आजकल भारतीयों में भ्रष्टाचार पर बोलने का शौक चर्राया हुआ है , कुछ वर्ष पहले यह हवा में इतना नहीं फैला था, हां कुछ ईमानदार राजनीतिक पार्टियाँ, जो बेचारी बहुमत न पा सकीं थीं जरूर सत्ता पार्टी के भ्रष्टाचार पर चीख चीख कर देश वासियों को बताती रहती थीं कि देखो तुमने चोरों को वोट दिया है किसी तरह इन्हें सत्ता से हटाओ और हमें लेकर आओ और फिर आपकी दशा पलटने में देर नहीं लगेगी !
और हम लोग फिर इंतज़ार करते रहते कि अब हमारे घर भी नोट बरसेंगे..
मानव जीवन में, पौराणिक काल से लेकर आजतक , कोई काल ऐसा नहीं हुआ जहाँ वे बुरे काम नहीं हुए जो इस समय हो रहे हैं , फर्क केवल संचार साधनों का है जो उस समय नहीं पाए जाते थे और बेईमानियाँ , चोरी , काम लोलुपता आदि आसानी से सामाजिक भय के कारण छिपी रह जाती थीं .
अख़बारों में, आधुनिक स्कूलों में पढ़े लेखक, जिन्हें सुदूर गाँव, सूबों की सामंत शाही , राजशाही के बारे में रंच मात्र भी पता नहीं ,शहरी वातावरण में अपने गाल बजाते रहते हैं ! जिन ख़बरों पर मिडिया अपने दर्शक बटोरने के लिए दिन रात भोंपू बजाती रहती है , सदियों से, ऎसी करोड़ों ख़बरें, बदनामी भय के आतंक तले, घुट कर दम तोडती रही हैं , इसका अंदाजा किसे है ! मानव की राक्षसी शक्ति बढाने की अपरिमित इच्छा एवं शारीरिक भूख की मांग को न दबाया जा सका है और न कोई दबा पायेगा !
मानव ईमानदारी संभव ही नहीं है , हर एक के मन में लालच है फर्क केवल लालच की मात्रा का और मौके का है जिसे मौका नहीं मिल सका वह मजबूरी में ईमानदार है और बना भी रहेगा जब तक उसे जुगाड़ से कुछ अतिरिक्त धन न मिल जाए !
बताइये, आपके जीवन में आये लोग कितने ईमानदार हैं जो केवल अपनी सही आय पर गुज़ारा करते हैं ? इनमें से हर आदमी ने अपनी आय बढाने के तरीके निकाले हुए हैं !
इन सबके करप्शन पर पूरा एक लेख लिखा जा सकता है जिसे पढ़ कर आप भौचक्के रह जायेंगे ! हम दूसरों की बेईमानी जानकार चकित होते हैं और अपनी किसी को बताते नहीं ! अगर आपको यह लगे कि इस कार्य में कोई ऊपरी आमदनी नहीं है तो यह सिर्फ आपकी उस काम के प्रति अज्ञानता होगी और कुछ नहीं !
-काम वाली
-सड़क पर झाड़ू लगाने वाला
-रिक्शे वाला
-दूकान दार
-सब्जी वाला, फेरी वाला ,कबाड़ी वाला ,दूध वाला , पेपरवाला ,टैक्सी वाला ,हलवाई
-पंडित जी ,जागरण वाले लोग , मंदिर
-भिखारी
- सरकारी विभाग के कर्मचारी
-लाला के यहाँ कार्यरत लोग
-सरकार के कुछ ईमानदार (डरपोक )अधिकारी जिनके घरों में नौकर और गाड़ी व्स अन्य अवैध सरकारी सुविधाएँ होती हैं !
-गुरु जन एवं शैक्षिक संस्थाएं
-डॉक्टर
-घर बनाने वाले मिस्त्री और मजदूर
-होली दीवाली अपने फायदे के लिए गिफ्ट ( रिश्वत ) बंटते / लेते, हम सब लोग
-घर के बाहर आसानी से कूड़ा फेंकते, थूकते हम सब
और एक शब्द जो हम सब घरों में आम है, वह है ...
