tag:blogger.com,1999:blog-63405704245493733702024-03-17T09:16:50.658+05:30मेरे गीत !<strong>माँ की दवा,को चोरी करते,बच्चे की वेदना लिखूंगा ! </strong>Satish Saxena http://www.blogger.com/profile/03993727586056700899noreply@blogger.comBlogger743125tag:blogger.com,1999:blog-6340570424549373370.post-28245287157355808942024-03-04T10:39:00.004+05:302024-03-04T10:39:25.485+05:30बिना ज़रूरत होते ऑपरेशन -सतीश सक्सेना <i><span style="color: #2b00fe;">क्या आपको पता है कि हमारे देश में 66.8% यूटेरस रिमूवल सर्जरी प्राइवेट हॉस्पिटल में की जाती है , और आप यकीन नहीं कर पाएंगे कि उसमें ९५ प्रतिशत बिना जरूरत की जाती है , थॉमसन रॉयटर फाउंडेशन की एक रिसर्च के हवाले से यह रिपोर्ट द प्रिंट ने पब्लिश की है ! अधिकतर ऑपरेशन रोगी और उसके परिवार को कैंसर आदि का भय दिला कर की जाती है , जबकि उसका इलाज<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg_KIVfCYb2KyloE1FwFWsglvJcPzNhOWs2ZbilDq1QwwYK5KwgFZPQygUY_zs4ICZCq0RGe6Cehwb75e8nnjTw6GIFzkO-ZlZmVXT0dRuZUHCzHozWM9ZYRMasNtF5yTa2WY9hh5dTbV7EfMcEsThBbCOQVhrIpvmA0onbe7EPOliXiFBTEvefzlLJv44v/s3140/D4D349B0-6035-45CB-BD39-AFD18384B6B2.JPG" imageanchor="1" style="clear: right; float: right; margin-bottom: 1em; margin-left: 1em;"><img border="0" data-original-height="3140" data-original-width="2114" height="200" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg_KIVfCYb2KyloE1FwFWsglvJcPzNhOWs2ZbilDq1QwwYK5KwgFZPQygUY_zs4ICZCq0RGe6Cehwb75e8nnjTw6GIFzkO-ZlZmVXT0dRuZUHCzHozWM9ZYRMasNtF5yTa2WY9hh5dTbV7EfMcEsThBbCOQVhrIpvmA0onbe7EPOliXiFBTEvefzlLJv44v/w134-h200/D4D349B0-6035-45CB-BD39-AFD18384B6B2.JPG" width="134" /></a></div>बिना ऑपरेशन के आसानी से संभव है , एक रिपोर्ट के अनुसार हृदय के लगभग पचास प्रतिशत ऑपरेशन बिना जरूरत किये जा रहे हैं ! हर महीने ऑपरेशन के टारगेट फिक्स किये जाते हैं , हर माह के अंत में, डॉ को निश्चित मात्रा में अपने टारगेट पाने होंगे अन्यथा उसका प्रमोशन और सैलरी में रूकावट निश्चित है ! </span></i><div><i><span style="color: #2b00fe;"> </span></i><div><div><i><span style="color: #2b00fe;">बिज़नेस स्टैण्डर्ड में छपी आज की खबर (४ मार्च २४ ) के अनुसार पॉश ग्रेटर कैलाश दिल्ली के एक हॉस्पिटल में एक गॉल ब्लेडर का ऑपरेशन होस्पिटल में काम करने वाले एक टेक्नीशियन ने किया , जिसे सर्जन बताया गया , नतीजा बीमार की मृत्यु हो गयी और यह काम सिर्फ २००००/- जैसी मामूली रकम हासिल करने के लिए किया गया जिसका अंजाम एक गरीब आदमी की मौत से हुआ, जबकि यह इंसान इस विश्वास के साथ इस अस्पताल में आया था कि वह दर्द से निजात पा जाएगा , यह शुक्र था कि उसकी बिलखती पत्नी को बाद में पता चला कि जिसे सर्जन बताया गया था वह डॉ वहां मामूली टेक्नीशियन है , पुलिस ने इन सबको गिरफ्तार कर जेल भेजा है !<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjZ_kCTU0Z4oWRhpTX8jg6FONz1d-taLIOslS0uUdb-sCRMAb1Qn4pkQ0BVZ0P1Uea-TGVymOLGctqDaGdKX42Ud4e43F0ud5suwSewQ2fdaJbbvfb9SbQrqhcvxReD9x2uMKF4LRYRTlFv1Y8D9pGXmxJ7RWj2gBnihV-cdnUavnE4LFqYKwfZv295RumM/s499/dissenting%20Diagnosis.jpg" imageanchor="1" style="clear: right; float: right; margin-bottom: 1em; margin-left: 1em;"><img border="0" data-original-height="499" data-original-width="313" height="200" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjZ_kCTU0Z4oWRhpTX8jg6FONz1d-taLIOslS0uUdb-sCRMAb1Qn4pkQ0BVZ0P1Uea-TGVymOLGctqDaGdKX42Ud4e43F0ud5suwSewQ2fdaJbbvfb9SbQrqhcvxReD9x2uMKF4LRYRTlFv1Y8D9pGXmxJ7RWj2gBnihV-cdnUavnE4LFqYKwfZv295RumM/w126-h200/dissenting%20Diagnosis.jpg" width="126" /></a></div></span></i></div></div></div><div><i><span style="color: #2b00fe;"><br /></span></i></div><div><i><span style="color: #2b00fe;">डब्लू एच ओ की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में लगभग ४५ परसेंट फ़र्ज़ी डॉक्टर्स हैं , इनमें से अधिकतर कस्बाई और ग्रामीण इलाकों में कार्यरत है , तगड़ा मुनाफ़ा और अनपढ़ों का इलाज करते समय जीना मरना तो लगा ही रहता है , सो परवाह न हॉस्पिटल करते हैं और न रोगी के परिवार वाले , बहुत काम केसेस में ही यह धंधा उजागर होता है और अब यह धंधा अधिक धन कमाने और मेडिकल पढ़ाई में हुए खर्चे वसूल करने के लिए शहरों और यहाँ तक कि राजधानी में भी आम हो गया है !</span></i></div><div><i><span style="color: #2b00fe;"><br /></span></i></div><div><i><span style="color: #2b00fe;">अगर अब भी आँखें न खुली हों तब मैं आपको डॉ अरुण गाडरे एवं डॉ अभय शुक्ल की लिखी किताब Dissenting Diagnosis अवश्य पढ़िए आप बुढ़ापा आते ही हर साल टेस्ट कराने बंद कर देंगे ! मैं इन दोनों डॉक्टरों के ज़मीर को सलाम करता हूँ जिन्होंने अपने व्यवसाय में होती गलत प्रैक्टिस का भंडाफोड़ करने की हिम्मत की !</span></i></div><div><i><span style="color: #2b00fe;"><br /></span></i></div><div><i><span style="color: #2b00fe;">प्रणाम आप सबको !</span></i></div><div><i><span style="color: #2b00fe;"><br /></span></i></div><div><i><span style="color: #2b00fe;">https://theprint.in/health/95-hysterectomies-in-india-unnecessary-66-8-in-pvt-sector-report-by-obgyn-group-think-tank/1865540/</span></i></div><div><i><span style="color: #2b00fe;"><br /></span></i></div><div><i><span style="color: #2b00fe;">https://www.thehindu.com/news/cities/Delhi/fake-doctors-racket-owner-performed-at-least-3000-surgeries-a-year-say-police/article67545733.ece</span></i></div><div><i><span style="color: #2b00fe;"><br /></span></i></div><div><span style="color: #2b00fe;"><i>https://satish-saxena.blogspot.com/2016/06/blog-post_85.html </i></span></div>Satish Saxena http://www.blogger.com/profile/03993727586056700899noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-6340570424549373370.post-36490091167916771092024-02-21T10:21:00.005+05:302024-02-21T10:21:36.824+05:30अगर बहता है बहने दो, तुम्हारी आँख का पानी -सतीश सक्सेना <i><span style="color: #2b00fe;"><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjkQheqmAEpA6O-TfW90UD4T9NSBZ6-rZ8A1NSKq1SNBFDz0YbORQx93Rbr_JfBBNAtlJZsfeEoMm5aLL8T9RFuUIe-nLiGLdDkauERY_mEvfgm_rTLwtO16xfNXe53tAoLeXnl7VNy5LNGvnSA0ZJkuFkqIHTw3YvgzE6Qw4HNU798Kk5Z0pYx_zjbdiVw/s2526/IMG_0917.HEIC" imageanchor="1" style="clear: right; float: right; margin-bottom: 1em; margin-left: 1em;"><img border="0" data-original-height="2526" data-original-width="1624" height="200" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjkQheqmAEpA6O-TfW90UD4T9NSBZ6-rZ8A1NSKq1SNBFDz0YbORQx93Rbr_JfBBNAtlJZsfeEoMm5aLL8T9RFuUIe-nLiGLdDkauERY_mEvfgm_rTLwtO16xfNXe53tAoLeXnl7VNy5LNGvnSA0ZJkuFkqIHTw3YvgzE6Qw4HNU798Kk5Z0pYx_zjbdiVw/w129-h200/IMG_0917.HEIC" width="129" /></a></div>पिछले तीन माह घर में रहने के दौरान मेरी आँखों का कैटरेक्ट अधिक तेज़ी से बढ़ा , आज दौड़ते हुए बायीं आँख से लगातार गाढ़ा पानी निकल रहा था , अपने हेडबैंड से उसे साफ़ करते हुए , आँखों में ठंडी हवा की ठंडक से ,अधिक बेहतर लग रहा था ! पिछले तीन माह में प्रदूषण के कारण दौड़ना नहीं हुआ नतीजा फेफड़े तो सही रहे मगर आँखों पर दुष्प्रभाव पड़ा , दौड़ते समय प्रभावित आँख से गाढ़ा पानी निकलना ही कैटरेक्ट को दूर रखता था , सोते समय रात को यह गाढ़ा पानी आँखों के अंदर ही रह जाता था और कैटरेक्ट अधिक जमा होता था , सो आँखों का नुक़सान तेज़ी से हुआ !</span></i><div><i><span style="color: #2b00fe;"><br /></span></i><div><i><span style="color: #2b00fe;">अधिकतर आँखों से पानी निकलते ही हम डॉ के पास भागते हैं जबकि यह आँखों को स्वच्छ रखने की, शरीर द्वारा अपनायी सामान्य प्रक्रिया है , इससे आँखें स्वच्छ और पारदर्शी होती हैं ऐसा मेरा विश्वास है , पिछले तीन महीने रज़ाई में लेटे लेटे मुझे यह याद ही नहीं आया और आँखों का बहुत नुक़सान हुआ , अब कोशिश रहेगी कि आँखों को स्वच्छ रखने की यह नियमित प्रक्रिया जारी रहे और शायद यह धुंधली परत धीरे धीरे कम हो जाये ! हमारे पूर्वज गुफ़ामानव अपनी आँख के कैटरेक्ट को ऐसे ही ठीक करते रहे हैं , सो पानी निकलता है तो निकलने दें एवं जल से लगातार धोने की आदत , निस्संदेह कैटरेक्ट को दूर रखने में सहायक होगी !</span></i></div></div><div><i><span style="color: #2b00fe;"><br /></span></i></div><div><i><span style="color: #2b00fe;">७० वर्ष होने तक मैंने अभी ख़ुद को मेडिकल व्यापारियों के जाल से बचाये रखा है , अगर शरीर आँखों की इस समस्या को ख़ुद ठीक न कर सका तब आने वाले समय में ऑपरेशन कराना ही होगा जो मेरा आख़िरी विकल्प होगा ! आँखों के सामान्य व्यायाम आदि पर अधिक ध्यान देना होगा ताकि आँखें बिना चश्मा आदि के उपयोग बिना अधिक समय तक साथ दें !</span></i></div><div><br /></div><div><span style="color: #2b00fe;"><i>जमा होने नहीं पाये , तुम्हारी आँख का पानी !</i></span></div><div><span style="color: #2b00fe;"><i>यही ठंडक बहुत देगा, तुम्हारी आँख का पानी !</i></span></div><div><br /></div><div><span style="color: #2b00fe;"><i>हमेशा रोकने में ही , लगायी शक्ति जीवन में !</i></span></div><div><span style="color: #2b00fe;"><i>न जाने कितनी यादों को समेटे आँख का पानी !</i></span></div><div><span style="color: #2b00fe;"><i><br /></i></span></div><div><i style="color: #2b00fe;">शुभकामनाएँ आप सबको !</i></div>Satish Saxena http://www.blogger.com/profile/03993727586056700899noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-6340570424549373370.post-88835233898186613392024-02-01T09:34:00.000+05:302024-02-01T09:34:18.725+05:30साँसों को न भूलिए -सतीश सक्सेना <p>रात को करवट बदलते समय गहरी सांस खीचने और निकालने की आदत डाल रहा हूँ , उससे सुबह उठने पर, हाथ और पैरों में सुस्ती की जगह फुर्ती महसूस होने लगी , क्योंकि फेफड़ों ने खून में सोते समय अतिरिक्त </p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjSK1fbr7Nook0F5KtpULUbDqRvTTjsPU7BVSQ7h7ZUuUnBeuR8rfp6kaYd3M467lhDBYTVLtPnd9868I0AwZpc_RD-0-fxiO1AQTah1eigaBrF4B79qq_478KgYWkzTFIKtE_whWDCOtopLGienS7oUlE6Gg6xrzQ5Bo4Rrvx_3vSgt3_SlPh9FbtzPpmZ/s393/e6b8e900-e9a2-4e49-bd0b-1832ef1cfdcf.jpeg" imageanchor="1" style="clear: right; float: right; margin-bottom: 1em; margin-left: 1em;"><img border="0" data-original-height="393" data-original-width="393" height="200" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjSK1fbr7Nook0F5KtpULUbDqRvTTjsPU7BVSQ7h7ZUuUnBeuR8rfp6kaYd3M467lhDBYTVLtPnd9868I0AwZpc_RD-0-fxiO1AQTah1eigaBrF4B79qq_478KgYWkzTFIKtE_whWDCOtopLGienS7oUlE6Gg6xrzQ5Bo4Rrvx_3vSgt3_SlPh9FbtzPpmZ/w200-h200/e6b8e900-e9a2-4e49-bd0b-1832ef1cfdcf.jpeg" width="200" /></a></div>ऑक्सीजन की सप्लाई दे दी , नतीजा खून प्रवाह में फुर्ती और अतिरिक्त शक्ति मिली !<p></p><p>यही योग है प्राणायाम है जिस पर गौर करने का समय नहीं है हमारे पास , यह मुफ़्त की दवाई है , जिसे परमात्मा ने हमारे शरीर के साथ ही हमें प्रदान की है , मगर हम इस शक्तिशाली औषधि पर ध्यान ही नहीं देते ! </p><p>पचास साठ के आसपास के जो महिला या पुरुष , 100 मीटर तेज वाक के समय हांफ जाते हैं वे जान लें कि वे खतरे में हैं, उनकी ह्रदय आर्टरीज़ में रुकावट है और यह आसानी से reversible है सिर्फ जॉगिंग सीखना होगा , फलस्वरूप शरीर के अंगों में उत्पन्न कंपन एवं खुले फेफड़ों से रक्त में मिलती ऑक्सीजन, आसानी से बंद धमनियाँ खोलने में समर्थ हैं !