Sunday, June 29, 2014

अनु को मेरे पूरे प्यार के साथ -सतीश सक्सेना

विद्वानों में गिने जाते हम लोग, अक्सर जीवन की सबसे बड़ी हकीकत, मौत की याद नहीं आती जब तक सामने कोई हादसा न हो जाए ! 
आज अनु की जन्मदिन पर वह मनहूस दिन याद आ गया जब उसने अपने नन्हें अजन्में पुत्र के साथ अंतिम सांस ली थी ! वह अपने घर की सबसे प्यारी लड़की थी जिसका खोना हम कल्पना भी नहीं सकते मगर घर के सब बड़े बूढ़ों को छोड़ सबसे पहले, वही, यहाँ से चली गयी !

दूर देश जाना,  था उसने ,
पंखों से, उड़ जाना उसने 
प्यार बांटकर हँसते हँसते 
परियों सा खो जाना उसने 
स्वर्णपरी कुछ दिन आकर ही,
सबको सिखा गयी थी गीत !
कहाँ खो गयी, हंसी  तुम्हारी  ,किसने छीन लिया संगीत   ?

ऐसा लगता , हँसते गाते 
तुझको कोई छीन ले गया !
एक निशाचर,सोता पाकर 
घर से तुमको उठा ले गया !
जबसे तूने छोड़ा हमको, 
शोक मनाते  मेरे गीत !
सोते जगते, अब तेरी,  तस्वीर बनाएं मेरे  गीत !

काश कभी तो सोंचा होता 
इतनी  बुरी  रात आयेगी ,
नाम बदलते,तुझे छिपाते 
बुरी घडी भी कट जायेगी !
बड़े शक्तिशाली बनते थे ,बचा न पाए तुझको गीत ! 
रक्त भरे वे बाल तुम्हारे , कभी  न  भूलें मेरे गीत ! 

ऐसा पहली बार  हुआ था  
हंसकर उसने नहीं बुलाया 
हम सब उसके पास खड़े थे 
उसने हमको, नहीं बिठाया  !
बिलख बिलख कर रोये हम सब,
टूट न पाई उसकी नींद ! 
उठ जा बेटा तुझे जगाते , सिसक सिसक कर रोये गीत  !

कितनी सीधी कितनी भोली 
हम सब की हर बात मानती 
बच्चों जैसी, लिए सरलता,
स्वागत करने हंसती आती !
जब जब, तेरे घर पर जाते,  
तुझको ढूंढें मेरे गीत  !
हर मंगल उत्सव पर बच्चे, शोक मनाएं मेरे गीत  !

जाकर भी वरदान दे गयी 
श्री धर  पुत्री, दुनिया को !
खुद केशव की  रक्षा करके ,
दान दे गयी , दुनिया को !
बचपन अंतिम , साँसे लेता , 
सन्न रह गये सारे गीत !  
देवकि पुत्री के जीवन को ,बचा  न  पाए  मेरे  गीत  !

                          अनु के असमय जाने को याद करते समय, आज सोंच रहा था कि पिछले ३७ साल की नौकरी में लगभग हर चार वर्ष बाद एक ट्रांसफर हुआ है , इस वर्ष ऑफिस वाला आखिरी ट्रांसफर (रिटायरमेंट) भी होना है , अगर इसी क्रम में गिनता जाऊं तो शायद दुनियां से, ट्रांसफर होने में अधिक समय बाकी नहीं है ! फोटोग्राफी का बचपन से शौक रहा है , शायद मैं अकेला लेखक हूँ जो कि अपनी हर रचना के साथ अपना चित्र अवश्य लगाता है ताकि सनद और मुहर लगती रहे इन कविताओं और विचारों पर कि ये किसके हैं ! जाने के बाद हम सिर्फ अपने निशान छोड़ सकते हैं , और अगर वे अच्छे और गहरे हों तो अनु की तरह ही, हमें भी लोग याद करेंगे और आंसुओं के साथ करेंगे  !!  
love you sweet girl  !

Saturday, June 28, 2014

कौन जाने यह विधाता कौन है ? - सतीश सक्सेना

ऐसी दुनियां को बनाता कौन है ?
कौन जाने,यह विधाता कौन है ?

इस बुढ़ापे में, नज़र क़ाफ़िर हुई,
वरना ऐसे , गुनगुनाता कौन है ?

इश्क़ की पहचान होनी चाहिए
बे वजह यूँ, मुस्कराता कौन है ?

