Wednesday, July 3, 2013

अपनी गलियों में,अक्सर ही,हमने गौतम लुटते देखे !- सतीश सक्सेना

आदिकाल से,सुंदरता पर,देव पुरुष, मर मिटते देखे !
अपनी गलियों में,अक्सर ही,हमने गौतम लुटते देखे !

बड़े बड़े लोगों के घर में, जाने क्यों, सन्नाटा रहता !
जानें कितने रजवाड़ों में, लोगों के मुंह, ताले देखे  !

क्यों इतना विश्वास दिलाते ,लोगों को हैरानी होगी !
हमने इस खातिर के पीछे, खड़े  हुए अनजाने देखे !

अपनी भूल छिपाकर कैसे ,सारे जग का दोष बताएं !
शकल से जो,सीधे लगते हैं,अक्सर वही सयाने देखे !

अपनी सत्ता के घमंड में,मेधा का अपमान न करना !
हमने अक्सर,ब्रूटस द्वारा, घर में , सीज़र मरते देखे !


66 comments:

  1. सार्थक गज़ल है… आभार!!

    अपनी सत्ता के घमंड में,प्रतिभा का अपमान न करना
    हमने अक्सर,ब्रूटस द्वारा, घर में , सीज़र मरते देखे!

    वाकई घमण्ड सर्वनाशी होता है।

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  2. बडे बडे लोगों के घर में,
    जाने क्यों, सन्नाटा रहता!
    हमने अक्सर रजवाड़ों में,
    लोगों के मुँह, ताले देखे!.....वाह, सर जी!

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  3. सबसे पहले , सावधान ही रहना, अपने आसपास से !
    हमने कितनी बार,घरों में लुटते,घर के मालिक देखे !

    अपनी सत्ता के घमंड में,प्रतिभा का अपमान न करना
    हमने अक्सर,ब्रूटस द्वारा, घर में ,सीज़र मरते देखे !

    जिसने, तुमको बेटी दी है, उनको ही, सर माथे रखना !
    हमने अक्सर अहंकार में, हँसते चमन,उजड़ते देखे !

    सटीक....बधाई!

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  4. बहुत सुंदर रचना, क्या कहने । लेकिन किया क्या जाए ...


    किसको अपने गीत सुनाएं,
    जग सारा बहरा लगता है।

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  5. अहंकार में चमन उजड़ ही जाते हैं , रावण की लंका भी तो !

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    Replies
    1. वाणी जी,
      मुझे लगता है कि सतीश भाई का इशारा जिस ओर है वो लंका अभी उजड़ी नहीं है :)

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    2. अगर अहंकार सहलाने वाले ही बचे रहे तो लंका का बसे रहना भी कोई बसना है.... :)

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  6. सच है कि बेटी देने वाला बडा होता है।

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  7. घुमावदार सड़कों के उस पार क्या होगा, कहाँ समझ आ पाता है? बहुत सुन्दर..

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  8. अंधें गूंगों की बस्ती में किससे रोएं किससे गएँ ,सुन्दर अति सुन्दर

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  9. अंधें गूंगों की बस्ती में किससे रोएं किससे गएँ ,सुन्दर अति सुन्दर

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  10. मत पूछो इस दुनिया में क्या क्या देखा..बहुत सुन्दर..

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  11. सभी शेर अपने आपमे गहन अर्थ लिये हुये लाजवाब है, शुभकामनाएं.

    रामराम.

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  12. जिसने, तुमको बेटी दी है, उनको ही, सर माथे रखना !
    हमने अक्सर अहंकार में, हँसते चमन,उजड़ते देखे !

    आपके इस शेर से याद आया कि आजकल कुछ लडके वालों को सींग निकल आये हैं इनके सींग ठीक करने की समाज को आज बहुत ज्यादा जरूरत है.
    रामराम.

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  13. gahan bhav aur gambhir rachna

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  14. बहुत सुंदर गेय रचना..जीवन बोध दिलाती पंक्तियाँ...

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  15. अपनी भूल छिपाकर कैसे ,सारे जग का दोष बताएं
    शकल से जो,सीधे लगते हैं,अक्सर वही सयाने देखे ..

    हकीकत के रंग में लिखी राक्स्हना ... हर छंद लाजवाब ...

