tag:blogger.com,1999:blog-6340570424549373370.post629001208476323229..comments2024-03-27T14:44:27.129+05:30Comments on मेरे गीत !: हम गुलाम लीक के -सतीश सक्सेना Satish Saxena http://www.blogger.com/profile/03993727586056700899noreply@blogger.comBlogger22125tag:blogger.com,1999:blog-6340570424549373370.post-72878795323941044622013-10-10T08:39:09.128+05:302013-10-10T08:39:09.128+05:30हम मूल सूत्रों को भुला बैठे हैं।हम मूल सूत्रों को भुला बैठे हैं।प्रवीण पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/10471375466909386690noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6340570424549373370.post-85036125165772834052013-10-08T14:24:19.798+05:302013-10-08T14:24:19.798+05:30सहमत हूँ काफी हद तक धर्म पूरी तरह से व्यैक्तिक होत...सहमत हूँ काफी हद तक धर्म पूरी तरह से व्यैक्तिक होता है। …।गुरु इशारे भर करता है चलना तो खुद को ही है । यहाँ एक ये भी काबिलेगौर है कि बनाने वाले ने भी हाथों की पाँचों उँगलियाँ बराबर नहीं होती |इमरान अंसारी https://www.blogger.com/profile/01005182448449326178noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6340570424549373370.post-58203682591650675162013-10-05T18:35:20.131+05:302013-10-05T18:35:20.131+05:30परम्पराओं की तुलना में विवेक को महत्व देना चाहिए ।...परम्पराओं की तुलना में विवेक को महत्व देना चाहिए ।शकुन्तला शर्माhttps://www.blogger.com/profile/01128062702242430809noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6340570424549373370.post-57726651389511972472013-10-05T11:41:29.590+05:302013-10-05T11:41:29.590+05:30बहुत महत्वपूर्ण मुद्दा मगर लग रहा है किसी पुस्तक ...बहुत महत्वपूर्ण मुद्दा मगर लग रहा है किसी पुस्तक की प्रस्तावना पढी हो और वह भी अधूरी रह गई हो -विषय विस्तार की मांग करता है !Arvind Mishrahttps://www.blogger.com/profile/02231261732951391013noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6340570424549373370.post-76424434866895200312013-10-05T09:19:15.165+05:302013-10-05T09:19:15.165+05:30संस्कारसंस्कारKajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टूनhttps://www.blogger.com/profile/12838561353574058176noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6340570424549373370.post-13890427495825404722013-10-04T21:11:53.522+05:302013-10-04T21:11:53.522+05:30बहुत सही लिखा है सरबहुत सही लिखा है सरParul Chandrahttps://www.blogger.com/profile/13911328248205275293noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6340570424549373370.post-44231939446142846052013-10-04T17:16:40.656+05:302013-10-04T17:16:40.656+05:30सही है सतीश जी. प्रवचन कर्ता धर्मगुरुओं की तो क्या...सही है सतीश जी. प्रवचन कर्ता धर्मगुरुओं की तो क्या कहें, नियम तो ये भी है कि अगर आपने दीक्षा नहीं ली तो उस तथाकथित नरक में जाना तय है, जहां तेल के खौलते कड़ाह आपका इन्तज़ार कर रहे हैं. क्योंकि हमारा धर्म गुरु ही तो अपनी लाठी पकड़वा के हमें स्वर्ग तक पहुंचाने वाला है... टीवी पर प्रवचन करते धर्म गुरुओं की सभाओं में बैठे/नाचते/झूमते/गाते जय जयकार करते लोगों को हुजूम देख के मन तकलीफ़ से भर जाता है.... कुछ न कर पाने का अवसाद ज़्यादा गहरा होता है.. :(वन्दना अवस्थी दुबेhttps://www.blogger.com/profile/13048830323802336861noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6340570424549373370.post-83433997367907800332013-10-04T15:46:05.857+05:302013-10-04T15:46:05.857+05:30एक अच्छी और और ब्लोगेर्स के लिए दुर्लभ टिप्पणी के ...एक अच्छी और और ब्लोगेर्स के लिए दुर्लभ टिप्पणी के लिए धन्यवाद, कौशल लाल Satish Saxena https://www.blogger.com/profile/03993727586056700899noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6340570424549373370.post-14038881146310907032013-10-04T15:33:13.868+05:302013-10-04T15:33:13.868+05:30धर्म तो जोड़ने और सुधारने के लिए होता है।धर्म तो जोड़ने और सुधारने के लिए होता है।संतोष त्रिवेदीhttps://www.blogger.com/profile/00663828204965018683noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6340570424549373370.post-54562461680035803542013-10-04T15:01:27.030+05:302013-10-04T15:01:27.030+05:30बहुत ही बढ़िया और विचारणीय आलेख है। सचमुच सृष्टि के...