आपको तो, काफिरों से इश्क है !
वर्ना इनको मुंह लगाता कौन है ?

चलके वृन्दावन में ही पहचान हो 
काफिरों को घर बुलाता कौन है ?

Friday, June 20, 2014

विदेश जाने में डर..- सतीश सक्सेना

जीवन की आपाधापी में ३६ साल की नौकरी कब पूरी हो गयी,पता ही नहीं चला ! घर की जिम्मेवारियों और बच्चों के लिए साधन जुटाने में, समय के साथ दौड़ते दौड़ते अपने लिए समय निकालना बहुत मुश्किल रहा ! कई बार लगा कि जवानी में जो समय अपने लिए देना चाहिए शायद वह कभी दे ही नहीं पाए ! अक्सर इसका कारण पूर्व नियोजित लक्ष्य,बच्चों के भविष्य,की आवश्यकता पूरा करते करते धन का अभाव रहा अथवा अपने मनोरंजन के लिए आवश्यक हिम्मत और समय ही नहीं जुटा पाए !
बचपन में सुनता था कि जवाहर लाल नेहरु के कपडे पेरिस धुलने जाते थे ! धनाड्य लोगों के किस्से सुनकर उनके आनंद को, हम निम्न मध्यम वर्ग , महसूस कर, खुश हो लेते थे ! उड़ते हवाई जहाज की एक झलक पाने को, खाना छोड़कर छत पर भागते थे कि वह जा रहा है एक चिड़िया जैसा जहाज और फिर अपने सपने समेट कर, चूल्हे के पास आकर, रोटी खाने लगते थे ! उन दिनों उड़ते हवाई जहाज में बैठने की, कल्पना से ही डर लगता था !

पेरिस रेलवे स्टेशन 
गौरव अपनी कंपनी कार्य से, जब जब देश से बाहर गए हर बार उसका अनुरोध रहता कि पापा एक बार आप जरूर घूम कर आइये , विभिन्न देशों की संस्कृति, रहनसहन और खानपान  में  बदलाव आपको अच्छा लगेगा ! हर बार व्यस्तता और छुट्टी न मिलने का बहाना करते हुए मैं, उन्हें असली बात कभी नहीं बता पाता था !

मुख्य कारण दो ही थे, पहला पता नहीं कितना खर्चा कितना होगा और दूसरा विदेशियों के परिवेश में घुलने, मिलने, बात करने में, आत्मविश्वास की कमी ....
और यह भय इतना था कि अगर यूरोप के टिकट अचानक बुक नहीं किये जाते तो शायद मैं अपने जीवन काल में कभी विदेश यात्रा का प्लान नहीं बना पाता !
यह प्रोग्राम अचानक ही बन गया जब नवीन ने वियना से अपने माता पिता के साथ मुझे भी वियना आने का
वेनिस की पानी से लबालब गलियां 
निमंत्रण दिया था ! उसके पत्र मिलने के साथ ही, अप्पाजी ने, अपने साथ साथ मेरा  टिकट भी, मेरे द्वारा कभी हाँ कभी न के बावजूद , बुक करा लिए थे ! उस शाम आफिस से लौटने पर पहली बार लगा कि मैं वाकई यूरोप यात्रा पर जा रहा हूँ ! 
उसके बाद, सफर पर जाने के लिए आवश्यक, बीमा कराया गया ! 15 दिन के इस सफर के लिए, आई सी आई सी आई लोम्बार्ड ने  लगभग ५५०० रुपया लिया था ! इस बीमा के फलस्वरूप हमें बीमारी अथवा किसी अन्य  वजह से होने वाली क्षति का मुआवजा शामिल था !
मगर जब पहली बार, विदेश पंहुच गए तब जाकर पता लगा कि बेबुनियाद भय, आत्मविश्वास को किस कदर कम करता है ! अतः सोचा कि मित्रों में अपना अनुभव अवश्य बांटना चाहिए ताकि ऐसी स्थिति और लोग न महसूस करें !
वियना ट्राम 
अधिकतर मेरे मित्र लगभग हर वर्ष देश भ्रमण पर खासा पैसा खर्च करते हैं मगर विदेश जाने के बारे में प्लानिंग की छोड़िये, अपने घर में इस विषय पर चर्चा भी नहीं करते हैं और यह सब आत्मविश्वास और जानकारी के अभाव के कारण ही होता है !  