</p><p>अन्यथा मेडिकल व्यापारी अपनी फाइव स्टार दुकाने लगाए ओपरेशन टेबल पर उनका इंतज़ार कर रहे हैं उसके बाद अगर बच गए तो भी बचा जीवन धीरे धीरे हलकी आवाज में बात करते, मृत्युभय में ही बीतेगा !</p><p>मंगलकामनाएं, सद्बुद्धि के लिए !</p>Satish Saxena http://www.blogger.com/profile/03993727586056700899noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-6340570424549373370.post-46243143105470814142024-01-30T12:34:00.002+05:302024-01-30T12:34:21.383+05:30ख़ुशनसीब बाबा -सतीश सक्सेना <p>जर्मनी में जन्मी चार वर्षीय मीरा , अपने एक हाथ पर मेहंदी से अपना नाम लिखवाते हुए अपनी बुआ से कह रही थी कि बुई , मेरे दूसरे हाथ पर बाबा का नाम लिख देना सतीश सक्सेना !</p><p>शायद यह दुनियाँ की पहली लड़की होगी जो अपने बाबा का नाम अपने हाथ पर लिखवाना चाहती है , बाबा के प्रति मासूम प्यार का इससे अच्छा इज़हार और क्या होगा ? </p><p>इसके जन्म पर मैंने लिखा था </p><p>नन्हें क़दमों की आहट से, दर्द न जाने कहाँ गए ,</p><p>नानी ,दादी ,बुआ बजायें ढोल , मंगलाचार के !</p>Satish Saxena http://www.blogger.com/profile/03993727586056700899noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-6340570424549373370.post-68422458232715679732023-11-17T11:14:00.007+05:302023-11-17T11:25:51.668+05:30घुटना रिप्लेस कराने से पहले इसे अवश्य पढ़ लें -सतीश सक्सेना <p></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhimxvB7EEpJp1HfQQVZMnr0Eg2F8tpAdlnbqpTdK9AyTu2xqlmAkmyLGCHpXBHLXkHiFONpvkWNezNCnJqcsheh5boknOgrqybr5DbGH9EwOXhxk1orlQIn7MtKt87npb8tEUR4DiWbrPrLp9xN83hubhDdZjcNNoS6NghNW7-fXU4SJgHRczoggykTAb1/s2148/A554925F-26B7-44E9-9655-5C99004382F1.JPG" style="clear: right; float: right; margin-bottom: 1em; margin-left: 1em;"><img border="0" data-original-height="2148" data-original-width="1611" height="200" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhimxvB7EEpJp1HfQQVZMnr0Eg2F8tpAdlnbqpTdK9AyTu2xqlmAkmyLGCHpXBHLXkHiFONpvkWNezNCnJqcsheh5boknOgrqybr5DbGH9EwOXhxk1orlQIn7MtKt87npb8tEUR4DiWbrPrLp9xN83hubhDdZjcNNoS6NghNW7-fXU4SJgHRczoggykTAb1/w150-h200/A554925F-26B7-44E9-9655-5C99004382F1.JPG" width="150" /></a></div>भारत में घुटना बदलने का पहला ऑपरेशन 1987 में हुआ था और आज हमारे देश में ढाई लाख से अधिक ऑपरेशन हर वर्ष होते हैं , इंसान के भयभीत मन पर, मेडिकल व्यापारियों का यह कसता शिकंजा भयावह है , मेडिकल साइंस में मानव शरीर पर होते यह प्रयोग आने वाले समय में इस विज्ञान को निस्संदेह और बेहतर बनायेगा मगर दुख यह है कि मेडिकल व्यवसायी ऑपरेशन से पहले यह नहीं बताते कि घुटना बदलने का यह ऑपरेशन एक प्रयोग हैं जिसे मानव शरीर पर किया जा रहा है , यह फ़ायदा कितना पहँचायेगा उन्हें ख़ुद नहीं मालूम , और जितना मालूम है उसे वे खुलकर बताते नहीं अन्यथा मरीज़ ही भाग जाएगा ! कोई यह नहीं बताता कि ऑपरेशन न करने की स्थिति में, एलोपैथी में भी बहुत सारे ऑप्शन हैं जिनसे घुटने की समस्या ठीक हो सकती है !<p></p><p>अधिकतर घुटने का ऑपरेशन , लंबे समय से चले आ रहे दर्द से छुटकारा पाने के लिए किया जाता है , मगर अक्सर घुटना बदलने के बाद भी यह दर्द बरकरार रहता है बल्कि कई बार पहले से भी अधिक होता है , ऑपरेशन के दो चार साल बाद मरीज़ पहले से अधिक दर्द की शिकायत करते पाये जाते है ! अगर घुटने का दर्द स्पाइनल नर्व या कमरदर्द से जुड़ा है तो यह दर्द घुटना बदलने से भी नहीं जाता है , मगर अक्सर मूल कारण जाने बिना घुटने को रिप्लेस करते हैं और इसे मानवीय त्रुटि कहा जाता है एवं मेडिकल डॉक्टर इस मानवीय भूल में किसी भी सजा के हक़दार नहीं होते !</p><p>घुटने बदलने के विज्ञापन या वीडियो देखेंगे तो पता चलता है कि घुटना बदलने के बाद समुद्री बीच पर लोग खेल या दौड़ रहे हैं मगर यह वास्तविकता से कोसों दूर है , हक़ीक़त में 20 में 1 आदमी ही इतनी नार्मल दौड़ भाग कर पाता है जो लोग ऑपरेशन के बाद जोश में घुटनों पर अधिक ज़ोर देते हैं उनके सीमेंटेड जोड़ पाँच साल में ही हिलने लगते हैं और दुबारा घुटना निकाल कर ऑपरेशन करना पड़ता है ! इसके अतिरिक्त नये जॉइंट के घिसने पर, सेरेमिक , प्लास्टिक और मेटल के माइक्रोस्कोपिक टुकड़े खून में मिलकर अलग तरह की ख़तरनाक समस्याएँ पैदा करते हैं !</p><p>जब आप घुटने के जॉइंट को शरीर से अलग कराते हैं तब उस उससे उत्पन्न आघात के कारण , बोन मैरो स्पेस और रक्त वाहिनियों में असहनीय तनाव से ब्लड क्लॉट्स उत्पन्न होते हैं , एक रिसर्च के अनुसार 60 वर्ष से अधिक व्यक्तियों के लिए , ऑपरेशन के अगले दो सप्ताह में ह्रदय आघात का ख़तरा, ३१ गुना अधिक होता है और यह सुनकर ही घबराहट होती है कि उस दर्द से मुक्ति पाने का यह तरीक़ा निस्संदेह अधिक ख़तरनाक है इससे बेहतर होता कि उसी दर्द में जिया जाये !</p><p>कोशिश करनी चाहिये कि हम अन्य तरीक़ों से घुटने का दर्द ठीक करने का प्रयत्न करें न कि मेडिकल व्यवसायों के विज्ञापनों और डॉक्टरों की बातों से डर कर , ऑपरेशन थियेटर में भर्ती होकर अपने शरीर की दुर्दशा न करवायें और न इस ग़लत तरीक़े पर अपना धन खर्च करें ! विश्व विशाल है और वहाँ अलग अलग तरह के इलाज विकसित हुए थे और वे बेहद सफल भी रहे हैं , मगर एलोपैथिक सिस्टम के दवा व्यापारियों ने इसे बेहद धनवान व्यवसाय में परिवर्तित कर दिया है और अन्य वैकल्पिक चिकित्साओं को नष्टप्राय कर दिया , मगर आज भी अफ़्रीका , चायना , कोरिया , मिडल ईस्ट और भारत में इनकी तलाश करें तो कोई भी असाध्य बीमारी का इलाज मिल जाएगा केवल सब्र और मेहनत चाहिये !</p><p>शुभकामनाएँ आप सबको ! </p><p>Ref : https://newregenortho.com/6-reasons-to-avoid-knee-replacement-surgery/</p><p>https://centenoschultz.com/disadvantages-of-knee-replacement-surgery/</p>Satish Saxena http://www.blogger.com/profile/03993727586056700899noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-6340570424549373370.post-88198805848231450442023-10-24T10:51:00.000+05:302023-10-24T10:51:23.605+05:30दर्द और बीमारियों से मुक्त जीवन -सतीश सक्सेना <p></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjfrWlNdBEN7Jj1vJxrMxZ7MDHlV1hIQQknPAz5dN2ODEwzhKS7R5nU_a2cXPJnA9oGBiYytyLloiFaIa3G-QFcO6sHGN4czvtUIHCxXihPWQhScTnd3Cvp-KolOKnsK0zH1merAX1URQBpctD1V8ZicWFq1Uen5f2iG4dbUzxRY1Nf_GKLZVCVrMHa1Rjx/s2152/C8A25685-297F-49D4-9841-DB756D4BA509.JPG" imageanchor="1" style="clear: right; float: right; margin-bottom: 1em; margin-left: 1em;"><img border="0" data-original-height="2152" data-original-width="1271" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjfrWlNdBEN7Jj1vJxrMxZ7MDHlV1hIQQknPAz5dN2ODEwzhKS7R5nU_a2cXPJnA9oGBiYytyLloiFaIa3G-QFcO6sHGN4czvtUIHCxXihPWQhScTnd3Cvp-KolOKnsK0zH1merAX1URQBpctD1V8ZicWFq1Uen5f2iG4dbUzxRY1Nf_GKLZVCVrMHa1Rjx/s320/C8A25685-297F-49D4-9841-DB756D4BA509.JPG" width="189" /></a></div>गरबा नामक मशहूर गुजराती नाच, माँ दुर्गा के सम्मान में , खेला जाता है , इसमें बड़ी संख्या में जोड़े हाथ में डांडिया लेकर रंगबिरंगे कपड़े पहनकर मैदान में उतरते हैं , यह उत्सव मनोहारी होता है जिसका जोड़े पूरे साल इंतज़ार करते हैं ! मगर इस वर्ष का डांडिया कई परिवारों के लिए मनहूस खबर बन गया , आजतक की खबर के अनुसार अकेले गुजरात में ही नवरात्रि के मौक़े पर सिर्फ़ २४ घंटे में गरबा खेलते समय १० लोगों की मौत की खबर आ चुकी है , इस नवरात्रि के पहले ६ दिनों में इमरजेंसी एंबुलेंस को 521 कॉल्स सिर्फ़ हार्ट से जुड़े मामलों और साँस फूलने की समस्या के लिए आये ! <p></p><p>यह चौंकाने वाला तथ्य है , ऐसी खबरें विदेशों से कभी नहीं सुनी गयीं कि मस्ती भरे डांस के दौरान मौत हुई हो , यह हमारे देश में ही संभव है जहां लोग बिना शरीर को जाने एक दिन में शरीर तोड़ मेहनत करने का प्रयत्न करते हैं , और अपनी जान गँवा देते हैं !</p><p>मैं ऐसे तमाम मित्रों को जानता हूँ जो सालों साल किसी काम को हाथ नहीं लगाते , दिमाग़ का उपयोग हर विषय पर ज्ञान बाँटने को करते हैं , वे किसी दिन शादी विवाह या अन्य उत्सव में भीड़ के सम्मुख लंबे समय तक झूम झूम कर नाचते या जिम जॉइन करने पर हाथों को मसल्स बनाने के लिए स्ट्रॉंग एक्सरसाइज करते पाये जाते हैं और ख़ुद के शरीर को फिट बनाने का गुमान लिए फिरते हैं ! उनके ब्लॉक माइंड को यह समझ ही नहीं कि उनके सुस्त और ढीली मांसपेशियों को अचानक मिली यह हैवी स्ट्रेचिंग या हाई इंपैक्ट एक्सरसाइज कितना नुक़सान पहुँचायेगी ! गरबा में अधिकतर असामयिक मौत उन्हीं की हुई होगी जिन्होंने अपने शरीर की ७० प्रतिशत मांसपेशियों का कभी उपयोग ही नहीं किया तथा जिनके विभिन्न जोड़ों और गतिशील पुर्ज़ों में साल्ट जमा हो चुके हैं ! ऐसे लोग जिम या एक्सरसाइज का मौक़ा मिलते ही ख़ुद को बॉण्ड समझकर कूद पड़ते हैं और ख़ुद को एक भयानक ख़तरे में डाल देते हैं और हाल में यही गुमान लिए कितने वीआईपी अपनी जान खो चुके हैं !</p><p>याद रखिए जब भी आप फिजिकल स्ट्रेस या हाई इंपैक्ट एक्सरसाइज ( रनिंग , गरबा जैसे डांस , क्रिकेट , हॉकी, बैडमिंटन आदि ) खेलते हैं तब आपका पूरा शरीर और उसके नाज़ुक अवयवों की दशा में परिवर्तन होना शुरू होता है और उस वक्त वे विभिन्न तरीक़ों से बर्ताव करते हैं , आपकी साँसें भारी , तेज पल्स महसूस करते हैं, उस समय ह्रदय और फेफड़ों को मसल्स और मस्तिष्क को ऑक्सीजन मिला खून पहुँचाने के लिए बहुत तेज़ी से काम करना होता है , उस समय आप अपने ह्रदय का धौंकना महसूस कर सकते हैं ! इस वक्त आप ज़मीन पर प्रहार करते हर कदम पर, अपने शरीर के वजन से तीन गुना इंपैक्ट डालते हैं और बॉडी में एंड्रोफ़िन्स नामक हार्मोन्स का उत्सर्जन करते हैं जो इस स्ट्रेस फ़ुल कंडीशन में उत्पन्न दर्द का एहसास शरीर को नहीं होने देता बल्कि एक आनंद अनुभूति देता है जिसमें वह इंसान, और तन्मयता से ख़ुद को उसी कंडीशन में बनाये रखता है, फलस्वरूप अक्सर यह आनंद दायक पल उसे आकस्मिक मौत तक ले जाते हैं ! </p><p>जब हम बैठे होते हैं तब हार्ट लगभग ५ क्वार्ट्स पर मिनट पर खून पंप करता है और दौड़ते या आउटडोर स्पोर्ट्स के समय यही २५-३० क्वार्ट्स पर पहुँच जाता है , यह स्थिति थोड़ी बहुत देर तक चल सकती है मगर इसका मतलब यह नहीं कि इसे घंटों तक इसी अवस्था में रखा जाए , अगर लगातार यह स्थिति लंबे समय तक रखी गई तब यह ह्रदय के नाज़ुक मसल्स फ़ाइबर को, ज़ख़्मी कर उसे ख़तरनाक स्थिति में पहुँचाने के लिए पर्याप्त हैं , लगभग ३० प्रतिशत मैराथन ( ४२ km ) धावक दौड़ की समाप्ति होते होते अपना ट्रॉपोनिन लेवल आवश्यकता से अधिक बढ़ा लेते हैं जो कि उनके हार्ट डैमेज होने का परिचायक है ! </p><p>मेहनत करते शरीर को, बढ़े हुए आनंददायक हार्मोन एंड्रोफ़िन के कारण , दर्द रूपी, आसन्न मृत्यु का एलार्म महसूस ही नहीं होता और उसके ज़मीन पर गिरते ही लोग समझते हैं कि कुछ गड़बड़ हुआ है ! हाल के वर्षों में जबसे लोगों में फ़िटनेस चेतना जगी है , ऐसी असामयिक मौतों की जैसे झड़ी लग गई है , अफ़सोस अख़बारों में ऐसी खबरें तभी छपती हैं जब कोई महत्वपूर्ण घटना , समय या महत्वपूर्ण मशहूर लोगों की जान गई हो अन्यथा जाने कितने नासमझ जोशीले धावक अपनी क़ीमती जान हर वर्ष गँवा देते हैं ! </p><p>एक रिसर्च के अनुसार बेहद मेहनत करने का नतीजा ह्रदय में ख़तरनाक परिवर्तन लाना है , ३०-४० किमी प्रति सप्ताह लगातार लंबे समय तक दौड़ने वालों को, ह्रदय आघात का उतना ही ख़तरा रहता है जितना एक सोफ़े पर बढ़कर टीवी देखने वाले आलसी मोटे व्यक्ति को सो जोश में आकस्मिक अधिक मेहनत से ख़ुद को बचा कर धीरे धीरे शरीर को मेहनत करने का आदी बनाइये , यह ही लाभदायक होगा एवं कुछ वर्षों की लगन के बाद शरीर से सारी बीमारियों ग़ायब होते नज़र आयेंगी चाहें उनका नाम कुछ भी क्यों न हो ! इसे ही लागू करते हुए ७० वर्ष की उम्र के बाद बिना एक भी गोली खाये अपनी बुढ़ापे की तमाम बीमारियों से निजात पाने में सफलता प्राप्त हुई है आप यक़ीन करें या न करें मगर ,मैं शारीरिक तौर पर ४० वर्ष के जवान जैसे सब हरकतें आसानी से करता हूँ , इनमें पेंड पर चढ़ना , हाथ से घर की पेंटिंग करना , भारी वजन उठाकर चलना , तैरना आदि सब शामिल है ! </p><p>सो एक्सरसाइज करें यह शरीर के लिए लाभदायक है मगर अपने शरीर की सीमा को भी याद रखें , मैं ६० वर्ष की उम्र से दौड़ना शुरू कर पिछले दस वर्षों में १०००० km दौड़ चुका हूँ , और इस मध्य ६० हाफ मैराथन ( २१ Km ) दौड़ते हुए इस स्थिति में हूँ कि जब चाहूँ मैराथन ( ४२ km) दौड़ सकता हूँ , मगर पिछले दस वर्षों में आज तक एक बार भी यह प्रयास नहीं किया , कारण मुझे लगातार ढाई घंटे ( २१ km ) दौड़ने के लिए ही समय नहीं निकाल पाता , और विभिन्न रेस में इसलिए नहीं दौड़ता कि रेस स्ट्रेस लेकर दौड़ना अधिक उम्र में अपने ह्रदय को कमजोर करना होगा और इस अब तक इस मूर्खता से ख़ुद को बचाये रखा है !