tag:blogger.com,1999:blog-6340570424549373370.post3326871365207231280..comments2024-03-27T14:44:27.129+05:30Comments on मेरे गीत !: क्या मिलिए ऐसे लोगों से जिनकी फितरत छिपी रहे ......सतीश सक्सेनाSatish Saxena http://www.blogger.com/profile/03993727586056700899noreply@blogger.comBlogger43125tag:blogger.com,1999:blog-6340570424549373370.post-54338363191301374832010-05-06T16:23:31.236+05:302010-05-06T16:23:31.236+05:30@- हममे से अधिकतर महिला या पुरुष, प्रौढ़ावस्था तक ...@- हममे से अधिकतर महिला या पुरुष, प्रौढ़ावस्था तक पंहुचते पंहुचते अपनी हंसी,आनंद अभिव्यक्ति और वास्तविकता को छिपाने का प्रयत्न करने में सफल हो ही जाते हैं ! <br /><br />Many of us really succeed in hiding our emotions at this age but unfortunately we fail to contain our angst when our 'EGO' is hurt.<br /><br />Ego is the real culprit. Ego is the root cause of many a problems in blog world and everywhere else also.ZEALhttps://www.blogger.com/profile/04046257625059781313noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6340570424549373370.post-77799697524436762892010-05-06T02:29:50.623+05:302010-05-06T02:29:50.623+05:30Nothing to declare !
except few Glimpse some of la...Nothing to declare !<br />except few Glimpse some of last comments<br />1. स्वस्थ आलोचना को सुनने की क्षमता भी रखनी चाहिए<br />2. यह भी सत्य है कि वास्तव में यह तथाकथित परिपक्वता एक पाखण्ड के सिवा और कुछ भी नहीं होती।<br />3. स्पष्टवादियों को दूसरो की स्पष्टवादिता का भी सम्मान करना चाहिए...<br />4. फ़िर आपके पास भी कमेंट मॉडरेटर है, रोक लेंगे तो आपसे कोई गिला नहीं(आखिर पिच आपकी है, खिलाड़ी बाहरी हैं) आपको अख्तियार है। <br />5. ब्लॉग पर किसी तरह का कोई सेंसर नहीं होना चाहिये, यह मेरा मानना है।<br /><br />Still now, I have nothing to declare !डा० अमर कुमारhttps://www.blogger.com/profile/09556018337158653778noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6340570424549373370.post-30508709619308563252010-05-05T23:51:22.832+05:302010-05-05T23:51:22.832+05:30अब हम क्या कहें सब सुधिजन कह गये
niceअब हम क्या कहें सब सुधिजन कह गये<br /><br />niceविवेक रस्तोगीhttps://www.blogger.com/profile/01077993505906607655noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6340570424549373370.post-42335914664578685202010-05-05T23:36:32.236+05:302010-05-05T23:36:32.236+05:30aapke vichhar ..aur haamare ..kuchh vichaar ..bhaa...aapke vichhar ..aur haamare ..kuchh vichaar ..bhaai-bhaai hai<br /><br />http://athaah.blogspot.com/Rahttps://www.blogger.com/profile/08726389437723424230noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6340570424549373370.post-9120784052678917752010-05-05T23:07:14.565+05:302010-05-05T23:07:14.565+05:30लगता है हमें आने में बहुत देर हो चुकी है.....खैर, ...लगता है हमें आने में बहुत देर हो चुकी है.....खैर, इतना ही कह सकते हैं कि समय समय ऎसे विषय उठते रहने चाहिएPt. D.K. Sharma "Vatsa"https://www.blogger.com/profile/05459197901771493896noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6340570424549373370.post-52930289201984172422010-05-05T21:36:53.801+05:302010-05-05T21:36:53.801+05:30आपके दिमाग की दाद न दी जाए तो शायद बेईमानी होगी. क...