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  16. जिसने, तुमको बेटी दी है, उनको ही, सर माथे रखना !
    वाह..

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  17. बहुत सुंदर .... अच्छी सीख देती गज़ल

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  18. गौतम लुट रहे हैं और अंगुलिमाल हाथ का पंजा बन कर लूट रहे हैं।

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  19. एकसे एक बढ़िया शेर है किसे कोट करे किसे छोड़े,
    सार्थक सन्देश देती सुन्दर गजल है !

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  20. सुन्दर रचना-
    आदरणीय सतीश जी
    बधाई ||

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  21. ग़ज़ल की हर एक पंक्ति अर्थ लिए हुए... बहुत सुंदर अभिव्यक्ति .......!!

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  22. हमेशा की तरह बहुत सुंदर

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  23. ....वाह !
    लाजवाब .........।

    पाँचवें शेर को थोड़ा साधिए बस ।

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    Replies
    1. ध्यान दिलाने के लिए धन्यवाद पंडित ,
      बदल दिया !

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    2. ये लेओ मेरे मित्र का चेला भी गुरु हो गया :)

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  24. वाह बहुत सार्थक लेखन है ...गजल के नाम से लगता था के कुछ उदासी भरा या प्रेम में पगा हुआ होगा मगर यहाँ आकर पता चला गजल जागरूकता भरी भी हो सकती हैं ..बहुत बहुत शुक्रिया ऐसे गजल पढवाने के लिए :-)

    मन के अनकहे भावो को इस रचना में बहा दिया ..आपकी प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा में मेरी नयी रचना  Os ki boond: मन की बात ...

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  25. भाई ब्रजमोहन श्रीवास्तव का सारगर्भित कमेन्ट फेसबुक पर था , यहाँ दे रहा हूँ ...

    जो कुछ देखा बिल्कुल सही देखा ..
    सुन्दरता पर मर मिटना स्वाभाविक ही है
    'भ्राता पिता पुत्र उरगारी
    पुरुष मनोहर निरखत नारी
    अपवाद—
    पन्नगारि यह नीति अनूपा
    नारि न मोह नारि के रुपा
    ——
    सच है ज्यादा विश्वास नहीं दिलाना चाहिये
    'खताबार समझेगी दुनियां तुझे
    तू इतनी जियादा सफाई न दे'
    नेह और अनुराग हर कोई कहां समझता है
    जिसने तुमको बेटी दी है— काश लोग
    इसे गम्भीरता से समझें

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  26. Replies
    1. काजल भाई ,
      आप तो 'अहंकार' को यूं चढ़ा रहे हैं कि जैसे नम्रता / प्रेम वगैरह वगैरह के मुकाबिले ही मुकाबिले हों :)

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  27. बढियां गीत

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  28. एक एक शब्द अपने आप में बहुत बड़ी बात कह रहा है, इतने सुंदर और शिक्षापर्द बातो को हमसे साझा करने के लिये आपका तहे दिल से आभार व्यक्त करता हूँ, हम नए नए लिखने वालो के लिये आपकी रचनाये वरदान से कम नही है, और उम्मीद करता हूँ कि जैसे आप समय समय पर मेरी रचनाओ को पढ़कर मेरी गलतियाँ मुझे बताते है, आपका ये स्नेह हमेशा मुझ पर यूँ ही बना रहेगा,

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  29. अपनी भूल छिपाकर कैसे ,सारे जग का दोष बताएं
    शकल से जो,सीधे लगते हैं,अक्सर वही सयाने देखे !-------

    वाह- जीवन के मर्म को समझाती सुंदर और सार्थक अनुभूति
    सादर

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  30. बहुत बढिया गज़ल, अलग सी भी ।

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  31. अपनी भूल छिपाकर कैसे ,सारे जग का दोष बताएं
    शकल से जो,सीधे लगते हैं,अक्सर वही सयाने देखे !-------

    सुंदर सीख देती गजल ....!!

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  32. शुक्रिया भाई साहब उत्साह बढाने का .ॐ शान्ति .चार दिनी सेमीनार में ४ -७ जुलाई ,२ ० १ ३ ,अल्बानी (न्युयोर्क )में हूँ .ॐ शान्ति .