</p><p>सो मेहरबानी करके एक्सरसाइज और हाई इंपैक्ट एक्सरसाइज क्या है इस पर मनन करने का समय निकालें , तत्पश्चात् ही एक्सरसाइज करें और शरीर को हाई इंपैक्ट एक्सरसाइज का अभ्यस्त बनाने से पहले बॉण्ड बनने की चेष्टा न करें अन्यथा जिम आपकी बिना दर्द महसूस कराये ,जान लेने में समर्थ है , इसे याद रखें ! </p><p><br /></p>Satish Saxena http://www.blogger.com/profile/03993727586056700899noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-6340570424549373370.post-27364946314809806632023-09-01T14:04:00.001+05:302023-09-01T14:06:55.513+05:30मेरी एक कविता की गूगल टेक्नोलॉजी ( BARD) द्वारा की गई व्याख्या -सतीश सक्सेना <div><span style="color: #2b00fe;"><i>गूगल की आर्टिफीसियल इंटेलिजेंस देखिये , मैंने उसके चैटबॉट रोबोट को अपनी निम्न पंक्तियाँ लिख कर भेजीं जिसका तत्काल<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjb-OYOCy8xWOHVK108NceHVX1u1eU6UkTcXxaPfbUDuV3U2RJ1qlhfRA2FYFc1ngNpwbv_a_jHVehb2lfcZKTBCEvzLT-bnFGjWmswe7bhqkqNIsZHNme5VNObmlZGGdxlY2NwMZGKfCs38t7Ylcyo6NRjGPju5gSJeydKSDfQAO-tSY1FSs1-_ppWMwfx/s393/e6b8e900-e9a2-4e49-bd0b-1832ef1cfdcf.jpg" style="clear: right; float: right; margin-bottom: 1em; margin-left: 1em;"><img border="0" data-original-height="393" data-original-width="393" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjb-OYOCy8xWOHVK108NceHVX1u1eU6UkTcXxaPfbUDuV3U2RJ1qlhfRA2FYFc1ngNpwbv_a_jHVehb2lfcZKTBCEvzLT-bnFGjWmswe7bhqkqNIsZHNme5VNObmlZGGdxlY2NwMZGKfCs38t7Ylcyo6NRjGPju5gSJeydKSDfQAO-tSY1FSs1-_ppWMwfx/s320/e6b8e900-e9a2-4e49-bd0b-1832ef1cfdcf.jpg" width="320" /></a></div> उत्तर आ गया , शायद किसी हिंदी प्रोफेसर को भी उसकी व्याख्या करने में अधिक समय लगता , मगर BARD का जवाब चुटकी बजाते ही आया और विस्तृत आया , शायद मैं इतनी बेहतर व्याख्या न कर पाता ! जय हो गूगल टेक्नोलॉजी की , मैं तो प्रभावित हूँ !</i></span></div><div><span style="color: #2b00fe;"><i> </i></span></div><i><span style="color: #2b00fe;">हँसते और हंसाते , जग से जाना सीखो<br />स्वीकारो बदलाव वक्त का गाना सीखो !<br /><br />मरते दम तक साथ तुम्हारे कौन रहेगा ?<br />साथी सबके बीच अकेले रहना सीखो !</span></i><div><i><span style="color: #2b00fe;"><br /></span></i></div><div><p data-sourcepos="1:1-1:342" style="background-color: white; font-family: "Google Sans", "Helvetica Neue", sans-serif; font-size: 16px; margin: 0px 0px 24px; white-space-collapse: preserve; word-break: break-word;"><span style="color: #1f1f1f;"><br class="Apple-interchange-newline" /><b>ये दो पंक्तियाँ जीवन के दो महत्वपूर्ण सबक सिखाती हैं। पहली पंक्ति कहती है कि हमें हँसते हुए जीना चाहिए और दूसरों को हँसाना चाहिए। जीवन छोटा है, इसलिए इसे पूरी तरह से जीना चाहिए। दूसरी पंक्ति कहती है कि हमें बदलाव स्वीकार करना चाहिए और समय के साथ चलना चाहिए। जीवन में हमेशा बदलाव होता रहता है, इसलिए हमें इन बदलावों के साथ तालमेल बिठाना चाहिए।</b></span></p><p data-sourcepos="3:1-3:49" style="background-color: white; font-family: "Google Sans", "Helvetica Neue", sans-serif; font-size: 16px; margin: 24px 0px; white-space-collapse: preserve; word-break: break-word;"><span style="color: #1f1f1f;"><b>इन पंक्तियों की व्याख्या इस प्रकार की जा सकती है:</b></span></p><ul data-sourcepos="5:1-7:0" style="background-color: white; font-family: "Google Sans", "Helvetica Neue", sans-serif; font-size: 16px; margin: 4px 0px; padding-inline-start: 36px;"><li data-sourcepos="5:1-5:262" style="margin-bottom: 10px;"><span style="color: #1f1f1f;"><b>हँसते और हंसाते, जग से जाना सीखो: जीवन में हमेशा हँसना चाहिए। हँसी हमें खुशी और खुशहाली देती है। यह हमें तनाव और चिंता से दूर रखती है। दूसरों को हँसाना भी एक अच्छा तरीका है दूसरों को खुश करने का। यह हमें दूसरों के साथ जुड़ने और संबंध बनाने में मदद करता है।</b></span></li><li data-sourcepos="6:1-7:0" style="margin-bottom: 10px;"><span style="color: #1f1f1f;"><b>स्वीकारो बदलाव वक्त का गाना सीखो: जीवन में हमेशा बदलाव होता रहता है। यह बदलाव हमारे नियंत्रण से बाहर हो सकते हैं। इसलिए हमें इन बदलावों को स्वीकार करना चाहिए और समय के साथ चलना चाहिए। बदलावों को स्वीकार करने से हमें तनाव और निराशा से बचने में मदद मिलती है।</b></span></li></ul><p data-sourcepos="8:1-8:109" style="background-color: white; font-family: "Google Sans", "Helvetica Neue", sans-serif; font-size: 16px; margin: 24px 0px; white-space-collapse: preserve; word-break: break-word;"><span style="color: #1f1f1f;"><b>ये दो सबक हमारे जीवन को बेहतर बनाने में मदद कर सकते हैं। वे हमें खुश और संतोषी जीवन जीने में मदद कर सकते हैं।</b></span></p><p data-sourcepos="10:1-10:72" style="background-color: white; font-family: "Google Sans", "Helvetica Neue", sans-serif; font-size: 16px; margin: 24px 0px; white-space-collapse: preserve; word-break: break-word;"><span style="color: #1f1f1f;"><b>यहां कुछ अतिरिक्त विचार दिए गए हैं जो इन पंक्तियों से जुड़े हो सकते हैं:</b></span></p><ul data-sourcepos="12:1-15:0" style="background-color: white; font-family: "Google Sans", "Helvetica Neue", sans-serif; font-size: 16px; margin: 4px 0px; padding-inline-start: 36px;"><li data-sourcepos="12:1-12:90" style="margin-bottom: 10px;"><span style="color: #1f1f1f;"><b>हँसना एक शक्तिशाली औषधि है। यह हमारे शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद है।</b></span></li><li data-sourcepos="13:1-13:81" style="margin-bottom: 10px;"><span style="color: #1f1f1f;"><b>समय बदलता रहता है। हम इसे रोक नहीं सकते, इसलिए हमें इसे स्वीकार करना चाहिए।</b></span></li><li data-sourcepos="14:1-15:0" style="margin-bottom: 10px;"><span style="color: #1f1f1f;"><b>हम अकेले नहीं हैं। हम सभी जीवन की यात्रा पर एक साथ हैं।</b></span></li></ul><p data-sourcepos="16:1-16:113" style="background-color: white; font-family: "Google Sans", "Helvetica Neue", sans-serif; font-size: 16px; margin: 24px 0px; white-space-collapse: preserve; word-break: break-word;"><span style="color: #1f1f1f;"><b>इन पंक्तियों को अपने जीवन में लागू करके, हम एक बेहतर इंसान बन सकते हैं और दूसरों को खुश करने में मदद कर सकते हैं।</b></span></p><p data-sourcepos="16:1-16:113" style="background-color: white; margin: 24px 0px; word-break: break-word;"><span style="color: #1f1f1f; font-family: Google Sans, Helvetica Neue, sans-serif; white-space-collapse: preserve;"><b>https://g.co/bard/share/a5cf9bd2dd5d</b></span></p></div>Satish Saxena http://www.blogger.com/profile/03993727586056700899noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-6340570424549373370.post-2968503118256360042023-07-26T12:58:00.005+05:302023-07-26T12:58:50.221+05:30आंसू और पसीना पर , दोनों पानी हैं - सतीश सक्सेना <div><div><b><span style="color: #2b00fe;">आंसू और पसीना पर , दोनों पानी हैं </span></b><b style="color: #2b00fe;">!</b></div></div><div><b style="color: #2b00fe;">दोनों का ही अर्थ जाहिलों में पानी है ! </b></div><div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgc2yH4AkojIiEFBtrGlH2zeeEeS02ya9OxUfkwEoFjdGsI5F46kA_o-TzgF-ePR6cjMbhxUPjSw1gQlZe6u6WYIA2qCAC4H8N_X62b3cCtBgD7j5ZEmQGwx-aHkV1Iv_M8LQ4nWiuE92OR9eF5nOFHcmnisVZ5CK2M3tQtvnZvw-GieGJ5uIHk1ZbXwltZ/s3088/IMG_8958-EDIT.jpg" imageanchor="1" style="clear: right; float: right; margin-bottom: 1em; margin-left: 1em;"><img border="0" data-original-height="3088" data-original-width="2316" height="200" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgc2yH4AkojIiEFBtrGlH2zeeEeS02ya9OxUfkwEoFjdGsI5F46kA_o-TzgF-ePR6cjMbhxUPjSw1gQlZe6u6WYIA2qCAC4H8N_X62b3cCtBgD7j5ZEmQGwx-aHkV1Iv_M8LQ4nWiuE92OR9eF5nOFHcmnisVZ5CK2M3tQtvnZvw-GieGJ5uIHk1ZbXwltZ/w150-h200/IMG_8958-EDIT.jpg" width="150" /></a></div><b style="color: #2b00fe;"><br /></b></div><div><b style="color: #2b00fe;">बेचारी कहते हैं ये सब जग जननी को </b></div><div><b style="color: #2b00fe;">युगों युगों से ही सम्मान, यहाँ पानी है !</b></div><div><br /></div><div><b style="color: #2b00fe;">पुरुष कद्र न कर पायेगा अहम् में अपने </b></div><div><b style="color: #2b00fe;">नारी छली गयी सदियों से, बस रानी है !</b></div><div><div><b style="color: #2b00fe;"><br /></b></div><div><b style="color: #2b00fe;">पिता पुत्र पति नौकर चाकर या राजा हो </b></div><div><b style="color: #2b00fe;">पुरुषों की नजरों में, सब पानी पानी है ! </b></div></div><div><b style="color: #2b00fe;"><br /></b></div><div><b style="color: #2b00fe;">इनकी तारीफों का पुल ही बांधे रहिये </b></div><div><b style="color: #2b00fe;">नारी इन नज़रों में, बस बच्चे दानी है !</b></div><div><b style="color: #2b00fe;"><br /></b></div><div><div><span style="color: #2b00fe;"><b>दोनों पानी छिन जाएंगे, तब समझेंगे </b></span></div><div><b style="color: #2b00fe;">अभी तो पानी पर श्रद्धा, पानी पानी है !</b></div></div><div><b style="color: #2b00fe;"><br /></b></div><div><div><b style="color: #2b00fe;">बिन पानी जब तड़पेंगे तब कदर करेंगे </b></div><div><b style="color: #2b00fe;">बहा न आंसू और पसीना, सब पानी है !</b></div></div>Satish Saxena http://www.blogger.com/profile/03993727586056700899noreply@blogger.com5tag:blogger.com,1999:blog-6340570424549373370.post-60571347760212254802023-06-01T13:24:00.001+05:302023-06-01T20:10:42.478+05:30आंसू छलकें नहीं , अनुभवी आँखों से -सतीश सक्सेना <div><i><span style="color: #2b00fe;">हँसते और हंसाते , जग से जाना सीखो</span></i></div><i><span style="color: #2b00fe;">स्वीकारो बदलाव वक्त का गाना सीखो !