आपके दिमाग की दाद न दी जाए तो शायद बेईमानी होगी. क्या क्या ढूंढ लाते हैं और कहाँ कहाँ से पकड़ लेते हैं अपनी मर्जी के विषय. <br />शिष्य बनाएंगे प्रार्थी को?सर्वत एम०https://www.blogger.com/profile/15168187397740783566noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6340570424549373370.post-51531565578982024032010-05-05T21:11:17.905+05:302010-05-05T21:11:17.905+05:30पोस्ट और टिप्पणियों को पढ लिया । अब कुछ कहने को वि...पोस्ट और टिप्पणियों को पढ लिया । अब कुछ कहने को विशेष या अलग नहीं बचा है । बस ये कहता चलूं कि वर्ष की विशेष पोस्टों के लिए इस पोस्ट को भी सहेज लिया हैअजय कुमार झाhttps://www.blogger.com/profile/16451273945870935357noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6340570424549373370.post-53060802075869262122010-05-05T21:06:17.857+05:302010-05-05T21:06:17.857+05:30गुरुदेव! कहाँ का बखेड़ा में पड़ गए. कहाँ त हमको ई बा...गुरुदेव! कहाँ का बखेड़ा में पड़ गए. कहाँ त हमको ई बात पर आप डाँट दिए थे कि कृष्ण भगवान को चक्का उठाने पर मजबूर करना हमरा उद्देस था. कहाँ आप आज कुरूक्षेत्र में चक्का उठाकर खड़ा हो गए हैं. कल्हे हम आपको बोले थे कि आप तलवार पर चलने वाला (ईमानदार) काम कर रहे हैं, आज त आप तल्वार भाँजने लगे. जाने दीजिए, बहुते कीचड़ हो गया है.चला बिहारी ब्लॉगर बननेhttps://www.blogger.com/profile/05849469885059634620noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6340570424549373370.post-86309758997181690982010-05-05T20:34:08.238+05:302010-05-05T20:34:08.238+05:30पर हमें तो आपकी सरलता व स्पष्टवादिता ही भाती है ।पर हमें तो आपकी सरलता व स्पष्टवादिता ही भाती है ।प्रवीण पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/10471375466909386690noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6340570424549373370.post-61037948462929932052010-05-05T19:13:25.630+05:302010-05-05T19:13:25.630+05:30.
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@ आदरणीय सतीश सक्सेना जी,
कृपया मित्र अमित ....<br />.<br />.<br />@ आदरणीय सतीश सक्सेना जी,<br /><br />कृपया मित्र अमित शर्मा की पूरी टिप्पणी प्रकाशित करिये तभी मैं उनको कुछ उत्तर दे पाऊंगा । ब्लॉग पर किसी तरह का कोई सेंसर नहीं होना चाहिये, यह मेरा मानना है।प्रवीण https://www.blogger.com/profile/14904134587958367033noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6340570424549373370.post-25277324360239108472010-05-05T18:51:22.217+05:302010-05-05T18:51:22.217+05:30सक्सेना साहब,
पूर्व की ही भांति आपकी पोस्ट का विष...सक्सेना साहब,<br /><br />पूर्व की ही भांति आपकी पोस्ट का विषय बहुत विचारणीय है। इतने बड़े-बड़े नामों के बीच हम जैसों का होना या न होना कोई महत्व नहीं रखता। हम ईमानदारी से स्वघोषित मज़ाजीवी हैं, हर चीज में तमाशा देखने और मजा लेने की अपनी आदत है, यहां भी बाज नहीं आयेंगे।