Saturday, July 27, 2013

हमारे मासूम खतरे में हैं ..-सतीश सक्सेना

तालिबानी चाहे वे हिन्दू हों अथवा मुसलमान, उनका प्रसार रुकना चाहिए अन्यथा हमारे मासूम खतरे में हैं ..

यह अभिशाप ही नहीं, अपराध है मानवता के प्रति , अपराध है, परिवार और छोटे छोटे मासूम बच्चों के प्रति,जो हमारी ओर , सहारे के लिए देखते हैं..मौलवियों और पंडितों ने हमारी कच्ची बुद्धि को, अपने प्रभाव में लेते हुए, हमसे उस बच्चे को छीन लिया जो दोनों हाथ उठाये, अपने दूसरे मित्र से कहता है आओ खेलने चलें जब तक अम्मा न डांटे, हम सिर्फ खेलेंगे !

जिन्होंने हमें जन्म के कुछ समय बाद ही,  हिन्दू और मुसलमान बना दिया धिक्कार है उन धार्मिक शिक्षाओं को...

जिन्होंने हमारी समझ में, एक दुसरे के प्रति नफरत भर दी, धिक्कार है उन धर्म गुरुओं को ...

और धिक्कार है हमारी मंद बुद्धि को जो धर्म के पढाये पाठ के नशे में अंधे होकर , इंसानियत ,प्यार और अपना बचा हुआ थोडा सा जीवन  भूल गए !

अपनी बस्ती में ज़हर बिखेरते, इन धार्मिक पंडितों को यह नहीं मालुम कि सबसे पहले इस विष का प्रभाव, तुम्हारे अपने मासूमों पर ही पड़ेगा , ऐसा न हो कि सबसे पहले तुम्हारा ही बच्चा, तुम्हारी दी हुई शिक्षा का शिकार बने ...

अपने समाज और धर्म को ऊंचा उठाने के सपने देखने वाले धर्म ज्ञानियों  !!!
पहले एक साथ रहना तो सीख लो ..??

अभी तुम्हें दुसरे धर्म से नफरत है ...
तुम्हें एक देश से नफरत  है….

तुम्हे अपने देश में एक प्रांत के लोगों से नफरत है .. 
तुम्हें दूसरी जाति से नफरत है  ..
प्यार और मित्रता तुम जाति देख कर करते हो  ..
तुम अपने धर्म की रक्षा के लिए दूसरों की जान भी ले सकते हो …. 
तुम कितने संकीर्ण बुद्धि और अनपढ़ हो , तुमसे कुछ भी सकारात्मक होना संभव ही नहीं अतः आओ इस शानदार देश को युद्ध के अखाड़े में तब्दील करदो !! 

अक्सर ऐसे लोगों की मृत्यु, उन्ही जैसे निर्दयी लोगों के हाथ अथवा परिस्थितियों में होती है और वे वीरता का नाम जपते जपते "शहीद" होते हैं और ऐसे शहीद यदि पहले ही मारे जाएँ तो मां के प्रति एक अहसान होगा !

अरे विद्वान् मित्रों  !!! 


-हम पैदा न हिन्दू हुए थे और न मुसलमान , हम इंसान थे बस उस वक्त हम देश, जाति, राजनैतिक पार्टी एवं धर्म की सीमाओं में नहीं बंधे थे ..
-इन सबका नाम, हम कायर डरपोकों ने, बाद में अपनी पीठ पर, लिखवा लिया और आज हम इनके गुलाम हैं !

-हम मानव है और बचे हुए २०-३० वर्ष के जीवन में , इंसान से प्यार कर हँसते हुए, जीने का प्रयत्न करें
इस जंगल नुमा क्षेत्र में अपने बच्चों को सही शिक्षा दें और भेडियों से बचा लें वही काफी होगा


-कुछ वर्ष जीवन के अगर बचे हैं , तो उन्हें विश्व बंधुत्व की भावना में, मानवता के नाम समर्पित करते हुए आनंद लें , पूरे विश्व को ,अपना घर मानकर जियें , और सबसे प्रेम में आनंद महसूस करें !  

