किसी कवि की रचना देखें,
दर्द छलकता, दिखता है !
प्यार, नेह दुर्लभ से लगते ,
शोक हर जगह मिलता है !
क्या शिक्षा विद्वानों को दें ,
रचनाओं में , रोते गीत !
निज रचनाएँ , दर्पण मन का, दर्द समझते, मेरे गीत !
अपना दर्द किसे दिखलाते ?
सब हंसकर आनंद उठाते !
दर्द, वहीँ जाकर के बोलो ,
भूले जिनको, कसम उठाके !
स्वाभिमान का नाम न देना,
बस अभिमान सिखाती रीत ,
अपना दर्द, उजागर करते, मूरख बनते मेरे गीत !
आत्म मुग्धता, मानव की ,
दर्द छलकता, दिखता है !
प्यार, नेह दुर्लभ से लगते ,
शोक हर जगह मिलता है !
क्या शिक्षा विद्वानों को दें ,
रचनाओं में , रोते गीत !
निज रचनाएँ , दर्पण मन का, दर्द समझते, मेरे गीत !
अपना दर्द किसे दिखलाते ?
सब हंसकर आनंद उठाते !
दर्द, वहीँ जाकर के बोलो ,
भूले जिनको, कसम उठाके !
स्वाभिमान का नाम न देना,
बस अभिमान सिखाती रीत ,
अपना दर्द, उजागर करते, मूरख बनते मेरे गीत !
आत्म मुग्धता, मानव की ,
कुछ काम न आये जीवन में !
गर्वित मन को समझा पाना ,
बड़ा कठिन, इस जीवन में !
जीवन की कड़वी बातों को,
कहाँ भूल पाते हैं गीत !
हार और अपमान याद कर, क्रोध में आयें मेरे गीत !
जब भी कोई कलम उठाये
अपनी व्यथा, सामने लाये ,
खूब छिपायें, जितना चाहें
फिर भी दर्द नज़र आ जाये
मुरझाई यह हँसी, गा रही,
चीख चीख, दर्दीले गीत !
अश्रु पोंछने तेरे, जग में, कहाँ मिलेंगे निश्छल गीत ?
अहंकार की नाव में बैठे,
भूल गए कर्तव्यों को
अच्छी मीठी ,यादें भूले ,
संचय कड़वे कष्टों को
कितने चले गए रो रोकर,
गर्वित मन को समझा पाना ,
बड़ा कठिन, इस जीवन में !
जीवन की कड़वी बातों को,
कहाँ भूल पाते हैं गीत !
हार और अपमान याद कर, क्रोध में आयें मेरे गीत !
जब भी कोई कलम उठाये
अपनी व्यथा, सामने लाये ,
खूब छिपायें, जितना चाहें
फिर भी दर्द नज़र आ जाये
मुरझाई यह हँसी, गा रही,
चीख चीख, दर्दीले गीत !
अश्रु पोंछने तेरे, जग में, कहाँ मिलेंगे निश्छल गीत ?
अहंकार की नाव में बैठे,
भूल गए कर्तव्यों को
अच्छी मीठी ,यादें भूले ,
संचय कड़वे कष्टों को
कितने चले गए रो रोकर,
कौन सम्भाले बुरा अतीत !
सब झूठे ,आंसू पोंछेंगे , कौन सुनाये , मंगल गीत ?
सभी सांत्वना, देते आकर
जहाँ लेखनी , रोती पाए !
आहत मानस, भी घायल
हो सच्चाई पहचान न पाए !
ऐसी जज़्बाती ग़ज़लों को ,
ढूंढें अवसरवादी गीत !
मौकों का फायदा उठाने, दरवाजे पर तत्पर गीत !
सब झूठे ,आंसू पोंछेंगे , कौन सुनाये , मंगल गीत ?
सभी सांत्वना, देते आकर
जहाँ लेखनी , रोती पाए !
आहत मानस, भी घायल
हो सच्चाई पहचान न पाए !
ऐसी जज़्बाती ग़ज़लों को ,
ढूंढें अवसरवादी गीत !
मौकों का फायदा उठाने, दरवाजे पर तत्पर गीत !
लाजवाब गीत।
ReplyDeleteबहुत ही बेहतरीन article लिखा है आपने। Share करने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद। :) :)
ReplyDeleteबहुत सुन्दर ! हृदय को स्पर्श करती पंक्तियाँ। आभार "एकलव्य"
ReplyDeleteबहुत सुन्दर लिखा है .
ReplyDeleteदर्द हो या हृदय का आनंद रचना में झलक ही आता है, भीतर जो भर गया है वही तो कलम के जरिये कागज पर उतर आता है
ReplyDeleteस्तब्ध कर दिया आपके गीत ने तो !
ReplyDeleteसहज सरल भाषा में प्रवाह के साथ कितनी गहरी और गंभीर बात को कह जाते हैं आप ! सादर।
अति सुन्दर गीत..बहुत सुन्दर!!
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