Friday, March 30, 2018

हेल्थ ब्लंडर -3 : सतीश सक्सेना

तीन वर्ष पहले जब मैं रिटायर हुआ तब BMI इंडेक्स के अनुसार मैं खतरे के निशान से काफी ऊपर था , और शरीर एयर कण्डीशन्ड माहौल का इस कदर अभ्यस्त था कि बाहर निकलते ही पसीना आता था !अपने दो मंजिले ऑफिस की सीढ़ियां चढ़ने के बाद रुक कर खड़ा होना आवश्यक था सो अधिकतर सुबह की सीढियाँ धीरे धीरे चढ़ता था ताकि लोग हांफते न देखें , सड़क पर पैदल चलना अजीब लगता था !

कभी अपने बॉस नवल किशोर सिंह को तेज धूप में दो किलोमीटर दूर अपने एक अन्य ऑफिस पैदल जाता हुआ देखता तब मुझे हैरानी होती कि ऐसी भी क्या कंजूसी कि थ्री व्हीलर तक नहीं करते , और एक दिन जब आपसी चर्चा में जब मैंने उनसे पूंछा तब उन्होंने कहा कि इस बहाने थोड़ा चलना हो जाता है अन्यथा शरीर को जकड़ने में देर नहीं लगेगी और उनके इस वाक्य ने मुझे आत्म निरीक्षण का मौक़ा दिया जो अपने को मजबूत समझते हुए कभी नहीं कर सका शायद यहीं से मेरे मन में कुछ संकल्प लेने की इच्छा जाग्रत हुई  नियमित वाक से शुरुआत करने का मन बना !

शुरुआत सिर्फ वाक से हुई थी जिसके अंत में मैं 1 मिनट धीरे धीरे दौड़ने का प्रयास करता था फलस्वरूप कुछ दिनों के बाद ही मैं लगभग 200 मीटर तक धीरे धीरे दौड़ने में सफल होने लगा ! दौड़ते दौड़ते अगर हांफने लगता था तब मैं पैदल चलने लगता था और जब साँस व्यवस्थित हो जाती तब फिर धीरे धीरे दौड़ने लगता ! लगभग 2 माह में ही हृदय की बंद आर्टरी, लगने लगा जैसे खुल गयीं हों अब मेरे हांफने में काफी सुधार महसूस होने लगा था साथ ही बीपी भी कभी बढ़ा हुआ नहीं मिला ! 


एलोपैथिक दवाओं पर मुझे कभी विश्वास नहीं रहा , मुझे पता था कि वे फायदा कम और नुकसान अधिक करती हैं और अगर वे इतनी अधिक उपयोगी होतीं तब विश्व के कई धनवान और शक्तिशाली लोग कम उम्र में ही कैसे मर गए ? कम से कम अमेरिका का राष्ट्रपति, मानव की एवरेज उम्र से अधिक तो जीना ही चाहिए था जो नहीं हुआ ! मेरे कुछ व्यक्तिगत डॉ मित्र अपने घर में एलोपैथिक दवाओं का उपयोग करते ही नहीं है या बेहद आवश्यक होने पर ही उपयोग करते हैं !

मानव शरीर बेहद जटिल है जिसके बारे में अभी भी वैज्ञानिकों को न के बराबर ही जानकारी रखते हैं , हर शरीर की अपनी प्रतिरक्षा शक्ति होती है जो परिस्थितियों के हिसाब से शरीर को सुचारु रूप से चलाये रखने के लिए क्रिया और प्रतिक्रियाएं करती है जिसे हम अस्वस्थता का नाम देते हैं और अधिकतर प्रतिरक्षा शक्ति कुछ समय में ही हमलावर को  समाप्त कर शरीर को फिर पहले जैसा बना देती है ! अस्वाभाविक स्थितियों से निपटते समय शरीर को दी गयीं खतरनाक दवाएं सिर्फ इम्यून सिस्टम के कार्य में व्यवधान ही उत्पन्न करती हैं, हाँ तात्कालिक आराम अवश्य मिल जाता है जिसके दूरगामी परिणाम होते हैं !

आज के मेडिकल साइंस में कोई बीमारी या कष्ट लेकर हॉस्पिटल जाइये, डॉ आपके शरीर के सारे टेस्ट करवाएगा और अगर कोई खतरनाक नाम की बीमारी का कोई अंश निकल आया तब सबसे पहले उसका  इलाज या ऑपरेशन करवाना होगा जिसलिये आये थे वह तो इस नयी खतरनाक बीमारी का नाम सुनते ही गायब हो चुकी होगी ! मेरे कई परिचित हॉस्पिटल में एडमिट किसी और कारण से हुए मगर टेस्ट में कैंसर की तलाश करा कर ऑपरेशन कैंसर का करा के बापस आये ! हॉस्पिटल का उद्देश्य उसके पुराने शरीर से एक बीमारी खोज निकालनी होती है जो शरीर में दबी हुई थी और उसके इलाज से धन की की सप्लाई जारी रहे !