-ध्यान रहे एक दूसरे से नफरत करने वाले भेडिये केवल तुम्हारे ही धर्म में नहीं है वे हर जगह मिलते हैं
बेहतर है इनसे और इनकी विचारधारा से दूर रहा जाए  !

53 comments:

  1. शायद आपस में मि‍ल बैठें तो ज़हर कम हो. वर्ना अपने अपने दायरों में सि‍मटे हुए लोग अपनी ही सोच का शि‍कार हो जाते हैं

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  2. आपको क्या लगता है पढने लिखने वाले इससे अछूते रहे हैं , बल्कि वे और शातिराना तरीके से विद्वेष फैला रहे हैं!! :(

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    1. आप से १००% सह्मत हूं वाणी

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    2. लेकिन उन्हें ”तथाकथित” पढ़ा-लिखा कहा जाए तो उचित होगा

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  3. सामाजिक और शारीरिक भिन्नताओं से परे एक सार्वभौमिक साम्य है, हम सबके भीतर। उसे जाग्रत करने का आह्वान हो। चेतता आलेख।

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  4. राजनीतिक प्रदूषण ने सारा व्याकरण ही बदल दिया है कहाँ तालिबान का शाब्दिक अर्थ विद्यार्थी होता था ,स्टूडेंट होता था अब धार्मिक प्रदूषण के चलते धर्म विशेष का भेड़िया तत्व तालिबान कहाता है । पिल्लै का अर्थ सेकुलर हो गया है जो भेड़िया तत्व से भी ज्यादा खतरनाक है ..संवेदन शील पोस्ट है आपकी .

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  5. मैं श्रेष्‍ठ हूं, मेरा विचार श्रेष्‍ठ है, इसी भावना के तहत हम एकदूसरे पर आक्रमण करते हैं। इसलिए भारत ने हमेशा सर्वेभवन्‍तु सुखिन: की बात की है।

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  6. चेताती प्रस्तुति-
    आज की जरूरत-
    आभार आदरणीय-

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  7. धिक्कार है उन धार्मिक शिक्षाओं को...

    सतीश जी यदि धर्म की सच्ची शिक्षा दी जाए तो केवल सद्भावना ही फैलेगी
    ये तालिबानियत तो धर्म के ठेकेदारों का तोहफ़ा है, सच तो ये है कि ये वो लोग हैं जिन का धर्म से कोई वास्ता नहीं है ,इन का धर्म हैवानियत , द्वेष, ईर्ष्या के सिवा कुछ नहीं

    जब हम लड़ेंगे जाति के, धर्मों के नाम पर
    बच्चों को क्या सिखाएंगे सद्भावना के अर्थ

    मन में हो द्वेष ,ईर्ष्या, दुर्भावना अगर
    कैसे करेंगे पूर्ण हम आराधना के अर्थ,,,,,,,,,,,(’शेफ़ा’)

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  8. सही में इस तालिबानी मानसिकता को बदलनें की जरुरत है लेकिन अफ़सोस की बात है कि ये बढती ही जा रही है !!

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  9. ़़़
    बाहर से तालिबान काम अपना कर रहा है
    अंदर का तालिबान कौन सा डर रहा है ?


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  10. sarthak n satik vichar par dharm ke thekedar ke kutsit vicharon ko samajh pana itna aasan nahi ....bholebhale log bahkaawe men aa hi jaate hain .....jarurat hai jagrookta phaile ki .....kuchh logon ki aankhen to khol hi sakte hain .....

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  11. धर्म के नाम पर कितने खून खराबे हुये हैं यह सर्व विदित है ... फिर भी इंसान है कि सुधरता ही नहीं ....

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  12. अब तो धर्म के नाम से ही डर सा लगने लगता है..

