Tuesday, February 11, 2020

शायर बनकर यहाँ , गवैये आये हैं -सतीश सक्सेना

काव्यमंच पर आज मसखरे छाये हैं !
शायर बनकर यहाँ , गवैये आये हैं !

पैर दबा, कवि मंचों के अध्यक्ष बने,
आँख नचाके,काव्य सुनाने आये हैं !

रजवाड़ों से,आत्मकथाओं के बदले 
डॉक्ट्रेट , मालिश पुराण में पाये हैं !

पूंछ हिलायी लेट लेट के,तब जाकर 
कितने जोकर, पद्म श्री कहलाये हैं !

अदब, मान मर्यादा जाने कहाँ गयी,
ग़ज़ल मंच पर,लहरा लहरा गाये हैं !

6 comments:

  1. "आपका थप्पड़ खाकर भी ये बोलेंगे,
    'सक्सेना सर' हमें खिलाने आये हैं"

    सादर

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  2. गजब। लाजवाब।
    पैर दबा, कवि मंचों के अध्यक्ष बने,
    आँख नचाके,काव्य सुनाने आये हैं !

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  3. काव्यमंच पर आज मसखरे छाये हैं !
    शायर बनकर यहाँ , गवैये आये हैं !
    ....आदरणीय सतीश जी, बिल्कुल सही लिखा है आपने। जब मैं कवि सम्मेलनों के गायन सुनता हूँ तो कवि कम , मसखरे ज्यादा नजर आते हैं । कविता तो जैसे लुप्त हो चुकी होती है।
    बहुत-बहुत शुभकामनाएँ आपको ।

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  4. आप सेटिंग मे थोड़ा परिवर्तन कर लें ताकि टिप्पणी ततक्षण दिखे।

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  5. बेहतरीन प्रस्तुति

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एक निवेदन !
आपके दिए गए कमेंट्स बेहद महत्वपूर्ण हो सकते हैं, कई बार पोस्ट से बेहतर जागरूक पाठकों के कमेंट्स लगते हैं,प्रतिक्रिया देते समय कृपया ध्यान रखें कि जो आप लिख रहे हैं, उसमें बेहद शक्ति होती है,लोग अपनी अपनी श्रद्धा अनुसार पढेंगे, और तदनुसार आचरण भी कर सकते हैं , अतः आवश्यकता है कि आप नाज़ुक विषयों पर, प्रतिक्रिया देते समय, लेखन को पढ़ अवश्य लें और आपकी प्रतिक्रिया समाज व देश के लिए ईमानदार हो, यही आशा है !


- सतीश सक्सेना

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