सहज निर्मल मुस्कराहट से धरा गुलज़ार लिख दूँ !
एक दिन उन्मुक्त मन से पास आकर बैठ जाओ
और बोलो नाम तेरे, स्वर्ग का अधिकार लिख दूँ !
काव्य अंतर्मन हिला दे, शुष्क मानव भावना में ,
समर्पण संभावना को प्यार का उपहार लिख दूँ !
मुक्त निर्झर सी हंसी पर, गर्व पौरुष का मिटा दूँ ,
तुम कहो तो मानिनी, अतृप्त की मनुहार लिख दूँ !
यदि तुम्हें विश्वास हो, अनुराग की गहराइयों का !
व्यास का स्मरण कर, ऋग्वेद का विस्तार लिख दूँ !
ATIIIIIIIIII SUNDER...........SADHUWAD. ........SAADAR NAMAN. .......JAI MAA SHAARDE.
ReplyDeleteखूब लिखा है , बहुत उम्दा
ReplyDeleteयदि तुम्हे विश्वास हो, अनुराग की गहराइयों का !
ReplyDeleteव्यास का स्मरण कर,ऋगवेद का विस्तार लिख दूँ !
..बहुत खूब..विश्वास पर दुनिया कायम है
एक दिन उन्मुक्त मन से पास आकर बैठ जाओ
ReplyDeleteऔर बोलो नाम तेरे, स्वर्ग का अध्याय लिख दूँ ---वाह अद्भुत भाव,खूबसूरत शब्द।
bahtareen ,bahut sunder likha !!
ReplyDeleteएक दिन उन्मुक्त मन से पास आकर बैठ जाओ
ReplyDeleteऔर बोलो नाम तेरे, स्वर्ग का अध्याय लिख दूँ !
सकारात्मक प्रेरणा अक्सर आपके पास ही होती है,
तभी तो इतने सुन्दर गीत रचे जाते है, बहुत पसंद आयी
यह रचना !
समर्पण की सम्भावना के ये स्वर्णिम अध्याय ही तो हैं .मानवीय संवेदना के गायक . जीवन (और दुनिया भी) इसी तरह हरा-भरा रहता है . .
ReplyDeleteआह! अद्भुत गान।
ReplyDeleteमनु और श्रद्धा का प्रेमालाप स्मरित हो गया।
ह्रदय से बहुत-बहुत बधाई।
आपकी सामर्थ्य - वाह !
ReplyDeleteबहुत ही सूंदर...
ReplyDeleteसाथ में भाषा और भाव की गहरी समझ.
मज़ा अ गया..
वाह ! बहुत सुंदर भाव...गंगा जल से पावन और हिम शिखरों से विमल..
ReplyDeleteमुक्त निर्झर सी हंसी पर,गर्व पौरुष का मिटा दूँ ,
ReplyDeleteतुम कहो तो मानिनी,अतृप्त की मनुहार लिख दूँ !
यदि तुम्हे विश्वास हो, अनुराग की गहराइयों का !
व्यास का स्मरण कर,ऋगवेद का विस्तार लिख दूँ !
वाह्ह बहुत ही खुबसूरत | मन को छू गयी आपकी ये रचना | बधाई
यदि तुम्हे विश्वास हो, अनुराग की गहराइयों का !
ReplyDeleteव्यास का स्मरण कर,ऋगवेद का विस्तार लिख दूँ !
वाह ! बेहतरीन रचना।
यदि तुम्हे विश्वास हो, अनुराग की गहराइयों का !
ReplyDeleteव्यास का स्मरण कर,ऋगवेद का विस्तार लिख दूँ !
विश्वास और अनुराग ही तो काव्य का विस्तार करते हैं।
लीक से हट कर रची गई एक सुंदर रचना ।
जो सच है वो सच में सच लिख दो :)
ReplyDeleteजिसको लिखने की हिम्मत
किसी में नहीं वो हिम्मत लिख दो
कटोरों में चिपकी हुई
च्म्म्मचॉं को छोड़ कर कभी
कुछ साफ सी सीधी साधी
प्लेटें भी कभीए लिख दो :)
सारगरभित रचना
ReplyDeleteमाननीय सतीश जी
ReplyDeleteआपकी कविताओं को पढ़कर आनंद आ जाता है, आपकी कलम सदैव सृजन के साहस को जीवंत रखे।
आपका
Awww... I wish yeh mere liye hota :], Its just TOO GUD!
ReplyDeleteArvind ki chinta ki jaroorat nahin woh sab ko peeche chod dega . sab chota mehsoos karenge uske samne . Har chaal ko badi chaal se maat dega.
ReplyDeleteBht hi umda
ReplyDeleteवाह अद्भुत
ReplyDeleteबेहतरीन गीत।
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ReplyDeleteमुक्त निर्झर सी हंसी पर,गर्व पौरुष का मिटा दूँ ,
तुम कहो तो मानिनी,अतृप्त की मनुहार लिख दूँ !
वाह!
Bahut hi shaandaar sir
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