tag:blogger.com,1999:blog-6340570424549373370.post2728351912668563384..comments2024-03-27T14:44:27.129+05:30Comments on मेरे गीत !: कांटे बबूल के -सतीश सक्सेनाSatish Saxena http://www.blogger.com/profile/03993727586056700899noreply@blogger.comBlogger14125tag:blogger.com,1999:blog-6340570424549373370.post-11988585384625338442011-01-01T21:18:29.157+05:302011-01-01T21:18:29.157+05:30जनाब डा. अमर कुमार साहब से एक विनम्र विनती
1. जनाब...<a href="http://commentsgarden.blogspot.com/2011/01/holy-family.html" rel="nofollow">जनाब डा. अमर कुमार साहब से एक विनम्र विनती</a><br />1. जनाब डा. अमर कुमार साहब ! आप ख़ैरियत के साथ हमारे दरम्यान वापस लौट आएं, इसके लिए मैंने अपने रब से दुआ की थी। अब आप हमारे दरम्यान हैं। मैंने बतौर शुक्रे मौला दो रकअत नमाज़ नफ़्ल अदा की और आपके लिए फिर दुआ की।<br />आपकी टिप्पणी से आपके इल्मो-फ़ज़्ल को पहचाना जा सकता है। आपने जिहादे कबीर और जिहादे सग़ीर को उसके सही संदर्भ में समझा। यह एक मुश्किल काम था। नफ़रत की आंधियों में दुश्मनी की धूल लोगों की आंखों में पड़ी है। ऐसे में भी आपने खुद को बचाया, वाक़ई बड़ी बात है। इस्लाम के ख़िलाफ़ दुर्भावना का शिकार हो जाना आज राष्ट्रवाद की पहचान बन चुका है। आपके कलाम को सराहने वाले कुछ टिप्पणीकार भी अपने ब्लाग पर दुर्भावनाग्रस्त देखे जा सकते हैं।<br />आपने पूछा है कि ऐसे सच्चे मुजाहिद आज कहां हैं ?<br />ऐसे मुजाहिद आज भी हर जगह हैं जिनकी आप तारीफ़ कर रहे हैं। अगर वे न होते तो आज समाज में सही-ग़लत की तमीज़ न होती, नैतिकता न होती, धर्म न होता, समाज न होता, यह आलम ही क़ायम न होता। दो चार नहीं, हज़ार दो हज़ार नहीं बल्कि दस लाख ऐसे सत्यसेवी चरित्रवान आदमी तो मैं दिखा सकता हूं आपको। दिखा तो ज़्यादा सकता हूं लेकिन आपके लिए स्वीकारना सहज हो जाए, इसलिए तादाद कम लिख रहा हूं।<br />सत्य को पहचानना इंसान का धर्म है। जिस तथ्य और सिद्धांत को आदमी सत्य के रूप में पहचान ले, उसके अनुसार व्यक्तिगत और सामूहिक रूप से, व्यवस्थित रूप से सामाजिक,राजनैतिक, आर्थिक व अन्य कर्तव्य पूरा करना धर्म है। न तो ईश्वर सौ-पचास हैं और न ही धर्म। सबका मालिक एक है तो सबका धर्म भी एक ही है। दार्शनिकों की किंतु-परंतु और ईशवाणी में क्षेपक के कारण आज बहुत से मत समाज में मौजूद हो गए हैं। मत कभी धर्म नहीं होता और सारे मत कभी सही नहीं होते। एक दूसरे के मत की समीक्षा-आलोचना सदा से होती आई है। एक इलाक़े के प्रचारक सदा से दूसरे मत वालों के दरम्यान देश में भी गए हैं और विदेश में भी। महात्मा बुद्ध ने भी विदेश में अपने मत के प्रचारक भेजे और खुद दयानंद और विवेकानंद भी विदेश में गए अपने मतों का प्रचार करने के लिए और आज भी असंख्य हिंदू गुरू विश्व भर में सभी मत वालों के दरम्यान प्रचार कार्य कर रहे हैं। परमहंस योगानंद का नाम भी इसी कड़ी में लिया जा सकता है। ‘इस्कॉन‘ अर्थात ‘हरे रामा हरे कृष्णा‘ वाले इस बात की एक ज़िंदा मिसाल हैं। ‘इस्कॉन‘ अर्थात ‘हरे रामा हरे कृष्णा‘ और ऐसे ही दीगर बहुत से हिंदू गुरू सभी मत वालों के सामने अपनी आयडियोलॉजी पेश कर रहे हैं। जब कोई प्रचारक दुनिया जहान के सामने अपनी विचारधारा रखता है तो वह आलोचना-समीक्षा को स्वतः ही आमंत्रित करता है। हरेक नया गुरू एक नए मत की बुनियाद रखकर पहले से ही मतों में विभाजित मानव जाति को और ज़्यादा बांटने का काम कर रहा है। मतों की दीवार इंसान के विचार पर टिकी हैं। इंसान का विचार कोई भी हो, उसे समीक्षा आलोचना से परे नहीं माना जा सकता। ख़ासकर तब जबकि उसके प्रचारक सारी दुनिया में उसका प्रचार कर रहे हों।