Saturday, May 31, 2014

जाने कैसी नज़र लगी,खलिहानों को !-सतीश सक्सेना

मूरख जनता चुन लेती धनवानों को !
बाद में रोती, रोटी और मकानों को !

रामलीला मैदान में, भारी भीड़ जुटी,
आस लगाए सुनती, महिमावानों को !

काली दाढ़ी , आँख दबाये , मुस्कायें ,
अब तो जल्दी पंख लगें, अरमानों को !

रक्तबीज  शुक्राचार्यों  के , पनप रहे 
निंदा, नहीं सुनायी देती , कानों को !

दद्दा , ताऊ  कितने, गुमसुम रहते हैं !
जाने कैसी नज़र लगी, खलिहानों को !



नोट :  यह रचना आज जयपुर में छपी , बताने के लिए संतोष त्रिवेदी का आभार 
http://dailynewsnetwork.epapr.in/283149/Daily-news/04-06-2014#page/8/2 

Tuesday, May 27, 2014

अहंकार,अभिमान,को अपना स्वाभिमान बतलाये रखना - सतीश सक्सेना

श्रद्धा, निष्ठा, सत्य, प्रतिष्ठा, का सम्मान सजाये रखना !
तुम पर गीत लिखे हैं मैंने, इनकी लाज बचाये रखना !

चंचल मन काबू कर पाना इतना भी आसान नहीं पर 
निष्ठा पूजा याद रहे तो , कुछ विश्वास जगाये रखना !

वेद ऋचाएँ सुनते सुनते, बे मतलब का तर्क न करना !
आशय भले समझ न आये तो भी भ्रान्ति बनाये रखना !

जैसी भी हम किस्मत लाये , ये जीवन बेकार गया, पर
पति पत्नी की सुन्दर जोड़ी का आभास दिलाये रखना !

थके हुए नाविक अब तो नींद से बोझिल होती पलकें,
नज़र  दूर से ही आ जाओ , इतने दीप जलाये रखना !

Monday, May 26, 2014

हमको अपने ताल,समंदर लगतें हैँ -सतीश सक्सेना

भाषण देते, मस्त सिकंदर लगते हैं !
भोले वोटर, सचमुच बंदर लगते हैं !

भीड़तंत्र का किला, मीडिया ने जीता
नेताजी अब और , मुछन्दर लगते हैं !

और किसी के, रंग रूप से क्या लेना,
हमको इनके गाल, चुकंदर लगते हैं !

कंगूरों को, सर न झुकाया जीवन में !
चंदा , सूरज , घर के अंदर लगते हैं !

हमें तुम्हारी धन दौलत से क्या लेना,
हमको अपने ताल, समंदर लगते हैं !

Sunday, May 25, 2014

दुनियां वाले कैसे समझें , अग्निशिखा सम्मोहन गीत -सतीश सक्सेना

कलियों ने अक्सर बेचारे
भौंरे  को बदनाम किया !
खूब खेल खेले थे फिर भी  
मौका पा अपमान किया !
किसने शोषण किया अकेले, 
किसने फुसलाये थे गीत !
किसको बोलें,कौन सुनेगा,कहाँ से हिम्मत लाएं गीत !

अक्सर भोली ही कहलाये
ये सजधज कर रहने वाली !
मगर मनोहर सुंदरता में 
कमजोरी , रहती हैं सारी !
केवल भंवरा ही सुन पाये, 
वे  धीमे आवाहन  गीत !
दुनियां वाले कैसे समझें, कलियों के सम्मोहन गीत !

स्त्रियश्चरित्रं पुरुषस्य भाग्यम
देवो न जानाति कुतो मनुष्यः
शक्तिः एवं सामर्थ्य-निहितः 
व्यग्रस्वभावः , सदा मनुष्यः !
इसी शक्ति की कर्कशता में, 
पदच्युत रहते पौरुष गीत !
रक्षण पोषण करते फिर भी, निन्दित होते मानव गीत !

नारी से आकर्षित  होकर
पुरुषों ने जीवन पाया है !
कंगन चूड़ी को पहनाकर
मानव ने मधुबन पाया है !
मगर मानवी समझ न पायी, 
मंजुल मधुर समर्पण गीत !
अधिपति दीवारों का बनके , जीत के हारे पौरुष गीत !