बहुत ही बढ़िया और विचारणीय आलेख है। सचमुच सृष्टि के निर्माण से लेकर अब तक का इतिहास बताता है की सर्वाधिक् खून कट्टरता और सांप्रदायिक सर्वोछ्चता सिद्ध करने के ऊपर ही हुआ है। मुझे तो लगता है की इंसान की स्वाभाविक प्रवृति ही गुलामी और दर की है। तभी तो जन्म के साथ भाग्य का निर्धारण कुंडलियो का आलेख सुरु हो जाता है। तुलसीदास जी कहते है "कारद मन कहु एक अघारा ,देव-देव आलसी पुकारा। भाग्य के भरोसे जीने वाले अपने अवगुण तथा खामियों को ढकने के लिए इन अदाम्बरो का सहारा लेते है बेसक इन्सान के साथ पशु की तरह क्यों न आचरण हो। <br /> स्वामी विवेकानंद भक्ति योग की विवेचना में एक जगह कहते है की धर्म सम्बन्धी बात सुनना ,धार्मिक पुस्तके पढना धर्म के प्रति आस्था नहीं बताती है बल्कि उसके लिए तो निरतर जूझते रहना पड़ता की अपने अन्दर की पाशविक प्रकृति को कैसे बस में कर सके। आपने बिलकुल सही उधृत किया की इन अडम्बरो के लिए हम पशु प्रवृत स्वभाव ही हर जगह प्रदर्शित करते है। क्योकि शास्त्र और गुरु दोनों शब्दाडम्बर के चक्कर में पड़े हुए है। विवेकानंदजी कहते है की जिनका मन शब्दों की शक्ति में बह जाता है ,वे भीतर का मर्म खो बैठते है। शास्त्रों का शब्दजाल एक सघन वन के सदृश है जिसमे मनुष्य का मन भटक जाता है और रास्ता ढूंढे भी नहीं मिलता। विचित्र ढंग की शब्द रचना।,सुन्दर भाषा में बोलने के विभिन्न प्रकार और शास्त्र मर्म की नाना प्रकार से व्यख्या करना -ये ढोंगी के भोग के लिए है ,इनसे अंतर्दृष्टि का विकास क्षय होता है। <br /> शायद मनुष्य की अनुवांशिक संरचना में ये प्रवृति मुख्य रूप से शामिल है नहीं तो इतनी लम्बी यात्रा के उपरांत भी हम आदिम युग की बात नहीं करते। कौशल लालhttps://www.blogger.com/profile/04966246244750355871noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6340570424549373370.post-80632099543842451802013-10-04T13:58:26.183+05:302013-10-04T13:58:26.183+05:30यही तो हो रहा है..यही तो हो रहा है..Amrita Tanmayhttps://www.blogger.com/profile/06785912345168519887noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6340570424549373370.post-69287290068657097362013-10-04T13:14:22.301+05:302013-10-04T13:14:22.301+05:30स्वार्थी लोगों ने धर्म के नाम पर जनता को बाँट दिया... स्वार्थी लोगों ने धर्म के नाम पर जनता को बाँट दिया ..... सतीश जी <br /><br />शब्दों की मुस्कुराहट पर <b><a href="http://sanjaybhaskar.blogspot.in/" rel="nofollow">....क्योंकि हम भी डरते है :)</a> </b> <br /><br />संजय भास्कर https://www.blogger.com/profile/08195795661130888170noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6340570424549373370.post-7005794684336492592013-10-04T13:09:35.486+05:302013-10-04T13:09:35.486+05:30विचारणीय सार्थक सुंदर प्रस्तुति.!
RECENT POST : प...विचारणीय सार्थक सुंदर प्रस्तुति.!<br /><br /><b>RECENT POST </b><a href="http://dheerendra11.blogspot.in/2013/10/blog-post.html#links" rel="nofollow">: पाँच दोहे,</a>धीरेन्द्र सिंह भदौरिया https://www.blogger.com/profile/09047336871751054497noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6340570424549373370.post-45189013901620721432013-10-04T12:59:45.024+05:302013-10-04T12:59:45.024+05:30बाहर की भीड़ के अलावा भीतर भी एक भीड़ चल रही है ना...बाहर की भीड़ के अलावा भीतर भी एक भीड़ चल रही है नाम,जाती,धर्म,शास्त्र,सिधान्तों की, इसलिए ध्यान का महत्व है, ध्यान इन सबके प्रति जागृत करता है मुक्त करता है, तभी सही मायने में कोई धार्मिक हो जाता है ! काश हम हमारे बच्चों को धर्म नहीं ध्यान सिखा पाते ?Sumanhttps://www.blogger.com/profile/02336964774907278426noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6340570424549373370.post-60748828357634714862013-10-04T12:46:08.938+05:302013-10-04T12:46:08.938+05:30@कंक्रीट के जंगल में रहते, हम असभ्य लोग, धार्मिक क...@कंक्रीट के जंगल में रहते, हम असभ्य लोग, धार्मिक किताबों में लिखे आचरणों का अनुकरण कर, अपने बचे हुए ३० -४० वर्ष के जीवन को धन्य मान लेते हैं ! <br />धार्मिक किताब एक ही है जो सबको मानवता सिखा दे जो अभी बनी नहीं शायद , बाकी सब धार्मिक किताबे आप कहे अनुसार गुलाम बनाने के ही विविध तरीके है ! सटीक आलेख !Sumanhttps://www.blogger.com/profile/02336964774907278426noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6340570424549373370.post-36085453481457547162013-10-04T12:33:38.506+05:302013-10-04T12:33:38.506+05:30सटीक और सशक्त आलेख....