    अपनी भूल छिपाकर कैसे ,सारे जग का दोष बताएं
    शकल से जो,सीधे लगते हैं,अक्सर वही सयाने देखे

    बेहद सटीक अर्थ पूर्ण व्यंग्य विडंबन .मजा आ गया प्रस्तुति में .ॐ शान्ति .

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  33. आदिकाल से,सुंदरता पर,देव पुरुष, मर मिटते देखे !
    अपनी गलियों में,अक्सर ही,हमने गौतम लुटते देखे !

    बड़े बड़े लोगों के घर में, जाने क्यों, सन्नाटा रहता !
    हमने अक्सर रजवाड़ों में, लोगों के मुंह, ताले देखे,,,आपस में ही लड़ते देखे

    क्यों इतना विश्वास दिलाते ,लोगों को हैरानी होगी !
    हमने इस खातिर के पीछे , खड़े हुए अनजाने देखे..लोगों को है खटते देखे

    अपनी भूल छिपाकर कैसे ,सारे जग का दोष बताएं
    शकल से जो,सीधे लगते हैं,अक्सर वही सयाने देखे,, अक्सर वही सयाने हमने शकल से सीधे लगते देखे

    नेह और अनुराग न समझें, हठी,घमंडी,ग्यानी भारी
    हमने कितनी बार,घरों में लुटते,घर के मालिक देखे,,,मालिक के,घर को लुटते देखे

    अपनी सत्ता के घमंड में,प्रतिभा का अपमान न करना
    हमने अक्सर,ब्रूटस द्वारा, घर में ,सीज़र मरते देखे !

    जिसने, तुमको बेटी दी है, उनको ही, सर माथे रखना !
    हमने अक्सर अहंकार में, हँसते चमन,उजड़ते देखे !

    सुंदर सृजन,बहुत उम्दा गजल ,,

    RECENT POST: जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनायें.

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  34. तमाशा-ए-अहले करम देखते हैं,
    बहुत खूब, बड़े भाई।

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  35. आदिकाल से,सुंदरता पर,देव पुरुष, मर मिटते देखे !
    अपनी गलियों में,अक्सर ही,हमने गौतम लुटते देखे !

    बड़े बड़े लोगों के घर में, जाने क्यों, सन्नाटा रहता !
    हमने अक्सर रजवाड़ों में, लोगों के मुंह, ताले देखे,,,आपस में ही लड़ते देखे

    क्यों इतना विश्वास दिलाते ,लोगों को हैरानी होगी !
    हमने इस खातिर के पीछे , खड़े हुए अनजाने देखे..लोगों को है खटते देखे

    अपनी भूल छिपाकर कैसे ,सारे जग का दोष बताएं
    शकल से जो,सीधे लगते हैं,अक्सर वही सयाने देखे,, अक्सर वही सयाने हमने शकल से सीधे लगते देखे

    नेह और अनुराग न समझें, हठी,घमंडी,ग्यानी भारी
    हमने कितनी बार,घरों में लुटते,घर के मालिक देखे,,,मालिक के,घर को लुटते देखे

    अपनी सत्ता के घमंड में,प्रतिभा का अपमान न करना
    हमने अक्सर,ब्रूटस द्वारा, घर में ,सीज़र मरते देखे !

    जिसने, तुमको बेटी दी है, उनको ही, सर माथे रखना !
    हमने अक्सर अहंकार में, हँसते चमन,उजड़ते देखे !

    सुंदर सृजन,बहुत उम्दा गजल ,,

    RECENT POST: जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनायें.

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  36. शुक्रिया धीरेन्द्र जी आपका ..
    गौर करता हूँ !

    ReplyDelete
  37. जिसने, तुमको बेटी दी है, उनको ही, सर माथे रखना !
    हमने अक्सर अहंकार में, हँसते चमन,उजड़ते देखे !
    खुबसूरत ही नहीं बेहतरीन गीत

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  38. बेहतरीन ग़ज़ल,सार्थक भावों के साथ,सार्थक सन्देश देती ....
    स्वस्थ रहें भाई जी !

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  39. गहन भावों को अभिव्यक्त करती शानदार रचना

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  40. हमने अक्सर अहंकार में, हँसते चमन,उजड़ते देखे!

    ...वाह!