<br />धर्म एक है। वसुधा एक है और सारी धरती के लोग एक ही परिवार है और इस परिवार का अधिपति परमेश्वर है। वही एक उपासनीय है और उसी के द्वारा निर्धारित कर्तव्य करणीय हैं, धारणीय हैं। जो बात सही है वह सबके लिए सही है। हवा , रौशनी और पानी सबके लिए एक ही तासीर रखती हैं। जो चीज़ बुरी है वह सबके लिए बुरी है। नशा, ब्याज, दहेज, व्यभिचार और शोषण के सभी रूप हरेक समाज के लिए घातक हैं। अगर पड़ौस में भी कोई अपने बच्चे की पिटाई कर रहा हो तो आस पास के लोग चीख़ पुकार सुनकर मामले को सुलझाने के लिए पहंुचते हैं। उन्हें सज्जन माना जाता है। उनसे कोई नही कहता कि आप दूसरे की चारदीवारी में आ कैसे गए ?<br />और यहां तो घर-परिवार दूसरा भी नहीं है बल्कि एक ही है। बहुत से घरों की विभाजनकारी और विध्वंसक कल्पना का अब अंत हो ही जाना चाहिए। कम से कम आप जैसे विद्वानों के हाथ से ही यह संभव भी है।<br />सादर !<br />मालिक से दुआ है कि वह आपका और सतीश जी का साया हम पर देर तक बनाए रखे।<br />आमीन !<br />तथास्तु !!<br /><br />एक लेख पर आप नज़र डाल लेंगे तो मैं आपका आभारी होऊंगा।<br /><br />1- Islam is Sanatan . सनातन है इस्लाम , मेरा यही पैग़ामby Anwer Jamal <br /><br /> 2- Father Manu मैं चैलेंज करता हूँ कि पूरी दुनिया में कोई एक ही आदमी यह साबित कर दे कि मनु ने ऊँच नीच और ज़ुल्म की शिक्षा दी है , है कोई एक भी विद्वान ? Anwer Jamal<br /><br /> http://ahsaskiparten.blogspot.com/2010/12/islam-is-sanatan-by-anwer-jamal.html<br /><br />http://ahsaskiparten.blogspot.com/2010/11/father-manu-anwer-jamal_25.htmlDR. ANWER JAMALhttps://www.blogger.com/profile/06580908383235507512noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6340570424549373370.post-51699310602538523552011-01-01T21:17:24.460+05:302011-01-01T21:17:24.460+05:30This comment has been removed by a blog administrator.DR. ANWER JAMALhttps://www.blogger.com/profile/06580908383235507512noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6340570424549373370.post-86684474226592666452011-01-01T21:16:51.221+05:302011-01-01T21:16:51.221+05:30जनाब डा. अमर कुमार साहब से एक विनम्र विनती
1. जनाब...<a href="http://commentsgarden.blogspot.com/2011/01/holy-family.html" rel="nofollow">जनाब डा. अमर कुमार साहब से एक विनम्र विनती</a><br />1. जनाब डा. अमर कुमार साहब ! आप ख़ैरियत के साथ हमारे दरम्यान वापस लौट आएं, इसके लिए मैंने अपने रब से दुआ की थी। अब आप हमारे दरम्यान हैं। मैंने बतौर शुक्रे मौला दो रकअत नमाज़ नफ़्ल अदा की और आपके लिए फिर दुआ की।<br />आपकी टिप्पणी से आपके इल्मो-फ़ज़्ल को पहचाना जा सकता है। आपने जिहादे कबीर और जिहादे सग़ीर को उसके सही संदर्भ में समझा। यह एक मुश्किल काम था। नफ़रत की आंधियों में दुश्मनी की धूल लोगों की आंखों में पड़ी है। ऐसे में भी आपने खुद को बचाया, वाक़ई बड़ी बात है। इस्लाम के ख़िलाफ़ दुर्भावना का शिकार हो जाना आज राष्ट्रवाद की पहचान बन चुका है। आपके कलाम को सराहने वाले कुछ टिप्पणीकार भी अपने ब्लाग पर दुर्भावनाग्रस्त देखे जा सकते हैं।