:)<br /><br />अपन को ब्लॉगजगत में आये थोड़ा ही समय हुआ है, सो बहुत रस्में रवायतें मालूम नहीं है, लेकिन घोषित और पके विद्वानों से सहिष्णुता, ईमानदारी और असहमति सहन करने की हिम्मत की अपेक्षा तो कर ही सकते हैं। खुद किसी के बारे में कुछ भी कह देना, खुद को बेनेफ़िट ऑफ़ डाऊट देना, दूसरों की सभ्य असहमति भी बर्दाश्त न करना, चीख चीखकर अपनी बहादुरी और पराक्रम की घोषणा करना, जिस व्यवहार से खुद को चोट पहुंची हो वैसा ही व्यवहार खुद दूसरों के साथ करना और फ़िर अपने कदम को सही ठहराना, हो सकता है परिपक्व लोगों को शोभा देता हो और दूसरे प्रगतिशील लोगों की नजर में वे बिना नकाब ओढ़े चंद आदरणीय चेहरों में से एक हों, सपष्टवादी तो बिल्कुल नहीं हैं। और हमें खुशी है कि हम कच्चे और अपरिपक्व ही रह गये, लेकिन हम जो हैं और जैसे हैं उसी में मग्न है। हम तो विद्वान महोदय को बिन मांगे सलाह दे आये थे कि यदि आपको असहमति पसंद नहीं है तो क्यों नहीं अपने ब्लॉग पर ’नो एडमीशन विदाऊट परमीशन’ का बोर्ड चस्पा कर लेते? वही ट्रीटमेंट हुआ हमारी टिप्पणी का, जिस पर कुछ दिन पहले जहांपनाह स्वयं ऐतराज कर चुके थे। <br />मुझे इस बात का कतई अफ़सोस नहीं है कि मेरे वन टाईम फ़ेवरेट ब्लॉग पर मेरा नाम(टिप्पणी काऊंटर पर ही सही) नहीं चमका, लेकिन सीधेपन और स्पष्टवादी महामना के बारे में अपने विचार और साफ़ हो गये। बाकी साहब, आपकी पोस्ट का शीर्षक एकदम मौजूं है।<br />आशा है इस प्रलाप को आप अन्यथा नहीं लेंगे, अभी तो हमारी आपकी नई नई ही मुलाकात है और शुरू में ही ऐसा कमेंट आपको शायद व्यथित करे, लेकिन आपकी पोस्ट ही चूंकि इसी विषय पर आधारित है, खुद को रोक नहीं सका। और फ़िर आपके पास भी कमेंट मॉडरेटर है, रोक लेंगे तो आपसे कोई गिला नहीं(आखिर पिच आपकी है, खिलाड़ी बाहरी हैं) आपको अख्तियार है। और छाप देंगे तो बड़ों की नाराजगी की कोई फ़िक्र भी नहीं कि हमारे पास खोने के लिये कुछ नहीं है(मशहूर शायद हो जायेंगे)।<br /><br />आपकी परवाह जरूर करता हूं, उचित लगे तो छापियेगा, नहीं तो कोई बात नहीं।<br /><br />आभारीसंजय @ मो सम कौन...https://www.blogger.com/profile/14228941174553930859noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6340570424549373370.post-27524512419438201392010-05-05T17:53:48.184+05:302010-05-05T17:53:48.184+05:30कुछ और बात करें तो अच्छा रहेगा , सतीश जी ...कुछ और बात करें तो अच्छा रहेगा , सतीश जी ।डॉ टी एस दरालhttps://www.blogger.com/profile/16674553361981740487noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6340570424549373370.post-61542549206746741192010-05-05T17:53:48.185+05:302010-05-05T17:53:48.185+05:30बहुत ही विचारोत्तेजक बातें। आराम से बैठकर सोचूंगा।...बहुत ही विचारोत्तेजक बातें। आराम से बैठकर सोचूंगा।Dr. Zakir Ali Rajnishhttps://www.blogger.com/profile/03629318327237916782noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6340570424549373370.post-7161595338399113952010-05-05T16:11:32.067+05:302010-05-05T16:11:32.067+05:30मेरा मतलब खुद को जाहिर करने की स्पष्टवादिता से है ...मेरा मतलब खुद को जाहिर करने की स्पष्टवादिता से है ...<br />अरविन्दजी के शब्दों के चयन को लेकर और भाषा शैली के भोंडेपन पर मेरा ऐतराज़ अपनी जगह कायम है और मैं इसपर कई बार अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त भी कर चुकी हूँ ...और अमित की टिप्पणी को समर्थन देना मेरी बात को बहुत कुछ स्पष्ट कर रहा है ...वाणी गीतhttps://www.blogger.com/profile/01846470925557893834noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6340570424549373370.post-5614794565214137192010-05-05T15:40:36.024+05:302010-05-05T15:40:36.024+05:30Sahmat hun apki bat se.Sahmat hun apki bat se.Taarkeshwar Girihttps://www.blogger.com/profile/06692811488153405861noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6340570424549373370.post-17920471999403858832010-05-05T15:37:00.563+05:302010-05-05T15:37:00.563+05:30सतीश जी ,
