Friday, November 29, 2013

अपने मित्रों के स्नेह के, आभारी हैं मेरे गीत - सतीश सक्सेना

"मेरे गीत " पर, २४ मई २००८ को पहली कविता "पापा मुझको लम्बा कर दो "  प्रकाशित की गयी थी, जिसकी  रचना ३०-१०-१९८९ को हुई जब मेरी ४ वर्षीया बेटी के मुंह के शब्द कविता बन गए ! इस कविता का एक एक शब्द उस नन्हें मुख की मनुहार का सच्चा वर्णन है जो उसने अपने पापा से कही थी ! यह बाल कविता स्वर्गीय राधेश्याम "प्रगल्भ" को समर्पित की गई थी, जो कि उस समय "बालमेला" नाम की पत्रिका का संपादन कर रहे थे !

और आज ४०० प्रविष्टियों एवं १६२०६ टिप्पणियों एवं १,९६,३७२ पेज व्यू के साथ "मेरे गीत" को, अलेक्सा ट्रैफिक रैंक के अनुसार  भारत में १८६२६ एवं विश्व में १८१०३७ रैंक पर पाकर , खासा संतोष अनुभव कर रहा हूँ !

 शुरुआत में लेखन पर अधिक जोर था , मेरे एक पाठक ने उस समय लिखा था कि मेरे गीत पर गीत कम होते हैं , कहीं दिल को छू गया  और कविता ,पद्य लेखन शुरू किया और अब जब मैं गीत ग़ज़ल अधिक लिख रहा हूँ तो कुछ लोग मुझे कवि भी कहने लगे हैं !

आजकल लेखन में अक्सर मौलिकता की कमी पायी जाती है , मेरी कोशिश रही है कि किसी अन्य मशहूर कवि का प्रभाव मेरी रचनाओं में न आ सके जो कुछ निकले प्रभावी अथवा अप्रभावी मेरे दिल से निकले चाहे लोग पसंद करें या न करें , और शायद मैं इसमें कामयाब रहा हूँ ! इस पूरे रचना काल में मैंने कभी व्याकरण और शिल्प के सुधार की  आवश्यकता के कारण अपनी रचना को नहीं बदला ! मुझे लगता है , ईमानदार भाव अभिव्यक्ति, मौलिक और विशिष्ट होनी चाहिए न कि उसे पुरानी एवं खूब बखानी गयी शैली में बाँध दिया जाय !

कुछ ऐसा राग रचें मिलकर,
सुनकर उल्लास उठे मन से !
कुछ ऐसी लय संगीत  बजे 
सब बाहर आयें ,घरोंदों  से !
गीतों में यदि झंकार न हो,तो व्यर्थ रहे महफ़िल सारी !
रचना के मूल्यांकन में है  , इन  शब्दों की जिम्मेदारी  !


ब्लॉग जगत में सब लेखक हैं अतः पाठकों का अभाव रहता है , बहुत कम लोग ऐसे हैं जो मित्रों को ध्यान से पढ़ते हैं शायद इतना समय ही नहीं है अतः अक्सर बेहद उत्कृष्ट ब्लॉग लेखकों को भी, लोग पढ़ने से वंचित रह जाते हैं ! अफ़सोस है कि नवोदित लेखकों को, जो प्रोत्साहन हम सबसे मिलना चाहिए नहीं मिल पाता ! मेरा विचार है कि बड़े लेखकों द्वारा प्रोत्साहन के अभाव एवं विपरीत माहौल में और उत्कृष्ट लिखना चाहिए, मुझे विश्वास है आज नहीं तो कल कलम अपनी पहचान करा देगी ! 

ज़ख़्मी दिल का दर्द,तुम्हारे  
शोधग्रंथ , कैसे समझेंगे  ?
हानि लाभ का लेखा लिखते  ,
कवि का मन कैसे जानेंगे ?
ह्रदय वेदना की गहराई, तुमको हो अहसास, लिखूंगा !
तुम कितने भी अंक घटाओ,अनुत्तीर्ण का दर्द लिखूंगा !

हमने हाथ में,  नहीं उठायी ,
तख्ती कभी क्लास जाने को !
कभी न बस्ता, बाँधा हमने,
घर से, गुरुकुल को जाने को !
काव्यशिल्प, को फेंक किनारे,मैं आँचल के गीत लिखूंगा !
प्रथम परीक्षा के,पहले दिन,निष्काषित का दर्द लिखूंगा !

शब्द अर्थ ही जान न पाए ,
विद्वानों  का वेश बनाए ! 
क्या भावना समझ पाओगे
धन संचय के लक्ष्य बनाए !
माँ की दवा, को चोरी करते, बच्चे की वेदना लिखूंगा ! 
श्रद्धा तुम पहचान न पाए,एकलव्य की व्यथा लिखूंगा ! 