<br />आपने पूछा है कि ऐसे सच्चे मुजाहिद आज कहां हैं ?<br />ऐसे मुजाहिद आज भी हर जगह हैं जिनकी आप तारीफ़ कर रहे हैं। अगर वे न होते तो आज समाज में सही-ग़लत की तमीज़ न होती, नैतिकता न होती, धर्म न होता, समाज न होता, यह आलम ही क़ायम न होता। दो चार नहीं, हज़ार दो हज़ार नहीं बल्कि दस लाख ऐसे सत्यसेवी चरित्रवान आदमी तो मैं दिखा सकता हूं आपको। दिखा तो ज़्यादा सकता हूं लेकिन आपके लिए स्वीकारना सहज हो जाए, इसलिए तादाद कम लिख रहा हूं।<br />सत्य को पहचानना इंसान का धर्म है। जिस तथ्य और सिद्धांत को आदमी सत्य के रूप में पहचान ले, उसके अनुसार व्यक्तिगत और सामूहिक रूप से, व्यवस्थित रूप से सामाजिक,राजनैतिक, आर्थिक व अन्य कर्तव्य पूरा करना धर्म है। न तो ईश्वर सौ-पचास हैं और न ही धर्म। सबका मालिक एक है तो सबका धर्म भी एक ही है। दार्शनिकों की किंतु-परंतु और ईशवाणी में क्षेपक के कारण आज बहुत से मत समाज में मौजूद हो गए हैं। मत कभी धर्म नहीं होता और सारे मत कभी सही नहीं होते। एक दूसरे के मत की समीक्षा-आलोचना सदा से होती आई है। एक इलाक़े के प्रचारक सदा से दूसरे मत वालों के दरम्यान देश में भी गए हैं और विदेश में भी। महात्मा बुद्ध ने भी विदेश में अपने मत के प्रचारक भेजे और खुद दयानंद और विवेकानंद भी विदेश में गए अपने मतों का प्रचार करने के लिए और आज भी असंख्य हिंदू गुरू विश्व भर में सभी मत वालों के दरम्यान प्रचार कार्य कर रहे हैं। परमहंस योगानंद का नाम भी इसी कड़ी में लिया जा सकता है। ‘इस्कॉन‘ अर्थात ‘हरे रामा हरे कृष्णा‘ वाले इस बात की एक ज़िंदा मिसाल हैं। ‘इस्कॉन‘ अर्थात ‘हरे रामा हरे कृष्णा‘ और ऐसे ही दीगर बहुत से हिंदू गुरू सभी मत वालों के सामने अपनी आयडियोलॉजी पेश कर रहे हैं। जब कोई प्रचारक दुनिया जहान के सामने अपनी विचारधारा रखता है तो वह आलोचना-समीक्षा को स्वतः ही आमंत्रित करता है। हरेक नया गुरू एक नए मत की बुनियाद रखकर पहले से ही मतों में विभाजित मानव जाति को और ज़्यादा बांटने का काम कर रहा है। मतों की दीवार इंसान के विचार पर टिकी हैं। इंसान का विचार कोई भी हो, उसे समीक्षा आलोचना से परे नहीं माना जा सकता। ख़ासकर तब जबकि उसके प्रचारक सारी दुनिया में उसका प्रचार कर रहे हों।<br />धर्म एक है। वसुधा एक है और सारी धरती के लोग एक ही परिवार है और इस परिवार का अधिपति परमेश्वर है। वही एक उपासनीय है और उसी के द्वारा निर्धारित कर्तव्य करणीय हैं, धारणीय हैं। जो बात सही है वह सबके लिए सही है। हवा , रौशनी और पानी सबके लिए एक ही तासीर रखती हैं। जो चीज़ बुरी है वह सबके लिए बुरी है। नशा, ब्याज, दहेज, व्यभिचार और शोषण के सभी रूप हरेक समाज के लिए घातक हैं। अगर पड़ौस में भी कोई अपने बच्चे की पिटाई कर रहा हो तो आस पास के लोग चीख़ पुकार सुनकर मामले को सुलझाने के लिए पहंुचते हैं। उन्हें सज्जन माना जाता है। उनसे कोई नही कहता कि आप दूसरे की चारदीवारी में आ कैसे गए ?<br />और यहां तो घर-परिवार दूसरा भी नहीं है बल्कि एक ही है। बहुत से घरों की विभाजनकारी और विध्वंसक कल्पना का अब अंत हो ही जाना चाहिए। कम से कम आप जैसे विद्वानों के हाथ से ही यह संभव भी है।<br />सादर !<br />मालिक से दुआ है कि वह आपका और सतीश जी का साया हम पर देर तक बनाए रखे।