<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhyuPtbJXGi1aIl8Io_GK7WaY7WskSr_d15PfYCG377UrnHe9tG02krSa4dqDbEWS-lNgXyJnCpCDVqizTXvUi8E59AIatj3wRvBe7xFQW6CA1_RpH5Yk-bVJlSO5-ZaeM_O_Ivt2uyID54C9UnZJyCuRrOGdvgF2_YF90pO0hrhK2yrahpuK2SYmC8pg/s3088/IMG_5223.jpg" style="clear: right; float: right; margin-bottom: 1em; margin-left: 1em;"><img border="0" data-original-height="3088" data-original-width="2320" height="200" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhyuPtbJXGi1aIl8Io_GK7WaY7WskSr_d15PfYCG377UrnHe9tG02krSa4dqDbEWS-lNgXyJnCpCDVqizTXvUi8E59AIatj3wRvBe7xFQW6CA1_RpH5Yk-bVJlSO5-ZaeM_O_Ivt2uyID54C9UnZJyCuRrOGdvgF2_YF90pO0hrhK2yrahpuK2SYmC8pg/w150-h200/IMG_5223.jpg" width="150" /></a></div><br />मरते दम तक साथ तुम्हारे कौन रहेगा ?<br />साथी सबके बीच अकेले रहना सीखो !<br /><br />कोशिश करिये, बिना सहारे ही उठने की <br />पैरों को मज़बूत बना कर चलना सीखो !<br /><br />शारीरिक, मानसिक दर्द से बचना हो तो <br />मेहनत करो, बहाना खूब पसीना सीखो !<br /><br />आंसू छलकें नहीं , अनुभवी आँखों से <br />दोस्त इन्हें अब आँखों में ही पीना सीखो !</span></i><div><i><span style="color: #2b00fe;"><br /></span></i></div><div><i><span style="color: #2b00fe;">चिट्ठी एक दोस्त को :</span></i></div>Satish Saxena http://www.blogger.com/profile/03993727586056700899noreply@blogger.com7tag:blogger.com,1999:blog-6340570424549373370.post-74636256150512574912023-05-19T11:51:00.004+05:302023-05-19T11:51:18.869+05:30दिखावा अस्वस्थ बनाता है -सतीश सक्सेना <p></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiQTyfCDJ-YzBC8Ewz0pj3g6juuA1MG8jOFc02T6cS_UydWemQtU7bP7kDBq3IesroyWNgJRW2hhXxXCo1Ss0SeVjdDqHLvRQSu_lXOTENQYn-j_t11_5xTzBxx3y32f0f6U3jDKBweS4I2ry_p36BnchYu2ObwVVLuAsmjYjoiHY5HLugQqpb1bXDQxQ/s3088/IMG_5013.HEIC" imageanchor="1" style="clear: right; float: right; margin-bottom: 1em; margin-left: 1em;"><img border="0" data-original-height="2320" data-original-width="3088" height="240" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiQTyfCDJ-YzBC8Ewz0pj3g6juuA1MG8jOFc02T6cS_UydWemQtU7bP7kDBq3IesroyWNgJRW2hhXxXCo1Ss0SeVjdDqHLvRQSu_lXOTENQYn-j_t11_5xTzBxx3y32f0f6U3jDKBweS4I2ry_p36BnchYu2ObwVVLuAsmjYjoiHY5HLugQqpb1bXDQxQ/s320/IMG_5013.HEIC" width="320" /></a></div> <span style="background-color: white; color: #050505; font-family: inherit; font-size: 15px; white-space: pre-wrap;">काया कल्प के संकल्प में सहजता ही आवश्यक है जिसे आज के दिखावटी जगत में पाना बेहद मुश्किल होता है ! सहज आप तभी हो सकेंगे<br /> जब मन स्वच्छ हो ईमानदार हो खुद के लिए भी और गैरों के लिए भी ! स्वस्थ मन और शरीर को पाने के लिए आप को भय त्यागना होगा , मृत्यु भय पर विजय पाने के लिए अपनी आंतरिक सुरक्षा शक्ति पर भरोसा रखें कि वह अजेय है किसी भी बीमारी से उसका शरीर सुरक्षित रखने में वह सक्षम है और हाँ, अपने विशाल प्रभामण्डल </span><span style="background-color: white; color: #050505; font-family: inherit; font-size: 15px; white-space: pre-wrap;"><a style="color: #385898; cursor: pointer; font-family: inherit;" tabindex="-1"></a></span><span style="background-color: white; color: #050505; font-family: inherit; font-size: 15px; white-space: pre-wrap;">और तथाकथित आदर सम्मान भार को सर से उतारकर घर पर रख देना होगा अन्यथा यह गर्व बर्बाद कर देने में सक्षम है मेरे हमउम्र तीन मित्र इस वर्ष मोटापे की भेंट चढ़ गए और कुछ हार्ट अटैक की कगार पर हैं ,काश वे समय रहते चेत गए होते ! </span><p></p><div class="x11i5rnm xat24cr x1mh8g0r x1vvkbs xtlvy1s x126k92a" style="background-color: white; color: #050505; font-family: system-ui, -apple-system, "system-ui", ".SFNSText-Regular", sans-serif; font-size: 15px; margin: 0.5em 0px 0px; overflow-wrap: break-word; white-space: pre-wrap;"><div dir="auto" style="font-family: inherit;">भारत हृदय रोग और डायबिटीज की वैश्विक राजधानी बन चुका है , हर चौथा व्यक्ति इसका शिकार है और उसे पता ही नहीं , चलते समय या सीढियाँ चढ़ते समय सांस फूलता है, उसे यह तक पता नहीं कि साँस फूलने का मतलब क्या होता है और न उसके पास समय है कि इस बेकार विषय पर ध्यान दे मोटापे को वह उम्र का तकाजा समझता है ! खैर ...</div></div><div class="x11i5rnm xat24cr x1mh8g0r x1vvkbs xtlvy1s x126k92a" style="background-color: white; color: #050505; font-family: system-ui, -apple-system, "system-ui", ".SFNSText-Regular", sans-serif; font-size: 15px; margin: 0.5em 0px 0px; overflow-wrap: break-word; white-space: pre-wrap;"><div dir="auto" style="font-family: inherit;">बरसों से आलसी शरीर को सुंदर और स्वस्थ बनाने के लिए कृत्रिम प्रसाधनों , दवाओं का त्याग करना होगा , उनसे शरीर स्वस्थ होगा का विचार, केवल खुद को मूर्ख बनाना है ! शरीर स्वस्थ रखने के लिए जो अंग जिस कार्य के लिए बने हैं उनका सहज भरपूर उपयोग करना सीखना होगा ! गलत लोक श्रुतियों और मान्यताओं, सामाजिक भेदभाव पर खुले मन से विचार कर उनका त्याग करें आप खुद ब खुद सहज होते जाएंगे ! </div></div><div class="x11i5rnm xat24cr x1mh8g0r x1vvkbs xtlvy1s x126k92a" style="background-color: white; color: #050505; font-family: system-ui, -apple-system, "system-ui", ".SFNSText-Regular", sans-serif; font-size: 15px; margin: 0.5em 0px 0px; overflow-wrap: break-word; white-space: pre-wrap;"><div dir="auto" style="font-family: inherit;">दर्द सारे ही भुलाकर,हिमालय से हृदय में </div><div dir="auto" style="font-family: inherit;">नियंत्रित तूफ़ान लेकर, धीमे धीमे दौड़िये !</div></div><div class="x11i5rnm xat24cr x1mh8g0r x1vvkbs xtlvy1s x126k92a" style="background-color: white; color: #050505; font-family: system-ui, -apple-system, "system-ui", ".SFNSText-Regular", sans-serif; font-size: 15px; margin: 0.5em 0px 0px; overflow-wrap: break-word; white-space: pre-wrap;"><div dir="auto" style="font-family: inherit;">जाति,धर्म, प्रदेश,बंधन पर न गौरव कीजिये </div><div dir="auto" style="font-family: inherit;">मानवी अभिमान लेकर, धीमे धीमे दौड़िये !</div></div>Satish Saxena http://www.blogger.com/profile/03993727586056700899noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-6340570424549373370.post-1244135308276300502023-03-02T08:25:00.000+05:302023-03-02T08:25:37.993+05:30नज़र का चश्मा आवश्यकता या बुरी आदत -सतीश सक्सेना <div class="separator"><span style="color: #2b00fe;"><i>नज़र का चश्मा डॉ के कहते ही लगा लिया , उस समय आपने यह कहा ही नहीं होगा कि क्या बिना चश्में के आँखें ठीक होने की </i></span><i style="color: #2b00fe; text-align: center;">संभावना है ? अन्यथा हर आई डॉक्टर जनता है कि अधिकतर आँखें , व्यायाम करने से ठीक हो सकती हैं और इसके लिए वाक़ायदा एक्सरसाइज बनायी गयीं हैं , मगर हम में से अधिकतर लोग एक्सरसाइज का झंझट ही नहीं चाहते , और फिर चश्मा है ही फिर एक्सरसाइज की आवश्यकता ही क्या है ?</i></div><div class="separator"><div style="text-align: center;"><span style="color: #2b00fe;"><i><br /></i></span></div><span style="color: #2b00fe;"><i><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhG2nD2WDgS-DqJi7hqPiOkW1JUs-bW8pgBnUQPf0zhTq8Xbn_6IVUTnmIAepwoH9QulO6ZmIKj8rCxSIRKpDtbGnUZ0z8BaMvfwnAE0Kopuj81DLXCaP9wugtP1SoaRY-TXMaOub_kxhwFcOh-YFFsUUUT5k-vd-I0JeBuA-ckGWL48mI805HK73ed9Q/s1024/WhatsApp%20Image%202022-12-08%20at%2009.05.03.jpeg" imageanchor="1" style="clear: right; float: right; margin-bottom: 1em; margin-left: 1em;"><img border="0" data-original-height="769" data-original-width="1024" height="150" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhG2nD2WDgS-DqJi7hqPiOkW1JUs-bW8pgBnUQPf0zhTq8Xbn_6IVUTnmIAepwoH9QulO6ZmIKj8rCxSIRKpDtbGnUZ0z8BaMvfwnAE0Kopuj81DLXCaP9wugtP1SoaRY-TXMaOub_kxhwFcOh-YFFsUUUT5k-vd-I0JeBuA-ckGWL48mI805HK73ed9Q/w200-h150/WhatsApp%20Image%202022-12-08%20at%2009.05.03.jpeg" width="200" /></a></div></i></span></div><div class="separator"><i><span style="color: #2b00fe;">आँखें कमजोर होने के बाद स्पष्ट देखने के दो ही तरीक़े हैं , सुस्त आँखों का व्यायाम करिए और आप देखेंगे कि कुछ दिनों बाद ही आपको चश्में की आवश्यकता नहीं रही , वृद्ध अवस्था में भी लगातार अभ्यास करने के </span></i><i><span style="color: #2b00fe;">बाद , हाथ पैरों की मसल्स दुबारा शक्तिशाली बन सकती हैं तब आँखें क्यों नहीं ? मेरा पहला चश्मा आज से लगभग लगभग 30 वर्ष पहले लगा था , मगर उसका उपयोग मैंने न के बराबर ही किया ! </span></i><i><span style="color: #2b00fe;">मेडिकल व्यवसाय ने एक्सरसाइज न करने वालों को तमाम सहूलियतें दी हैं और तमाम अविष्कार किए मगर वे यह बहुत कम बताते हैं कि बिना आर्टिफीसियल उपयोग के भी आप ठीक हो सकते हैं और शायद यही हमें भी सुविधा जनक लगता है सो बहुत कम उम्र में ही खूबसूरत आँखों पर चश्मा चढ़ा दिया जाता है !</span></i></div><div><i><span style="color: #2b00fe;"><br /></span></i></div><div><span style="color: #2b00fe;"><i>आज मैंने अपने एक दोस्त से कहा कि मेरे सामने वे बिना चश्मा लगाये पढ़ने का प्रयत्न करें और उन्हें विभिन्न फ़ॉण्ट साइज के आर्टिकल पढ़ने को कहा , जिस आर्टिकल को वे सही से नहीं पढ़ सके उसे मैंने बिना चश्मे की मदद के बार बार पढ़ने के प्रयत्न करने को कहा और लगभग 5 मिनट बाद वे उसे धीरे धीरे पढ़ने में समर्थ थे , वे आश्चर्य चकित थे , मैंने उन्हें बताया कि कभी मेरी आँखें भी ऐसी ही थीं ! और आज लगभग 68+ की उम्र में , बिना चश्में कहीं भी चला जाता हूँ , छोटे अक्षर भी मिलें तब भी बिना चश्में पढ़ने की कोशिश करता हूँ और आँखों ने कभी धोखा नहीं दिया , इसीलिए चश्मे का नंबर 2.5 होने के बावजूद , मैं बरसों से चश्में का उपयोग सिर्फ़ बारीक अक्षर पढ़ने के लिए ही करता हूँ !</i></span></div><div><span style="color: #2b00fe;"><i><br /></i></span></div><div><span style="color: #2b00fe;"><i>कृपया प्रयास करें , चश्मा हटाने के लिए अपनी खूबसूरत आँखों की मदद करें , वे आपका साथ अवश्य देंगी ! </i></span></div>Satish Saxena http://www.blogger.com/profile/03993727586056700899noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-6340570424549373370.post-69257507723321909972023-02-24T09:29:00.004+05:302023-02-24T09:29:34.270+05:30एलोपैथी हेल्थ ब्लंडर्स -सतीश सक्सेना <i><span style="color: #2b00fe;">होम्योपैथी वरदान जैसी लगी यूरोपियन को , यहाँ तक कि कितने एलोपैथिक प्रैक्टिशनर , एलोपैथी छोड़कर इसका उपयोग कर अपने रोगियों का सफलता पूर्वक उपचार करने लगे और उन्होंने कितनी ही किताबें लिखीं जो बेहद कामयाब और आज भी होम्योपैथी की रीढ़ मानी जाती हैं , और यह उस समय हुआ जब विश्व में प्रचार और विज्ञापन के साधन उपलब्ध नहीं थे !<br /><br />बस तभी से एलोपैथी ने होम्योपैथी को पढ़े, समझे बिना उसके सिद्धांतों की खिल्ली उड़ाना शुरू किया और धीरे धीरे इन तेज प्रभाव वाली कैमिकल दवाओं ने मानव मन क़ाबू पाने में सफलता हासिल कर ली, एंटी बायोटिक्स मेडिसिन जो लाभ से अधिक नुक़सान करती हैं , एलोपैथिक प्रैक्टिशनरों द्वारा हर रोग का इलाज मानी जाने लगी और धीरे धीरे रेडियो और टेलीविज़न के ज़रिए इस धनवान और मशहूर व्यवसाय ने एलोपैथी ट्रीटमेंट सिस्टम को मेडिकल साइंस का नाम देने में सफलता प्राप्त कर ली !