निर्बल होने के कारण ही 
हीन भावना मन में आयी 
सुंदरता  आकर्षक  होकर  
ममता भूल, द्वेष ले आयी 
कड़वी भाषा औ गुस्से का 
गलत आकलन करते गीत ! 
धोखा खायें सबसे ज्यादा,  अपनी  जान गवाएं गीत !

दीपशिखा में चमक मनोहर
आवाहन  कर, पास बुलाये !
भूखा प्यासा , मूर्ख  पतंगा , 
कहाँ पे आके, प्यास  बुझाये  ! 
शीतल छाया भूले घर की,
कहाँ सुनाये जाकर गीत !
जीवन कैसे आहुति देते , कैसे जलते  परिणय गीत !

 (स्वप्न गीत के लिए )

Thursday, May 22, 2014

अब दुमदार,दलाल मीडिया - सतीश सक्सेना

पहले था , दिग्पाल मीडिया !
अब दुमदार,दलाल मीडिया !

जबसे मुंह में , खून लगा है !
तब से  है,कव्वाल मीडिया !

राजनीति  से,  बकरे  आये  ! 
करता खूब हलाल मीडिया !

एक इलेक्शन, के आने पर ! 
जम के मालामाल मीडिया !

मूरख जनता  को , भरमाये !
रोज बजाये  गाल  मीडिया !

Monday, May 19, 2014

खो रहे विश्वास को,बापस बुलाना चाहता हूँ -सतीश सक्सेना

सुलगते घर में,मधुर धारा बहाना चाहता हूँ ! 
हो रहे बरसों से ये,झगडे मिटाना चाहता हूँ !

मानवों को ज्ञान नफरत का पढ़ाया है बहुत
पंडितों  से दूर,इक बस्ती,बसाना चाहता हूँ !

साधुओं के रूप  में, शैतान सम्मानित न हो !
आस्था मासूम की,केवल बचाना चाहता हूँ !

जो भी जन्में साथ में,उनका भी हक़ पूरा रहे !
खो रहे विश्वास को,बापस बुलाना चाहता हूँ !

ढोंगियों ने देश को, बरबाद करके रख दिया !
मेरा घर खुशहाल हो ये गीत गाना चाहता हूँ !

Tuesday, May 6, 2014

दुम को हिलाते रहिये -सतीश सक्सेना

उजड़े अरमानों के ही , दीप जलाते रहिये !
हर सड़े फूल को , फ़िरदौस बताते रहिये !


हाथ जोड़े , नज़र  मुस्तैद , दिखाये  रहिये ! 
आँख नीची रखें और दुम को हिलाते रहिये !

कौन जानें वे आज ,घर से लड़ के आएं हो 
उनके हमदर्द हो ,आँखों को भिगाये रहिये !

जलने वाले भी तो , शैतान नज़र रखते हैं !
उनकी नज़रों से, जमा माल बचाये रहिये !

बंदगी क्या पता, अंजाम तक पहुँच जाए
हर इक महताब को, आदाब बजाते रहिये !