<br />आमीन !<br />तथास्तु !!<br /><br />एक लेख पर आप नज़र डाल लेंगे तो मैं आपका आभारी होऊंगा।<br /><br />1- Islam is Sanatan . सनातन है इस्लाम , मेरा यही पैग़ामby Anwer Jamal <br /><br /> 2- Father Manu मैं चैलेंज करता हूँ कि पूरी दुनिया में कोई एक ही आदमी यह साबित कर दे कि मनु ने ऊँच नीच और ज़ुल्म की शिक्षा दी है , है कोई एक भी विद्वान ? Anwer Jamal<br /><br /> http://ahsaskiparten.blogspot.com/2010/12/islam-is-sanatan-by-anwer-jamal.html<br /><br />http://ahsaskiparten.blogspot.com/2010/11/father-manu-anwer-jamal_25.htmlDR. ANWER JAMALhttps://www.blogger.com/profile/06580908383235507512noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6340570424549373370.post-41833031000704501912010-12-28T19:18:11.651+05:302010-12-28T19:18:11.651+05:30स्वागत है डॉ अमर कुमार जी।
वही जिन्दादिली वही जोश...स्वागत है डॉ अमर कुमार जी।<br /><br />वही जिन्दादिली वही जोश, सलामत रहे।<br /><br />जल्द ही पूर्ण स्वास्थ्य लाभ प्राप्त करें।<br />आपकी,जेहाद की सार संक्षिप्त व्याख्या पूर्ण सत्य है।<br /><br />मन की दुर्भावनाओं को दूर करने का संघर्ष।<br />और धर्म की सुरक्षा (केवल सुरक्षा)के लिए संघर्ष।सुज्ञhttps://www.blogger.com/profile/04048005064130736717noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6340570424549373370.post-33317802003102942072010-12-28T19:17:10.281+05:302010-12-28T19:17:10.281+05:30सुपाडा मेरे याहं भी तशरीफे थे साथमें अपनी भगिनी मस...सुपाडा मेरे याहं भी तशरीफे थे साथमें अपनी भगिनी मस्तानी को लेकर ....ये वही 'म' कार लोग हैं भाई जिनकी तारीफदारी करने के हम गुनाहगार रहे हैं !Arvind Mishrahttps://www.blogger.com/profile/02231261732951391013noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6340570424549373370.post-42752372315756973792010-12-28T08:18:37.271+05:302010-12-28T08:18:37.271+05:30डॉ अमर कुमार ,
बड़ा सुकून मिला बड़े भाई आपको हँसत...<b><br />डॉ अमर कुमार ,<br /><br />बड़ा सुकून मिला बड़े भाई आपको हँसते हुए देख कर......<br /><br />आशा है हमें हंसाने की कोशिश करते रहोगे ( स्वार्थी हमेशा छोटे ही रहते हैं बड़ों की तकलीफ से भला हमें क्या लेना देना ) ! <br /><br />आज आपसे सिर्फ मोडरेशन की बात करूंगा ......<br /><br />तीखा और कटु सत्य लोगों को आसानी से हज़म नहीं होता अतः अकसर मेरे ब्लॉग पर अश्लील, घटिया और बेहूदी टिप्पणिया आती है ! <br /><br />हाल का उदाहरण बता रहा हूँ , मेरी नवीनतम पोस्ट, एक साधारण कविता पर,सुपाडा सिंह अपने चित्र के साथ, वाह वाह कर गए और उस दिन गलती से मोडरेशन नहीं लगा था नतीजा वह चित्र काफी महिलाओं और बच्चों ने भी देखा होगा ! <br /><br />मानसिक विकृत लोगों के मध्य, तेज आवाज में बोलते हुए, काम करने के फल, जब आप देखेंगे, आपको भी माडरेशन का उपयोग करना पड़ेगा ! <br /><br />अक्सर मेरे ब्लॉग पर लोग एक दूसरे को अपमानजनक शब्द कहते हैं उन्हें प्रकाशित करना कानूनन अपराध है सो माडरेशन लगाना ही चाहिए भले आप जैसे लोग इसे अभिव्यक्ति का गला घोंटना माने !<br /><br />सादर</b>Satish Saxena https://www.blogger.com/profile/03993727586056700899noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6340570424549373370.post-48723222440570039772010-12-27T22:18:17.048+05:302010-12-27T22:18:17.048+05:30लँगूर = इँसानी फ़ितरत का एक चालाक ज़ानवर
