Thursday, February 9, 2017

हम ब्लॉक माइंड देसी लोग : सतीश सक्सेना

महज़ 50 वर्ष पहले हमने ( देश का 95 प्रतिशत आम जन ) अपने गांव कस्बे में महाजन, ग्राम प्रधान,ठाकुर साहबों का रुतबा देखा था , उस समय उनकी शान शौकत देख मन में कसक उठती थी कि एक दिन हम भी धनवान बनेंगे ! और आज जब हम संपन्न हुए तो अधिकतर ने अपनी पूरी जिंदगी धन की गड्डियों इकट्ठा करने और उसे गिनकर खुश रहने में गुजार दी वहीँ कुछ हम जैसों ने अपने धन को, सुख साधन जोड़ने और भोगने में लगाया ! पहले प्रकार के लोग जहाँ धन को रखे हुए , उसका बिना उपयोग किये , उसे देख देख कर अपने आपको महाजन का सुख देते रहे वहीँ हम जैसे लोग एयरकंडीशंड घर और कार और ऑफिस , क्लब , पार्टी , और ऐशो आराम का जीवन गुजारते अपने आपको राजा समझते रहे ! इन पचास सालों में यह सब तो मिला मगर हमने क्या खो दिया यह समझने में बहुत देर कर दी , पचास का होते होते , किसी के घुटने बदल कर स्टील के लगा दिए गए तो किसी को जीवनभर परहेज की हिदायतें , ऑपरेशन के बाद मिल गयीं , कइयों का हुस्न
और व्यक्तित्व इस बीच बदलकर इतना भयावह बन चुका था जिसे शीशे में देख भरोसा नहीं होता था कि आठ दस वर्ष में वह जवानी कहाँ गायब हो गयी जिसे देख कभी गर्व होता था ! बस हर सप्ताह डॉ की हिदायतें और गोली समय पर खा लेना जी ...यही जिंदगी रह गयी थी !! कोई भी घर हालचाल जानने आता तो वह यह अवश्य हिदायतें देता कि दवा लाये या नहीं ? जैसे यह ब्रह्मवाक्य हो हम देसी ठस बंद दिमागों का !! मामूली समझ और बंद दिमाग लिए यह वाक्य हम सबके मन में जम गया है कि अस्वस्थ होने के साथ दवा लेना आवश्यक है , दवा लेते ही हम ठीक हो जायेंगे और फिर जलेबी,समोसे और आइसक्रीम खा सकेंगे ! आज सुबह दौड़ते हुए ग्रेटर नॉएडा के नजदीक एरिया में , आलिशान अपार्टमेंट और लंबी एयर कंडीशंड कारों के बीच से दौड़ता हुआ मैं, अपनी बुद्धि को धन्यवाद् कहते हुए अरबी मुहाबरे " देर आयद दुरुस्त याद " कहते अपनी पीठ ठोकते इन आलसी मानवों पर तरस खा रहा था जो मुझ अकेले को ट्रैफिक में दौड़ते हुए, पागल या पुलिस रिक्रूटमेंट का सिपाही उम्मीदवार समझ रहे होंगे ! पिछले तीस वर्षों की अकर्मण्यता और बिना किसी हिले डुले व्यायाम के , हमारी आंतें, लीवर , किडनी एवं ह्रदय अगर आज भी भोजन को पचाकर हमें पोषक तत्व दे रही हैं तो इसमें दवा का योगदान न होकर शरीर की अपनी प्रतिरक्षा शक्ति है जिसके कारण यह शरीर, इस अकर्मण्यता के बावजूद बीमार अवयवों को लेकर घिसट भर पा रहा है जबकि हम सोंचते हैं कि हम स्वस्थ हैं और ऐश कर रहे हैं ! और यह प्रकृति प्रदत्त मानव शरीर इतना मजबूत है कि हर उम्र में हर परिस्थिति में अपने को ढाल सकता है , तथाकथित वृद्धावस्था से निजात पाना हो तो जवानों का आचरण शुरू करने की हिम्मत करके आजमाइए इसे , कुछ दिनों में ही कायाकल्प महसूस करने लगेंगे ! और इसके लिए सिर्फ दृढ संकल्प चाहिए, दवा की गोली नहीं ! अगर सीढियां चढ़ने में हांफ रहे हैं तो मान लीजिये कि आपका ह्रदय संकट में है , इसकी रक्षा करें , कल से वाक करते हुए , आखिरी दो मिनट बिना हांफे दौड़ कर ख़त्म करें, आपका ह्रदय पूरे सौ वर्ष आपका साथ देगा ! याद रखें रनिंग , डायबिटीज , को तो ठीक करता ही है बल्कि ह्रदय की सबसे अच्छी एक्सरसाइज है !

