Thursday, August 29, 2013

हमने हाथ लगाकर देखा,ठंडक है, अंगारों में -सतीश सक्सेना

आज रहा मन उखड़ा उखड़ा,महलों के गलियारों में !
जी करता है यहाँ से निकलें,रहें कहीं  अंधियारों में ! 

कभी कभी अपने भी जाने क्यों, बेगाने लगते हैं ?
जाने क्यों आनंद न आये,शीतल सुखद बहारों में ! 

वे भी दिन थे जब चलने पर,धरती कांपा करती थी,

मगर आज वो जान न दिखती,बस्ती के सरदारों में !

भ्रष्टाचार मिटाने आये, आग सभी ने  उगली थी !
हमने हाथ लगा के देखा , ठंडक थी अंगारों में !

दबी दबी सी वे चीखें, अब साफ़ सुनाई देतीं हैं !

लोकतंत्र से आशा कम,पर ताकत है चीत्कारों में !

Monday, August 26, 2013

कौन किसे सम्मानित करता,खूब जानते मेरे गीत -सतीश सक्सेना

अक्सर अपने ही कामों से 
हम अपनी पहचान कराते 
नस्लें अपने खानदान की 
आते जाते खुद कह जाते ! 
चेहरे पर मुस्कान, ह्रदय से 
गाली देते ,अक्सर मीत !
कौन किसे सम्मानित करता, खूब जानते मेरे गीत !

सरस्वती को ठोकर मारें 
ये कमज़ोर लेखनी वाले !
डमरू बजते भागे ,आयें   
पुरस्कार को लेने वाले  !
बेईमानी छिप न सकेगी,
आशय खूब समझते गीत !
हुल्लड़ , हंगामे पैदा कर ,नाम कमायें  ऐसे  गीत !

कलम फुसफुसी रखने वाले 
पुरस्कार की जुगत भिड़ाये
जहाँ आज बंट रहीं अशर्फी  
प्रतिभा नाक रगड़ती पाये  !
अभिलाषाएँ छिप न सकेंगी, 
कैसे  बनें  यशस्वी, गीत !
बेच प्रतिष्ठा, गौरव अपना , पुरस्कार हथियाते  गीत !

लार टपकती देख ज्ञान की 
कुछ राजे,  मुस्काते आये  !
मुट्ठी भर , ईनाम  फेंकते 
पंडित  गुणी , लूटने धाएं  ! 
देख दुर्दशा आचार्यों की , 
सर धुन रोते , मेरे गीत  ! 
दबी हुई, राजा बनने की इच्छा, खूब समझते गीत  !

चारण, भांड हमेशा रचते 
रहे , गीत   रजवाड़ों  के  !
वफादार लेखनी रही थी ,
राजों और सुल्तानों की !
रहे मसखरे, जीवन भर ये ,
खूब सुनाये  स्तुति  गीत !
हुए पुरस्कृत दरबारों से, फिर भी नज़र झुकाएँ गीत !

हिंदी  का  अपमान कराएं 
लेखक खुद को कहने वाले 
रीति रिवाज़ समझ न पायें 
लोक गीत को, रचने वाले 
कविता का उपहास उड़ायें,
करें प्रकाशित घटिया गीत !
गली गली के ज्ञानी लिखते, अपनी कविता, अपने गीत !

कविता, गद्य, छंद, ग़ज़लों पर ,
कब्ज़ा कर ,लहरायें  झंडा !
सुंदर शोभित नाम रख लिए 
ऐंठ के चलते , लेकर डंडा  !
भीड़ देख, इन आचार्यों  की, 
आतंकित  हैं , मेरे गीत  !
कहाँ गुरु को ढूंढें जाकर, कौन  सुधारे आकर, गीत !

Monday, August 19, 2013

अब रक्षा बंधन के दिन पर, घर के दरवाजे बैठे हैं -सतीश सक्सेना

ऐसे ही एक भावुक क्षण , निम्न कविता की रचना हुई है जिसमें एक स्नेही भाई और पिता की वेदना  का वर्णन किया गया है .....
बेटी की विदाई के साथ ही , उसका घर, मायके में बदल जाता है , हर लड़की के लिए और उसके भाई के लिए, एक कमी सी घर में हर समय कसकती है कि कहाँ चला गया इस घर का सबसे सुंदर टुकड़ा ...फिर एक मुस्कान कि हमारी लाडो अपने घर में बहुत खुश है ...  