इससे हमें क्या फायदा ?
हम लालची लोग जब तक अपना फायदा नहीं देखते, कुछ नहीं करते , यही भ्रष्टाचार है !
मैंने अक्सर, अनजान लोगों को बिपत्ति में, अपना खून देते समय, अस्पताल के गेट पर छोड़ने आते, ऊपर से कृतज्ञ रिश्तेदारों के चेहरे पर राहत का, सुकून देखा है कि चलो एक मुर्गा तो फंसा और मैं इन लालची गरीबों पर दया खाते हुए, संतोष पूर्वक ब्लड बैंक से बाहर आता हूँ !
ये अपने जीवनसाथियों को मृत्यु आसन्न पाकर भी, अपना खून तक नहीं देते और चले हैं दूसरों का भ्रष्टाचार रोकने !
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उल्टा पेपर, गैर भाषा, पढ़ रहे विद्वान् हैं |
और हम लोग फिर इंतज़ार करते रहते कि अब हमारे घर भी नोट बरसेंगे..
मानव जीवन में, पौराणिक काल से लेकर आजतक , कोई काल ऐसा नहीं हुआ जहाँ वे बुरे काम नहीं हुए जो इस समय हो रहे हैं , फर्क केवल संचार साधनों का है जो उस समय नहीं पाए जाते थे और बेईमानियाँ , चोरी , काम लोलुपता आदि आसानी से सामाजिक भय के कारण छिपी रह जाती थीं .
अख़बारों में, आधुनिक स्कूलों में पढ़े लेखक, जिन्हें सुदूर गाँव, सूबों की सामंत शाही , राजशाही के बारे में रंच मात्र भी पता नहीं ,शहरी वातावरण में अपने गाल बजाते रहते हैं ! जिन ख़बरों पर मिडिया अपने दर्शक बटोरने के लिए दिन रात भोंपू बजाती रहती है , सदियों से, ऎसी करोड़ों ख़बरें, बदनामी भय के आतंक तले, घुट कर दम तोडती रही हैं , इसका अंदाजा किसे है ! मानव की राक्षसी शक्ति बढाने की अपरिमित इच्छा एवं शारीरिक भूख की मांग को न दबाया जा सका है और न कोई दबा पायेगा !
मानव ईमानदारी संभव ही नहीं है , हर एक के मन में लालच है फर्क केवल लालच की मात्रा का और मौके का है जिसे मौका नहीं मिल सका वह मजबूरी में ईमानदार है और बना भी रहेगा जब तक उसे जुगाड़ से कुछ अतिरिक्त धन न मिल जाए !
बताइये, आपके जीवन में आये लोग कितने ईमानदार हैं जो केवल अपनी सही आय पर गुज़ारा करते हैं ? इनमें से हर आदमी ने अपनी आय बढाने के तरीके निकाले हुए हैं !
इन सबके करप्शन पर पूरा एक लेख लिखा जा सकता है जिसे पढ़ कर आप भौचक्के रह जायेंगे ! हम दूसरों की बेईमानी जानकार चकित होते हैं और अपनी किसी को बताते नहीं ! अगर आपको यह लगे कि इस कार्य में कोई ऊपरी आमदनी नहीं है तो यह सिर्फ आपकी उस काम के प्रति अज्ञानता होगी और कुछ नहीं !
-काम वाली
-सड़क पर झाड़ू लगाने वाला
-रिक्शे वाला
-दूकान दार
-सब्जी वाला, फेरी वाला ,कबाड़ी वाला ,दूध वाला , पेपरवाला ,टैक्सी वाला ,हलवाई
-पंडित जी ,जागरण वाले लोग , मंदिर
-भिखारी
- सरकारी विभाग के कर्मचारी
-लाला के यहाँ कार्यरत लोग
-सरकार के कुछ ईमानदार (डरपोक )अधिकारी जिनके घरों में नौकर और गाड़ी व्स अन्य अवैध सरकारी सुविधाएँ होती हैं !