प्रवीण शाह और ऐब इन्कान्वेंती दो ऐसे ब्ल...सतीश जी ,<br />प्रवीण शाह और ऐब इन्कान्वेंती दो ऐसे ब्लोगर हैं जिनसे मेरे ८० प्रतिशत का वैचारिक साम्य है और तार्किकता में इनकी कोई सानी नहीं है -हम जानते हैं की बिना कहे हम एक दूसरे का सम्मान करते हैं -क्योंकि हम वे एक ही हैं -तत त्वम् असि ... जो नहीं जानते हैं उन्हें यह बता देता हूँ की प्रवीण जी का कहा शत प्रतिशत मेरा माना जाना चाहिए -हाँ सच क्या है और क्या होना चाहिए यह द्वंद्व विज्ञानं और धर्म- दर्शन का है -मैं नास्तिक हूँ और इसकी कीमत जानता हूँ ,मगर यह भी नहीं चाहता कि दूसरे भी नास्तिक बने .....<br />अब कुछ हलके टोन में -किसी महिला ब्लॉगर ने मुझसे पूछा कि लोग पोर्न क्यों देखते हैं मैं असहज होकर बोल उठा -संभवतः जिज्ञासा ( अपनी बात ही तो कोई कहेगा ) मगर उधर का हास्य मुझे उपहासात्मक लगा तो मैंने पोर्न देखना शुरू किया नेट पर -(मैं वैज्ञानिक अनुशासन में पला बढ़ा हूँ -यह मेरा बचाव है ) बार बार देखने पर भी जब मेरी यही संकल्पना साबित हुयी की पोर्न का मूल कारण जिज्ञासा ही है तो मैंने परियोजना बंद कर दी -मेरा कम ख्त्मं हो गया था ....कुछ ब्लॉगर मेरी जिज्ञासु प्रवृत्ति को रेखांकित करने लग गए हैं ......लोगों की काम ग्रंथियों को तोडना फोड़ना भी बहुत जरूरी है .<br />मेमने फिर मिमिमियाने लगे .......<br />आप भी न सतीश जी ....काहें लुटिया दुब्वाने पर लग गए हो प्रभु -रही सही इज्जत भी लेने पर भी उतारू ?Arvind Mishrahttps://www.blogger.com/profile/02231261732951391013noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6340570424549373370.post-15060158252540843412010-05-05T14:01:28.168+05:302010-05-05T14:01:28.168+05:30हम मै से कितने साधू है यह सब तो हम सब एक दुसरे के...हम मै से कितने साधू है यह सब तो हम सब एक दुसरे के लेख से ही आंदाज लगा लेते है, चाहे कितने ही मुखोटे लग ले,बस जब तक मुठ्ठी बंद है उस की कीमत है, खुल गई तो खाक की रह जाती है.... तो जनाब मुठ्ठी बंद ही रहने दोराज भाटिय़ाhttps://www.blogger.com/profile/10550068457332160511noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6340570424549373370.post-23445563871205289722010-05-05T13:34:23.735+05:302010-05-05T13:34:23.735+05:30भौड़ेपन की चासनी में लिपटी हुई स्पष्टवादिता की कोई...भौड़ेपन की चासनी में लिपटी हुई स्पष्टवादिता की कोई कीमत नहीं !<br />इससे स्पष्टवादिता भी कलंकित होती है ! <br />दोनों में फर्क तो करना चाहिए ..<br />औरों को जो ''ब्लॉग-पिस्सू'' जैसे शब्द की कोटि नवाजता हो तो <br />यहाँ स्पष्टवादिता नहीं बल्कि उसके व्यक्तिगत अहम् और कुंठा की <br />अभिव्यक्ति देखी जानी चाहिए ..