Saturday, May 3, 2014

आदत बदलो यार, नहीं तो जल्दी जाओगे -सतीश सक्सेना

                           डायबिटीज़, ब्लडप्रेशर, मोटापा, एसिडिटी एवं गैस यह सामान्यतः हर घर में मौजूद हैं , कारणों को जानने का न समय है और न रूचि , बस ड़ाक्टर ने, कुछ दवाएं खाने मे और बढ़ा दी हैँ !
हज़ारो वर्ष से मानव जमीन पर रह रहा है , प्रकृति के विपरीत, मानव जनित भोज्य सामग्री से, सबसे अधिक हानि मानव ने ही उठायी  है ! 
प्रकृति ने जीवात्माओं को जन्म के साथ ही,उसमें प्राकृतिक तौर पर, समझ विकसित कर दी थी !
  • हमें उसने लगातार,सांस लेने की  मशीनरी दी जिससे रक्त स्वच्छ रहे !प्राणस्वरूप हवा,जीने का आधार थी ! जिसकी आज हम कद्र नहीं करते हैं ! गहरी सांस लेने के भी फायदे हम भूल गये 
  • उसने बचपन मे, हमें माँ का दूध दिया , और कुछ समय बाद दूध सुखा कर हमारे दांत निकाले , जिससे अब हम ढूध छोंड़कर , हम अन्न , फल और पत्ते खा सकें ! प्रकृति द्वारा, माँ का दूध सुखाने का अर्थ, बड़े होते मानव  का अनावश्यक तेलीय दूध बन्द कर, अन्न फल सब्जियों पर आश्रित करना था !
  • प्राकृतिक भोजन में , तेल और और फ़ैट बेहद कम मात्रा में उपलब्ध थे , मगर इन्सान ने उसका  अधिक मात्रा में निकाल कर परांठे,समोसा,पूरी,लड्डू, एवम चीनी जैसे केमिकल आदि बनाकर खाने शुरु कर दिये जो निर्धारित और प्रकृतिक मात्रा से, बेहद अधिक खतरनाक थे !
  • प्रकृति ने मानव शरीर में , अपने आपको स्वस्थ करने के लिये सेल्फ हीलिंग सिस्टम दिया था , मगर इन्सान ने अपनी बुद्धि चलाते हुए, उसमें व्यवधान उत्पन्न करना शुरू कर दिया ! बुखार द्वारा शरीर अपने आपको ठीक करने का प्रयत्न करता है तब इन्सान की कोशिश बढे हुए टेंप्रेचर को कम करने की रहती है ! फोड़े द्वारा प्रकृति, शरीर के बढे हुए इन्फेक्शन को एक जगह केन्द्रित कर, उसे पस स्वरूप में बाहर निकालना चाहता है तब हमलोग उस फोड़ें से निज़ात पाने के लिये , उसे सुखाने का प्रयत्न करते हुए, शरीर मे बेहद खतरनाक एंटी बायोटिक्स एवम जान लेवा स्टीरॉइड , प्रवेश करा रहे होते हैं !हमने मानव शरीर के प्रतिरक्षा सिस्टम को केमिकल दवाओं द्वारा बरवाद  करने की कसम खा रखी है !
  •  पहले इन्सान को जीवन यापन के लिये रोज लगभग १० किलोमीटर पैदल चलना पड़ता था और अब इन्सान सब्जी लेने भी, कार से जाना चाहता है और पचास वर्ष पूरे करते करते,घुटनों का आपरेशन करा चुका होता है !
                             सो बुद्धिमान मित्रों,  मैने पिछले ६ माह से अपनी साइंटिफिक बुद्धि का कम प्रयोग करते हुए , प्राकृतिक वस्तुओँ पर निर्भरता बढ़ायी है एवम सुबह ४५ मिनट टहलने के अतिरिक्त , ४५ मिनट शुद्ध वायु को फेफड़ों में भरते और निकालते हुए , बन्द पड़े, जंग लगे फेफड़े खोलना शुरु किया है , इससे रक्त आश्चर्यजनक रूप से साफ़ हुआ है और ४ मंजिल  सीढियाँ चढ़ने में,  हांफना बन्द हो गया , क्या कहते हैं टचवुड  !! 
                             सबसे खतरनाक केमिकल चीनी चाहे वह किसी भी रूप मे हो , का त्याग हमेशा के लिये करके अपने  स्वास्थ्य  को, ३५ वर्षीय बनाये रखने में कामयाबी हासिल की है ! परांठे, समोसे , जलेबी और बेहद गंदे तरीके से बनायी मिठाइयां बंद कर मित्रों के साथ खूब हँसता हूँ व हंसाता हूँ !
इस वक्त ६० वर्ष की जवानी में,  डायबिटीज़ , गैस , एसिडिटी , बीपी , जॉइंटपेन , सरदर्द , तनाव, दांत और बालों  समस्याओं से मुक्त हूँ !  एलोपैथिक दवा व उपायों से हमेशा दूर रहता हूँ , यहां तक कि साबुन और टूथ पेस्ट  का उपयोग नहीं करता क्योंकि जब शेर अपने सबसे आवश्यक मज़बूत दांत कभी नहीं माँजते  तो मैं केवल इसलिए मांजू कि सब लोग क्या कहेंगे  ??
माय फुट !!

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