Monday, April 30, 2018

लेह भ्रमण -सतीश सक्सेना

सुबह लेह की कड़ाके कि ठंड में होटल द्वारा दही परांठा ऑमलेट भारी नाश्ता खाते समय तो स्वादिष्ट लगता था मगर चलते समय हांफते हुए अपने ऊपर गुस्सा आता था ।

लेह से लेक तक का रास्ता इनोवा द्वारा तय करने में लगभग 5 घंटे लगे थे, और बीच में 17586 फुट पर बने चांगला कैफे पर स्वादिष्ट चाय का आनंद गजब का रहा !

जहां बेहद कम ऑक्सीजन के कारण 10 सीढ़ियां चढ़ने में सांस फूलती हो वहां 14250 फुट ऊंचाई पर स्थित पेंगोंग लेक के किनारे दौड़ने का प्रयत्न करना और वह भी 63 वर्ष की उम्र में , तारीफ का काम है न ? सो तारीफ करिए पर्यटकों के मध्य मैंने यह प्रयत्न ही नहीं किया बल्कि 1km से अधिक भागने में सफलता भी प्राप्त की यह और बात है कि मुझे तीन बार उखड़ी सांस व्यवस्थित करने में वाक भी करना पड़ा !

कड़ाके की ठंड में पारदर्शी ब्लू वाटर लेक के किनारे 3 इडियट्स की वे मशहूर कुर्सियां भी रखी हुई थीं , जिन पर बैठकर लोग अपने आपको गौरवान्वित महसूस कर रहे थे ।

अक्सर लोग लेक किनारे टेंट पर रात को रुकना पसंद करते हैं यहां के शांत वातावरण में स्वर्गिक आनंद महसूस
होता है ! आश्चर्य की बात है कि यह स्वच्छ जल , मीठा। न होकर नमकीन है क्योंकि 130 km लंबी झील चारो ओर से लैंड लॉक्ड है ।

बहरहाल लेह में आकर पहली बार हिमालयन डेजर्ट को महसूस करना ही अपने आप में उपलब्धि है ! शेष कल ..

Tuesday, April 10, 2018

हेल्थ ब्लंडर्स 5 - सतीश सक्सेना

@कमज़ोर आदमी हूँ। कोई संकल्प लेता भी हूँ तो कमज़ोर इच्छा शक्ति की वजह से बहुत जल्दी टूट जाता है। इसका इलाज बताइये ?
7 अप्रैल को यह कमेंट पढ़कर अपने पुराने थके हुए दिन याद आ गए , दो वर्ष पूर्व कायाकल्प की शुरुआत में संकल्प पर 
अडिग रहने में सबसे बड़ी रुकावट खुद का मन होता है जो शरीर को परिश्रम करने से रोकने में सबसे बड़ी भूमिका अपनाता है ! यह इच्छा शक्ति को हर संभव कारण बताता रहता है कि आज कम दौड़ना है क्योंकि .......
-आज घुटने में अजीब सा दर्द है
-कल रात देर से सोये थे सो आज नींद जरूरी है कल चलेंगे
-सप्ताह में रेस्ट आवश्यक है और उससे फायदा ही है
-आज पेट हैवी लग रहा है कल चलेंगे
-आज मौसम अधिक गर्म या वारिश होने वाली है
-अधिक उम्र में रोज नहीं दौड़ना है डॉ ने मना किया था
-मैं मेहनत बहुत कर रहा हूँ सो आज नहीं जाएंगे तो कोई फर्क नहीं पडेगा
-आज ट्रेफिक अधिक है सो बस एक चक्कर काफी है 
और जैसे ही आप सहमत हुए उसका काम हो गया फिर कितनी ही कोशिश करें आपका पैर नहीं उठेगा !

मन की इस सुखद गंगा से निकलने के लिए खुद से एक ही बात कहता हूँ कि मर जाओगे बेट्टा अगर आलस किया तो, सोंचो कि सुनसान जंगल में रहकर अपने परिवार का पेट भरने के लिए कितनी दौड़ भाग करनी चाहिए और ऊपर वाले ने यह लम्बे हाथ पैर आराम के लिए नहीं बल्कि रोज दौड़ भाग के लिए दिए हैं अन्यथा खुद तो बर्बाद होंगे ही परिवार जो तुम पर निर्भर है वह भी दर दर भटकने को मजबूर हो जाएगा सो उठो और मजबूत रहने के लिए दौड़ो अगर हृदय स्ट्रोक और डायबिटीज से बचना है तब !

हमेशा याद रखें कि बॉडी कोर में अवस्थित शरीर के महत्वपूर्ण अंग ह्रदय ,लीवर ,किडनी , पेन्क्रियास ,फेफड़ों को स्वस्थ रखना है तो पैरों द्वारा body weight impact एक्सरसाइज (रनिंग) करने से ही कम्पन होगा और वे स्वस्थ रहेंगे अभी वे तीन तीन बार खा खाकर बैठे रहते हैं बिना हिला डुले, और खुद को फैट से लपेट कर बीमार बना लेते हैं और जल्दी ही मेडिकल व्यवसाय के दानव के चंगुल में होते हैं उसके बाद बचे हुए जीवन में, चाहते हुए भी हंस नहीं पाते !