स्वारोस्की फैक्ट्री ऑस्ट्रिया 
शायद बहुत कम लोग जानते हैं कि विदेश जाएँ या न जाएँ मगर हर परिवार के पास पासपोर्ट होना बहुत आवश्यक है, यह एक ऐसा डोक्युमेंट हैं जिसके जरिये भारत सरकार आपके बारे में, यह सर्टिफिकेट देती है कि पासपोर्ट धारक भारतीय नागरिक है तथा इस परिचयपत्र में आपके नाम और पते के अलावा जन्मतिथि,  तथा जन्मस्थान लिखा होता है ! किसी भी देश में प्रवेश करने  की परमीशन(वीसा) के लिए, इसका होना आवश्यक है ! यह कीमती डॉक्यूमेंट आपके घर के पते और जन्मतिथि के साथ आपके परिचय पत्र की तरह भी भारत सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त है !

इंटरलेकन, स्विट्ज़रलैंड
यह जानना आवश्यक है कि विदेश यात्रा हेतु , अगर दो माह पहले, किसी भी देश की फ्लाईट टिकिट बुक करायेंगे  तो लगभग आधी कीमत में मिल जाती है ! दिल्ली से पेरिस अथवा स्वित्ज़रलैंड जाने का सामान्य आने जाने का एक टिकट, लगभग ३५ हज़ार का पड़ता है जबकि यही टिकट तत्काल लेने पर ६० हज़ार का आएगा ! सामान्यता एक अच्छा टूरिस्ट होटल ३००० रूपये प्रति दिन में आराम से मिल सकता है !
अगर आपकी ट्रिप ४ दिन की है तो एक आदमी के आने जाने का खर्चा लगभग मय होटल ४५०००.०० तथा भोजन और पब्लिक ट्रांसपोर्ट  मिलकर ५००००-६०००० रुपया

में ! अगर आप यही ट्रिप किसी अच्छे टूर आपरेटर के जरिये करते हैं तो आपका कुछ भी सिरदर्द नहीं, साल दो साल में  ५० - ६० हज़ार रुपया बचाइए और ४ दिन के लिए पेरिस, मय गाइड घूम कर आइये !

जहाँ तक खर्चे की बात है , हर परिवार में पूरे साल घूमने फिरने और बाहर खाने पर जो खर्चा होता है ,उसमें हर महीने कटौती कर पैसा बचाना शुरू करें तो कुछ समय में ही आधा पैसा बच जायेगा, बाकी का इंतजाम करने में बाधा नहीं आएगी !एक बार विदेश जाने के बाद आपके और बच्चों के आत्मविश्वास में जो बढोतरी आप पायेगे, उसके मुकाबले यह खर्चा कुछ भी नहीं खलेगा ! 
यूनाइटेड नेशंस , जेनेवा
अक्सर हम मरते दम तक अपनी सिक्योरिटी के लिए धन जोड़ते रहते हैं ,और बुढापे में , महसूस होता है कि जीवन में , और भी बहुत कुछ देख सकते थे जो  कर ही नहीं पाये और इतनी जल्दी जीवन की रात हो गयी ! मेरा अपना सिद्धांत है कि बेहद उतार चढ़ाव युक्त जीवन को, जब तक जियेंगे, हँसते मुस्कराते जियेंगे ! एक बात हमेशा याद रखता हूँ कि
  
" न जाने किस गली में जिन्दगी की शाम हो जाए ..."
        
विदेश जाकर अच्छी इंग्लिश न बोल पाने के लिए न बिलकुल न डरें , आप वहाँ पंहुच कर पायेंगे कि अधिकतर जगह पर, इंग्लिश जानने वाले बहुत कम हैं ! आपको लगेगा कि आप ही सबसे अच्छी इंग्लिश / अंगरेजी बोलते हैं :-))
जिंदगी जिंदादिली का नाम है !!

Monday, June 16, 2014

उनको द्वारे पे ही अल्लाह याद आएंगे -सतीश सक्सेना


आज हम मुद्दतों के बाद , वहाँ जाएंगे !
ये तो तय है ,वे मुझे देख के घबराएंगे !

एक अर्से के बाद,दर पे उनके आया हूँ !
सामने पा ,उन्हें अल्लाह  याद आएंगे !

काश उस वक़्त,सहारे के लिए हो कोई !
वे मुझे  देख के हर हाल, लडख़ड़ायेंगे !