<br />मूल्यांकन इस बात का भी होना चाहिए कि बदनामी क्या इतनी <br /> बे-सिरपैर होती है .. या इसका भी भौतिक आधार होता है .. <br />सीधे पोर्न से ज्यादा खतरनाक किसी व्यक्ति का गरिमामय शब्दों <br />में 'साफ्ट - पोर्न' परोसना होता है , क्योंकि इससे शब्दों की <br />गरिमामयता खोती है , , , अब भाषा , शब्द , मानव - प्रकृति को लेते <br />एक कविता का खंड रख रहा हूँ , जो धूमिल की 'मोचीराम' कविता से है --- <br />'' असल में वह एक दिलचस्प ग़लतफ़हमी का<br />शिकार है<br />जो वह सोचता कि पेशा एक जाति है<br />और भाषा पर<br />आदमी का नहीं,किसी जाति का अधिकार है<br />जबकि असलियत है यह है कि आग<br />सबको जलाती है सच्चाई<br />सबसे होकर गुज़रती है<br />कुछ हैं जिन्हें शब्द मिल चुके हैं<br />कुछ हैं जो अक्षरों के आगे अन्धे हैं<br />वे हर अन्याय को चुपचाप सहते हैं<br />और पेट की आग से डरते हैं<br />जबकि मैं जानता हूँ कि ‘इन्कार से भरी हुई एक चीख़’<br />और ‘एक समझदार चुप’<br />दोनों का मतलब एक है-<br />भविष्य गढ़ने में ,’चुप’ और ‘चीख’<br />अपनी-अपनी जगह एक ही किस्म से<br />अपना-अपना फ़र्ज अदा करते हैं। '' <br />-------------------- सो विचार करने की बात है ! जिसे जो रास्ता प्यारा होगा <br />उसी पर जाएगा .. <br />------------------- आभार !Amrendra Nath Tripathihttps://www.blogger.com/profile/15162902441907572888noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6340570424549373370.post-24901469041441983552010-05-05T13:29:42.531+05:302010-05-05T13:29:42.531+05:30ब्लाग जगत की ईमानदारी देखनी हो ----- कमेंट्स में फ...ब्लाग जगत की ईमानदारी देखनी हो ----- कमेंट्स में फर्क का अंदाज़ लगाकर देखिये ! <br />सही कह रहे हैं, दुहरी मानसिकता के दर्शन यहाँ ही होगा.M VERMAhttps://www.blogger.com/profile/10122855925525653850noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6340570424549373370.post-49424411102060306572010-05-05T13:14:50.511+05:302010-05-05T13:14:50.511+05:30नहिं कोऊ अस जनमा जग माहीं, काम बाण जेके भेदे नाहीं...<b>नहिं कोऊ अस जनमा जग माहीं, काम बाण जेके भेदे नाहीं! </b><br /><br />बाकी हमेश उसी की बात वही करते हैं, जिनमें कोई ग्रन्थि होती है। <br /><br />अन्यथा एक सुन्दर लड़की को नजर भर न देखना सौन्दर्य की अवमानना है! पर उसी सुन्दर लड़की को देख कुत्सित कल्पनायें करना बदसूरती है व्यक्तित्व की। <br /><br />इस बारे में अपनी सांस्कृतिक लक्ष्मण रेखा बनाना बहुत महत्वपूर्ण है। <br /><br />आपने मेल किया था, सो यह टिप्पणी की। अन्यथा यह विषय जानबूझ कर नजरान्दाज करता। :)Gyan Dutt Pandeyhttps://www.blogger.com/profile/05293412290435900116noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6340570424549373370.post-50057758484747204612010-05-05T13:05:54.747+05:302010-05-05T13:05:54.747+05:30कई बार विषय से असहमत होते हुए भी अरविन्दजी की स्पष...कई बार विषय से असहमत होते हुए भी अरविन्दजी की स्पष्टवादिता मुझे ठीक ही लगती है ....<br /><br />मगर अमित के कमेन्ट पर भी गौर करना चाहिए ...<br /><br />स्पष्टवादियों को दूसरो की स्पष्टवादिता का भी सम्मान करना चाहिए...वाणी गीतhttps://www.blogger.com/profile/01846470925557893834noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6340570424549373370.post-85059662146663176962010-05-05T12:38:07.275+05:302010-05-05T12:38:07.275+05:30@ प्रवीण शाह