अंत में सब मित्रों का आभार व्यक्त करना चाहूंगा, जिन्होंने जब तब मेरे ब्लॉग का ज़िक्र कर मेरा उत्साह वर्धन किया निस्संदेह उनका उपकार है मेरे ऊपर , इसके बिना शायद कलम में वह ताकत नहीं होती जिसके कारण मैं आत्मसंतुष्टि महसूस करता हूँ , मैं अपने मित्रों के इस उत्साह वर्धन को अपना सबसे बड़ा पुरस्कार मानता हूँ  ! 

अपने मित्रों के स्नेह के, आभारी हैं मेरे गीत !!

Wednesday, November 27, 2013

अब न उठेंगे , यह बंजारे , खूंटे पक्के दिखते हैं - सतीश सक्सेना

चमचागीरी करते करते , कितने धक्के लगते हैं !
पूंछ हिलाते पीछे चलते , सीधे छक्के लगते हैं !

वैसे तो पढ़ने वालों को,तालिबान का नाम दिया !
फिर कैसे स्याही के बदले, खूनी थक्के लगते हैं !

काम कराके वारे न्यारे , अनपढ़ खद्दर वालों के 
सिर्फ दलाली में सोने के, ढेरो सिक्के लगते हैं !

पीज़ा बर्गर खाते खाते,देसी आदत बिगड़ गयी !
अब न उठेंगे  यह बंजारे , खूंटे पक्के लगते हैं !

Wednesday, November 20, 2013

कैसे जाओगे यहाँ से, लेके प्यार, सजना - सतीश सक्सेना

विवाह पर गीत गाने की परम्परा, हमारे समाज में शुरू से ही है , सजधज कर मांगलिक अवसर पर महिलाओं द्वारा, ढोलक की थाप पर, यह गीत गुनगुनाइए एक बार …दूसरी बार रचना की है किसी विवाह गीत की  अगर आप पसंद करें तो सफल मानूं !
  

कैसे आये हो गली में लेके प्यार सजना ?
कैसे जाओगे यहाँ से, लेके प्यार सजना ?

सजके आये हो हमारे द्वार,खूब सजना !
कैसे जाओगे यहाँ से , ले उधार सजना ! 

फेरे डाले हैं यहाँ पे तुमने सात, सजना !
कैसे जाओगे यहाँ से, लेके हार सजना !

कसमें खायीं हैं,हमारे घर सात सजना   
कैसे दोगे तुम प्यार का, उधार सजना !

गांठें  बाँधी हैं , ननद ने , हमारी सजना !  
कैसे जाआगे छुटाके,पल्लू यार सजना !

खाना मामा ने खिलाया हमें साथ सजना !
कैसे खाओगे अकेले, अबकी बार सजना !

सारे नाचे हो गली में आके,आज सजना ! 
कैसे जाओगे गली से, ऐसे यार सजना !

यह आनंद दायक गीत अर्चना चाओजी की मधुर आवाज में सुने …  

Wednesday, November 13, 2013

तो हम होली दिवाली,माँ से मिलने घर गए होते -सतीश सक्सेना

अगर हम ऐसी वैसी धमकियों से, डर गए होते !
अभी तक दोस्तों के हाथ, कब के मर गए होते !

तेरे जज़्बात की हम को , अगर चिंता नहीं होती ,
तो हम होली दिवाली,माँ से मिलने घर गए होते !

अगर हम वाकई मन में ,यह शैतानी लिए होते !
तुम्हारे दिल  के , अंदेशे भी , पूरे कर गए होते !

अगर हमने भी डर के ऐसे, समझौते किये होते !
तो बरसों की मेरी मेहनत, कबूतर चर गए होते !

अगर हम  दोस्तों में ऐसे , कद्दावर नहीं  होते !
हमारे घर की दीवारें , वे काली कर गए होते !

Tuesday, November 12, 2013

आप भक्त हैं या भांड - सतीश सक्सेना

क्या किसी राजनेता का भक्त कहलाने से आप गर्व महसूस करते हैं ?
- खास तौर पर भारत में , अक्सर राजनेता भ्रष्टाचार में लिप्त पाये जाने के बाद, वे चोरी के आरोप में जेल जाते हैं या जायेंगे ! 


-आप लोग किसी बच्चे के पिता और अपने घर के मुखिया हैं , आपकी पीठ पर एक राजनीतिज्ञ का लिखा नाम सबको नज़र आता होगा कि आप इस व्यक्ति के "आदमी" हैं , क्या आपके पीठ पर सिर्फ आपका नाम नहीं होना चाहिए ?


-किसी जमाने में राज दरवार के भांड हुआ करते थे जो अपने राजा की वंदना गाया करते थे क्या हम लोग उसी प्रथा का अनुसरण कर रहे हैं

- मेरा अनुरोध है कि कहें हम किसी के आदमी नहीं हैं , हमारा अपना स्वतंत्र व्यक्तित्व है , शायद यह सुन हमारे बच्चों को शक्तिशाली होने का अहसास होगा क्योंकि वे अपने पिता को दुनिया का सबसे शक्तिशाली आदमी समझते हैं ! किसी अन्य का नाम हमारी पीठ पर लिखा देख, निस्संदेह हमारे बच्चे अपने आपको शर्मिंदा पाएंगे !