वे तो शायद मुझे, पहचान ही नहीं पाएं !
जवां आँखों से छिने ख्वाब याद आएंगे !

यादें उनको तो वहीँ छोड़ के आना होगा !
वरना मिलने पे तो , वे होंठ थरथराएँगे !

Sunday, June 15, 2014

अलंकार,श्रंगार बिना हम दिल की बातें करते हैं ! -सतीश सक्सेना

ओठों पर आ जाए जो उस गीत की बातें करते हैं !
जो मन को छू जाये उस संगीत की बातें करते हैं !

अम्मा दादी नानी बाबा से  हम चलना सीखे हैं ,
स्नेही आँचल में कटे , अतीत की बातें करते हैं !

जीवन भर तस्वीर संजोये , लेकिन ढूंढ न पाए हैं,
अपने सपनों में आये उस मीत की बातें करते हैं !

हमको कौन शाबाशी देगा , सन्नाटों में रहते  हैं !
कब्रों के संग बैठ जमीं से, प्रीत की बातें करते हैं !

कंगूरों से  रही लड़ाई ,  इंसानों से प्यार किया !
ऐसे बुरे समय में भी हम, जीत की बातें करते हैं ! 

Wednesday, June 11, 2014

अगर याद ईश्वर की आये, माँ के पैर दबाना सीख ! - सतीश सक्सेना

ज्ञान सदा सम्मानित होगा खूब पुस्तकें पढ़ना सीख !
पुस्तक पढ़ने से पहले ही,बच्चे ध्यान लगाना सीख !

कड़ी धूप में, बहे पसीना, हार न माने, जीना सीख !
प्रतिद्वंदी फुर्तीला होगा , लेकिन पाँव बढ़ाना सीख !

हंसकर करें हमेशा स्वागत, मित्रों का अपने दरवाजे 
सारे धर्मों का,आदर कर,साथ बैठ कर,खाना सीख !

जब भी जीना लगे असंभव,ढृढ़ निश्चय ले आंसू पोंछ
बिना रुके,मंजिल पाओगे,कछुवे जैसा चलना सीख !

दुःख में कभी नहीं घबराना,अपने हाथ नहीं फैलाना
अगर याद ईश्वर की आये , माँ के पैर दबाना सीख !


Monday, June 9, 2014

इंतज़ार है, क्षितिज में कबसे, काले, घने, बादलों का

इंतज़ार है ! क्षितिज में कबसे,काले घने,बादलों का !
पृथ्वी, मानव को सिखलाये, पाठ जमीं पर रहने का !

गर्म  हवा के लगे, थपेड़े, 
वृक्ष न मिलते राही  को ,
लकड़ी काट उजाड़े जंगल 
अब न रहे ,सुस्ताने को !
ऐसे बिन पानी, छाया के, 
सीना जलता जननी  का  ! 
रिमझिम की आवाजें सुनने,तडपे जीवन धरती का !

चारो तरफ अग्नि की लपटें
निकलें , मानव यंत्रों   से !
पीने का जल,जहर बनाये   
मानव  अपने  हाथों  से  !
डेली न्यूज़ के सौजन्य से , अच्छा लगता है जब लोग
बिना भेजे, रचना को छपने योग्य समझे !आभार !
मां के गर्भ को खोद के ढूंढे ,
लालच होता रत्नों का !
आखिर मां भी,कब तक देगी संग,हमारे कर्मों का !

उसी वृक्ष को काटा हमने   
जिस आँचल में,  सोते थे ! 
पृथ्वी  के आभूषण, बेंचे 
जिनमें  आश्रय  पाते  थे !
मूर्ख मानवों की करनी से, 
जलता छप्पर धरती का !
आग लगा फिर पानी ढूंढे,करता जतन,  बुझाने का !

जननी पाले बड़े जतन से
फल जल भोजन देती थी !
शुद्ध हवा, पानी के बदले   
हमसे प्यार , चाहती  थी !
दर्द  से तडप रही मां घर में, 
देखे प्यार मानवों का !
नईं कोंपलें , सहम के देखें , साया मूर्ख मानवों का !

जल से  झरते, झरने सूखे 
नरम मुलायम पत्ते, रूखे 
कोयल की आवाज़ न आये 
जल बिन वृक्ष, खड़े हैं सूखे
यज्ञ हवन के, फल पाने को,  
है आवाहन  मेघों का !
हाथ जोड़ कर,बिन पछताये,इंतज़ार बौछारों का !

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