Thursday, October 13, 2016

सिर्फ दिखावे के उत्सव , सद्भाव ख़त्म हो जाते हैं - सतीश सक्सेना

जहाँ पूजा का हो अपमान
वहां बन जाते कालिदास
जहाँ प्रीति का हो उपहास
वहीं पैदा हों तुलसी दास
इतने गहरे तीर , मृदुल 
आवेग ख़त्म कर जाते हैं !
चुभते तीखे शब्दों से, अनुराग ख़त्म हो जाते हैं !

जहाँ परिवार मनाये शोक 
जन्मते ही कन्या को देख 
बुढ़ापे में बन जाते बोझ 
पुत्र पर,कैसे जीवनलेख
इन रिश्तों में वर्चस्व हेतु , 
संपर्क ख़त्म हो जाते हैं !
अपना अपना हिस्सा ले,म्बन्ध ख़त्म हो जाते हैं !

जहाँ सन्यास कमाए नोट 
देश में  बेशर्मी के साथ ! 
जहाँ संस्कार बिके बाजार
नोट ले बड़ी ख़ुशी के साथ
रात्रि जागरण में कितने, 
विश्वास  ख़त्म हो जाते हैं !  
सिर्फ दिखावे के उत्सव , सद्भाव ख़त्म हो जाते हैं !

साधू सन्यासी करते होड़
देश में व्यापारी के साथ 
अनपढ़ों नासमझों के देश 
भव्य अवतारी बनते रोज, 
धन के लालच में पड़कर  
ईमान ख़तम हो जाते हैं !
धर्माचार के साये में , विश्वास  ख़त्म हो जाते हैं !

8 comments:

  1. वर्तमान से रूबरू कराती सुन्दर कविता .....

    ReplyDelete
  2. जिस तेजी से समाज में बदलाव आया है उसका असर जीवन मूल्यों पर भी पड़ा है !
    यथार्थ चित्रण किया है रचना में, बहुत सुन्दर !

    ReplyDelete
  3. अपना अपना हिस्सा ले,सम्बन्ध ख़त्म हो जाते हैं !
    बहुत सटीक एवं यथार्थपरक.

    ReplyDelete
  4. सच तो कड़वा ही होता है सर - प्रशंसनीय प्रस्तुति

    ReplyDelete
  5. गिरे हुये जीवन-मूल्यों का सही और दुखद चित्रण -शोचनीय स्थिति है .

    ReplyDelete
  6. सुन्दर रचना

    ReplyDelete
  7. बहुत ही उम्दा ..... बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति .... Thanks for sharing this!! :) :)

    ReplyDelete

एक निवेदन !
आपके दिए गए कमेंट्स बेहद महत्वपूर्ण हो सकते हैं, कई बार पोस्ट से बेहतर जागरूक पाठकों के कमेंट्स लगते हैं,प्रतिक्रिया देते समय कृपया ध्यान रखें कि जो आप लिख रहे हैं, उसमें बेहद शक्ति होती है,लोग अपनी अपनी श्रद्धा अनुसार पढेंगे, और तदनुसार आचरण भी कर सकते हैं , अतः आवश्यकता है कि आप नाज़ुक विषयों पर, प्रतिक्रिया देते समय, लेखन को पढ़ अवश्य लें और आपकी प्रतिक्रिया समाज व देश के लिए ईमानदार हो, यही आशा है !


- सतीश सक्सेना

Related Posts Plugin for Blogger,