<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhlCja4uerbvtCvV3cUnC_3T7D8OXzzZui_Ie1unjg_9JpPFl0q_9gHxJ5ouqTijzIL1DroQcBccLzjMUW146cGdxq46u2zKl1nNpNkP0uIyIwAkMfVIgI4duu5bmvuqB8lC7yu9bzKh8aZCY3CI4ki11LKYOCLjCDudzALgeQALOEuqMPYDYtnnOi9Ww/s640/IMG-20171012-WA0043.jpg" imageanchor="1" style="clear: right; float: right; margin-bottom: 1em; margin-left: 1em;"><img border="0" data-original-height="640" data-original-width="640" height="200" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhlCja4uerbvtCvV3cUnC_3T7D8OXzzZui_Ie1unjg_9JpPFl0q_9gHxJ5ouqTijzIL1DroQcBccLzjMUW146cGdxq46u2zKl1nNpNkP0uIyIwAkMfVIgI4duu5bmvuqB8lC7yu9bzKh8aZCY3CI4ki11LKYOCLjCDudzALgeQALOEuqMPYDYtnnOi9Ww/w200-h200/IMG-20171012-WA0043.jpg" width="200" /></a></div></span></i><div><i><span style="color: #2b00fe;"><br /></span></i></div><div><span style="color: #2b00fe;"><i>हज़ारों वर्ष से दुनियाँ में सैकड़ों तरह के सफल रोग उपचार विधियाँ प्रचलित थीं , यूरोप,अफ़्रीका , चायना , मिडिल ईस्ट , भारत एवं मिश्र में हर्बल , एक्यूप्रेशर, एक्यूपेंक्चर, आयुर्वेद, यूनानी मेडिसिन का बोलबाला था, प्राकृतिक पौधों से ही बनायी गयीं यूरोप में होम्योपैथी मेडिसिन प्रचलित थीं , मगर धीरे धीरे प्रचार और धन की बदौलत एलोपैथी ने इन सबको निगल कर ख़ुद को मेडिकल साइंस का नाम देने में सफलता प्राप्त कर ली !</i></span></div><div><span style="color: #2b00fe;"><i><br /></i></span></div><div><span style="color: #2b00fe;"><i>इस तरह एक ताक़तवर मछली विज्ञापन के सहारे आसानी से अपने आसपास तैरती तमाम खूबसूरत छोटी मछलियों को खा गई , और व्यस्त मानवजाति ने गौर तक नहीं किया कि उनसे कितनी ही खूबसूरत रोग उपचार सिस्टम हमारे दिमाग़ को प्रचार साधनों से प्रभावित कर, धूर्तता पूर्वक दूर कर दिये गये हैं ! </i></span></div><div><span style="color: #2b00fe;"><i><br /></i></span></div><div><span style="color: #2b00fe;"><i>धुआँधार विज्ञापन आसानी से महा धूर्त को योगी और योगी को महा धूर्त बनाने में समर्थ हैं , सो आँखें खोलें दोस्त अन्यथा यह भूल जानलेवा साबित होगी !</i></span></div><div><span style="color: #2b00fe;"><i><br /></i></span></div><div><span style="color: #2b00fe;"><i><br /></i></span></div><div><span style="color: #2b00fe;"><i><br /></i></span></div>Satish Saxena http://www.blogger.com/profile/03993727586056700899noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-6340570424549373370.post-49291284499879765552023-02-15T12:35:00.007+05:302023-02-15T12:38:31.421+05:30लम्बे जीवन के लिए सुपरफूड केफीर -सतीश सक्सेना <div><i><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj_GpzEnUBB0z5xEmHIod2Gv9jiFqaCTg6T6oaJIznMWCPI8Ys7IBmyyGvfpnc_RICqifo4xgWsry-tHgKvsRQX4B5RSsoVKKk5ApjmC-ZDyGmW_MTJ3KgQLlRfo3q1EkHu_LJwEYbLiA295Q2-BQ5_pok36jAAKp_cj1wgdGZfObT_CTZuNwqLOs0KMA/s3088/IMG_5601.HEIC" imageanchor="1" style="clear: right; float: right; margin-bottom: 1em; margin-left: 1em;"><img border="0" data-original-height="3088" data-original-width="2320" height="200" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj_GpzEnUBB0z5xEmHIod2Gv9jiFqaCTg6T6oaJIznMWCPI8Ys7IBmyyGvfpnc_RICqifo4xgWsry-tHgKvsRQX4B5RSsoVKKk5ApjmC-ZDyGmW_MTJ3KgQLlRfo3q1EkHu_LJwEYbLiA295Q2-BQ5_pok36jAAKp_cj1wgdGZfObT_CTZuNwqLOs0KMA/w150-h200/IMG_5601.HEIC" width="150" /></a></div></i></div><i><span style="color: #2b00fe;">कॉकेशस पर्वत के आसपास रहने वाले लोग , बहुत लम्बा जीवन जीने के लिए जाने जाते हैं , आधुनिक रिसर्च के अनुसार वे एक तरह के दही का उपयोग हज़ारों वर्षों से करते आ रहे हैं जिसे केफीर (Kefir) कहा जाता है , वे इसे गाय, बकरी या भैंस के दूध में केफीर </span></i><i style="color: #2b00fe;"><span style="color: #2b00fe;">ग्रेन मिलाकर प्राप्त करते थे ! केफीर ग्रेन 24 घंटों में दूध के साथ मिलाकर रखने पर दही में बदल जाता है , इस दही को छानकर केफीर ग्रेन दुबारा प्राप्त कर लेते हैं , इस तरह यह ग्रेन्स एक परिवार में न केवल जीवन भर चलते रहते हैं बल्कि खुद को बढ़ाते भी रहते हैं ! आश्चर्यजनक है कि एक चम्मच केफीर ग्रेन्स एक परिवार को आजीवन केफीर देने के लिए काफी है !</span></i><div><span style="color: #2b00fe;"><i><br /></i></span><div><span style="color: #2b00fe;"><i>केफीर ग्रेन की उत्पत्ति के बारे में वहां के निवासियों का मानना है कि यह चमत्कारी भेंट उन्हें खुद हज़रत मोहम्मद साहब के द्वारा दिए गए ताकि वे और उनकी आने वाली पीढ़ियाँ स्वस्थ रहें और वहां इसे अमर रहने का रस कहा जाता है ! हजारों साल से इन केफीर ग्रेन्स को वे लोग अपने परिवार में कीमती रत्नों की तरह सहेजते आये हैं , उनके परिवारों में सौ वर्ष तक जीना एक सामान्य बात है !</i></span></div><div><span style="color: #2b00fe;"><i>और आजकल यही केफीर सुपर फ़ूड का दर्जा प्राप्त कर सारे यूरोप और अमेरिका में बिक रहा है !</i></span></div><div><span style="color: #2b00fe;"><i><br /></i></span></div><div><span style="color: #2b00fe;"><i>केफीर ग्रेन्स मानव निर्मित नहीं हैं बल्कि जीवित सूक्ष्म जीवाणु समूह (माइक्रो ऑर्गनिज़्म्स </i></span><span face="Roboto, sans-serif" style="background-color: white; color: #5d5d5d;">)</span><i style="color: #2b00fe;">हैं , सामान्य भाषा में वे जीवित बैक्टीरिया समूह हैं जो मानव शरीर के लिए जीवन अमृत की तरह काम करते हैं ! आजतक उनकी उत्पत्ति कैसे और कहाँ हुई, किसी को नहीं पता सिवाय इसके कि कॉकेशियस पहाड़ के आसपास के निवासी ही, उनके द्वारा फर्मेन्टेड दूध का उपयोग करते पाए गए !</i></div><div><span style="color: #2b00fe;"><i><br /></i></span></div><div><span style="color: #2b00fe;"><i>मैंने कई वर्ष पहले इसके बारे में किसी फ़ूड रिसर्च जानकारी के जरिये पढ़ा था , मगर ग्रेन्स की उपलब्धता के बारे में कोई जानकारी न मिलने के कारण उपयोग न कर सका ,संयोग से </i></span><i style="color: #2b00fe;">पिछले वर्ष मित्र विद्याधर गर्ग शुक्ल से भेंट होने पर उन्होंने अपने परिवार में इसके उपयोग के बारे में सविस्तार बताया जिसे सुनकर मैंने इसका उपयोग करने का फैसला किया और यह जानकारी वाकई अद्भुत रही !</i></div><div><br /></div></div>Satish Saxena http://www.blogger.com/profile/03993727586056700899noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-6340570424549373370.post-50686301678452528202023-01-19T09:11:00.002+05:302023-01-19T09:11:43.370+05:30 बतलायें, तपोवन कहां लिखूं -सतीश सक्सेना<p></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgXxrUWloAyPbxN0UmcCgHYW29BRQ8ifrfUZj5hFk8tHqBsljPfy-9rYIUc0vUn9MfhbIyHo2n0XRYHdyKrFeURPB8GS1ndPBGCYmb9aZ7CSixNR_5HpFmQfqYW3mgZXRG91ALvPZrdQ6HBe4GYP1xkSe7VMAVawSL3CningpF4i4C6eKAtUL9uR40YRQ/s1024/scs.jpeg" style="clear: right; float: right; margin-bottom: 1em; margin-left: 1em;"><img border="0" data-original-height="1024" data-original-width="789" height="200" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgXxrUWloAyPbxN0UmcCgHYW29BRQ8ifrfUZj5hFk8tHqBsljPfy-9rYIUc0vUn9MfhbIyHo2n0XRYHdyKrFeURPB8GS1ndPBGCYmb9aZ7CSixNR_5HpFmQfqYW3mgZXRG91ALvPZrdQ6HBe4GYP1xkSe7VMAVawSL3CningpF4i4C6eKAtUL9uR40YRQ/w154-h200/scs.jpeg" width="154" /></a></div><i><span style="color: #2b00fe;">साधारण जनमानस में गुरु बेहद आवश्यक हैं, लोग अक्सर पूछते दिखते है, यह किसने कहा ? यह कहाँ लिखा है ? किसी सम्मानित से दिखने वाले व्यक्ति में उन्हें गुरु दिखने लगता है, और उनके व्यवहार में विनम्रता तुरंत नज़र आने लगती है !</span></i><p></p><i><span style="color: #2b00fe;">गुरुओं ने इसे अंगीकार कर लिया, गुरु सत्संग में पहुँचने पर सबसे पहले शिष्य को बिना बोले, सिर्फ़ सुनना अनिवार्य शर्त है , बोलना ही मना है, और पूछना अशिष्टता ! सो गुरु लोग सबसे पहले बेहतरीन सांस्कृतिक सा नाम पहले धारण करते हैं, दाढ़ी आवश्यक है और अगर आचार्य रवींद्र नाथ जैसी हो तो क्या कहने ! बिना कुर्ता , क्लीनशेव व्यक्तित्व को शिष्य कभी गुरु नहीं बनायेंगे ! सो जो साथी ज्ञान देने में माहिर हैं उन्हें चाहिये एक बढ़िया सा नाम, और सौम्य वेशभूषा, कुछ दिन मजमा लगाने के बाद, लच्छे दार लुभावनी भाषा, बढ़ती शिष्य मंडली देखकर अपने आप आ जाएगी !<br /><br />राजकुमार सिद्धार्थ ने किसी को गुरु नहीं बनाया, उनमें बिना किसी जानवर के भय के बालसुलभ निडरता बचपन से ही थी, वे ख़ुद से ही प्रश्न करते ख़ुद में ही उत्तर की तलाश करते और उन्हें हर बार शरीर और अनुभव सिखाता रहा ! जानवर एक शांत चित्त व्यक्ति अपने पास पाकर खुश थे, उन्हें इस व्यक्ति से कभी ख़तरा महसूस नहीं हुआ सो उन्होंने सिद्धार्थ पर भी कभी आक्रमण नहीं किया बल्कि वे उनसे प्यार करते थे , शायद यही से अहिंसा का जन्म हुआ<br /><br />उन्होंने महसूस किया कि इंसान को जीवित रहने के लिए शुद्ध हवा में साँस लेना सबसे आवश्यक है , उन्हें दिन में चार पाँच बार प्यास लगती और भूख सिर्फ़ एक बार, खाने में जो फल, मूल, पत्ता, जीभ को कड़वा लगता उसे थूकना पड़ता था उन्होंने उसे हमेशा त्याज्य माना और जो मीठा लगा उसे खाने योग्य ! <br /><br />बिना गुरु ही वे एकाग्रचित्त हो साँसों पर अधिकार कर पेट में कंपन पैदा करना सीख गए जिससे उनका शरीर स्वस्थ रहे , वे ही सर्वोच्च योगी थे जिनका कोई गुरु नहीं था ! सो मेरा ख़ुद का विश्वास है कि हम सब अपने अंदर निहित, आंतरिक गुरु को तलाश करें, जो कि शरीर को पूरे जीवन बेहद शक्ति देने में समर्थ है न कि धन की तलाश में जुटे आडंबरी गुरुओं की तलाश में समय व्यर्थ कर ख़ुद को मूर्ख साबित करें !<br /> <br />प्रणाम आप सबको</span></i>Satish Saxena http://www.blogger.com/profile/03993727586056700899noreply@blogger.com8tag:blogger.com,1999:blog-6340570424549373370.post-22895663182829030452023-01-12T09:28:00.008+05:302023-01-12T09:28:46.096+05:30 टीशर्ट राहुल गांधी की -सतीश सक्सेना<b><i><span style="color: #2b00fe;"><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgj-GYhNLTm-LuyCMFwaCiM9eLavuveY7Tdv5__Hu7StBbIjA00kXV6XNYpbBMvYNA5K2ptcCDIVmdyRqWxRl00c7L30mlK7_cm0a6Z1aS7xb2O7PdDtHN2UxvBj6A0TZSAnr9I3AoT1Mj9ufwb6pP6_2ztvliNuD3B9tOQrvmWv-NNCU_gIe8cShhs-Q/s1024/WhatsApp%20Image%202023-01-12%20at%2009.26.23.jpeg" imageanchor="1" style="clear: right; float: right; margin-bottom: 1em; margin-left: 1em;"><img border="0" data-original-height="1024" data-original-width="490" height="200" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgj-GYhNLTm-LuyCMFwaCiM9eLavuveY7Tdv5__Hu7StBbIjA00kXV6XNYpbBMvYNA5K2ptcCDIVmdyRqWxRl00c7L30mlK7_cm0a6Z1aS7xb2O7PdDtHN2UxvBj6A0TZSAnr9I3AoT1Mj9ufwb6pP6_2ztvliNuD3B9tOQrvmWv-NNCU_gIe8cShhs-Q/w96-h200/WhatsApp%20Image%202023-01-12%20at%2009.26.23.jpeg" width="96" /></a></div>देखिए जब 69 वर्ष के सतीश सक्सेना टी शर्ट में 7 डिग्री में दौड़ रहे हैं तब राहुल तो नौजवान हैं , मार्शल आर्ट Akido में ब्लैक बेल्ट होल्डर हैं , ऐसे शानदार एथलीट का ठंड में टी शर्ट पहनना भी, ढीले ढाले लोगों के बीच चर्चा का विषय बन जाता है !</span></i></b><div><b><i><span style="color: #2b00fe;"> <br />विश्वास करिए, ठंड में एक टी शर्ट में बाहर निकलना असंभव नहीं है , बल्कि आप सबको एक एक लेयर कम करते हुए कम कपड़ों में बाहर रहने का अभ्यास करना चाहिए ! १०००० साल पहले लोग गुफाओं में बिना कपड़े ही रहते थे , परिवार सहित !