मस्जिद की म...<i>लँगूर = इँसानी फ़ितरत का एक चालाक ज़ानवर<br />मस्जिद की मीनारें = एक फ़िरके के तरफ़दार <br />मंदिर के कंगूरे = दूसरे तबके की दरोदीवार<br /><br />यह मुआ लँगूर सदियों से दोनों बिल्लियों को लड़वा कर अपनी रोटी सेंक रहा है !<br />अनवर साहब मुआफ़ी अता की जाये तो एक सीधा सवाल आपसे है, अल्लाह के हुक्म की तामील में कितने मुस्लमीन भाई ज़ेहाद अल अक़बर को अख़्तियार कर पाते हैं और इसके दूसरी ज़ानिब क्यों इन भाईयों को ज़ेहाद अल असग़र का रास्ता आसान लगता है ? वज़ह साफ़ है, अरबी आयतों के रटे रटाये मायनों में दीन की सही शक्लो सूरत का अक्स नहीं उतरता । <br />यही बात शायद हम पर भी लागू होता हो, चँद सतरें सँसकीरत की, जिन्हें हम मँत्र कहते कहते इँसानी के तक़ाज़ों से मुँह फेर लेते हैं, यह क्या है ? यह चँद चालाक हाफ़िज़-मुल्लाओं औए शास्त्री-पँडितों की रोज़ी है, लेकिन बतौर आम शहरी अगर हम इन्हें समझ कर भी नासमझ बने रहने में अपने को महफ़ूज़ पाते हैं , हद है !<br /><br />ज़ेहाद का क़ुरान में मतलब है- बुराइयों से दूर रहने के लिए मज़हब को अख़्तियार करना ...और इसके दो तरीके बताए गए हैं। एक तो तस्लीमातों का रास्ता-ज़ेहाद अल अक़बर ....इसका मतलब है आदमी अपनी बुराइयों को दूर करें....दूसरा है ज़ेहाद अल असग़र... अपने दीन की हिफ़ाज़त के लिए भिड़ना.... अगरचे इस्लाम पर ईमान लाने में कोई अड़चन लाये,...किसी मुस्लिम बिरादरान पर कोई किस्म का हमला हो, मुसलमानों से नाइँसाफ़ी हो रही हो, ऐसी हालत में इस तरह के हथियारबन्द ज़ेहाद छेड़ने की बात है, मगर अब इसका मिज़ाज़ ओ मतलब ही बदल गया है...ज़ेहन में ज़ेहाद का नाम आते ही सियासी मँसूबों की बू आती है, यही वज़ह है कि ज़ेहाद के नाम को दुनिया में बदनामियाँ मिलती आयीं हैं ।<br />हम लड़ भिड़ कर एक दूसरे की तादाद भले कम कर लें, एक दूसरे के यक़ीदे को फ़तह नहीं कर सकते.. तो फिर क्या ज़रूरत है.. एक दूसरे की चहारदिवारी में झाँकने की ?<br /></i><br />████████████████████████████████<br />Down with Moderation<br />████████████████████████████████<br /><i>सतीश भाई, दो घँटे पहले अस्पताल से लौट कर टिप्पणी करने में, मैं आपको रहस्यमय भले ही लगूँ ! पर रहा नहीं गया और मैं टीप बैठा.. मेरी लियाकतें लचर सही, मगर इसे छाप देना ओ ब्लॉगमालिक माई बाप !</i>डा० अमर कुमारhttps://www.blogger.com/profile/09556018337158653778noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6340570424549373370.post-88507068863965427092010-12-26T22:55:45.227+05:302010-12-26T22:55:45.227+05:30मुझे जो कहना था इस लेख में स्पष्ट कर चुका हूँ ... ...<b><br />मुझे जो कहना था इस लेख में स्पष्ट कर चुका हूँ ... <br />इसका अर्थ सामान्य है और कोई भी व्यक्ति समझ सकता है बार बार स्पष्टीकरण देना मैं उचित नहीं समझता ! <br />जो समझना ही न चाहें उन्हें समझाने की कोशिश सिर्फ बेवकूफी ही होगी !<br /><br />आप दोनों को आदर सहित !