भी सरदारी में ,
बहुत शीघ्र गांधी,
सुभाष के गौरव को
गौतम बुद्ध की गरिमा
कबिरा के दोहे ,
सर्वधर्म समभाव
कलंकित कर दोगे !
बड़बोले हो दोस्त सिर्फ धनपतियों के
नील में रंगे सियार, तुम
मुझे क्या दोगे ?
मुझे क्या दोगे ?
दुःशाशन दुर्योधन शकुनि
न टिक पाएं !
झूठ की हांडी बारम्बार
न चढ़ पाए,
बरसों से अक्षुण्ण रहा
था, दुनियां में ,
भारत आविर्भाव,
कलंकित कर दोगे !!
भारत रत्न मिले, तुमको मक्कारी में
कितने धूर्त महान, तुम
मुझे क्या दोगे ?
है विश्वास मुझे तुम
जल्दी जाओगे !
बस अफ़सोस यही
अपयश दिलवाओगे
पंचशील सिद्धांत ,
सबक इतिहासों का
दोस्त पुराने भुला
नए दरवाजों पर ,
बचा खुचा सम्मान समर्पित कर दोगे
सबक इतिहासों का
दोस्त पुराने भुला
नए दरवाजों पर ,
बचा खुचा सम्मान समर्पित कर दोगे
हे अभिनय सम्राट , तुम
मुझे क्या दोगे ?
मुझे क्या दोगे ?
जय मां हाटेशवरी...
ReplyDeleteअनेक रचनाएं पढ़ी...
पर आप की रचना पसंद आयी...
हम चाहते हैं इसे अधिक से अधिक लोग पढ़ें...
इस लिये आप की रचना...
दिनांक 11/10/2016 को
पांच लिंकों का आनंद
पर लिंक की गयी है...
इस प्रस्तुति में आप भी सादर आमंत्रित है।
Hello ! This is not spam! But just an invitation to join us on "Directory Blogspot" to make your blog in 200 Countries
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Chris
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आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" बुधवार 12 अक्टूबर 2016 को लिंक की गई है.... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteएक अलग-सी रचना
ReplyDeleteकरने का कुछ नहीं होता है
ReplyDeleteखिसियाहट बहुत ही होती है
ठंड पड़ती है
खींच कर
दिये तमाचे से
आपके हमेशा
थोड़ा सा तसल्ली
सी ही सही
मगर होती है ।
आज के राजनीति माहोल पे आपके विचारों का स्वागत ...
ReplyDeleteबहुत बढ़िया ..सादर _/\_
ReplyDeleteधूर्त नाटकबाज़ों से कुछ नहीं सधेगा ,किस प्रकार उनसे पीछा छूटे यही सोचना है.
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