हम दोनों जन्मे इस घर में 
औ साथ खेल कर बड़े हुए
अपने इस घर के आंगन में  
घुटनों बल, चलकर खड़े हुए
तू विदा हुई शादी करके 
पर इतना याद इसे रखना 
घर में पहले अधिकार तेरा,
मैं रक्षक हूँ , तेरे घर का  !
अब रक्षा बंधन के दिन पर , घर के दरवाजे , बैठे  हैं !

पहले  तेरे जन्मोत्सव पर
त्यौहार मनाया जाता था !
रंगोली  और  गुब्बारों से !
घरद्वार सजाया जाता था !
होली औ दिवाली उत्सव 
में, पकवान बनाये थे हमने 
लेकिन तेरे घर से जाते ही 
सारी रौनक ही चली गयी 
राखी के प्रति , अनुराग लिए , उम्मीद लगाए बैठे हैं  ! 

पहले इस घर के आंगन में

संगीत , सुनाई पड़ता था  !
मुझको घर वापस आने पर ,
ये घर रोशन सा लगता था !
झंकार वायलिन की सुनकर
मेरे घर में उत्सव लगता था 
जब से तू जिज्जी विदा हुई 
झाँझर पायल भी रूठ गयीं  
आहट  पैरों  की, सुनने  को, हम  कान  लगाए  बैठे  हैं  !

पहले घर में , प्रवेश करते ,

एक मैना चहका करती थी !
चीं चीं करती, अपनी  बातें 
सब मुझे सुनाया करती थी !
तेरे जाते ही चिड़ियों सी 
चहकार न जाने कहां गयी !
जबसे तू विदा हुई घर से , 
हम लुटे हुए से , बैठे हैं  !
टकटकी लगाये रस्ते में, घर के  दरवाजे  बैठे हैं !

पहले घर के,  हर कोने  में ,

एक गुड़िया खेला करती थी
चूड़ी, पायल, कंगन, झुमका 
को संग खिलाया करती थी
पापा की लाई चीजों पर 
हर बात पे झगड़ा करती थी 
जबसे गुड्डे, संग विदा हुई , 
हम  ठगे हुए  से बैठे हैं  !
कौवे की बोली सुननें को, हम  कान  लगाये बैठे हैं !

पहले इस नंदन कानन में

एक राजकुमारी रहती थी
हम सब उसके आगे पीछे 
वो खूब लाडली होती थी  
तब राजमहल सा घर लगता
हर रोज दिवाली होती थी !
तेरे जाने के साथ साथ ,
चिड़ियों ने भी, आना छोड़ा !
चुग्गा पानी को लिए हुए , उम्मीद  लगाए बैठे    हैं !

Monday, August 12, 2013

अब कोई युद्ध संभव नहीं -सतीश सक्सेना

                   काफी समय से हमारा मीडिया, बॉर्डर पर हुई सैनिकों की शहादतों के बाद करो या मरो के अंदाज़ में चीखना चिल्लाना शुरू कर देता है ! ऐसा लगता है कि  देश का सम्मान खतरे में है, चाहे इन सैनिकों की शहादत का कारण, आतंक वाद ही क्यों न हो ! सामान्यतः विभिन्न देशों की सीमाओं पर, विभिन्न कारणों से, झडपें आम घटना  मानी जाती हैं, और इसे लोकल कमांडरों के लेवल पर निपटा लिया जाता है न कि मिडिया और विपक्ष की हाय तौबा के दबाव में, पूरे विश्व का ध्यान, अपनी मूर्खताओं पर केन्द्रित करा दें ! 