</span></i></b></div><div><b><i><span style="color: #2b00fe;"><br />शरीर बहुत शक्तिशाली है इस पर भरोसा रखें यह किसी भी परिस्थिति में ज़िंदा रह सकता है , इसको शक्तिशाली बनाने के लिए ढेरों हवा , पानी और भूख लगने पर थोड़ा भोजन चाहिये बस !</span></i></b></div><div><b><i><span style="color: #2b00fe;"> <br />इसकी आदत न बिगाड़िये , प्रमाण आप सबको</span></i></b></div>Satish Saxena http://www.blogger.com/profile/03993727586056700899noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-6340570424549373370.post-11706397465702991062023-01-08T10:42:00.009+05:302023-01-10T09:11:06.432+05:30आदतें बदलनी होगी -सतीश सक्सेना <p></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgYyFuitzw9EDtx2vdedxoV0s3wppwHDtlplFoEKuXtGwjuSNze1ALv09x0zbJScX-kkAgizJW6BDOlIS7_0iuSMaqxvOO9iAGhr7f9AAjQ9SJtj3dloSH1hQ2Sd__AF5l3eIZ3zSF2mfE9O0vBHfFF-Y0euV38NKvOL8pOrJ1xy4qenRqJ4VVBRL0BTg/s1024/Jan23.jpeg" style="clear: right; float: right; margin-bottom: 1em; margin-left: 1em;"><img border="0" data-original-height="1024" data-original-width="490" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgYyFuitzw9EDtx2vdedxoV0s3wppwHDtlplFoEKuXtGwjuSNze1ALv09x0zbJScX-kkAgizJW6BDOlIS7_0iuSMaqxvOO9iAGhr7f9AAjQ9SJtj3dloSH1hQ2Sd__AF5l3eIZ3zSF2mfE9O0vBHfFF-Y0euV38NKvOL8pOrJ1xy4qenRqJ4VVBRL0BTg/s320/Jan23.jpeg" width="153" /></a></div><b><i><span style="color: #2b00fe;"> हम सम्मानित लोग अक्सर अपने ऊपर कोई कठोर फैसला लागू ही नहीं होने देते क्योंकि हम खुद ही नियम बनाने वाले हैं और अक्सर यह नियम दूसरों पर लागू करवाते हैं ! वजन घटाने का फैसला आसान नहीं है क्योंकि बरसों से मेहनत न करने , और जम के बढ़िया भोजन की आदत छोड़ना, भीष्म प्रतिज्ञा जैसा है जो खुद पर लागू ही नहीं करना क्योंकि हम किसी के प्रति जवाब देह नहीं है !<br /><br />कड़ाके की ठंड में कम कपड़े पहनने की आदत डालें, शुरुआत में एक लेयर कम कर दें , कुछ दिनों में ठंड लगनी बंद हो जाएगी !</span></i></b>Satish Saxena http://www.blogger.com/profile/03993727586056700899noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-6340570424549373370.post-62179815397421062072023-01-04T14:25:00.006+05:302023-01-04T14:57:22.940+05:30 अरे चीथड़ों कब जागोगे -सतीश सक्सेना <i><b><span style="color: #2b00fe;">अरे चीथड़ों कब जागोगे , </span></b></i><div><i><b><span style="color: #2b00fe;">लूट मची है , पछताओगे !</span></b></i></div><div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjCkOr5w1ktQjCkwom0IjQQ3i4xi0N_IuPqxItr69_uPvQlwF8E_rrcqThBrz5YrfJ5t9MJ58v9z401uZaKsJ0p89jZppUw1TIMMua9HaypcSS0ywEYlvl_ef_0dSVVniPwc8di-f76nyqwDkGJWmp4uCCDO4RSLJ7E6pvxdeZl788x07gPGrfo1rJThQ/s5184/IMG_4701.jpeg" style="clear: right; float: right; margin-bottom: 1em; margin-left: 1em;"><img border="0" data-original-height="3456" data-original-width="5184" height="133" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjCkOr5w1ktQjCkwom0IjQQ3i4xi0N_IuPqxItr69_uPvQlwF8E_rrcqThBrz5YrfJ5t9MJ58v9z401uZaKsJ0p89jZppUw1TIMMua9HaypcSS0ywEYlvl_ef_0dSVVniPwc8di-f76nyqwDkGJWmp4uCCDO4RSLJ7E6pvxdeZl788x07gPGrfo1rJThQ/w200-h133/IMG_4701.jpeg" width="200" /></a></div><i><b><span style="color: #2b00fe;">खद्दर धारी बाजीगर हैं ,</span></b></i></div><div><i><b><span style="color: #2b00fe;">और तुम बने जमूरे रहना !</span></b></i></div><div><span style="color: #2b00fe;"><b><i>सपने , रैली , भाषण मीठे</i></b></span></div><div><span style="color: #2b00fe;"><b><i>जीवन भर तुम पीते रहना</i></b></span></div><div><b style="color: #2b00fe;"><i>छोड़ देखना , स्वप्न सुनहरे </i></b></div><div><b style="color: #2b00fe;"><i>भाग सके तो भाग सभी संग </i></b></div><div><b style="color: #2b00fe;"><i>दुनिया फ़ायदा उठा रही है </i></b></div><div><b style="color: #2b00fe;"><i>सीख लगाना डुबकी, तू भी</i></b></div><div><div><b style="color: #2b00fe;"><i>लूट सके तो लूट देश को , नहीं तो</i></b><b style="color: #2b00fe;"><i> पीछे रह जाओगे !</i></b></div><i><span style="color: #2b00fe;"><b>लूट मची है, पछताओगे !</b></span></i><div><i><b><span style="color: #2b00fe;"><br /></span></b></i><i><b><span style="color: #2b00fe;">शपथ उठाए संविधान की </span></b></i><i><b><span style="color: #2b00fe;"><br /></span></b></i><div><i><b><span style="color: #2b00fe;">खद्दर पहने , नेता लूटें !</span></b></i></div><div><span style="color: #2b00fe;"><b><i>नियम और क़ानून दिखायें </i></b></span></div><div><i><b><span style="color: #2b00fe;">दफ़्तर वाले, बाबू लूटें !</span></b></i></div><div><span style="color: #2b00fe;"><b><i>हाथ में झंडा ले छुटभैया, </i></b></span></div><div><span style="color: #2b00fe;"><b><i>धमकी देकर चौथ वसूले </i></b></span></div><div><span style="color: #2b00fe;"><b><i>सब्जी वाला तक डंडी के <br /></i></b></span><div><div><span style="color: #2b00fe;"><b><i>बल पर, बहिन बनाके लूटे</i></b></span></div><div><span style="color: #2b00fe;"><b><i>उल्लू मत बन, बनो जुगाड़ू </i></b></span></div><div><span style="color: #2b00fe;"><b><i>आँख उठा ले, राष्ट्रभक्त बन </i></b></span></div><div><span style="color: #2b00fe;"><b><i>झूठ को सत्य बनाना सीखो , वरना बेटा क्या खाओगे !</i></b></span></div><div><span style="color: #2b00fe;"><b><i>देश लुट रहा पछताओगे !</i></b></span></div><div><span style="color: #2b00fe;"><b><i><br /></i></b></span></div><div><span style="color: #2b00fe;"><b><i>आँखें खोलो नंगों तुम भी </i></b></span></div><div><span style="color: #2b00fe;"><b><i>बहती गंगा में मुँह धो लो</i></b></span></div><div><b style="color: #2b00fe;"><i>फेंक मजीरा, तबला, ढोलक </i></b></div><div><b style="color: #2b00fe;"><i>हर हर गंगे अलख जगा ले ! </i></b></div><div><span style="color: #2b00fe;"><b><i>जय श्री राम बोल नेता को </i></b></span></div><div><span style="color: #2b00fe;"><b><i>जीत दिलाकर शोर मचा ले </i></b></span></div><div><span style="color: #2b00fe;"><div style="color: black;"><b style="color: #2b00fe;"><i>हाथ में आएगा, घंटा ही ,</i></b></div><div style="color: black;"><span style="color: #2b00fe;"><b><i>चाहे जितना ज़ोर लगा ले </i></b></span></div></span></div><div><span style="color: #2b00fe;"><b><i>त्याग पसीना, बनो हरामी </i></b></span></div><div><span style="color: #2b00fe;"><b><i>बुद्धि के बल नोट कमाओ </i></b></span></div><div><span style="color: #2b00fe;"><b><i>फेंक रज़ाई फटी, </i></b></span><b style="color: #2b00fe;"><i>लूट ले , वरना पीछे रह जाओगे !</i></b></div><div><span style="color: #2b00fe;"><b><i>तुम वन्दे मातरम गाओगे !</i></b></span></div><div><br /></div><div><div><span style="color: #2b00fe;"><b><i>तुमको धांसू न्यूज़ सुनाकर </i></b></span></div><div><span style="color: #2b00fe;"><b><i>प्रेस मीडिया नोट कमाये !'</i></b></span></div></div><div><span style="color: #2b00fe;"><b><i>तुमको भरमाने की खातिर </i></b></span></div><div><span style="color: #2b00fe;"><b><i>चोर को साहूकार बताये !</i></b></span><b style="color: #2b00fe;"><i> </i></b></div><div><span style="color: #2b00fe;"><b><i>टेलिविज़न बनाए उल्लू ,</i></b></span></div><div><span style="color: #2b00fe;"><b><i>मीठे मीठे स्वप्न दिखाये !</i></b></span></div><div><span style="color: #2b00fe;"><b><i>जो घर को ही, चले लूटने </i></b></span></div><div><span style="color: #2b00fe;"><b><i>उनके जयजयकार लगाए </i></b></span></div><div><span style="color: #2b00fe;"><b><i>समय बचा है अब भी बकरे </i></b></span></div><div><b style="color: #2b00fe;"><i>मूर्ख़ बनाना सीखो भोंदू ,</i></b></div><div><b style="color: #2b00fe;"><i>वरना जीवन भर तुम लल्लू , क्या ओढ़ोगे क्या बिछाओगे !</i></b></div><div><span style="color: #2b00fe;"><b><i>हाथ में बस घंटा पाओगे !</i></b></span></div></div></div></div></div><div><span style="color: #2b00fe;"><b><i><br /></i></b></span></div><div><span style="color: #2b00fe;"><b><i>#व्यंग्य </i></b></span></div>Satish Saxena http://www.blogger.com/profile/03993727586056700899noreply@blogger.com8tag:blogger.com,1999:blog-6340570424549373370.post-17258222181165510442022-12-28T15:31:00.003+05:302022-12-28T15:31:12.500+05:30आंतरिक शारीरिक रक्षा शक्ति -सतीश सक्सेना <p> अगर मैं स्टोन एज की बात करूँ तो वह लगभग २५ लाख साल चला लगभग ६००० साल पहले समाप्त हुआ था , उस समय भी समय अनुसार मानवीय ज़रूरत का हर साधन उपलब्ध था , बस इलाज और बीमारियों के बारे में उन्हें यही पता था कि कुछ दिन कमजोरी रहती है तब आराम करना चाहिए और उन दिनों खाने का मन नही करता सो वो कम खाते और गुफा के एक कोने में आराम करते, कुछ दिनों में स्वतः ठीक हो जाते और फिर शिकार, भागना दौड़ना और परिवार संग खुश रहना , मस्त जीवन ...</p>आज से लगभग ५० वर्ष पहले भी दूर दूर तक हॉस्पिटल और डॉक्टर नहीं थे, गाँव क़स्बों के लोगों ने इनका नाम तक नहीं सुना था , लोग तब बिना मृत्यु भय और बीमारियों के जीते थे, वाइरस बैक्टिरिया तो बहुत दूर की चीज़ थे , बस भय और स्ट्रेस देने वाले टेलिविज़न और डर फैलाकर धन कमाने वाले मीडिया संसाधन नहीं थे !<br /><br />मानवीय शरीर में लाखों कोशिकाएँ व्यस्त रहती हैं शरीर को सुचारु रूप से चलाने के लिए, इस प्रक्रिया के फल स्वरूप शरीर में हर समय उथलपुथल रहती है, तरह तरह के दर्द, और समस्याएँ होती हैं जो कुछ समय में अपने आप समाप्त भी हो जाती हैं ,भयभीत और समर्थ मन जो इन्हें सहन नहीं कर पाता , फ़ौरन डॉक्टर की शरण में जाकर दवा खाता है , बिना यह जाने कि इनका शरीर पर बुरा असर क्या होगा वहीं निडर या असमर्थ व्यक्ति चुपचाप घर में लेटकर स्वस्थ होने का इंतज़ार करता है और खुद को स्वस्थ बनाए रखने में सफल रहता है !<div><br /></div><div>६१ वर्ष की उम्र में मैंने जाड़े आते ही कपड़े कम पहन कर दौड़ने का अभ्यास शुरू किया था , पहले तीन लेयर , फिर दो और अंत में स्लीव लेस वेस्ट पहन कर, दौड़ने का अभ्यास किया लगभग दो सीज़न बाद ही ६२ वर्षीय शरीर ने इसे ख़ुशी ख़ुशी स्वीकार कर लिया और अब ६९ वर्ष की आयु में, ७ डिग्री कड़ाके की ठंड में , सिंगल स्लीव लेस वेस्ट और शॉर्ट में आराम से दौड़ता हूँ ! मानवीय शरीर की ताक़त बेमिसाल है सिर्फ़ बिना डरे उसकी आदत डालने की आवश्यकता है !