-कृपया कहें कि हम किसी के भांड नहीं हैं और न बिकाऊ हैं ! विचारों का सपोर्ट करें मगर व्यक्ति का नहीं ! वह हम जैसा ही है, उसमे वे तमाम ऐब और कमजोरियां हैं जो हम सबमें होती हैं , उसे भगवन बना कर आप ईश्वर का अपमान और अपनी बेवकूफी उजागर कर रहे हैं !

अपने आपको किसी का भक्त न बताएं ! इससे आपके परिवार का स्वाभिमान सुरक्षित रहेगा !


आदर सहित, मात्र विचार करने के लिए अनुरोध !!

Wednesday, November 6, 2013

घुटने तुड़ा तुड़ा के सीखे,सारे सबक जवानी के -सतीश सक्सेना

कितने मीठे से लगते थे,किस्से अपनी नानी के 
राजा रानी ही रहते थे, नायक सदा कहानी के !

किसे बताएं किस्से अपने बचपन की नादानी के
घुटने तुड़ा तुड़ा के सीखे, सारे सबक जवानी के !

कैसे तब हम,हुक्म अदूली, करते थानेदारों की !
सुनाके यारों को हँसते हैं,वे किस्से निगरानी के !

कैसे कैसे काम किये थे, हमने अपने बचपन में
टूटी चूड़ी, फटी चिट्ठियां,टुकड़े बचे निशानी के !

होते आये, युगों युगों से, अत्याचार स्त्रियों पर !
सुने तो हैं ,हमने भी किस्से, देवों की हैवानी के !

रात्रि जागरण,माँ की सेवा से ही,खर्चे चलते है ! 
दारू पीकर,नाच नाचकर,गाते भजन,भवानी के!

कितने नखरे महिलाओं के,अभी झेलने बाकी हैं !
गुस्सा होना,धमकी देना, थोड़े लफ्ज़ गुमानी के !

Saturday, November 2, 2013

बड़े मनोहर पल्लू ले , महिलायें बाहर निकली हैं -सतीश सक्सेना

करवाचौथ मना के अब, बालाएं बाहर निकली हैं !
कैसे कैसे लल्लू  ले , महिलायें बाहर निकली हैं !

आज खरींदे, सोना चांदी,धन की वारिश होनी है !
धनतेरस पर उल्लू ले, महिलायें बाहर निकली हैं !


कितने लोग आज भी ऐसे , जो  बंधने को बैठे हैं !
बड़े मनोहर पल्लू ले , महिलायें बाहर निकली हैं !


जीवन इनका राजनीति में, पूंछ हिलाते बीता है ! 
गोरे रंग का कल्लू ले, महिलायें बाहर निकली हैं !

पूंछ हिलाते देख इन्ही को , कुत्ते बस्ती छोड़ गए !
अपने अपने पिल्लू ले, महिलायें बाहर निकली हैं !

Friday, November 1, 2013

क्या आप फिरदौस खान को जानते हैं - सतीश सक्सेना

यह फिरदौस खान हैं , भारत की लाड़ली बेटी ! ईश्वर उनकी सी हिम्मत, देश की हर लड़की को दे , दीपावली मुबारक हो Firdaus Khan !
अपनी ही तस्वीर पर बिंदी लगाने के ऐतराज़ पर उनका जवाब और कुछ अन्य कमेंट पढ़ें . .

" हमें बिंदी बहुत पसंद है... आप भी सभी मज़हबों को अपनाकर देखिए... यक़ीनन आपको बहुत अच्छा लगेगा... हम किसी विशेष मज़हब को नहीं मानते... हमारे लिए सभी मज़हब बराबर हैं... हमें जितना सुकून किसी मज़ार पर चिराग़ रौशन करके और अगरबत्तियां जलाकर मिलता है, उतना ही सुकून गिरजाघर में मोमबत्ती जलाकर और मंदिर में देवता को फूल चढ़ाकर मिलता है... "

"हम मन से ईसाई, संस्कृति से हिंदू और जन्म से मुसलमान हैं... ऐसा कहा जा सकता है..."

"समझ में नहीं आता... ’जिन लोगों’ को हिंदुओं और हिंदू संस्कृति से इतनी परेशानी है , तो वे हिंदुस्तान छोड़कर चले क्यों नहीं जाते... "

" कट्टरपंथी सिर्फ़ मौत की बात करते हैं... इसलिए दुनिया भर में मौत ही बांट रहे हैं... ये लोग ’जिओ और जीने दो’ में यक़ीन नहीं करते... इसलिए इनसे ऐसी उम्मीद करना ही बेकार है..."

फिरदौस खान की बहादुरी को सलाम !!
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