Tuesday, April 9, 2019

आदत भोजन की -सतीश सक्सेना

आज चौथा दिन है पारंपरिक भोजन का त्याग किये , रोटी , दाल , चावल, सब्जियां बंद किये हुए , और आश्चर्य है कि मन एक बार भी नहीं ललचाया और न भूख लगी न कमजोरी ...शायद इसलिए कि अपने आपको चार दिन पहले बे इंतिहा गालियाँ दी थीं , अपना वजन देखने के बाद अगर उस दिन मशीन न देखता तो पता ही न चलता कि मेरा वजन पिछले कुछ माह में सामान्य से ४ किलो अधिक हो चुका है ! शीशे में चमकती शक्ल दिखती है तोंद नहीं !

घर में बैठना एक अभिशाप है ख़ास तौर पर बड़ी उम्र वालों के लिए , सुबह नाश्ता ९ बजे से पहले , 12 बजे दाल चावल रोटी सब्जी अचार और चटनी के साथ, चार बजे लोंग इलायची की चाय के साथ श्रुस्बेर्री चाय बिस्कुट , 6 बजे लॉन में बैठकर मेहमानों के साथ चाय और आठ बजे स्वादिष्ट डिनर और तोंद पर हाथ फिराकर सो जाना, और सबसे बड़ी बेवकूफी यह है कि उम्र के नाते हमने खुद अपने हाथ से कुछ नहीं करना पूरे दिन , सब कुछ आर्डर देते ही हाजिर हो जाता है ! मतलब अभिशप्त बुढापे की हॉस्पिटल मौत साक्षात सामने है और दिखती नहीं !

 अधिक उम्र में सुस्वाद भोजन , जान देने की जगह जान लेने में समर्थ है , भारत में हर चौथा व्यक्ति हार्ट आर्टरी में रूकावट और डायबिटीज से पीड़ित है और ५० वर्ष से अधिक का हर आदमी बढ़िया भोजन पर ध्यान केन्द्रित किये रहता है , यह घातक है यह उन्हें मेडिकल व्यवसाय के निर्मम कसाइयों की तरफ ले जाएगा !

 हम बुजुर्ग पूरी दुनिया को लंबा जीने का आशीर्वाद देते रहते हैं जबकि अपने ऊपर कोई नसीहत लागू नहीं ! मगर इस बार चार दिन पहले खुद को गरियाने का असर वाकई हुआ उस दिन लिये संकल्प ने भूख की इच्छा ही खत्म कर दी इस परिणाम से मेरे इस विचार को दृढता मिली कि शरीर आपके मन से चलता है इसकी आवश्यकताएं न्यूनतम हैं ! हम जैसी आदत डालेंगे शरीर उसी में जीवनयापन करने में समर्थ है !

पहले दिन मैंने सुबह एक कटोरा पपीता जो मुझे बिलकुल अच्छा नहीं लगता खाया था और शाम को पांच छः टमाटर नीबू के साथ , बाकी पूरे इन दो बार ग्रीन चाय और एक वार कश्मीरी कहवा !
दुसरे दिन सुबह एक बड़ी प्लेट टमाटर काला नमक और नीम्बू के साथ और शाम को फिर पपीता ...
तीसरे दिन सुबह तरबूज ढेर सारा और शाम जीरा लौकी की सब्जी बड़ी प्लेट ...
आज चौथे दिन सुबह तरबूज ढेर सारा और पूरे दिन शिकंजी , ग्रीन टी और
यह पहली बार हुआ है कि चार दिनों में वजन ढाई किलो कम हुआ बिना भूख लगे , न कोई कमजोरी न सरदर्द !
अब आज से अपनी जबान पर कंट्रोल रखूंगा , काम नहीं तो भोजन नहीं इस व्रत का पालन पूरी शिद्दत से करूंगा इस भरोसे के साथ कि बिना काम किये खाना शरीर की जरूरत है ही नहीं , बिना भूख लगे भोजन करना ही नहीं है, चाहे कितने दिन हो जायें !

7 comments:

  1. बाकी सब ठीक बस हम बुजुर्ग पर आपत्ति है। आप गाइये "अभी तो मैं जवान हूँ" और आप के साथ हम भी थिरकें।

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  2. बहुत खूब आदरणीय सतीश जी - भोजन पर आपका ये प्रेरक चिंतन बहुत ही शानदार है | सभी को आलस और भोजन की अति से बचना ही श्रेयस्कर है | पंजाबी में एक कहावत है जिसका अर्थ है ज्यादा खाया कुर्डअर्थात गन्दगी - बढाया और थोड़ा खाया तन को लगाया | थोड़ा ज्यादा खाना है तो शारीरिक श्रम की आदत भी डालिए |सादर

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  3. वाह ..., आपका लेख पढ़ कर यूं लगा जैसे खुद को डांट रही हूँ अक्सर ऐसे प्रण लेती तो हूँ मगर अनुसरण नही करती ।कोशिश रहेगी अनुशासित रहने
    की । मोटिवेशनल लेख ।

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  4. प्रेरणादायक पोस्ट...आजकल आपका दौड़ना बंद है क्या...

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    1. नहीं , मगर पिछले दिनों थोड़ा कम जरूर रहा , जिसका नतीजा यह पोस्ट है , आभार आपका !

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  5. सर आप वापस अपने व्रत में आ जायेंगे ... आप कर्मठ हैं ...
    बहुत शुभकामनायें ...

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  6. रोचक। अक्सर वजन बढ़ने का कारण यही होता है कि हम जरूरत से ज्यादा शरीर में डालते हैं। आपने सही कदम उठाया। बॉडी डेटॉक्स हो गयी।

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- सतीश सक्सेना

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