अमित शर्मा द्वारा आपकी टिप्पणी पर क...@ प्रवीण शाह <br />अमित शर्मा द्वारा आपकी टिप्पणी पर कही गयी प्रतिटिप्पणी, पर जो कि मैंने प्रकाशित करना उचित नहीं समझा ,मगर उसके कुछ अंश मैं यहाँ आपको नज़र कर रहा हूँ !<br />आदरणीय सक्सेना जी ! मुझे नहीं पता की आपकी पोस्ट पे ये कमेन्ट देना सही है या नहीं , पर इन अंध-आधुनिकतावादी जी को यहीं जवाब देना चाहता हूँ अगर आप सही समझे तो, इसे प्रकाशित कर दिजियेगा.<br />@ प्रवीन शाह जी<br /> बड़े अजीब है आप. निहायती वक्तिगत बातों से किसी को क्या लेना देना. जिस तरह आप दूसरो की खिल्ली उड़ाते है की यह दकियानूसी या यह पुरातन-पंथी या यह कठमुल्ला .<br />उसी तरह मैं भी आपकी खिल्ली उड़ता हूँ आज की आप भी अपने आप को काफी खुले दिमाग वाला कहलाने के भूखे ......है . ठीक है साहब सब पोर्न साइट्स देखते है . लेकिन सभी बाथरूम में.... है, आप अपने बच्चो से कहिये, की देखो मै तो ऐसा करता हूँ , इसमें कोई लुच्चई नहीं होनी चहिये ,कह पायेंगे आप ????<br />सभी को पता है की जनसँख्या कैसे बढती है, आप अपने बच्चो से क्या डिस्कस करते है की रात में आपने ................................<br />काफी नीचे आजाना पड़ता है आप जैसे तथाकथित आधुनिकतावादियों के साथ . अपनी ही सोच को सही माना चलो ठीक है लेकिन आपको ............................... चलिए छोड़िये ! <br />अमित शर्माSatish Saxena https://www.blogger.com/profile/03993727586056700899noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6340570424549373370.post-40645975559485365202010-05-05T12:38:07.276+05:302010-05-05T12:38:07.276+05:30बहुत सही और बहुत बारीकी से बात कही............
म...बहुत सही और बहुत बारीकी से बात कही............<br /><br />मज़ा आ गयाAnonymoushttps://www.blogger.com/profile/09116344520105703759noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6340570424549373370.post-39735404444480731602010-05-05T12:32:08.042+05:302010-05-05T12:32:08.042+05:30प्रवीण शाह.
सच लिख नहीं सकता, झूठ मैं बोलता नहीं....प्रवीण शाह.<br /><br />सच लिख नहीं सकता, झूठ मैं बोलता नहीं...<br /><br />वैसे एक सच ये भी है कि ये सब उम्र का तकाजा है...किशोरावस्था या जवानी की दहलीज पर कदम रखते हुए इंटरनेट से किसी(खास तौर पर पुरुष) का भी साबका होता है तो वो कभी न कभी ज़रूर वो सब देखता है जिसका प्रवीण भाई ने ज़िक्र किया है...लेकिन इंटरनेट साथ ही नॉलेज का भी अथाह सागर है...अब ये आप पर निर्भर करता है कि आप समुद्र की तह से कीचड़ ही हर वक्त निकालते रहते हैं या सीप में छुपे मोतियों की तरफ भी आपका कभी ध्यान जाता है...<br /><br />जय हिंद...Khushdeep Sehgalhttps://www.blogger.com/profile/14584664575155747243noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6340570424549373370.post-43127413330849399742010-05-05T12:30:50.976+05:302010-05-05T12:30:50.976+05:30ये सही है कि हमारे समाज में प्रौढ़ावस्था पर पहुंचत...ये सही है कि हमारे समाज में प्रौढ़ावस्था पर पहुंचते ही हम सभी से एक ख़ास तरह की परिपक्वता ओढ़ लेने की अपेक्षा की जाती है। और अधिकांश ऐसा करते भी हैं। यह भी सत्य है कि वास्तव में यह तथाकथित परिपक्वता एक पाखण्ड के सिवा और कुछ भी नहीं होती। परन्तु यह भी देखना होगा कि स्पष्टवादिता और ईमानदारी किन मुद्दों पर है। अनावश्यक रूप से सनसनी पैदा करने के लिये नंगा हो जाने को ईमानदारी या स्पष्टवादिता नहीं फूहड़पन ही कहा जायेगा। 'पॉर्न साइट्स' देखना या न देखना किसी का भी अपना निजी फ़ैसला हो सकता है। पर देखने या न देखने में ऐसा क्या पराक्रम है कि उसका चौराहे पर ढ़िण्ढोरा पीटा जाये?Dr. Amar Jyotihttps://www.blogger.com/profile/08059014257594544439noreply@blogger.com