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  13. आपकी भावनाएँ कम से कम ब्लॉग जगत को रौशन करे...आमीन।

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  14. हम पैदा न हिन्दू हुए थे और न मुसलमान , हम इंसान थे बस उस वक्त हम देश, जाति, राजनैतिक पार्टी एवं धर्म की सीमाओं में नहीं बंधे थे ..

    काश हम इस बात को समझ पायें.

    रामराम.

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  15. aapke sath sahmat...aakheer ase logo ka kya kare !?

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  16. सार्थक लेख है सतीश जी,

    @ हम पैदा न हिन्दू हुए थे और न मुसलमान , हम इंसान थे बस उस वक्त हम देश, जाति, राजनैतिक पार्टी एवं धर्म की सीमाओं में नहीं बंधे थे ..-इन सबका नाम, हम कायर डरपोकों ने, बाद में अपनी पीठ पर, लिखवा लिया और आज हम इनके गुलाम हैं !
    शत प्रतिशत सहमत हूँ !

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  17. बिलकुल सही बात है,धर्म के नाम पर हमको तोडा जा रहा है, धर्म का काम तो जोड़ना होता है,

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  18. सबल सार्थक भाव सतीश जी ...!!आपकी पोस्ट पढ़कर ये उक्ति याद आई ...''आदमी को मयस्सर नहीं इंसाँ होना'' ....सच्चे इंसान बन के ,मानवता अपना के चलें ,यही जीवन सौन्दर्य से भर जाता है ...!!अमानवीय बातों में ,वैमनस्य में ही कुरूपता है ...वितृष्णा है ...विकार है ...!!बहुत अच्छा लिखा है ...!!

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  19. शत प्रतिशत सहमत.......सलाम आपको सोच को ।

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  20. मार्ग और उपमार्ग में कुछ अन्‍तर तो होता ही है। मार्ग को यदि उपमार्ग से चुनौती मिलेगी तो ऐसी ही परिस्थितियां उत्‍पन्‍न्‍ा होंगी, जिनसे पीड़ित होकर आपने उक्‍त लेख लिखा है। अत: धर्मदर्शन के पुरातन विधान के मानव-कल्‍याण सूत्र को तो पहचानना ही होगा। दुर्भाग्‍य से एक उपमार्ग की भीड़ ये नहीं समझती।

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  21. मानव सभ्यता जब से है धर्म भी शायद तभी ए है ... और सबसे ज्यादा हूं खून भी इसके लिए ही बहा है ... इसलिए इसको शायद खत्म करना तो आसान है ही नहीं ... हां मिल बैठ कर जीवन की राह आसां जरूर हो सकती है ... पर अगर बैठना चाहें तो ...

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  22. बेचारे मासूमों पर सच में बहुत खतरा है।

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  23. जरूरत है कि हम पहले इंसान बनना सीखें और सिखाएं!

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  24. जैसे जैसे कलियुग आगे बढ़ रहा है , इंसान और भी "धार्मिक" होता जा रहा है. . . .

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  25. टिप्पणीकार काजल कुमार जी और वाणी जी की प्रतिक्रियाओं और आपकी प्रविष्टि से सहमति !

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  26. धर्म वही है जो सबसे सहज और सबसे स्वाभाविक हो जैसे मानव के लिए मानवीयता ही धर्म है -शेष सब आरोपण है !

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  27. धर्म और धार्मिकता की खाई पहले से और भी ज्यादा गहरी हो चुकी है ..बहुत मुश्किल वक्त है

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  28. यह सर्वधर्म समभाव शिक्षा परिवारों में दी जानी चाहिये और स्कूलों में अनिवार्य होना चाहिये ।

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  29. बिल्कुल सच! मानवता का , प्यार का धर्म ही सच्चा धर्म है.....

    ~सादर!!!