-गुरु जन एवं शैक्षिक संस्थाएं
-डॉक्टर
-घर बनाने वाले मिस्त्री और मजदूर
-होली दीवाली अपने फायदे के लिए गिफ्ट ( रिश्वत ) बंटते / लेते, हम सब लोग
-घर के बाहर आसानी से कूड़ा फेंकते, थूकते हम सब
और एक शब्द जो हम सब घरों में आम है, वह है ...
इससे हमें क्या फायदा ?
हम लालची लोग जब तक अपना फायदा नहीं देखते, कुछ नहीं करते , यही भ्रष्टाचार है !
मैंने अक्सर, अनजान लोगों को बिपत्ति में, अपना खून देते समय, अस्पताल के गेट पर छोड़ने आते, ऊपर से कृतज्ञ रिश्तेदारों के चेहरे पर राहत का, सुकून देखा है कि चलो एक मुर्गा तो फंसा और मैं इन लालची गरीबों पर दया खाते हुए, संतोष पूर्वक ब्लड बैंक से बाहर आता हूँ !
ये अपने जीवनसाथियों को मृत्यु आसन्न पाकर भी, अपना खून तक नहीं देते और चले हैं दूसरों का भ्रष्टाचार रोकने !
किसी भी काम करने से पहले अपना फायदा देखना ही भ्रष्टाचार का पहला कदम है,बेहतरीन प्रस्तुति.
ReplyDeleteबहुत गुस्सा आ रहा है। काश! यह गुस्सा सारे भारतवासियों में पैदा हो!
ReplyDeleteगुस्से से स्वास्थ्य खराब हो जाता है, आप तो बुद्धिजीवी वकील हैं, भ्रष्टाचार को कानूनी मान्यता दिलाने की पैरवी किजीये, सब चंगा हो जायेगा.
Deleteरामराम.
सच है, आपकी बातों से पूरी तरह सहमत हूं।
ReplyDeleteवाकई कई बार सोचता हूं कि इसकी रोकथाम की शुरुआत आखिर कहां से होगी और कौन करेगा।
ये अपने जीवनसाथियों को मृत्यु आसन्न पाकर भी, अपना खून तक नहीं देते ... अक्षरश: सहमत हूँ
ReplyDeleteयह सच है कि
धुँआ कहीं भी नहीं दिखाई देता,
पर एक आग है
जो हर मन को जला रही है
जब भीतर कुछ सुलगता है तो
कोहराम मच जाता है
ऐसा ही आक्रोश हर मन में है ....
बेहद निंदनीय
ReplyDeleteसही कहा आपने जिसको मौका मिला उसने चोरी किया जिसको नहीं मिला वह साधू है लेकिन सब भ्रष्टाचारी/चोर है.
ReplyDeleteडैश बोर्ड पर पाता हूँ आपकी रचना, अनुशरण कर ब्लॉग को
अनुशरण कर मेरे ब्लॉग को अनुभव करे मेरी अनुभूति को
latest post वटवृक्ष
मैंने अक्सर, अनजान लोगों को बिपत्ति में, अपना खून देते समय, अस्पताल के गेट पर छोड़ने आते, ऊपर से कृतज्ञ रिश्तेदारों के चेहरे पर राहत का, सुकून देखा है कि चलो एक मुर्गा तो फंसा और मैं इन लालची गरीबों पर दया खाते हुए, संतोष पूर्वक ब्लड बैंक से बाहर आता हूँ ! ....वो अपनी आदत से मजबूर जो रहते हैं ...सही पहचाना आपने लेकिन यदि हमने कुछ अच्छा किया है तो निश्चित ही उससे हमें सुकून मिलता है--- वे इसी तरह अपने धर्म निभाते हैं हम अपना ----
ReplyDeleteये अपने जीवनसाथियों को मृत्यु आसन्न पाकर भी, अपना खून तक नहीं देते और चले हैं दूसरों का भ्रष्टाचार रोकने !