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  41. लाजवाब...
    सार्थक भाव लिए बेहतरीन रचना..
    :-)

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  42. आदिकाल से,सुंदरता पर,देव पुरुष, मर मिटते देखे !
    अपनी गलियों में,अक्सर ही,हमने गौतम लुटते देखे !

    आजकल ऐसे गौतामों की कमी नहीं है।
    सुन्दर भाव।

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  43. जिसने, तुमको बेटी दी है, उनको ही, सर माथे रखना !
    हमने अक्सर अहंकार में, हँसते चमन,उजड़ते देखे !
    सुन्दर प्रस्तुति सतीश जी कहना चाहूँगा
    क्या क्या न देखा हमने घर बनते उजड़ते देखे,
    रिश्तों की बात करें तो,बनते और बिगड़ते देखे

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  44. अपनी सत्ता के घमंड में,प्रतिभा का अपमान न करना
    हमने अक्सर,ब्रूटस द्वारा, घर में ,सीज़र मरते देखे !
    ...............वाह, सतीश सर जी!

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  45. सब कुछ अनुभवसिद्ध और प्रभावशाली !

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  46. ब्रूटस और सीजर की दिल दहलाने वाली घटना ने इस कविता में गहरे रंग भर दिए हैं।

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  47. हर पंक्ति, कुछ समझाती सिखाती सी..... बहुत सुंदर

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  48. जिसने, तुमको बेटी दी है, उनको ही, सर माथे रखना !
    हमने अक्सर अहंकार में, हँसते चमन,उजड़ते देखे !
    Behatarin kavita..uprokt lines ke dil ko chhu liya..Thank You!!

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  49. अपनी भूल छिपाकर कैसे ,सारे जग का दोष बताएं !
    शकल से जो,सीधे लगते हैं,अक्सर वही सयाने देखे !

    प्रभावी प्रस्तुति।।।

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  50. ज़माने भर की सार्थक शिक्षा पढ़ने को मिली ...सादर

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  51. बहुत सार्थक रचना .. आपकी इस उत्कृष्ट रचना कि प्रविष्टि कल रविवार ब्लॉग प्रसारण http://blogprasaran.blogspot.in/ पर भी .. कृपया पधारें ..

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  52. अपनी भूल छिपाकर कैसे ,सारे जग का दोष बताएं
    शकल से जो,सीधे लगते हैं,अक्सर वही सयाने देखे,,
    वाह!आप ने तो हर शेर में वास्तविकता लिख दी है.
    बहुत उम्दा ग़ज़ल.

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  53. अपनी भूल छिपाकर कैसे ,सारे जग का दोष बताएं !
    शकल से जो,सीधे लगते हैं,अक्सर वही सयाने देखे !

    बेहद उम्दा......ये शेर सबसे बढ़िया लगा।

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  54. सारी जाली जल गई पर जला न एक भी धागा
    मालिक फंस गया, घर निकल खिड़की से भागा

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  55. अपनी सत्ता के घमंड में,प्रतिभा का अपमान न करना
    हमने अक्सर,ब्रूटस द्वारा, घर में ,सीज़र मरते देखे !
    बेहद उम्दा...................वाह

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  56. जिसने,तुमको बेटी दी है,उनको ही, सर माथे रखना !
    हमने अक्सर अहंकार में, हँसते चमन,उजड़ते देखे !

    बहुत खूब!

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  57. क्या बात है..बहुत उम्दा!!

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  58. खूबसूरत शब्दों में हर भाव को पिरो दिए हैं ---सार्थक और सुथरी अभिव्यक्ति।

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एक निवेदन !
आपके दिए गए कमेंट्स बेहद महत्वपूर्ण हो सकते हैं, कई बार पोस्ट से बेहतर जागरूक पाठकों के कमेंट्स लगते हैं,प्रतिक्रिया देते समय कृपया ध्यान रखें कि जो आप लिख रहे हैं, उसमें बेहद शक्ति होती है,लोग अपनी अपनी श्रद्धा अनुसार पढेंगे, और तदनुसार आचरण भी कर सकते हैं , अतः आवश्यकता है कि आप नाज़ुक विषयों पर, प्रतिक्रिया देते समय, लेखन को पढ़ अवश्य लें और आपकी प्रतिक्रिया समाज व देश के लिए ईमानदार हो, यही आशा है !


- सतीश सक्सेना

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