शहर में अक्सर छोटी बड़ी कोई भी गाँठ हो उसे तत्काल निकलवाने की सलाह देते हैं जबकि भारत की ग्रामीण  जनता जिन्हे आज भी हॉस्पिटल का नाम नहीं मालूम बरसों से ऐसी गांठे शरीर के अंदर और बाहर लेकर आसानी से अपने सारे कार्य कर रहे हैं !

मेरे विचार से इम्यून सिस्टम  कैंसर के बढ़ते टिश्यू को गांठ के रूप में बनाकर कैद कर देता है और उसकी अनावश्यक बढ़वार रोकता है जबकि डॉ उस सुरक्षित गांठ को कुरेदकर पहले टेस्ट और बाद में ऑपरेशन कर उसे मुक्त कर देता है और कैंसर इस ऑपरेशन के बाद उन्मुक्त रूप से और तेजी से बढ़ता है !

अगर इंसान मौत के भय पर काबू पा ले तो मेरा  विश्वास है कि वह जब तक चाहे जी सकता है यह भय ही है जो उसे मौत के समीप ले जाता है ! 

63 वर्ष में दौड़ते हुए मैं हमेशा ....
-अपने आपको बीमार नहीं मानता और न उस बीमारी से डरता हूँ जो मुझे होती है !मैं खुद से कहता हूँ कि मेरा शरीर शक्तिशाली है और अपने  किसी बाहरी सहायता के खुद को ठीक कर लेगा !
-दौड़ते समय मस्ती के साथ अकेला दौड़ता हूँ और खुद को शाबाशी देता हूँ अक्सर दौड़ते हुए अपना फोटो खींचता हूँ और पोस्ट भी करता हूँ बिना इसकी परवाह किये कि कुछ लोग क्या कहेंगे !
- उदास कभी नहीं होता चाहे कितना ही अकेलापन क्यों न हो 
-मन में हमेशा एक भाव रहता है कि मैं यह कर सकता हूँ !
-अपनी उम्र के बारे में कभी नहीं सोंचता बल्कि और अक्सर आदरणीय , अंकल जी जैसे बोलने वालों से दूर रहना पसंद करता हूँ !
-बुजुर्गों जैसे कपडे पहनना या उनके जैसी बातें करना पसंद नहीं करता !
- अगर कंपनी बेहतर हो तब यदाकदा बियर या वाइन पीने में कोई परहेज नहीं और न छिपाता हूँ !
-मौत से नहीं डरता मुझे मालूम है वह कभी भी किसी भी समय हो सकती है अतः अपना हर क्षण आखिरी मानते हुए एन्जॉय करता हूँ ! 

दौड़ना सीखने की इच्छा तभी पूरी होगी जब संकल्प लें कि मैं दो माह बाद 5 km दौडूंगा और इस संकल्प को ढिंढोरा पीट कर उन सबको अवश्य बताइये जो आपको कमजोर मानते हैं और आप देखेंगे की आपने कर दिखाया !

जोश आएगा दुबारा , बुझ गए से हृदय में
प्रज्वलित संकल्प लेकर धीमे धीमे दौड़िये!

समय ऐसा आएगा जब फासले थक जाएंगे
दूरियों को नमन कर के, धीमे धीमे दौड़िये ! 

3 comments:

  1. दौड़ते तो नहीं हैं पर चलते हैं। घर घर गाड़ियाँ स्कूटर दिखते हैं सड़कों पर चलना दूभर हो गया है। पहाड़ों में चलना अच्छा माना जाता था। शहर के कैंट क्षेत्र की दीवार पर किसी जमाने से सेना वालों ने लिखा हुआ है Its fashion to walk in hills not to ride a Car. लोग हमें भी कंजूस हैं गाड़ी नहीं खरीदते हैं कहते रहते हैं। क्या करोगे इतने पैसे जमा करके भी बोलते हैं। पर हमने भी इसी कारण चलना बंद नहीं किया रोज पहाड़ पर चढ़ कर उतर कर 5 किमी आना जाना कर रहे हैं ताकि शरीर जकड़े नहीं। आप का दौड़ना उत्साहवर्धन करता है। जारी रखें। शुभकामनाएं।

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  2. प्रेरक प्रस्तुति

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  3. Bahut hi utsaabhvardhak sateesh ji. Koshish hamari bhi yahi hai. Lage rahen

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एक निवेदन !
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- सतीश सक्सेना

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