !--- सहज पर गहरे भाव की रचना---
    बधाई





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  16. अनुभव की अभिव्यक्ति..!

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  17. मै खुश हूँ और मैंने जीना सिख लिया है..
    अब तो सब कुछ अच्छा ही होगा...
    बेहतरीन गजल...
    :-)

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  18. मैं अब खुश हूँ,मुझे ठण्ड में, याद न तेरी आती है !
    धीरे धीरे हमने खुद ही,आग जलाना,सीख लिया !

    वाह वाह, गुरूओं को गुरू की भला क्या जरूरत? जिंदगी की हकीकत के साथ साथ उत्साह वर्धन करती रचना के लिये बधाई स्वीकार किजिये.

    रामराम.

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  19. बहुत उम्दा भाव हैं रचना के सतीश जी।

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  20. आपने तो अँधेरे में दिया जलाकर चलन सिखला दिया ....

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  21. आपने तो अँधेरे में दिया जलाकर चलने का चलन सिखला दिया ....

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  22. अब उफनते ज्वार का आवेग मद्धिम हो चला है
    यह शिला पिघले न पिघले रास्ता नम हो चला है
    अब दरीचे ही बनेंगे द्वार
    अब तो पथ यही है ---दुष्यन्त कुमार ।

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  23. आश्रय देने मत आओ तुम मैने जीना सीख लिया है ....। बहुत खूब ।

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  24. जो आत्मनिर्भर हो उसे कोई परेशानी नहीं होती संघर्ष करने में ... बहुत सुंदर गीत

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  25. धीरे -धीरे सब सीख जाते हैं !
    प्रेरक गीत !

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  26. अच्‍छी रचना है। बधाई।

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  27. रचना को आशीष दें !
    thanks maere liyae itnae aashish aap ne maang liyae :)
    धीरे धीरे, बिना सहारे, मैंने चलना, सीख लिया !
    अब साथी की नहीं ज़रुरत,मैंने जीना सीख लिया best

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    1. इस रचना को गज़ल लिखना नहीं चाहता था अतः रचना शब्द का कई बार बेख्याली में प्रयोग हुआ था , कुछ बदलाव कर अब ठीक है !
      आपके साथ आशीषों का ढेर सदा है स्वीकार कर लेना !
      :)

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    2. @ रचना जी ,
      शेर पर सहमति !

      @ गज़ल को आशीष,
      अगर आप अपना हुनर यूंही तराशते रहे तो...आशीष वितरकों की राशन दुकाने अपने बंद हो जायेंगी और वो खुल्ले बाज़ार हर हुनरमंद को दस्तयाब होगा :)

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    3. आशीष वितरकों की राशन दुकाने अपने बंद हो जायेंगी

      ali ji

      kafi dukane band ho hi chuki haen
      lekin paathshala ab bhi uplabdh haen aur tarashnae kaa kaam ek guru sae behtar kaun kar saktaa

      ek guru kaa pataa satish ji ko mae dae chuki hun shaayad ek nayii rachna ki rachna karnae kaa maarg prashath ho sakae aur ek nayi gazal yaa haaikun ki rachna ho jaaye

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  28. खूबसूरत ख़याल . सारे शेर एक पर एक हैं.

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  29. bahut khoob...
    मैं अब खुश हूँ,दरवाजे पर,अब कोई रथवान नहीं !
    धीरे धीरे हमने खुद ही, पैदल चलना सीख लिया !

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  30. वाह बहुत खूब

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  31. बस हर हाल में खुश रहना ही महत्वपूर्ण है .
    सुन्दर रचना

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  32. मैं अब खुश हूँ, तेरे सिक्के, नहीं चले, बाजारों में !
    धीरे धीरे हमने खुद ही,कमा के खाना सीख लिया !

    वाह!बहुत बढ़िया ग़ज़ल है.

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  33. मैं अब खुश हूँ, मुझे ठण्ड में,याद न तेरी आती है !
    धीरे धीरे हमने खुद ही,आग जलाना,सीख लिया ..


    वाह सतीश जी ... बहुत दूर तक जाने वाला शेर है ... धीरे धीरे खुद के पांवों पे खड़ा होना ही पड़ता है ... उम्दा गज़ल ...

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  34. मुदित हुआ मन अपना यह जानकर कि इस जहां में
    खुश रहने के तिकड़म भिड़ाना अब नामुमकिन नहीं। :)

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  35. क्या बात है सर आप ने तो बिना गुरु के ही ग़ज़ल लिख्ना सीख लिया :)

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  36. ये ख़ुशी सबों को ख़ुशी ही देती है..

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  37. आशीष की आवश्‍यकता हर कलम को नहीं होती

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    1. मगर कहते हैं, गज़ल बनाये गए नियमानुसार लिखनी चाहिए काज़ल भाई और मैं अनाडी हूँ ??
      अब बताओ ??

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  38. धीरे धीरे बिन तेरे मैंने भी जीना सीख लिया -प्रशस्त रचना भाई साहब

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  39. धीरे धीरे बिन तेरे मैंने भी जीना सीख लिया -प्रशस्त रचना भाई साहब

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  40. धीरे धीरे, बिना सहारे, हमने चलना, सीख लिया !

    -आप तो खुद महा गुरु, ज्ञानी हो...ताऊ आपके खास दोस्त...फिर तो बचता ही क्या है. :)

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  41. उम्दा गज़ल. आपको व नीलम जी दोनों को बधाई.

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  42. बिना सहारे के जीना सीख लेना खुद में बहुत बड़ी उपलब्धि है। गज़ल शानदार है भाईजी।

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  43. सुंदर. प्रारंभिक पंक्तियाँ ही बहुत प्रेरणादायी हैं.

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  44. kisi ne sahi kaha.. upar
    anubhav ki abhivyakti...
    bhetareen sir..

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  45. मैं अब खुश हूँ, इंतज़ार में ,अब कोई रथवान नहीं !
    धीरे धीरे हमने खुद ही, पैदल चलना सीख लिया !

    बहुत सुन्दर रचना अभिव्यक्ति ... आभार

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  46. हर शेर बेहद अर्थपूर्ण और सकारात्मक सोच लिये है--किसकी उम्मीद,किसका आसरा ---शानदार अभिव्यक्ति।

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- सतीश सक्सेना

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