....एकदम गहरे अनुभव से भरे शब्द भर नहीं हैं ये --- एक साफ़ दिल का आक्रोश है ..यही आक्रोश सभी नहीं तो कुछ लोगों में भी हो तो तस्वीर बदलते देर नहीं लगेगी ...
भ्रष्टाचार हमारे खून में - नहीं होता तो ३ प्रत्यक्ष और एक परोक्ष गुलामी क्यूं झेलते ?
ReplyDeleteसही कहा आपने।
Deleteआखिर कब होगा य भ्रष्टाचार का तांडव खत्म
ReplyDeleteak kadva sach jo desh me khaye ja raha hai
ReplyDeleteआपके अकेले के शब्द या आक्रोश नहीं है ये जन-जन का है...ज्वालामुखी में भी एक दिन विस्फोट हो ही जाता है .....
ReplyDeleteभ्रष्टाचार की ये आँधी कब रुकेगी ..? पता नही..
ReplyDeleteबिलकुल सही कहा है आपने अब तो भ्रष्टाचार हमारे खून में रच बस गया है !
ReplyDeleteधन संग्रह का लालच इतना हर एक के मन में बस गया है सिर्फ मात्रा का फर्क है, यदि
हर मनुष्य यह सोचे हम कितने इमानदार है ? तभी कुछ क्रांति संभव है ...हमने
लूटमार कर धन संग्रह करने वाले महान सिकंदरों की कहानिया इतिहास में पढ़ी लेकिन आज
के धनलोलुप सिकंदरों को देखे तो पुराने इनके सामने फीके पड़ जायेंगे !
आश्चर्य होता है जिस देश को पुण्यभूमि कहते नहीं थकते थे लोग आज उसी पुण्यभूमि पर शासक,
ReplyDeleteआफिसर्स, न्यायाधीश,उद्योगपति,व्यापारी,शिक्षा संस्थान, अध्यात्म के ठेकेदार ऐसा एक भी आदमी एक भी संस्था नहीं बची है जो भ्रष्ट नहीं है !
भ्रष्ट होना आजकल संपन्न होने की निशानी है.:)
Deleteरामराम.
ओशो एक बहुत प्यारी बात कहते है "मन की लोलुपता और सांसारिक भ्रष्टाचार से मुक्ति
ReplyDeleteपाने के लिए केवल एक ही उपाय है ध्यान की आँख खुलना " ....इसके आगे कितने ही निति के पाठ पढाओ या पढो सब व्यर्थ है ...अब तो सब लोग भी कहने लगे है भ्रष्टाचार को वैध ही कर दो :)
सही कहा आपने, ध्यान की आंख खुली कि संसार तिरोहित हुआ फ़िर सब कुछ बराबर है.
Deleteरामराम.
बहुत अच्छी पोस्ट के लिए बधाई, अंतिम प्यारा अच्छा लगा आभार !
ReplyDeleteमैंने अक्सर, अनजान लोगों को बिपत्ति में, अपना खून देते समय, अस्पताल के गेट पर छोड़ने आते, ऊपर से कृतज्ञ रिश्तेदारों के चेहरे पर राहत का, सुकून देखा है कि चलो एक मुर्गा तो फंसा और मैं इन लालची गरीबों पर दया खाते हुए, संतोष पूर्वक ब्लड बैंक से बाहर आता हूँ !
ReplyDelete....कटु सत्य।
देश के सूखी रोटी खाने वाले २५ करोड़ मलाई कभी नहीं खा पाते।
ReplyDeleteलेकिन मलाई खाने वाले भी सूखी रोटी ही खाते हैं,
बस ये बात वो समझ नहीं पाते।
क्या किया जाये? करोडों कमाने वाले लोग मन की मलाई खाते हैं, असल की मलाई तो डायबिटीज की वजह से नही खा पाते.:)
Deleteरामराम.