रोज सुबह दौड़ने से पहले यथासंभव दंड बैठक ( squat and Planks exercise ) लगाकर सड़क पर निकलता हूँ और दौड़ के बाद पैरों की, जांघों की स्ट्रेचिंग बेहद आवश्यक है अन्यथा दर्द और मसल्स इंजरी का ख़तरा बना रहता है !
कुछ लोग आपको बहुत प्यार करते हैं उनके लिए जागिये, अपनी शक्तिशाली समझ समय रहते अपने शरीर की डिजाईन पर लगाइए निस्संदेह आप अपने शरीर का रोना महसूस करेंगे !
सस्नेह

Saturday, April 7, 2018

हेल्थ ब्लंडर 4 -सतीश सक्सेना


उम्र बढ़ने के साथ कमजोर होती शक्ति का अहसास सबसे पहले तब हुआ जब कुकिंग गैस के खाली सिलेंडर को उठाने में राइट हैंड बाइसेप्स टूट कर दो इंच नीचे लटक गया था ! पहली बार 50 वर्ष की उम्र में महसूस हुआ था कि अब मैं जवान नहीं रहा
और इस विषय पर सोंचना शुरू किया था ! उस वक्त बॉडी में स्टेमिना 70 वर्ष वाला था , हृदय पर बढ़ता दवाब पहली मंजिल की सीढियाँ चढ़ते ही पता चल जाता था !

मुझे विश्वास था कि मानवीय शरीर बेहद मजबूत बनाया गया है बेहद लापरवाह इंसान हो या भयंकर शराबी , तब भी शरीर की प्रतिरक्षा शक्ति उस इंसान को 50 वर्ष तक ज़िंदा रखे रहती है मुझे इस बात का विश्वास शुरू से था सो मैंने अपने शरीर को नए सिरे से पुनर्जीवन देने का मन बनाना, पूरे विश्वास के साथ शुरू किया !

शुरुआत में आधा घंटा वाक करना बेहद मुश्किल लगता था , आलस के कारण बिस्तर छोड़ते छोड़ते ही देर हो जाती थी और वाक करते समय मन करता था कि कोई साथ होता तो बातें करते करते, वाक का समय, जैसे तैसे कट जाता ! पूरे पार्क में अक्सर पुरुष महिलाएं इसी मनोवृत्ति को लिए खूब तन्मयता से बतियाते, खुद को स्वस्थ रखने की ग़लतफ़हमी पाले, यह नित्य की ड्यूटी पूरा करते थे !

मैंने फैसला किया था कि कायाकल्प करने के लिए बेहद मजबूत इच्छा शक्ति चाहिए और इस संकल्प में कोई व्यवधान नहीं हो सो अकेले बिना किसी साथ के करना होगा ! मजबूत मन के साथ जो संकल्प लिए वे निम्न थे !

- शुगर किसी भी रूप में न लेना
-रात का भोजन सोने से 3 घंटे पूर्व खाना और दिन भर में खूब पानी पीना
- हर हाल में 6-7 घंटे घंटे नींद लेना
-वाक-रन-वाक- रन का तरीका अख्तियार करते हुए बिना हांफे धीरे धीरे
दौड़ कर साँसों पर कण्ट्रोल करना !

पहले 10 दिन में ही काफ मसल्स और हाथों में दर्द होने लगा था जबकि मैं जिस दिन अधिक मेहनत करता उसके अगले दिन पूरा रेस्ट करता था जिससे थकी मांसपेशियों को आराम मिल सके और वे नयी ताकत के साथ, दौड़ने में साथ दें !
धैर्य और विश्वास जीतने का आधार है कायाकल्प करने के लिए ! शुरुआत के लड़खड़ाते बेबी स्टेप्स अब मजबूत लगने लगे थे और निस्संदेह वे अधिक दूरी तय कर रहे थे इनकी मजबूती में सबसे बड़ी बाधा अपना खुद का मन था जो बेहद आलसी और कामचोर था , जब भी पसीने में तर शरीर को रुकने को कहता मैं खुद को गालियां देता और कहता हार्ट अटैक से मरने से कहीं बेहतर दौड़ते हुए मरना होगा और उन्ही दिनों CoachRavinder Singh जो कि एनसीआर के मशहूर रनिंग आर्गेनाइजर हैं, के द्वारा मुझे 2015 वर्ष के लिए रुकी रनर का पुरस्कार व ट्रॉफी भेंट की गयी ! वह पुरस्कार, मुझे जबरदस्त भरोसा देने में सहायक रहा कि सतीश तुम इस उम्र में कर पा रहे हो और तुम कर लोगे !

उन दिनों यह रचना लिखी थी, इसे गुनगुनाता था दौड़ते हुए !

साथ कोई दे, न दे , पर धीमे धीमे दौड़िये !
अखंडित विश्वास लेकर धीमे धीमे दौड़िये !


दर्द सारे ही भुलाकर,हिमालय से हृदय में
नियंत्रित तूफ़ान लेकर, धीमे धीमे दौड़िये !

जाति,धर्म,प्रदेश,बंधन पर न गौरव कीजिये
मानवी अभिमान लेकर, धीमे धीमे दौड़िये !

जोश आएगा दुबारा , बुझ गए से हृदय में
प्रज्वलित संकल्प लेकर धीमे धीमे दौड़िये !

समय ऐसा आएगा जब फासले थक जाएंगे
दूरियों को नमन कर के, धीमे धीमे दौड़िये !

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