<br /></b>Satish Saxena https://www.blogger.com/profile/03993727586056700899noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6340570424549373370.post-58795488763754445452010-12-26T21:32:33.638+05:302010-12-26T21:32:33.638+05:30यहाँ जो बहस हो रही; है उसका कोई मतलब मुझे समझ मैं ...यहाँ जो बहस हो रही; है उसका कोई मतलब मुझे समझ मैं नहीं आता?आप ज़रा उनलोगों को देखें जिन्होंने लेख़ या कविता; भेजी; है "अमन का पैग़ाम" पे; वोह बड़े और समझदार ब्लोगेर्स हैं. और हकीकत मैं काबिल ए इज्ज़त और काबिल ए फख्र हैं और आप बहुत ध्यान दे देखें उसको पढने वाले और तारीफ करने वाले वोह भी हैं , जिन्होंने कुछ दिन पहले ही ब्लॉगजगत के धर्म युद्ध मैं बड़े बड़े किरदार अदा किये हैं. आज जब वही लोग; अमन और शांति का सन्देश देते हैं, तो किसी को; यह अमन के पैग़ाम की कामयाबी; नहीं लगती . क्यों?कोई तो कारण होगा की आज कुछ लोग अलग अलग बहाने से "अमन का पैग़ाम" के खिलाफ बोल रहे हैं. क्यों? शायद इसका जवाब मैं खुद तलाश रहा हूँ?क्यों की यह तो सत्य है की शांती सन्देश देना कम से कम किसी धर्म के खिलाफ बोलने से तो अच्छा ही है.<a href="http://bezaban.blogspot.com/2010/12/blog-post_26.html" rel="nofollow">जबकि यहाँ की बहस; यह बता रही है की दूसरे के धर्म पे व्यंग करना अमन के पैग़ाम देने बेहतर काम है..</a> मेरे नाम से संबोधित करके बात कही जा रही थी इसी कारण मेरे लिए कुछ कहना आवश्यक हो गया... <a href="http://bezaban.blogspot.com/2010/12/blog-post_26.html" rel="nofollow">ज़रा यह पोस्ट पढ़ लें; शायद आप समझ जाएं..ग़लत कहा हो रहा है..</a><br />सतीश जी, किसी ब्लॉग पे टिप्पणी करने वालों की टिप्पणी का असर उस ब्लॉग पे भी; पड सकता है. मैं इस बात से सहमत नहीं. लेकिन इस बात की ख़ुशी; अवश्य हुई की आप ने; हकीकत बयान कर दी और यह बात भी साफ़ हो गयी की अमन के पैग़ाम पे बेहतरीन; लेख़ , कविताओं और ब्लोगेर्स के सहयोह के बाद भी, लोग क्यों नहीं आ रहे?सतीश जी मज़हब के लँगूर उन लोगों को कहा जाता है जो लोगों में नफरत फ़ैलाने का काम करते हैं यह बात सही हैं., लेकिन यह लंगूर सभी धर्म मैं मौजूद हैं. शायद आप इस बात से सहमत होंगे..अमन का पैग़ाम ऐसे ही लंगूरों के को इंसान बनाने के लिए आया है..और ऐसे ही लंगूरों की साजिशों का शिकार भी हो रहा है..सतीश जी यदि मैं ऐसा ब्लोगर भी दिखा सकता हूँ; जिसने दूसरे धर्म का मज़ाक उदय; है अपने ब्लॉग से लेकिन आप की ही नज़र मैं नहीं आ पाया और आप उसकी हिमायत कर गए तो? यह इस लिए कह रहा हूँ क्यों की आप की नज़र मैं आ जाता तो आज आप उसके खिलाफ भी कुछ कह रहे होते ऐसी मुझे आशा है.वैसे एक बात कहता चलूँ कोई व्यक्ति; ज़िंदगी के हर दौर मैं एक जैसा; नहीं रहता. इस लिए जब कोई शांति की बात करे तो उसका साथ दो और जब वही नफरत की बात करे तो उसके खिलाफ बोलो.. क्यों की नफरत व्यक्ति से नहीं उसकी बुराईयों; से की जाती है..<br>मैं हमेशा कहता हूँ यह ना देखो कौन कर रहा है बल्कि यह देखो क्या कह रहा है..<a href="http://bezaban.blogspot.com/2010/12/blog-post_26.html" rel="nofollow">यह लेख़ भी पढ़ लें जो बहुत कुछ कह रहा है..और वहां यह भी बता दें आप के क्या विचार हैं...</a>S.M.Masoomhttps://www.blogger.com/profile/00229817373609457341noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6340570424549373370.post-75425750859493918972010-12-26T20:17:51.215+05:302010-12-26T20:17:51.215+05:30अनवर भाई ...