सादर
अनु सटीक और सशक्त आलेख....<br /><br />सादर<br />अनु ANULATA RAJ NAIRhttps://www.blogger.com/profile/02386833556494189702noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6340570424549373370.post-27201988716730353732013-10-04T12:25:34.489+05:302013-10-04T12:25:34.489+05:30हर हालत में निर्दोषों को बचाया जाना चाहिये. सारगर्...हर हालत में निर्दोषों को बचाया जाना चाहिये. सारगर्भित आलेख.<br /><br />रामराम.ताऊ रामपुरियाhttps://www.blogger.com/profile/12308265397988399067noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6340570424549373370.post-51270854288268125882013-10-04T11:06:50.476+05:302013-10-04T11:06:50.476+05:30बिलकुल सही कहा सतीश जी आपने ,बहुत अच्छा आलेख लिखा,...बिलकुल सही कहा सतीश जी आपने ,बहुत अच्छा आलेख लिखा,ये धार्मिक आडम्बर ऊपर से बनकर नहीं आये जो तत्कालीन शारीरिक ,आर्थिक मानसिक रूप से ज्यादा सामर्थ्य रखते थे उन स्वार्थी लोगों ने धर्म के नाम पर जनता को बाँट दिया आज भी हो रहा है दुःख इस बात का है की शैक्षिक रूप से कमजोर इंसानों के साथ शिक्षित लोग भी इन आडम्बरों के चक्कर में पड़ते दिखाई देते हैं ,ऊपर से धर्म का लबादा औढेंगे और अन्दर से जड़ें काटेंगे ,और आज कल तो ये बाबाओं का चलन /जन्म और हो गया एक तो कडवा ऊपर से नीम चढ़ा रही सही कसार इन्होने पूरी कर दी ,सोच कर शर्म आती है हम आज कहाँ जा रहे हैं क्या वैचारिकता रह गई है ,इस अच्छे विचारणीय मुद्दे पर आपकी ये सार्थक पोस्ट को मैं नमन करती हूँ ,बधाई आपको Rajesh Kumarihttps://www.blogger.com/profile/04052797854888522201noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6340570424549373370.post-13034249880118654272013-10-04T09:46:42.489+05:302013-10-04T09:46:42.489+05:30सुन्दर प्रस्तुति
आभार ||
रहो इधर या उधर तुम, रहन...सुन्दर प्रस्तुति <br />आभार ||<br /><br />रहो इधर या उधर तुम, रहना मत निष्पक्ष |<br />डुबा अन्यथा दें तुम्हें, उभय पक्ष अति-दक्ष ||रविकर https://www.blogger.com/profile/00288028073010827898noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6340570424549373370.post-49166089419336968672013-10-04T08:45:16.412+05:302013-10-04T08:45:16.412+05:30सच कहा खामियाजा तो निर्दोषों को ही भुगतना पड़ता है...सच कहा खामियाजा तो निर्दोषों को ही भुगतना पड़ता है !!पूरण खण्डेलवालhttps://www.blogger.com/profile/04860147209904796304noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6340570424549373370.post-88439129193851446722013-10-04T07:40:59.628+05:302013-10-04T07:40:59.628+05:30खेद है कि कमेन्ट बॉक्स बीती रात से, गलती से बंद था...खेद है कि कमेन्ट बॉक्स बीती रात से, गलती से बंद था , अतः काफी मित्रों को असुविधा का सामना पडा होगा . . Satish Saxena https://www.blogger.com/profile/03993727586056700899noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6340570424549373370.post-6579906206502893272013-10-04T07:39:28.138+05:302013-10-04T07:39:28.138+05:30यशोदा अग्रवाल की प्रतिक्रिया जो मेल से मिली :
भाई ...यशोदा अग्रवाल की प्रतिक्रिया जो मेल से मिली :<br />भाई सतीष जी<br />आप की आज की पोस्ट में प्रतिक्रिया का डिब्बा नहीं दिखा<br /> आपकी लिखी रचना की ये चन्द पंक्तियाँ.........<br /><br />चोरों को सजा जरूर मिलनी चाहिए <br />मगर ईमानदार लोग भी डर जाएँ <br />ऐसा माहौल बनाना सही नहीं ! <br />बाज़ीगरों के सामने भीड़ हमेशा तालियाँ बजाती है !<br />हो सकें तो भीड़ का हिस्सा न बनें ...<br /><br />.......शनिवार 05/10/2013 को <br /> http://nayi-purani-halchal.blogspot.in<br />को आलोकित करेगी.... आप भी देख लीजिएगा एक नज़र ....<br />लिंक में आपका स्वागत है ..........धन्यवाद! <br /><br />सादर<br />यशोदाSatish Saxena https://www.blogger.com/profile/03993727586056700899noreply@blogger.com