Tuesday, February 7, 2017

मानवीय प्रतिरक्षा शक्ति : सतीश सक्सेना

आज को पोस्ट बेहद महत्वपूर्ण है उनके लिए जो इसे ध्यान से पढ़ें और मनन कर समझ सकें हो सकता है यह उनके जीवन में एक नया अध्याय ही खोल दे , विषय सामान्य है शायद सभी जानते होंगे मगर शायद ही किसी ने इसपर कभी ध्यान दिया हो !
मेरा यह दृढ विश्वास है कि मानव शरीर लगभग 100 वर्ष जीने के लिए डिज़ायन किया हुआ है , और इसके लिए इसे किसी दवा, गोली या डॉक्टर की आवश्यकता नहीं होती बशर्ते हम इसके साथ अत्याचार न करें !
मानव लगभग एक लाख वर्ष से इस धरती पर है और इसने लगभग दस हज़ार वर्ष पहले सामाजिक ढर्रे में जीने का प्रयत्न शुरू कर दिया था ! उस वक्त हम लोग पानी के किनारे किसी गुफा में छिपकर रहना सीखे थे , जहाँ रोज भोजन के इंतज़ाम के लिए लगभग 10 किलोमीटर रोज शिकार के पीछे दौड़ना अथवा खूंखार जानवरों से जान बचाने के लिए भागना पड़ता था तब कहीं परिवार के लिए एक दिन के खाने का इंतज़ाम हो पाता था इसप्रकार उन दिनों पैरों का ,शरीर में लगभग पचास प्रतिशत हिस्सा होने की तरह, उनका योगदान जीवन रक्षा में लगभग इतना ही था ! आधा दिन दौड़ते रहने से human core की, जिसमें शरीर के महत्वपूर्ण अवयव थे, न केवल बेहतरीन एक्सरसाइज हो जाती थी बल्कि मसल्स भी खासे बलिष्ठ व कसे होते थे  ! हमारे पास मजबूत हाथ पैरों के साथ साथ, अन्य जीवों की तुलना में अधिक समझदार मानवीय मस्तिष्क, ने हमें अजेय बनाया था और हम जंगल में सबसे शक्तिशाली भी माने जाते थे !
आज हमने, अपने आलसी मन और स्वभाव के कारण , परिश्रम के शॉर्टकट तलाश कर लिए, नतीजा हमारा मजबूत बदन दयनीय हो गया है , आज के इंसान के पीछे अगर कुत्ता भी भागे तो वह बचने के प्रयत्न में निश्चित ही जमीन पर मुंह के बल गिरा नजर आएगा  क्योंकि उसके हाथ और पैरों में वह शक्ति नहीं बची जिसके लिए वह मशहूर था !