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  30. तुम कितने संकीर्ण बुद्धि और अनपढ़ हो , तुमसे कुछ भी सकारात्मक होना संभव ही नहीं
    @ जब तक व्यक्ति अनपढ़ होता है तब तक वह संकीर्ण बुद्धि नहीं होता, ये अपना अनुभव है|
    गांव में पैदा हुए, हर जाति के लोग गांव में रहते थे किसी से कोई भेदभाव नहीं कोई दुराव नहीं, मुसलमान गांव में नहीं थे पर पास के कस्बे से मुस्लिम कसाई व मणिहार अपने व्यवसाय के सिलसिले में आते थे, जहाँ भूख लगी जिसके घर के आगे है बोल देते खाना दे दीजिये या खाने के समय गांव वाले भी पूछ लेते|
    हम बच्चे उन्हें सिर्फ काका, बाबा, मामा आदि के नाम से पुकारते थे इसके आगे सोचते भी नहीं कि कौन किस जात का किस समुदाय का है| जब हम उन्हें बाबा,काका आदि कह संबोधित कर प्रणाम करते तो बदले में वे भी हमें कुंवर साहब कह दुवाएं देते और उस वक्त उनकी आँखों में जो प्यार और अपनापण झलकता था वो इस पढ़ी लिखी समझदार दुनियां में देखा ही नहीं!!
    गांव से निकल माध्यमिक शिक्षा के लिए पास के कस्बे में गये वहां छात्र संघ चुनावों में शहर से आये कालेज के छात्र नेताओं ने बताया - ये उस जात वाला हमारी जात का विरोधी है उससे बचके रहना, हम नहीं समझे कि वो विरोधी कैसे है ?
    कालेज में गये तो जो गांवों में हिलमिलकर रहते, साथ साथ खेलते सब एक दूसरे से खींचे रहते, कल साथ खेलने वाला कालेज में आते ही समझदार बनकर दुश्मन हो गया शायद में गांव में उसे अनपढ़ होने के चलते समझ नहीं थी कि हम दुश्मन है!!
    कालेज शिक्षा पूरी करते करते पता चला कि जिस कसाई को हम मामा,काका,बाबा कहते थे वो भी हमारा दुश्मन है, हमें लगा गांव में हमें समझ नहीं थी, गांव के लोग अनपढ़ थे इसलिए समझ नहीं पाए कि वे अपने दुश्मनों के साथ प्यार से पेश आ रहे थे|
    खैर....गांव से निकल हम शिक्षित हुए और हमें अपने दुश्मन को समझने की समझ आई शायद, या हमें पढ़े लिखों ने समझाया कि वे दुश्मन है!!
    इस समझ के बाद हम सोचते है - काश हम अनपढ़ रहते और जातिय व सामुदायिक आधार पर पहले की तरह प्यार से रहते|

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    1. भाई रतन सिंह जी ,
      आपका यह विस्तृत कमेन्ट बड़ा प्यारा लगा , आपके शब्दों ने वह कारण साफ़ कर दिए जिसके कारण देश में विरोधाभास एक दुसरे के प्रति क्रोध गुस्सा और भय का वातावरण पैदा हो रहा है !

      पार्टी राजनीति के प्रति प्यार एक अलग बात है मगर वोटों के कारण देश में रहने वाले निवासियों में प्यार ख़तम करने की साजिश क्षम्य नहीं होनी चाहिए !

      हमारे देश में अधिकतर सीधे साधे लोग ही रहते हैं और वे उसी विचारधारा और स्नेह को मानते रहे हैं जिसका अभी आपने जिक्र किया है ...

      यहीं राजनैतिक पार्टियों ने अपना अपना आधार बनाने की कोशिश की है और उसमें देश को सिवा वैमनस्य के कुछ नहीं दिया है !हमें इसका विरोध करना चाहिए , भले हम किसी राजनैतिक पार्टी के समर्थक क्यों न हो ...

      अफ़सोस है कि लोगों ने देश सम्मान में में लेख लिखने बंद कर दिए हैं क्यों कि कोई सोंचेगा यह उस पार्टी की तारीफ़ होगी जो सत्ता में है !