                  बदकिस्मती से हमारे देश में ,मीडिया और राजनैतिक पार्टियों, इस प्रकार की घटनाये घटने पर इस प्रकार हो हल्ला मचाते हैं कि लगता है बस अब युद्ध शुरू करने के अलावा और कोई विकल्प नहीं बचा है ! नक़ल मार के पास हुए, मीडिया के इन विद्वानों को शायद यह पता ही नहीं कि अगर अगला युद्ध हो गया तो वह पारंपरिक युद्ध नहीं होगा जैसा १९६२,१९६५ अथवा १९७१ में लड़ा गया था ! यह युद्ध न्यूक्लियर होगा एवं निर्णायक होगा जिसमें दोनों तरफ अकल्पनीय हार होगी सिर्फ हार, जिसकी कल्पना से ही मानवता सिहर जाए ! 
                सामान्य और पारंपरिक युद्ध में , हम पाकिस्तान से बहुत श्रेष्ठ हैं और यह बात पाकिस्तानियों को भी मालुम है कि अपने से, चार गुनी बड़ी सेना से, आमने सामने ,थल ,जल व वायु में नहीं जीत सकते और उनकी हार निश्चित है ! ऐतिहासिक तथ्य है कि पाकिस्तान वे ज़ख्म नहीं भुला सकता जो उसने १९७१ में खाएं हैं जहाँ  लगभग १ लाख पाकिस्तान फौजियों को हथियार डालने पर मजबूर होना पडा और पाकिस्तान के दो टुकड़े हुए थे !

                   हम घास खायेंगे मगर एटम बम बनायेंगे , इस पालिसी को लेकर पाकिस्तान ने न केवल एटम बम हमारे देश के बराबर बना लिए हैं बल्कि उनके जटिल डिलीवर सिस्टम भी तैयार कर लिए हैं ! आज जहाँ भारत की एटॉमिक पालिसी "प्रथम अटैक नहीं " की है वहीँ पाकिस्तान अकेला देश है जिसने विश्व विरादरी के सम्मुख, ऐसी कोई कसम नहीं खायी है, अतः अगला युद्ध लड़ने और जीतने की कोशिश के लिए उनके पास एटॉमिक वार के अलावा और कोई विकल्प नहीं है !

                  तीन तीन बार हारने के बाद , भारत जैसे कट्टर दुश्मन से, युद्ध में जीतने का एक ही तरीका होगा की वह प्रथम अटैक की शुरुआत करे और वह शुरुआत होगी युद्ध में सुपरसोनिक क्रूज़ मिसाइल जिसमे एटॉमिक वारहेड लगे होंगे ! आजतक दुनियां में यह एटॉमिक वारहेड से युक्त क्रूज़ मिसाइल कभी उपयोग में नहीं लायीं गयीं ! एक बार छूटने के बाद,यह केवल मौत का स्वरुप हैं और वह भी मॉस डिस्ट्रक्शन की मौत , इसके अतिरिक्त और कुछ नहीं , वही जो हिरोशिमा ने झेला था, वह पूरा शहर भाप बन कर उड़ गया था और आज के वारहेड उससे सैकड़ों गुना अधिक शक्तिशाली हैं ! इस समय विश्व समाचारों के हिसाब से एटॉमिक हथियारों की संख्या रूस  के पास ८५००,अमेरिका ७७००, भारत ९० और पाकिस्तान के पास १०० हैं !

                  आजतक विश्व में , दो परमाणु शक्ति संपन्न देशों में कभी युद्ध नहीं हुआ उसका कारण सिर्फ यह है कि परिणाम स्वरुप सिर्फ महाविनाश नहीं होगा बल्कि दोनों और कोई नाम लेवा भी नहीं बचेगा !

दोनों देशों के पास मल्टी वार हेड एटॉमिक पॉवर युक्त आई सी बी एम् / आई आर बी एम्  मिसाइल हैं जो एक बार दागने के बाद रोकी नहीं जा सकतीं , आसमान में टार्गेट के ऊपर पंहुचने के बाद यह अपने आपको कई बमों में बदल कर अलग अलग शहरों पर गिरकर कहर बरपायेंगी !

भारत और पाकिस्तान अपने जन्म से ही पारंपरिक दुश्मन हैं ,जिसे बदकिस्मती से आजतक समाप्त करने के कोई प्रयास नहीं किये गए ! दोनों देशों की मीडिया और राजनैतिक पार्टियाँ इस आग में नया इंधन डालती रहती हैं ताकि उनका गुज़ारा होता रहे !