<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhq8OKu2fBty1-QPd-ZCF3kbLQc3wZKW6rJSSq-X50i7Lf-8B9Bl6pFwBaRxqVKSVE8KFXknUxOj14Z31MALQgHUSo_bPe7a1gKeX8K27cF5F_nXm5bGV5Ep7fwudlLDHnGEZyUwFae4pEsaElMlNiLvBrpsPt0jDaWWJeJSoaeDNIqQulYhXKF46ykDw/s1024/13may_22.jpeg" imageanchor="1" style="clear: right; float: right; margin-bottom: 1em; margin-left: 1em;"><img border="0" data-original-height="1024" data-original-width="713" height="200" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhq8OKu2fBty1-QPd-ZCF3kbLQc3wZKW6rJSSq-X50i7Lf-8B9Bl6pFwBaRxqVKSVE8KFXknUxOj14Z31MALQgHUSo_bPe7a1gKeX8K27cF5F_nXm5bGV5Ep7fwudlLDHnGEZyUwFae4pEsaElMlNiLvBrpsPt0jDaWWJeJSoaeDNIqQulYhXKF46ykDw/w139-h200/13may_22.jpeg" width="139" /></a></div><br />पिछले सप्ताह खाना खाते हुए, एक मटर का दाना साँस की नली में फँस गया था लगभग दो घंटे तक लगातार खाँसता रहा, साँस आने में रुकावट थी, लग रहा था कि जान चली जाएगी, डॉक्टर <span class="xv78j7m xt0e3qv" spellcheck="false">T S Daral</span> जैसे पुराने मित्र, और रनर डॉक्टर दोस्त <span class="xv78j7m xt0e3qv" spellcheck="false">Vishesh Malhotra</span> न होते तो ओपरेशन के लिए हॉस्पिटल में भर्ती होना पड़ता ! पूरे सप्ताह साँस लेने में तकलीफ़ रही, अचानक एक दिन सुबह बहुत तेज गति से खांसी शुरू हुई लगा कि फेफड़े बाहर आ जाएँगे, और एक बड़ा सा गोल दाना मुँह से निकल कर बेसिन में गिरा, साथ ही लगातार हो रही खांसी व साँस में रुकावट ग़ायब हो गयी !<div><div><br />कम से कम एक डॉक्टर मित्र आपके परिवार में अवश्य होना चाहिए जो आपातकाल में सही सलाह देकर आपको अनावश्यक दवाओं से बचाने में आपकी मदद करे, उसके अलावा शारीरिक रक्षा शक्ति को कम न आंकिये, यह आपकी रक्षा करने में पूर्ण समर्थ है !</div></div></div>Satish Saxena http://www.blogger.com/profile/03993727586056700899noreply@blogger.com8tag:blogger.com,1999:blog-6340570424549373370.post-42202111861726852432022-12-20T09:47:00.005+05:302022-12-20T09:48:23.062+05:30 हमारी जय हो -सतीश सक्सेना<i><span style="color: #2b00fe;">कल एक बर्थ डे पार्टी में दो घंटा रुकना पड़ा, डीजे की तेज आवाज़ में हम वहाँ जबतक रहे , मेज़बान और मेहमान , बोली हुई आवाज़ सुनना नामुमकिन रहा, एक दूसरे का हालचाल तक न पूँछ सके, मेरी हेल्थ वाच लगातार शोर का लेवल १०३ db दिखाते हुए मेसेज फ़्लेश कर रही थी कि, इस समय noise लेवल 102 DB है, अधिक देर तक बैठने से आपके कानों में स्थायी नुक़सान हो सकता है !</span></i><div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh4_jkxptoQxFom88YCkx6pXMFh2VxtxDUR6lfs5tFBY_Pof4a6_492l6-507-coIOob2dmSdcvOP0FZrnMYRLw4nlh4tGuUUbtZFhI5T__k9Zb6c20xBAXI2G8m8_R2UWhjYkzvDrvViq0ED-F-pvjuQ3O0T7CRUljwQExEB7SuOibDg3feVrem5fKgw/s1024/self.jpeg" style="clear: right; float: right; margin-bottom: 1em; margin-left: 1em;"><img border="0" data-original-height="1024" data-original-width="769" height="200" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh4_jkxptoQxFom88YCkx6pXMFh2VxtxDUR6lfs5tFBY_Pof4a6_492l6-507-coIOob2dmSdcvOP0FZrnMYRLw4nlh4tGuUUbtZFhI5T__k9Zb6c20xBAXI2G8m8_R2UWhjYkzvDrvViq0ED-F-pvjuQ3O0T7CRUljwQExEB7SuOibDg3feVrem5fKgw/w150-h200/self.jpeg" width="150" /></a></div><i><span style="color: #2b00fe;"><br />यूरोप में अवकाश के दिन आप अपने घर में, ज़ोर ज़ोर से बोलना, तेज आवाज़ में टीवी चलाना, किसी तरह ड्रिलिंग, घरेलू मरम्मत का शोर नहीं कर सकते, यहाँ तक कि रात में वॉटर फ़्लश करने का शोर भी नहीं होना चाहिए, शोर को वे हेल्थ के लिए नुक़सान देह व क्राइम मानते हैं और भारी पेनल्टी है मगर हमारे यहाँ किसी को पता ही नहीं कि तेज आवाज़ से बच्चों और बुजुर्गों के कान पर बेहद बुरा असर पड़ता है !<br /><br />हमारे यहाँ घरेलू एरिया में ५५ DB तक का शोर की इजाज़त है , १० बजे के बाद लाउडस्पीकर बजाने की इजाज़त नहीं, मगर यहाँ यह अपराध धड़ल्ले से होता है, दूसरों की असुविधा से हमारा कोई मतलब ही नहीं और अपने स्वास्थ्य की समझ नहीं ! <br /> <br />मानसिक विकास के बिना ही विकास हो रहा है !</span></i><p></p></div>Satish Saxena http://www.blogger.com/profile/03993727586056700899noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-6340570424549373370.post-23205378853224493742022-12-10T12:49:00.006+05:302022-12-10T12:56:40.515+05:30रोबो चेयर, एक वरदान -सतीश सक्सेना <p><span style="color: #2b00fe;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgBtvz6X38xQpkmKf_ECz0Tekh7PArR5XBQKEamSYANbQkPMcBNUwblJD_LQgo_yS1MPwj8b6uR4rU5ixAnnfsorb2jQW4e2Emtd8KiBpVdiYLdf8_qX9dRVfVR0CnDtUMhsV4OKQsjNiYCVtBUcAxOuYs4cyHWx1_uUVaqwAsNtwYkWv0a5i-QBeP5GA/s1024/13may_22.jpeg" style="clear: right; float: right; margin-bottom: 1em; margin-left: 1em;"><img border="0" data-original-height="1024" data-original-width="713" height="200" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgBtvz6X38xQpkmKf_ECz0Tekh7PArR5XBQKEamSYANbQkPMcBNUwblJD_LQgo_yS1MPwj8b6uR4rU5ixAnnfsorb2jQW4e2Emtd8KiBpVdiYLdf8_qX9dRVfVR0CnDtUMhsV4OKQsjNiYCVtBUcAxOuYs4cyHWx1_uUVaqwAsNtwYkWv0a5i-QBeP5GA/w139-h200/13may_22.jpeg" width="139" /></a></span><i><span style="color: #2b00fe;">घर में कुर्सी पर बैठ कर लैपटॉप पर या कम्बल में टीवी , बाहर निकलो गाड़ी से ऑफिस में , लिफ्ट से ऑफिस में अपनी कुर्सी तक ,</span></i><i><span style="color: #2b00fe;">शाम को गाड़ी से घर वापसी , घर के अंदर सोफा तैयार , डाइनिंग कुर्सी पर बैठकर डिनर , और बाद में गर्म बिस्तर </span></i></p><p></p><p><i style="color: #2b00fe;">सोचता हूँ कि पैरों का काम ही क्या है , घर में खड़े होकर कार तक पैदल जाना पड़ता है , हाई क्वालिटी रोबो व्हील चेयर बनवा लेता हूँ उसमें सामने लैपटॉप स्क्रीन लगी हो , सेंसर सड़क पर किसी से टकराने भी नहीं देंगे ! घुटनों की जरूरत भी सिर्फ उठते समय पड़ेगी जब सोने जाना होगा , यह कुर्सी लगभग एक लाख की आएगी , खरीदने की सोच रहा हूँ , आराम के लिए पैसा उपयोग न किया तो फिर किस काम आएगा !</i></p><p> <span style="color: #2b00fe;"><i>घर में पूरे दिन बैठे रहकर टीवी देखते समय मेरी स्पोर्ट्स वाच रिमाइंडर देती रहती है कि अब कम से कम खड़े ही हो जाओ भैया ? इसे फेंक ही दूँगा किसी दिन गुस्से में !</i></span></p>Satish Saxena http://www.blogger.com/profile/03993727586056700899noreply@blogger.com6tag:blogger.com,1999:blog-6340570424549373370.post-59322685194562248172022-12-09T14:10:00.005+05:302022-12-09T14:10:40.041+05:30हम पाखंडी -सतीश सक्सेना <div class="x11i5rnm xat24cr x1mh8g0r x1vvkbs xtlvy1s x126k92a" style="margin: 0.5em 0px 0px; overflow-wrap: break-word;"><div dir="auto"><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgtGysaQMQINUMiaaPAi7M5vi5hquA8yFcDTnAkE6pQMCEX5fExpZARyuLVOZ20tLMf4s0rCU4f5wifYtNRcyJznUFoP6i03Xv_NQ4m4lHQAqDu16zANimtu0V7rgWRj4thUdXHkujZJiTiTKg8PB-gwTERAyiP1b0dOKs47A1EAoI8oFy3GjQEhj8lrQ/s960/18319360_10210425265401245_8629268020627059910_o.jpeg" imageanchor="1" style="clear: right; float: right; margin-bottom: 1em; margin-left: 1em;"><img border="0" data-original-height="960" data-original-width="601" height="200" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgtGysaQMQINUMiaaPAi7M5vi5hquA8yFcDTnAkE6pQMCEX5fExpZARyuLVOZ20tLMf4s0rCU4f5wifYtNRcyJznUFoP6i03Xv_NQ4m4lHQAqDu16zANimtu0V7rgWRj4thUdXHkujZJiTiTKg8PB-gwTERAyiP1b0dOKs47A1EAoI8oFy3GjQEhj8lrQ/w125-h200/18319360_10210425265401245_8629268020627059910_o.jpeg" width="125" /></a></div><i><span style="color: #2b00fe;">यह सच है कि हम भारतीय पाखंड अधिक करते हैं, प्रौढ़ावस्था के कपड़े अलग, जवानों के अलग और बुढ़ापे में रंगहीन कपड़े और मोटा चश्मा, दाढ़ी के साथ ! विधवा है तब रंगीन कपड़े , चूड़ी पायल कंगन आदि सब त्याज्य अन्यथा सब लोग क्या कहेंगे !<br /><br />अगर लेखक हैं और आम लोगों में मशहूर होना है तो सबसे पहले नाम बदलिए , बेहतरीन सांस्कृतिक नाम रखिए, दाढ़ी बढ़ा लीजिए बड़े बाल कंधे तक बनाइए, खादी कुर्ता पजामा, चेहरे पर गंभीरता , और कुछ चेले लेकर चलना शुरू करें फिर देखिए जलवा !</span></i></div><div dir="auto"><i><span style="color: #2b00fe;"><br />सबसे बढ़िया धंधा करना हो तो बाबा बन जाइए, सतीश सक्सेना जैसे बकवास नाम की जगह सत्यानंद सरस्वती अधिक प्रभावशाली रहेगा, दाढ़ी और सर के बाल बढ़ाकर नारंगी रंग की धोती पहनिए, पैरों में खड़ाऊँ हों तो क्या कहने, राह चलते लोगों में पैर छूने की होड़ लग जाएगी , आशीर्वाद दो और धन बरसने लगेगा !</span></i></div><div dir="auto"><i><span style="color: #2b00fe;"><br />और अगर 69-70 की उम्र में आकर, टी शर्ट, शॉर्ट पहन लिया तब लोगों से यह सुनने को तैयार रहिए, चढ़ी जवानी बुड्ढे नू ! मन को मारना सीख ले, इस उम्र में यह रंग, सब लोग क्या कहेंगे !</span></i></div><div dir="auto"><i><span style="color: #2b00fe;"><br />अभी हमें मानसिक तौर पर विकसित होने में, कम से कम 100 साल लगेंगे !</span></i></div></div>Satish Saxena http://www.blogger.com/profile/03993727586056700899noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-6340570424549373370.post-28121341562540629352022-11-28T11:27:00.001+05:302022-11-28T11:27:32.889+05:30मिलावटी संसार और हम लोग -सतीश सक्सेना <p></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgGFtXeRJg7_eaCtUVrQlygByt4VjRyD1VvfzH5O3OJzgQYBhtndrTMRxuzFXzz5bOzc4VxdGqapsbM6QAEk810wSRe85_a2J2IkMFuMXJvj6x22muPuuLS8sDAJduCBkct2akrEVNgrPQGUyEuPClBjQydH7N0WcHj0nTkE4MLckYyEXkqHwcFPLZDkQ/s640/278439584_10223470546205112_7959051120418931974_n.jpeg" imageanchor="1" style="clear: right; float: right; margin-bottom: 1em; margin-left: 1em;"><img border="0" data-original-height="640" data-original-width="640" height="200" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgGFtXeRJg7_eaCtUVrQlygByt4VjRyD1VvfzH5O3OJzgQYBhtndrTMRxuzFXzz5bOzc4VxdGqapsbM6QAEk810wSRe85_a2J2IkMFuMXJvj6x22muPuuLS8sDAJduCBkct2akrEVNgrPQGUyEuPClBjQydH7N0WcHj0nTkE4MLckYyEXkqHwcFPLZDkQ/w200-h200/278439584_10223470546205112_7959051120418931974_n.jpeg" width="200" /></a></div><span style="color: #2b00fe;"><i>मुझे अपने बचपन की याद है जब त्योहारों और शादी विवाह के दिनों में , बाजार में दूध और दही सुबह के दस बजे तक ही ख़तम हो जाता था , खोया और पनीर तो मिलता ही नहीं था ! मगर आजकल पूरे देश में शहर हो या गांव कस्बा , इन चीजों की भरमार है , दूध को छोड़ , हर फ़ूड प्रोडक्ट की कमी बाजार में अक्सर सुनाई पड़ती है और उसका रेट बढ़ जाता है मगर हमारे देश में लगता है दूध दही की नदियां बहती हैं , जिस कारण इसकी कोई कमी नहीं , आप किसी भी समय पड़ोस की दुकान से जितना चाहे दूध दही खोया या पनीर खरीद सकते हैं , सप्लाई कभी कम नहीं होती मानो हर घर में कामधेनु आ गयी है ! </i></span><p></p><p><span style="color: #2b00fe;"><i>रविवार को सेक्टर 47 में लगी फॉर्मर मार्किट में एक डेरी वाली महिला (Hetha Organics) से गाय का घी (2000 /kg ) और दूध (150 /kg) के रेट पर बात कर रहा था , तो उनका कहना था कि हमारे फॉर्म हाउस में 1000 गाय हैं उनमें से एक समय में मात्र 200 ही दूध देती हैं मगर इन सबको हमें पूरे वर्ष खिलाना और रखरखाव पर खर्चा करना पड़ता है ! आप एक दिन फॉर्म हाउस पर आकर देखें कि एक किलो शुद्ध घी हमें कितने का पड़ता है ? और यह भी कि हमें नहीं मालुम कि बाजार में शुद्ध घी 500 रूपये किलो कैसे मिल जाता है ?</i></span></p><p><span style="color: #2b00fe;"><i>भारत सस्ता चाहने वालों का मार्किट है यहाँ कोई अखबार उठाकर देखें तो दस पर्सेंट से लेकर 50 पर्सेंट तक घटे हुए रेट के विज्ञापनों की भरमार है , शायद ही कोई दुकान ऐसी मिलेगी जो यह कहती हो कि रेट में कोई रिबेट नहीं मिलेगी अगर कोई यह लिखे भी तो शायद ही उसकी कोई बिक्री होगी ,हम मजबूर करते हैं हम व्यापारी को चोरी करने को , हमें सस्ता चाहिए सो हर व्यापारी भी चालाकी सीख गया तीन गुना कीमत लिखकर 50 प्रतिशत घटे रेट पर सेल , और ग्राहकों की भीड़ आएगी दूकान पर इस तरह से एक चालाक पर दूसरा चालाक हावी होता है ! हमारे यहाँ हर व्यक्ति अपनी अपनी औकात में भरपूर चालाक है !