      यह बेवकूफी की पराकाष्ठा है ...इससे देश का बेहद नुक्सान हुआ है , दुश्मन देश हमारी मज़ाक उड़ा रहे हैं ..

      आभार आपका !

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  31. हमारा सुझाव ये है :

    http://www.youtube.com/watch?v=1cm9k8QdKMg

    जारी रखिये ...

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  32. समसामयिक और अर्थपूर्ण आव्हान...हमें चेतना होगा....

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  33. पूरी तरह सहमत हूं..
    काश वहां तक संदेश पहुंचे, जहां लोग कान आंख बंद किए बैठे हैं।

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  34. विश्व बंधुत्व का सन्देश देती सारगर्भित पोस्ट के लिए अभिनन्दन नहीं प्रणाम स्वीकारें

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  35. सच में धर्म जीवन को दिशा देने के लिए होती है
    ना कि गुमराह करने के लिए
    मगर आज भटकाव है हर जगह

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  36. सचमुच इतनी छोटी सी जिंदगी की इतनी छोटी सी बात लोगों को क्यों समझ नहीं आती?

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  37. pata nahi nafrat karne ka smy kaese milta hai logon ko
    rachana

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  38. भाई हमें तो आपको लेकर हमेशा डर ही लगा रहता है -अपना ख़याल रखिये और सावधान रहा करिए ..
    आप उन सभी की आँख की किरकिरी हैं

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  39. .
    .
    .
    हमें इंसान को इंसान से भिन्न बताने वाली नफरत की जड़ें खोदनी होंगी... पर जड़ों को तो हम सीने से चिपटायें हैं... अपना अपना 'धर्म' मान... :)


    ...

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  40. न हिन्दू होना गलत है न ही मुसलमान होना । हर कोई किसी न किसी धर्म को तो अपनाएगा ही । गलत है धर्म को मतभेदों का आधार बनाना । गलत हैं वे जो आधार बनाकर इन्सानियत को बाँट रहे हैं । गलत हैं वे जिनके लिये धर्म देश की सीमाओं को पार कर देश से बडा हो गया है । गलत हैं वे जो इसकी आड लेकर वोट बैंक बढा रहे हैं । और गलत हैं वे जिनके लिये साम्प्रदायिक घटनाएं चूल्हे की आग की तरह हैं जिसे जलाना जरूरी है अपनी रोटियाँ सेकने के लिये । निगले हुए चारे की तरह हैं जिसकी जुगाली करते रहते हैं बैठ बैठे । बहुत अच्छा आलेख ।

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  41. सही कहा हम सिर्फ एक इंसान पैदा हुए.. ये धर्म के ठेकेदारों ने हमें बाँट दिया विभिन्न मजहवों में अपने मतलब के लिए... इन्हें नहीं पता सबसे पहले इन्ही को निगलेगा इनका बनाया रास्ता

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  42. बेहद शानदार आलेख । बस एक अंतिम पंक्ति को छोड़ कर पूर्ण सहमति है आपसे ।

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  43. बहुत सारगर्भित आलेख...

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  44. विचारणीय सारगर्भित

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एक निवेदन !
आपके दिए गए कमेंट्स बेहद महत्वपूर्ण हो सकते हैं, कई बार पोस्ट से बेहतर जागरूक पाठकों के कमेंट्स लगते हैं,प्रतिक्रिया देते समय कृपया ध्यान रखें कि जो आप लिख रहे हैं, उसमें बेहद शक्ति होती है,लोग अपनी अपनी श्रद्धा अनुसार पढेंगे, और तदनुसार आचरण भी कर सकते हैं , अतः आवश्यकता है कि आप नाज़ुक विषयों पर, प्रतिक्रिया देते समय, लेखन को पढ़ अवश्य लें और आपकी प्रतिक्रिया समाज व देश के लिए ईमानदार हो, यही आशा है !


- सतीश सक्सेना

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