Sunday, April 13, 2014

अब तो मंदिर के इश्तिहार छपाया करिये -सतीश सक्सेना

धर्म की आड़ में,दुश्मन को डराया करिये !
दहशते भीड़ को, वोटों से भुनाया करिये !

इसी  दुनियां  में , दरिंदे भी तो पाये जाते
कभी लोबान को,बस्ती में घुमाया करिये !

काश लड़ते हुए मंदिर औ मस्जिदों के लिए 
कोई  कबीर भी , मिलने को बुलाया करिये !

सियासी दावतें, अक्सर ही खूब छपती हैं , 
कभी गरीब को इफ़्तार, खिलाया करिये !

आजकल आपकी, हैवानियत के चरचे हैं !
अजी ये रात की बातें, तो छिपाया करिये !

17 comments:

  1. मंदिर का इश्तहार कैसे छपाया जाये
    पुजारी का कमीशन कहाँ पहूँचाया जाये
    करने को सब कुछ किया जा सकता है
    अपने बच्चों को कैसे ये सब सिखाया जाये
    भगवान तक पहूँचना तो मुमकिन नहीं
    उसके चेले चपाटों से घर को कैसे बचाया जाये ?

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  2. -सुंदर रचना...
    आपने लिखा....
    मैंने भी पढ़ा...
    हमारा प्रयास हैं कि इसे सभी पढ़ें...
    इस लिये आप की ये खूबसूरत रचना...
    दिनांक 14/04/ 2014 की
    नयी पुरानी हलचल [हिंदी ब्लौग का एकमंच] पर कुछ पंखतियों के साथ लिंक की जा रही है...
    आप भी आना...औरों को बतलाना...हलचल में और भी बहुत कुछ है...
    हलचल में सभी का स्वागत है...

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  3. धर्म का डर दिखा इंसान, रुलाया करिये !
    और इस डर को सरे आम,भुनाया करिये !
    एक धर्म दूसरी राजनीती (पॉवर ) इन दोनों का डर बताकर आसानी से मनुष्य पर राज किया जा सकता है, और सदियों से यही हो रहा है ! सार्थक पंक्तियाँ लगी !

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  4. धर्म का डर दिखा इंसान, रुलाया करिये !
    और इस डर को सरे आम,भुनाया करिये !
    क्या खूब! सदियों से यही तो हो रहा है। बढ़िया रचना।

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  5. वाह...शानदार !!

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  6. बहुत खूब...खूबसूरत प्रस्तुति...

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  7. सुन्दर रचना , बधाई ।

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  8. धर्म के नाम पर जितना अत्याचार और मार-काट हुई है उसके मूल में मनुष्य का अहंकार और स्वार्थ ही रहा है. यह वास्तविकता है कि वहाँ मानवीय नहीं केवल दानव लीला खेली गई है.

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  9. सटीक ... तीखे व्यंग
    बहुत खूब

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  10. प्रभावी व्यंग्य

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  11. धर्म का डर दिखा इंसान, रुलाया करिये !
    और इस डर को सरे आम,भुनाया करिये !
    आजकल तो धर्म को इसी काम में लिया जाता है !

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  12. धर्म का डर दिखा इंसान, रुलाया करिये !
    और इस डर को सरे आम,भुनाया करिये !

    bahut samyik aur sarthak rachna hai Satish ji …. yahi to ho raha hai aajkal

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  13. व्यंग्य की धार भी है और वर्त्तमान परिस्थितियों से उपजी पीड़ा भी... बहुत अच्छे!!

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  14. वाह क्या बात है ... करार व्यंग है .. तीखी धार ...

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- सतीश सक्सेना

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