जैसे जैसे स्वार्थ हावी हो फैलता जाता है, भ्रष्टाचार फैलता जाता है।
ReplyDeleteBhrashtaachar hamare khoon me hai aur hamesha se tha
ReplyDeleteतिलक -दहेज़ को रोकने के लिए कानून बना ... मगर क्या वह आज खत्म हो गया ..भ्रस्त्रचार एक खत्म न होने वाली रासायनिक प्रतिक्रिया है
ReplyDeleteब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन संभालिए महा ज्ञान - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteभ्रष्टाचार का बहुत सही आकलन किया है आपने .....
ReplyDeleteकिसी को रक्तदान करने के बारे में तो कुछ न कहना ही अच्छा है .... सादर !
भ्रष्टाचार... सुरसा के मुंह की तरह बढ़ता ही जा रहा है
ReplyDeleteसहमत हूँ आपकी बातों से
यह सच है कि आम आदमी के खून में भ्रष्टाचार है लेकिन हम हमेशा राजनेताओं और अधिकारियों के बारे में ही चीखते रहते हैं। हम अपने अंदर झांककर कभी नहीं देखते।
ReplyDeleteभ्रष्टाचार कमोबेश सभी देशों मे हैं लेकिन भारत मे इसका पालन पोषण कुछ ज्यादा हो हो रहा है। आज हर एक घोटाला पहले वाले घोटाले को पछाड़ता हुआ प्रकट होता है , बहुत सटिक रचना
ReplyDeleteआपकी सभी बातों से अक्षरश: सहमत हैं. भ्रष्टाचार अति पौराणिक व्यवस्था है जिसे कंपाऊंडिंग टेक्स इत्यादि के द्वारा कानून मान्यता दिलाने के लिये आंदोलन चलाया जाना चाहिये ना कि इसे खत्म करने के लिये.
ReplyDeleteइससे सरकार की कमाई भी बढेगी और अनावश्यक टेक्सादि लगाकर हम जैसे गरीब लोगों को मदद मिलेगी.
रामराम.
और इस भ्रष्टाचार व्यवस्था निवारण अथॉरिटी का चेयरमैन ताऊ को बना दिया जाए तो सोने में सुहागा रहेगा !
Deleteआभार ताऊ आपका !
भ्रष्टाचार व्यवस्था निवारण अथॉरिटी का चेयरमैन ताऊ के सिवा कोई भी बनेगा तो इलाज नही हो पायेगा. इलाज करने के लिये ताऊ जैसा सर्टीफ़ाईड और अनुभवी डाक्टर ही होना चाहिये.:)
Deleteरामराम.
हा...हा...हा....हा......
Deleteसरकार मेरे ( ताऊ ) ,
मानते हैं कि आप अनुभवी हैं मगर मामला यदि करोड़ों के वारे न्यारे करने का हो तो अभी अखिल भारतीय भ्रष्टाचार भगाओ पार्टियों के कितने ही अध्यक्ष त्यागपत्र देकर आपके सामने मुकाबला करने खड़े हो जायेंगे , और ताऊ वे लोग कई बार मंत्री फंत्री भी रह चुके हैं उनसे मुकाबला आसान नहीं होगा !
भरोसा न हो तो हो जाए कम्पटीशन !
सादर
स्त्री शरीर है मैं पुरुष शरीर हूँ इसी शरीर में अटका आदमी जिए जा रहा है .आत्मा विकारों के नीचे दबी हुई है .
ReplyDeleteउम्र भर ग़ालिब एक ही गजल कहते रहे ,
चेहरे पे धूल थी ,आइना साफ़ करते रहे .
भ्रष्टाचार को हर एक के खून में देखने वाली बात एकदम सत्य है लेकिन जो बहुत छोटे लोग हैं वह क्या करें ? इमानदारी से वे अपने बच्चों का नहीं भर पाते हैं फिर क्या करेंगे ? भ्रष्टाचार दंडनीय तो वहां बन जाता है जहाँ करोड़ों में घूस ली जाती है . आय से अधिक संपत्ति जमा की जाती है . अपने पद से अपनों को ही लाभ पहुँचाने के रास्ते खोजे जाते हैं . बस वही बात कहीं दाल में नमक बराबर और कहीं सिर्फ दाल ही दाल पी रहे हैं .