मेहरवानी के लिए, मिडिया और टीवी न्यूज़ देखकर ताल न ठोंकें और न देश भक्ति के जोश में, अपने आपको सर्व शक्तिशाली समझ , दूसरों पर आक्रमण करने की धमकी दें , इससे देश की, विश्व समुदाय में सिर्फ मज़ाक उड़ती है और हमारा उथलापन ज़ाहिर होता है ! हमें विश्वास रखना चाहिए कि हमारा देश बेहद शक्तिशाली देशों में से एक है , और एटॉमिक पॉवर युक्त सेना के होते, किसी देश द्वारा हराया नहीं जा सकता !

( चित्र गूगल से साभार )

Tuesday, August 6, 2013

ये लड़कियां -सतीश सक्सेना


सावन में, हरियाली तीजों का त्यौहार,लड़कियों के लिए बहुत महत्व रखता है  ! हरियाली तीज अथवा कजली पर विवाहित लड़कियों को घर (जो विवाह बाद ही समाज द्वारा, मायके में बदल दिया जाता है ) बुलाने का रिवाज़ है , और बेटियों को भेंट आदि दी जाती हैं !
विवाह के बाद, पूरे जीवन ये स्नेही बेटियाँ अपने पिता और भाई की तरफ आशा भरी नज़र से देखती हैं कि सावन में, उसके घर से  पिता अथवा  भाई ,उसे अपने घर ले जाने ,उसकी ससुराल आएगा !

आज के माहौल में, अधिकतर घरों में लड़कियों को वह स्नेह नहीं मिल पाता, जिसकी वे हकदार होती हैं , इसके पीछे अक्सर ननद भाभी के मध्य उत्पन्न कडवाहट ही अधिक होती है ! दुखद है कि माँ बाप के कमज़ोर होते होते, यह तेजतर्रार लड़कियां, धीरे धीरे अपने घर (मायके)  से बिलकुल कट सी जाती हैं !

अक्सर लड़कियां,अपने आपको, अपने भाई का सबसे बड़ा हितचिन्तक समझती हैं , नतीजा अनजाने में , बहू के प्रति, माँ और बेटी की आपस में खुसुर पुसुर शुरू हो जाती है, यही कडवाहट की पहली वज़ह होती है ! कोई भी लड़की यह नहीं चाहती कि उसके परिवार में ननद की दखलंदाजी हो, नतीजा एक रस्साकशी की बुनियाद, पहले दिन से ही, उनके घर में रख जाती है , और भुक्त भोगी होता है पति, जो बेचारा यह तय ही नहीं कर पाता कि वह क्या करे !

लड़कियों को चाहिए कि शादी के बाद वे,अपनी भाभी को, भाई से अधिक सम्मान , दिल से दें, मायके में अनाधिकार हस्तक्षेप न करके, अपने नए घर की परवाह करें और उसे संवारने में अपना समय लगाएं न कि पूरे जीवन के लिए अपनी  भाभी के घर में लड़ाई की नींव रखें , ऐसा होने पर यकीन करें, भाभी इस कष्ट को कभी भुला न पायेगी !याद रखने की आवश्यकता है कि कोई लड़की अपने ऊपर हर समय नज़र रखा जाना पसंद नहीं करेगी ! 

                  यह कभी नहीं भूलना चाहिए कि नयी बहू, को अधिक देर तक उसके हको से वंचित नहीं किया जा सकता और समझदार माता पिता कभी भी , आने वाली बच्ची पर अपनी इच्छाएं नहीं लादते बल्कि अपनी बेटी से अधिक उसे पहले दिन से प्यार करते हैं ! 

                  और आज जब मैं किसी बहिन को, अपने ही घर के ड्राइंग रूम में, मेहमान की तरह बैठे देखता हूँ तब मुझे बेहद तकलीफ होती है  !

अगर यह विषय अच्छा लगा हो तो यह भी पढ़ें ...क्लिक  करें  

Related Posts Plugin for Blogger,