कृपया उपरोक्त पोस्ट दुबारा पढ़ें , वह...<b><br />अनवर भाई ...<br />कृपया उपरोक्त पोस्ट दुबारा पढ़ें , वहां सबसे नीचे यह अनुरोध है कि इस पोस्ट पर टिप्पणियां न करें, अगर यह अनुरोध नहीं होता तो आज टिप्पणिया ५० से अधिक होतीं मगर मुझे एक दूसरे को भला बुरा कहने वाली टिप्पणियां यहाँ नहीं चाहिए और न अपनी वाहवाही बाली पोस्ट ! आपकी टिप्पणी प्रकाशित इसीलिए कर रहा हूँ कि विषय आप से ही सम्बंधित है ! <br /><br />मैं हर उस आदमी को बुरा मानता हूँ जो दूसरों की आस्था का मूल्यांकन करे, आपकी आलोचना और आपसे मेरी दूरी का कारण सिर्फ यही है ........<br /> <br />अगर वास्तव मझे अग्रज का दर्जा दे रहे हैं तो आज से हिन्दू धर्म के ऊपर कुछ भी न लिखें न अच्छा न आलोचनात्मक ...यह आपका विषय नहीं है !<br /><br />जो इस्लाम में कमियां निकालने का प्रयत्न करे उसकी टिप्पणी अपने ब्लॉग पर प्रकाशित कर, यह अहसास कराने का कार्य न करे कि आप जुल्म का शिकार हैं ! <br /><br />कोई सच्चा और सही व्यक्ति दूसरे का मज़ाक नहीं उडाएगा यह कार्य वही करते हैं जो खुद दूषित हैं ! चाहे वह काम किसी भी धर्म के खलाफ क्यों न किया जाए ...<br /><br />आपके प्रेम पर शक नहीं है ! चिंता है आपके सोच की जिसको बदलने में मैं अपने आपको नाकाम मान रहा हूँ !<br /><br />यह एक महान देश है अनवर भाई हम दोनों इसी जमीन में पैदा हुए और यही मिटटी में मिल जायेंगे ..इस मिटटी और यहाँ के नमक का ख़याल रखते हुए जो दायित्व हैं उन्हें हम दोनों को पूरा करना होगा ! <br /><br />क्षणिक कडवाहट भुलाने वाले और समाज हित में काम करने वालों को देश याद रखता है ! हर हालत में साथ रहकर जीना सीखना पड़ेगा ...अन्यथा इतिहास हरगिज़ माफ़ नहीं करेगा ...</b>Satish Saxena https://www.blogger.com/profile/03993727586056700899noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6340570424549373370.post-28535410692099586382010-12-26T19:39:57.983+05:302010-12-26T19:39:57.983+05:30जनाबे आली ! आप एक कवि हैं और कवि कुछ भी सोचने के ल...जनाबे आली ! आप एक कवि हैं और कवि कुछ भी सोचने के लिए आजाद होता है । आपको मैं अपना बड़ा भी मानता हूँ और एक बड़ा अपने छोटे को कुछ भी कहने का पूरा राइट रखता है हमारे क़स्बाई समाज में। <br />आप दूसरे धर्म में नम्रतापूर्वक कमियां निकालने वाले को लंगूर मानते हैं तब तो धृष्टतापूर्वक कमियां निकालने वालों को आप निश्चित ही भेड़िया मानते होंगे ?<br />नाम मैं लूंगा नहीं क्योंकि ...<br /><br />ख़ैर , पूरा दिन गुज़र गया और ले देकर 4 टिप्पणियां ही नज़र आ रही हैं । उनमें भी 3 तो हम बड़े मियां छोटे मियां की ही हैं ।<br />ये हुआ तो क्या हुआ ?<br />'अमन के पैग़ाम' पर भी आपके साथ ऐसा न हुआ जो कि अब आपके निजी ब्लाग पर होता हुआ हर कोई देख रहा है ।<br />अब आपको कुछ नए विषय तलाशने होंगे ! <br />अंत में<br />आप मेरे निज अस्तित्व पर कितनी भी चोट करें मैं आपको कभी पलटकर जवाब न दूंगा । बड़ों की डांट डपट और गालियां छोटों को दुआएं बनकर लगते हुए मैं आए दिन देखता हूं ।<br />इसीलिए मेरे शब्दों में या मेरे लहजे में आपके लिए सिर्फ़ और सिर्फ़ सम्मान है , प्रेम है और कुछ भी नहीं ।<br />जीवन जा रहा है और मौत क़रीब से क़रीबतर आती जा रही है । जब हम मरकर उस लोक में इकठ्ठा होंगे जहां आप मेरी आत्मा के भाव को प्रकट देख सकेंगे तब आप यक़ीनन जान लेंगे कि दुनिया में आपसे मेरा प्रेम सच्चा था ।<br />एक संवेदनशील आदमी से इतनी आर्द्र विनती पर्याप्त मानी जानी चाहिए ।<br /><br />एक यादगार और अनुपम पोस्ट !<br />कई कोण से !!DR. ANWER JAMALhttps://www.blogger.com/profile/06580908383235507512noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6340570424549373370.post-25523438353467065782010-12-26T17:55:19.252+05:302010-12-26T17:55:19.252+05:30@ डॉ अनवर जमाल ,