ReplyDeleteखून देने के बारे में वाकई अपने सच कहा है . लोग अपना खून देने से कतराते हैं और दूसरे इंसानियत के नाते दे कर चले जाते हैं बगैर किसी स्वार्थ के.
आपकी बात से सहमत हूँ पर यहाँ मैं गरीबों रईसों की बात नहीं कर रहा बल्कि कटाक्ष उन लोगों पर है जो दिन रात दूसरों को गालियाँ देते हैं और अपनी खुद की आदत देखने / समझने का प्रयत्न ही नहीं करते..
Deleteभ्रष्ट आचार मानव के व्यवहार और सहज बुद्धि में है , जो मौक़ा मिलते ही अपना काम करता है !
बहुत सही विषय उठाया आपने .......कोइ बाख नही सका लेकिन इस सरकार जैसा कोइ कर भी नही सका ..........
ReplyDeleteबुरा जो देखन मैं चला, मुझसे बुरा ना मिलया कोय...
ReplyDeleteजय हिंद...
तब कर्मण्ये वाधिकारस्ते का अर्थ स्पष्ट नहीं था आज बदलते परिवेश में सब साफ़ नशे आता है वैसे भी आपको पढ़ने के बाद आँख का जाला साफ हो गया
ReplyDeleteएक ही घटना के र्प्रति अलग अलग लोगों का अलग अलग व्यवहार होता है। जैसे लोगों का आपने जिक्र किया है, ऐसे लोगों को देखकर मुझे तो लगता है कि ईमानदार और निस्वार्थी लोगों की जिम्मेदारी और भी बढ़ जाती है। कभी कभी क्षोभ उठना स्वाभाविक है और प्रयास यही होना चाहिये कि अपने हिस्से का भार हर कोई स्वयं उठा सके और इस काम में सक्षम करना दूसरों की भी जिम्मेदारी है।
ReplyDeleteतात्पर्य ये कि कल को हमारी जिम्मेदारी से आप बच नहीं सकते :)
बहुत पहले प्रतापगढ़ के एक लड़के से मिला था जिसे राज्य सरकार के सहकारिता विभाग में र्क्लक की नौकरी मिली थी. पर वह बिल्कुल खुश नहीं था क्योंकि वह किसी ऐसी नौकरी की राह तक रहा था जिसमें ऊपर की कमाई होती हो. मैं भौचक्का रह गया था. पर लगता है कि शायद वह अपने समय से बहुत आगे था और मैं कहीं बहुत पीछे छूट गया था...
ReplyDeleteयह उदाहरण आँखे खोलने के लिए काफी है , और यह कहानी एक नवजवान की है...
Deleteहम वाकई बहुत पीछे हैं !
हमारे यहाँ बड़ी-बड़ी बातें दूसरों को सुनाने के लिये की जाती है अपनी बार सब भुला कर स्वार्थ साधने में लग जाते हैं हम लोग.अपनी अच्छाइयाँ और दूसरों की बुराइयाँ गिनाने का तो पुराना रिवाज है !
ReplyDeleteसोलह आने सच्ची बात जो लोग भयंकर काले होते है गोरेपन की क्रीम पहले खरीदने में लगे रहते है कुछ यही सब भारतीयों में है अब जो जितना ही भ्रष्ट था पुलिस राशन दूकानदार पब्लिक स्कूल के कर्ता धर्ता वह सभी झंडा लेकर आगे खड़े होगये है सभी शोषक इस आन्दोलन में आ गए है कुछ नालायक चेहरे तो शीर्ष पर है इस आप दल में भगवान् ही मालिक है
ReplyDeleteनस नस में भरे इस खून को कैसे बदलेंगे ... अपने आप से सच नहीं बोलते तो दूसरों से कैसे बोलेंगे ...
ReplyDeleteखरी खोती सुना दी आपने ...
प्रभावपूर्ण प्रस्तुति...
ReplyDeleteहो रहा भारत निर्माण
ReplyDeleteपूरी तरह सच है
ReplyDelete