Friday, March 28, 2014

किसी के घर की लाड़ली, घर ले आये हो -सतीश सक्सेना

क्यों न रवैये , हम ऐसे अख्तियार करें !
बेटी जितना ही, दमाद  को प्यार करे !

राजनीति ने,धर्म का झंडा उठा लिया !  

बस्ती के बच्चों को भी, हुशियार करें !

और किसी की लाड़ली,घर ले आये हो  
इस बन्दर से अधिक,उसी को प्यार करें !

काले बादल,घुमड़ घुमड़ कर आये हैं,
इनका प्यार झेलने , छत तैयार करें !

सास तुम्हें भी पलकों पर ही रखतीं हैं  
अम्मा जैसा ही, उन को भी प्यार करें !

14 comments:

  1. क्यों न हर से प्यार करें, बेटी हो या दामाद, बेटा हो या बहू ...... :) सिर्फ प्यार करें :)

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  2. जैसे दामाद प्यारा होता है वैसे ही बहू भी प्यारी होनी चाहिए..बहुत बढिया..

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  3. बहुत प्यारी सीख देती ग़ज़ल...

    ~सादर

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  4. सीधे बोलिये ना बंदर को वोट मत दीजिये :) हा हा
    बहुत खूब घुमाया है ।

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  5. अच्छा ,तो बेटा बंदर हो गया - ये तो सरासर अन्याय है -उस बेचारे का क्या कुसूर ?

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  6. उतम विचार सुन्दर प्रस्तुति !
    लेटेस्ट पोस्ट कुछ मुक्तक !

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  7. बहुत महीन सी भावों को समेटा ह आपने इस रचना में , पढ कर अच्छा लगा..

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  8. काले बादल , चारो तरफ से आये हैं !
    इनका प्यार झेलने , छत तैयार करें !
    समझ जाये तो तीर का निशाना सही
    वरना माहौल पर ऐसे वार का क्या करें
    सादर

    ReplyDelete
  9. काले बादल , चारो तरफ से आये हैं !
    इनका प्यार झेलने , छत तैयार करें !
    समझ जाये तो तीर का निशाना सही
    वरना माहौल पर ऐसे वार का क्या करें
    सादर

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  10. सही बात है, काश सब ऐसा ही करें।

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  11. kitne pyare vichar hain,kash sabhi yesa karte....

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एक निवेदन !
आपके दिए गए कमेंट्स बेहद महत्वपूर्ण हो सकते हैं, कई बार पोस्ट से बेहतर जागरूक पाठकों के कमेंट्स लगते हैं,प्रतिक्रिया देते समय कृपया ध्यान रखें कि जो आप लिख रहे हैं, उसमें बेहद शक्ति होती है,लोग अपनी अपनी श्रद्धा अनुसार पढेंगे, और तदनुसार आचरण भी कर सकते हैं , अतः आवश्यकता है कि आप नाज़ुक विषयों पर, प्रतिक्रिया देते समय, लेखन को पढ़ अवश्य लें और आपकी प्रतिक्रिया समाज व देश के लिए ईमानदार हो, यही आशा है !


- सतीश सक्सेना

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