अफ़सोस है कि आपने मेरा लेख ध्यान...<b><br />@ डॉ अनवर जमाल ,<br /><br />अफ़सोस है कि आपने मेरा लेख ध्यान से नहीं पढ़ा , मज़हब के लँगूर उन लोगों को कहा जाता है जो लोगों में नफरत फ़ैलाने का काम करते हैं !जो लोग अपने धर्म को छोड़ दूसरे धर्मों की कमियां, विनम्रता से भी बताएं मेरे विचार से वे इस देश के समाज के दोषी हैं ! खैर ...<br /><br />मैं समाज सुधारक नहीं हूँ न धार्मिक नेता अतः मैं यह बहस यहाँ नहीं छेड़ सकता , आप जो कर रहे हैं आप उसके जिम्मेवार खुद हैं ! आपने मेरी चर्चा की अतः यह जवाब देने को मजबूर था !<br /></b>Satish Saxena https://www.blogger.com/profile/03993727586056700899noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6340570424549373370.post-82259581910771063362010-12-26T14:03:18.148+05:302010-12-26T14:03:18.148+05:30जब योगेन्द्र मौद्गिल जैसे लोगों को मज़हब में लंगूर ...जब योगेन्द्र मौद्गिल जैसे लोगों को मज़हब में लंगूर नज़र आते हैं और आप जैसे लोगों को उनके विचार पसंद भी आने लगते हैं तो फिर अनवर जमाल को बताना पड़ता है कि लंगूर और बंदर मज़हब को मानने वालों में नहीं होते बल्कि उनमें होते हैं जो कि मज़हब को नहीं मानते । <br />हां , उनके पास से भटक कर मज़हब वालों के पास भी लंगूर आ जाएं या बंदरों के आतंक से मुक्ति पाने और उन्हें डराने के लिए वे लंगूर पाल लें , ऐसा ज़रूर हो सकता है।<br />आप ख़ुद भी देख सकते हैं कि बंदर और लंगूर मस्जिद की मीनारों पर नहीँ होते बल्कि मंदिर के फ़र्श से लेकर कलश तक पर, हर जगह होते हैं।<br />झूठ मैं बोलता नहीं और सच लोगों को हज़्म होता नहीं। जो कोई भी जो कुछ लिखता है उसे केवल ब्लागर्स ही नहीं पढ़ते बल्कि वह मालिक स्वयं भी पढ़ता है । उस न्यायकारी अविनाशी परमेश्वर को साक्षी मानकर आदमी सन्मार्ग पर ख़ुद भी चले और दूसरों को भी सन्मार्ग पर चलने की प्रेरणा दे , मनुष्य का धर्म यही है और इसी को हिंदू धर्म कहा जाता है । मेरा विचार तो यही है । इसी में मेरी आस्था है और इसी के अनुसार मेरा कर्म भी है।<br />यदि इसके अलावा हिंदू होने के लिए प्राचीन हिंदू ऋषियों की रीति कुछ और हो तो आप बताएं मैं उसे भी पूरा करूंगा, इंशा अल्लाह !DR. ANWER JAMALhttps://www.blogger.com/profile/06580908383235507512noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6340570424549373370.post-13327132423504643922010-12-26T13:05:30.610+05:302010-12-26T13:05:30.610+05:30सतीश भाई आपके आग्रह का उल्लंघन करने के लिए क्षमा ...सतीश भाई आपके आग्रह का उल्लंघन करने के लिए क्षमा करें। आपकी पीड़ा और उस पर यह कड़ी प्रतिक्रिया जायज है। मुझे लगता है यह नजरिया बिलकुल सही है। मुझे अरविंद मिश्र जी की बात में भी उतना ही दम दिखता है।राजेश उत्साहीhttps://www.blogger.com/profile/15973091178517874144noreply@blogger.com