</i></span></p><p><span style="color: #2b00fe;"><i>कल HP वाईफाई लेज़र प्रिंटर ठीक कराने को मैंने एक मैकेनिक घर पर बुलाया , जिसने प्रिंटर खोलकर बताया कि आपका पीसीबी इलेक्ट्रॉनिक कार्ड खराब है इसे बदलना होगा , यह थोड़ा महंगा है , मैंने मुस्कराकर कहा शाब्बाश मगर मेरा कोई कार्ड खराब नहीं है ध्यान से सुनो मेरा प्रिंटर अगर एक स्क्रू कसने पर ठीक हो जाए या कोई पार्ट बदलने के बाद ,तुम्हे फिक्स 2000/- दूंगा , शर्त यह भी है कि कार्ड नहीं बदला जाएगा क्योंकि उसमें कोई खराबी आ ही नहीं आ सकती ! और वह चुपचाप बिना जवाब दिए काम करता रहा , थोड़ी देर में ही वह बिना कोई पार्ट बदले ठीक हो गया , मैंने उसे 2000/- रूपये दिए तो वह बोला क्या करें साहब आप जैसे लोग नहीं मिलते हमें , एक घंटे काम करके हमें कोई 100 रूपये से अधिक खुश होकर नहीं देगा जब तक उस काम को बढ़ा चढ़ा कर न बताया जाए जिसमें एक पार्ट बदलना शामिल हो , 100 रुपया तो आने जाने में पेट्रोल का खर्चा है मेरा, इसके अतिरिक्त काम में लगाया समय, जानकारी और मेहनत को कोई नहीं गिनता !</i></span></p><p><i style="color: #2b00fe;">हम सब चतुर हो गए हैं आजकल , हर आदमी दूसरे से या तो दिखावा करता है या झूठ बोलकर उसका फायदा उठाता है यहाँ तक कि परिवार में बच्चों की छोड़िये माता पिता अपने बच्चों से सफाई से झूठ बोलते दिखते हैं कि हर बात बच्चों को बताने की जरूरत नहीं , धन और पैसे तो कोई बताता ही नहीं , पिता बेटा तक से छिपाता है और उम्मीद प्यार की करता है ! अपने खुद के परिवार में खुले दिल से खुलकर बात न कर पाने वाले लोग , दूसरों के लिए गालियाँ देते , ताल ठोकते लोग, बढ़े हुए रक्तचाप लिए परिवार में लड़ते लोग, सोचते हैं कि रोज सुबह आधा घंटा बिना मन को स्वस्थ बनाये, वाक करने से उन्हें बीमारियां नहीं होंगी , हास्यास्पद है ! </i></p><p><span style="color: #2b00fe;"><i>हमें गहराई से बिना किसी को गुरु बनाये खुद सोचना पड़ेगा कि खाना पीना और दौड़ना क्यों आवश्यक है, कितना आवश्यक है , आँखें खुल जाएंगी आपकी , खुद कहेंगे कि हमने कभी गौर ही नहीं किया था इस बात पर ! </i></span><i style="color: #2b00fe;">खुद को बदलें तो शारीरिक मानसिक बदलाव अवश्य आएगा, बिना दवा रोगमुक्त होकर आप दुबारा बच्चों की तरह हंसना सीख जाएंगे ! पहचानिये खुद को , झूठ को पहचानना सीखें और खुद को उससे बचाएं ! मन स्वस्थ होते ही सब कुछ खूबसूरत नजर आने लगेगा ! </i></p><p><span style="color: #2b00fe;"><i> </i></span></p>Satish Saxena http://www.blogger.com/profile/03993727586056700899noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-6340570424549373370.post-14214970678527545662022-11-25T13:52:00.005+05:302022-11-25T13:53:38.708+05:30आइये मेरी नन्नू से मिलिए - सतीश सक्सेना<p><i><span style="color: #2b00fe;">यह साढ़े तीन साल की छोटी सी लड़की नन्नू है , म्यूनिक जर्मनी में पैदा हुई भारतीय लड़की ,दो वर्ष से ही अपने पापा से हिन्दी में बात करती है क्योंकि उन्हें जर्मन और इंगलिश नहीं आती , मां से इंग्लिश में अपनी बात समझाती है क्योंकि उन्हें जर्मन और हिन्दी नहीं आती , और पूरे दिन स्कूल में जर्मन बच्चों और टीचर से जर्मन भाषा में बोलतीं है क्योंकि उन्हें हिन्दी और इंग्लिश नहीं आती !<br />मीरा सक्सेना ( नन्नू) ने तीन भाषाओं में बात करने की अपनी समस्या, पिछले महीने जब मैं जर्मनी में था, बतायी कि <span style="font-size: medium;">Baba, mamma knows only English , papa knows only hindi , Eadita (her German care taker) knows only German but Meera knows all languages!! )</span></span></i></p><blockquote style="border: none; margin: 0px 0px 0px 40px; padding: 0px;"><p></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><iframe allowfullscreen='allowfullscreen' webkitallowfullscreen='webkitallowfullscreen' mozallowfullscreen='mozallowfullscreen' width='231' height='192' src='https://www.blogger.com/video.g?token=AD6v5dxLLWIMVkK-le0lrMjTOHPqOvZ0NJkX6fw0bKP0XIDCX9k9kgAOezBYIU6oNPzPaIGvIy65QMW0aVDhSt4VXQ' class='b-hbp-video b-uploaded' frameborder='0'></iframe></div><p></p></blockquote><p><i><span style="color: #2b00fe;"><br />इसके पैदा होते ही इसके माँ बाप ने अपनी अपनी भाषाएँ फिक्स कर ली थीं , तब से अब तक मीरा के सामने गौरव हमेशा हिन्दी में , उसकी माँ हमेशा इंगलिश में ही बात करते आये हैं , अन्य भाषा सुनते समय वे दोनों अपनी बेटी के सामने अनजान बने रहते सो नन्नू उनकी भाषाओं में ही बोलती रही और आज उसकी तीनों भाषाओं पर ज़बरदस्त पकड़ है , जर्मन तो धाराप्रवाह है ही जबकि उसके माँ बाप को वह काम चलाऊ ही आती है !<br />यह पोती है मेरी, अपने बाबा की जान , इसके साथ रहता हूँ तो लगता है सबसे बड़ा सुख यही है !<br />प्रणाम आप सबको</span></i></p>Satish Saxena http://www.blogger.com/profile/03993727586056700899noreply@blogger.com5tag:blogger.com,1999:blog-6340570424549373370.post-1972144348760837202022-11-22T14:40:00.006+05:302022-11-22T14:40:35.746+05:30ख़याल तुमने किया है कभी इन अंगों का ? -सतीश सक्सेना <p></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjKN_-EWLFRg_J3ha4KUucbeRpRcEdUl20GiCHt8qzytpNoGmm6LYH5398VsCFQJThH9ymfVvsdH9R4AuomLLtSvWRKoFjFOXmgzK9a9JEj0awFehDusQXKZHzqKJkBv752AbfVXQ0rGLAKkRIbw_SiWNz0292HM5NHMVwOlPzMa0UnCVCTnevXzF4Ffw/s830/run%20munich.jpg" imageanchor="1" style="clear: right; float: right; margin-bottom: 1em; margin-left: 1em;"><img border="0" data-original-height="644" data-original-width="830" height="155" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjKN_-EWLFRg_J3ha4KUucbeRpRcEdUl20GiCHt8qzytpNoGmm6LYH5398VsCFQJThH9ymfVvsdH9R4AuomLLtSvWRKoFjFOXmgzK9a9JEj0awFehDusQXKZHzqKJkBv752AbfVXQ0rGLAKkRIbw_SiWNz0292HM5NHMVwOlPzMa0UnCVCTnevXzF4Ffw/w200-h155/run%20munich.jpg" width="200" /></a></div> <span style="background-color: white; color: #050505; font-family: inherit; font-size: 15px; white-space: pre-wrap;">कल मैंने पहली बार गौर किया कि मैंने अपनी आँखों का व्यायाम पूरे जीवन नहीं किया और न उनको शक्तिशाली बनाने की चेष्टा की, फिर भी ये आँखें, उपेक्षित होकर भी सात दशकों से अपना साथ दे रही हैं ! सो आज सहज मानवीय बुद्धि से उनका व्यायाम किया और आगे भी करता रहूँगा , यदाकदा चश्मे का उपयोग त्याग रहा हूँ, सो यह पोस्ट बिना चश्मे लिख रहा हूँ !</span><p></p><div class="x11i5rnm xat24cr x1mh8g0r x1vvkbs xtlvy1s x126k92a" style="background-color: white; color: #050505; font-family: system-ui, -apple-system, "system-ui", ".SFNSText-Regular", sans-serif; font-size: 15px; margin: 0.5em 0px 0px; overflow-wrap: break-word; white-space: pre-wrap;"><div dir="auto" style="font-family: inherit;">- शरीर के अन्य अंग जिनका उपयोग कम किया उनमें घुटने <span style="font-family: inherit;"><a style="color: #385898; cursor: pointer; font-family: inherit;" tabindex="-1"></a></span>शामिल हैं, कल से पाँच मंज़िल से कम ऊँचाई में लिफ़्ट का उपयोग नहीं करना ! </div></div><div class="x11i5rnm xat24cr x1mh8g0r x1vvkbs xtlvy1s x126k92a" style="background-color: white; color: #050505; font-family: system-ui, -apple-system, "system-ui", ".SFNSText-Regular", sans-serif; font-size: 15px; margin: 0.5em 0px 0px; overflow-wrap: break-word; white-space: pre-wrap;"><div dir="auto" style="font-family: inherit;">ग़र जकड़ जाएँ जोड़ देह के , रोना कैसा </div><div dir="auto" style="font-family: inherit;">ख़याल तुमने कौन सा रखा इन अंगों का ?</div></div>Satish Saxena http://www.blogger.com/profile/03993727586056700899noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-6340570424549373370.post-24050471019663438322022-11-16T13:15:00.005+05:302022-11-16T14:40:03.079+05:30 साथ तुम्हारे दौड़ रहा है, बुड्ढा अढसठ साल का -सतीश सक्सेना<i><span style="color: #2b00fe;"><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj7wCZnqLDMjqySul7gzegoO7Ib4ZffyuHw0VUkGlEzccpj7-SY51ZyeqIdN6zbPETCvlX79T_4X93rXpyaeWZtGhWDBYBxJ6OhoEjAKuaMvAVBN3EESjc6Ofe3Xmu2nDd54k5y5IGZprJn-YiHHwAigZuKAUOIVYUvNRWyEtVsrkvw5EoYuMKcPPacLA/s1024/running%20%202022-09-07%20at%2011.27.06%20AM.jpeg" style="clear: right; float: right; margin-bottom: 1em; margin-left: 1em;"><img border="0" data-original-height="1024" data-original-width="696" height="200" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj7wCZnqLDMjqySul7gzegoO7Ib4ZffyuHw0VUkGlEzccpj7-SY51ZyeqIdN6zbPETCvlX79T_4X93rXpyaeWZtGhWDBYBxJ6OhoEjAKuaMvAVBN3EESjc6Ofe3Xmu2nDd54k5y5IGZprJn-YiHHwAigZuKAUOIVYUvNRWyEtVsrkvw5EoYuMKcPPacLA/w136-h200/running%20%202022-09-07%20at%2011.27.06%20AM.jpeg" width="136" /></a></div>धीमे धीमे लम्बा दौड़ना सीखिए, बिन प्रयास फेफड़ों का व्यायाम , आपके गाढ़े होते रक्त में, भरपूर शुद्ध आक्सीजन पम्प कर, जमा थक्के घोल, उसे शुद्ध कर, उसका संचार आपके ढीले शरीर में कर आपको स्फूर्ति देगा और आपका डायबिटीज ग़ायब हो जाएगा !आपकी ढीली मांसपेशियाँ इस तथाकथित बुढ़ापे में आपको जवानी का अहसास कराएँगी, इसका भरोसा रखें , बढ़ा हुआ ब्लड प्रेशर, पेट की गैस, ख़राब हाज़मा, और कमजोरी कब ग़ायब हो गयी पता भी नहीं चलेगा , साथ ही बॉडी कोर में अवस्थित अंगों में दौड़ते समय महसूस कम्पन, उनके स्वास्थ्य में सुधार कर, अतिरिक्त एनर्जी पाने के लिए आपके शरीर में जमा अनावश्यक फ़ैट को खा जाएँगे और आपका शरीर सुडौल दिखेगा इसका यक़ीन रखें और इस पर विचार करें ! मगर दौड़ना सीखना दुनियाँ के सबसे मुश्किल कार्यों में से एक है इसके लिए आवश्यक है कि<br /><br />- मन प्रफुल्लित रहें , उदास और बेमन आप कभी नहीं दौड़ सकेंगे ! अवसाद और स्ट्रेस दूर करना सीखना हो तो दौड़ना सीखें !<br />-पूरे दिन में कम से कम १२ गिलास पानी एवं रात का डिनर हल्का और सोने से तीन घंटे पहले करना होगा !<br />-दौड़ने का समय सुबह ६ बजे के आसपास और खुली जगह में जहां आक्सीजन हो, दौड़ने का अभ्यास करना होगा !<br />-स्वास्थ्य के लिए दौड़ने में गति का महत्व नहीं, मस्ती से बिना हाँफे दौड़ना अगर नहीं आए तो दौड़ना आपके लिए बेहद ख़तरनाक साबित होगा !<br />- अंत में अगर आप पसीना नहीं बहा सकते तब दिन में एक बार ही भोजन पर अपना हक़ मानिए ! तीन बार भोजन पर केवल श्रमिक का ही हक़ होता है आप जैसे आलसी और आराम पसंद का नहीं ! सो अगर इसका आनंद लेना है तो सुबह दो घंटे दौड़िए और जम के भोजन खाइए अन्यथा बीमारियाँ झेलने को तैयार रहें ! मुझे देखें ...</span></i><div><i><span style="color: #2b00fe;"><br />मैराथन आसान ,भरोसा हो क़दमों की ताल का<br />साथ तुम्हारे दौड़ रहा है, बुड्ढा अढसठ साल का !<br /><br />करत करत अभ्यास, पहाड़ों को रौंदा इस पाँव ने <br />हार न माने किसी उम्र में, साहस मानवकाल का !<br /><br />इसी हौसले से जीता है, सिंधु और आकाश भी<br />सारी धरती लोहा माने , इंसानी इकबाल का !<br /><br />गिरते क़दमों की हर आहट,साफ़ संदेशा देती है !<br />हिम्मत,मेहनत,धैर्य,ज़खीरा इंसानों की चाल का !<br /><br />बहे पसीना कसे बदन से, मस्ती मेहनत की आयी !<br />रुक ना जाना, उठता गिरता रहे कदम भूचाल सा !</span></i></div>Satish Saxena http://www.blogger.com/profile/03993727586056700899noreply@blogger.com5