इस कमजोरी के फलस्वरूप मानव में अपने जीवन रक्षा के लिए भय का संचार हुआ फलस्वरूप मेडिकल बिजिनिस की शुरुआत हुई ! आज मेडिकल साइंस की तथाकथित कामयाबी पर फूल कर कुप्पा होते मानव को शायद यह सोंचने की भी फुरसत नहीं कि आज भी मानव संरचना और जटिल मस्तिष्क के बारे में मेडिकल साइंस को एक प्रतिशत भी जानकारी नहीं है अन्यथा कबका कृत्रिम मानव निर्माण हो चुका होता !
हर शारीरिक प्रतिक्रिया बुखार , खांसी , जुकाम जैसी सामान्य मानवीय प्रतिक्रियाओं  (जो कि वास्तव में मानव प्रतिरक्षा शक्ति द्वारा चलाये गए जीवाणु संक्रमण के आंतरिक उपचार मात्र हैं ) को जिसे मानव, बीमारी का नाम देता है, भयवश समाप्त करने के लिए , एंटी बायोटिक्स और खतरनाक स्टीरॉइड्स का प्रयोग किया जाता है , जिसके जहरीले असर से लड़ते लड़ते मजबूत मानवीय रक्षा तंत्र बेकार हो जाता है !
मानवरक्षा के लिए शरीर में प्रतिरक्षा तंत्र हमेशा मजबूत और चौकन्ना रहा है, कोई भी बाहरी आक्रमण , गोली , घाव , या आंतरिक व्यवधान जैसे अनियंत्रित टिश्यू बढ़वार को इसी प्रतिरक्षा तंत्र द्वारा प्रभावी तौर पर निष्क्रिय किया जाता रहा है और उसके लिए किसी डॉ की या ऑपरेशन की आवश्यकता, शरीर को नहीं पड़ती , हजारो सैनिकों के शरीर में युद्ध के समय घुसी जहरीली गोलियों के चारो और एक ऐसा मजबूत टिश्यू आवरण लपेट दिया जाता है जिसे भेदकर वह जहर अथवा अनियंत्रित टिश्यू का गुच्छा ( कैंसर ) बाहर निकल ही न सके ! लाखों लोग जिनपर मेडिकल बिजिनिस की नजर नहीं पड़ी , आज भी बड़े बड़े ट्यूमर लेकर जिन्दा ही नहीं हैं बल्कि अपने सारे कार्य आसानी से कर रहे हैं , मारा वह गया जो घबराकर इन्हें चेक कराने डॉ के पास पंहुच गया और ऑपरेशन से शरीर प्रतिरक्षा शक्ति द्वारा किये गए इस प्रयास को काट कर फेंक दिया गया !
मैंने रिटायर होने के बाद नयी नौकरी ज्वाइन करने की न सोंच अपने शरीर की इस शक्ति को परखने का निश्चय किया और संकल्प लिया कि पुराणों में लिखी गयी भीष्म पितामह की शक्ति प्राप्त क्यों न करूँ कि जब चाहूँ तब मरुँ  ..... 
मैंने अपने पूरे जीवन में कभी व्यायाम , स्कूल में पीटी आदि तक कभी नहीं की , मैंने अपने शरीर की इस प्रकृति प्रदत्त शक्ति को परखने का निश्चय किया और तमाम बीमारियों ( बढ़ा कोलस्ट्रोल, ब्लड प्रेशर , क्रोनिक खांसी, ब्रोंकाइटिस, खराब फेफड़े , क्रोनिक कॉन्स्टिपेशन, कमजोर आँखे, स्पोंडिलायटिस, मानसिक तनाव एवं कमजोर हड्डियों के साथ दिल्ली की प्रदूषित हवा में रहते हुए , बिना किसी टॉनिक और बेहतरीन भोजन के अपने बीमार कमजोर शरीर की कायाकल्प  करने में सफलता प्राप्त की !
पहली बार जब भागने गया था तब मुझे याद है कि 500 मीटर वाक् और 30 मीटर जॉगिंग कर पाता था , मगर मन में दृढ संकल्प लिया था कि मैंने एक वर्ष के अंदर स्वेटर जैकेट के बिना सिर्फ बनियान में कड़ाके की ठण्ड में कम से कम 2 km दौड़ना है और मैं सफल रहा मानवीय शरीर वाकई बेहद ताकतवर सिद्ध हुआ , सिर्फ स्वच्छ हवा को अंदर बाहर निकालते हुए बंद फेफड़े पूरे खोलने में सफल ही नहीं रहा , दौड़ते हुए पेट के अंदर, अवस्थित शरीर के महत्वपूर्ण अंग, बेहतरीन तौर पर दौड़ने से एक्टिव हो गए , लगा जैसे 25 वर्ष का जीवन दुबारा पा लिया हो !
सबसे महत्वपूर्ण तथ्य याद रखें , डरना नहीं है , बिना डरे हुए अपनी जीवनीशक्ति पर विश्वास करें कि वे जियेंगे और कायाकल्प कर जवानों की भांति जियेंगे, इसके लिए सिर्फ हंसना , हवा , जल और प्राकृतिक भोजन काफी है हमारा जीवन बदलने के लिए , दवाओं पर निर्भरता हमारे शरीर की शक्ति को कमजोर बनाता है , हमें सिर्फ अपनी शारीरिक शक्ति पर भरोसा करना है ! एकबार ठान लें कि मैं यह कर सकता हूँ , मैं स्वस्थ हूँ और रहूँगा , अपने आपको कभी नेगेटिव सलाह न दें , बुढापा या वृद्धावस्था कुछ नहीं होती है , इसे नकारें आपमें उत्साह बना रहना चाहिए जिस दिन नयी रुचियां अथवा उत्साह समाप्त हुआ समझिये बुढापा आ गया ! उम्र बढ़ने के साथ हम इनएक्टिव होते जाते हैं , हमारे हड्डियों के जॉइंट्स , दांत अथवा घुटने उपयोग न करने के कारण कमजोर होते जाते हैं , मैंने इन सबका उपयोग करते हुए इन्हें वृद्धावस्था में सक्रिय कर दिया और यह मजबूत हो गए किसी भी नौजवान की तरह ! अपनी शक्ति पर भरोसा होने के कारण मुझे शरीर की किसी शक्ति का क्षरण महसूस आज तक नहीं हुआ !
आप अपने शरीर को दौड़ना सिखाएं , ध्यान रखिये यह काम धीरे धीरे ही सिखाना है अन्यथा शरीर इसे रिजेक्ट कर देगा , शुरू में शरीर की सामर्थ्य  के हिसाब से ही उसे मेहनत कराना शुरू करें , जबरदस्ती न करें हाँ विश्वास बनाये रखें कि मैं यह कर सकता हूँ , जल्द देखेंगे कि वाकई आपके शरीर ने यह कर दिखाया ! 
स्वच्छ हवा में उपलब्ध ऑक्सीजन रनिंग या वाक् के समय फेफड़ों के प्रदूषण को दूर करते हुए खून को पतला व अधिक शक्तिशाली बनाती है, जिससे ह्रदय रोग व् डायबेटीज़ का भयावह ख़तरा समाप्त होगा !  

Related Posts Plugin for Blogger,