Thursday, December 18, 2014

इस्लाम की छाती पे , ये निशान रहेंगे - सतीश सक्सेना

लाशों पे नाचते तुम्हें,  यमजात कहेंगे !
शायर और गीतकार भी बदजात कहेंगे !

कातिल मनाएं जश्न,भले अपनी जीत का 
इस्लाम  की छाती पे, इन्हें  दाग़ कहेंगे !

इन्सान के बच्चों का खून,उनकी जमीं पर 
रिश्तों की बुनावट पे,हम आघात कहेंगे !

दुनियां का धर्म पर से, भरोसा ही जाएगा !
हम दूध मुंहों के रक्त से,खिलवाड़ कहेंगे !

महसूद, ओसामा  के नाम, अमिट हो गए 
हर  ज़ुल्म ए तालिबान,  ज़हरबाद कहेंगे !

जब भी निशान ऐ खून,हमें याद आएंगे 
इंसानियत के नाम , एक गुनाह कहेंगे !

Ref : https://www.theguardian.com/world/2014/dec/16/taliban-attack-army-public-school-pakistan-peshawar

21 comments:

  1. इंसानियत के दुश्मन कभी विजयी नहीं हो सकते,वे तो काफ़िर निकले.

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  2. दिन गुजरते जाएँगे, निशान पर धूल जमती जाएगी,
    वो कहाँ भूलेंगे इस निशान को जिनके घर के चिराग बुझ गए ।

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  3. दुनियां का धरम पर से ,भरोसा चला गया !
    इन दुधमुंहों के रक्त को , हम याद रखेंगे ..
    हर छंद धधकता हुआ ... जुल्म की इन्तेहा है ... मानव तो नहीं हो सकते ऐसे लोग ...

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  4. कातिल क्या समझेंगे इंसानियत की भाषा, अश्क का दर्द --दिल की गहराइयों तक उतरती आपकी अभिव्यक्ति

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  5. कातिल मनाएं जश्न,भले अपनी जीत का
    इस्लाम की छाती पे , ये निशान रहेंगे !.....sach me !!

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  6. जब भी निशान ऐ खून, तुम्हे याद आयेंगे
    इंसानियत के अश्क़ भी सोने नहीं देंगे !
    ..खून के आंसू रुलायेंगे ऐसी हैवानों को ....
    संवेदनशील रचना

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  7. इंतहा है
    खुद के पाले हुऐ
    साँपों का जहर
    खुद के लिये
    जहर भरा हुआ
    कैसे निकला है :(

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  8. .
    आदरणीय
    अच्छी रचना है मानवीय संवेदना से पूर्ण !
    साधुवाद !

    हम मानवता और संस्कार वाले हैं
    इसलिए ऐसे अमानवीय कृत्य की भर्त्सना के साथ-साथ
    दुखी परिवारों के साथ गहरी संवेदना और सहानुभूति रखते हैं...
    और आगे भी रखते रहेंगे...
    इस आशा में कि अब इनमें नये आतंकवादी ज़ेहादी नहीं जन्मेंगे...

    # बच्चे की जान ली जाए या बड़े की दर्द एक-सा ही होता है
    # आतंकवादी ज़ेहादी मुसलमान को मौत के घाट उतारे या यज़ीदी को
    ...या हिंदू को
    इंसानियत के प्रति गुनाह ही है ! गुनाह ही है ! गुनाह ही है !

    ये इंसान दिखते हैं तो इंसान बनें.. !!

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  9. संवेदनशील रचना !

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  10. इंसानियत पर यह घटना बदनुमा दाग छोड़ गई है जिसे कभी भी नहीं छुड़ाया जा सकेगा।

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  11. बहुत सुंदर एवं सामयिक ॥

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  12. बहुत सुन्दर प्रस्तुति

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  13. दुनियां का धरम पर से ,भरोसा चला गया !
    इन दुधमुंहों के रक्त को , हम याद रखेंगे ....वाकई...हम याद रखेंगे। बहुत बढ़ि‍या

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  14. दुनियां का धरम पर से ,भरोसा चला गया !
    इन दुधमुंहों के रक्त को , हम याद रखेंगे !

    सचमुच इस मार्मिक और हृदय विदारक घटना को कोई भुला नहीं सकता

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  15. दुनियां का धरम पर से ,भरोसा चला गया !
    इन दुधमुंहों के रक्त को , हम याद रखेंगे !

    महसूद, ओसामा के नाम,अमिट हो गए
    ये ज़ुल्म ऐ तालिबान , लोग याद रखेंगे ....manvta ko jhakjhorti...marmik..rachna..

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  16. बहुत खूब भाई साहब इस पीड़ा को आपके कलम की प्रतीक्षा थी

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  17. कविता का मुखड़ा बड़ा प्रभावित है,अंतिम छन्द जो कदापि भुलाया नहीं जा सकता। सुन्दर रचना।

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  18. दुनियां का धर्म पर से,भरोसा चला गया !
    इन दूध मुंहों के रक्त से , संवाद रखेंगे --दिल के दर्द को सार्थक शब्दों में व्यक्त कियें पर इन कातिलों को किसी धर्म से क्या।

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  19. यही पहचान बनती जा रही है !

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एक निवेदन !
आपके दिए गए कमेंट्स बेहद महत्वपूर्ण हो सकते हैं, कई बार पोस्ट से बेहतर जागरूक पाठकों के कमेंट्स लगते हैं,प्रतिक्रिया देते समय कृपया ध्यान रखें कि जो आप लिख रहे हैं, उसमें बेहद शक्ति होती है,लोग अपनी अपनी श्रद्धा अनुसार पढेंगे, और तदनुसार आचरण भी कर सकते हैं , अतः आवश्यकता है कि आप नाज़ुक विषयों पर, प्रतिक्रिया देते समय, लेखन को पढ़ अवश्य लें और आपकी प्रतिक्रिया समाज व देश के लिए ईमानदार हो, यही आशा है !


- सतीश सक्सेना

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