वर्षों पहले जब इस महानगर में कदम रखा था तो एक सीधे साधे लड़के राकेश से, एक ही कार्यालय में कार्य करने के नाते मित्रता हुई, और उसने रहने के लिए घर की व्यवस्था कराई ! उसके बाद बहुत सी यादें, एक दूसरे की शादी में योगदान...... दुःख के समय में साथ....मुझे याद है राकेश के द्वारा साईं बाबा के मन्दिर में ले जाने की जिद, और मेरा न जाना.....मेरी भयानक बीमारी पर साईं बाबा का प्रसाद लाकर घर में खिलाना और यह विश्वास दिलाना की अब आप ठीक हो जाओगे ! उसकी बहुत जिद और इच्छा थी कि मैं एक दिन उसके साथ शिरडी अवश्य चलूँ, जो मैंने कभी पूरी नही की !
और एक दिन वही, बिना मां,बाप, भाई, बहिन वाला राकेश, गंगाराम हॉस्पिटल पर स्ट्रेचर पर, अर्धवेहोशी, आँखों में आंसू भरे मेरी तरफ़ बेबसी में देख रहा था, तब मेरे जैसा नास्तिक, पहली बार साईं दरबार में विनती करने के लिए भागा !वहीं यह विनती लिखी गयी, बावा को मनाने हेतु , पर शायद बहुत देर हो गई थी......... !
ना श्रद्धा थी , ना सम्मोहन
ना अनुयायी किसी धर्म का
कभी न ईश्वर का दर देखा
अपने सिर को नहीं झुकाया
फिर भी मेरे जैसा नास्तिक,
बाबा ! तेरे द्वारे आया !
मुझे नहीं मालुम क्यों, कैसे ? आज चढ़ावा देने आया !
ना अनुयायी किसी धर्म का
कभी न ईश्वर का दर देखा
अपने सिर को नहीं झुकाया
फिर भी मेरे जैसा नास्तिक,
बाबा ! तेरे द्वारे आया !
मुझे नहीं मालुम क्यों, कैसे ? आज चढ़ावा देने आया !
पूजा करना मुझे न आए
मुख्य पुजारी मुझे टोकते
कितनी बार लगा है जैसे
जीवन बीता, खाते सोते,
अगर क्षमा अपराधों की हो
तो मैं भी, कुछ लेने आया
तो मैं भी, कुछ लेने आया
आज किसी की रक्षा करने, का वर तुमसे लेने आया !
आज कष्ट में भक्त तेरा है
उसके लिए चरणरज लागूँ
कष्टों की परवाह नहीं है ,
अपने लिए नहीं कुछ मांगू,
पर बाबा उसकी रक्षा कर
जिसने तेरा दर दिखलाया
आज ,किसी की जान बचाने, तेरी ज्योति जलाने आया !
जिसने तेरा दर दिखलाया
आज ,किसी की जान बचाने, तेरी ज्योति जलाने आया !
कई बार सपनों में आकर
तुमने मुझको दुलराया है
बार - बार संदेश भेजकर
तुमने मुझको बुलवाया है
बाबा तुझसे कुछ भी पाने
मैं फल फूल कभी न लाया !
आज एक विश्वास बचाने , मैं शरणागत बनके आया !
तुमने मुझको दुलराया है
बार - बार संदेश भेजकर
तुमने मुझको बुलवाया है
बाबा तुझसे कुछ भी पाने
मैं फल फूल कभी न लाया !
आज एक विश्वास बचाने , मैं शरणागत बनके आया !
कितने कष्ट सहे जीवन में
तुमसे कभी न मिलने आया
कितनी बार जला अग्नि में
फिर भी मस्तक नही झुकाया
पहली बार किसी मंदिर में
मैं भी , श्रद्धा लेकर आया !
आज तेरी सामर्थ्य देखने ,
तेरे द्वार बिलखने आया !
आज किसी की रक्षा करने, साईं तुझे मनाने आया !
आज किसी की रक्षा करने, साईं तुझे मनाने आया !
gala rundh aaya hai...............
ReplyDeletebaki fir kabhee............
दुःख हुआ जानकर।
ReplyDeleteलेकिन सब कुछ अपने हाथ में नहीं होता ।
शायद बाबा के हाथ में भी नहीं ।
कितने सुन्दर और पवित्र भाव !!!!!
ReplyDeletebahut sunder bhav... bahut marmik kavita.. dil se nikli hui...
ReplyDeleteMarmik prarthna...
ReplyDeletekya ye reality hai saxsena ji...agar aisa he to shukhar hai kisi na kisi bahane kisi ki shraddha to jagi man me.
ReplyDeletekafi sari mail apne post kar li. mujhe pata b nahi chala. aap link bhej diya kijiye pls.
@अनामिका ,
ReplyDeleteइस अपनत्व का आभार अनामिका ! यह घटना मेरे अपने जीवन की मार्मिक घटना है और यह गीत साईं मंदिर, लोधी रोड में बैठकर छलछलाते आंसुओ के मध्य लिखा गया था ! मुझे लगातार पढने के लिए आप मुझे फालो करना शुरू करें ! इससे आपको हर पोस्ट मिलेगी मेल से प्राप्त करने के लिए मेरे ब्लाग में सबसे नीचे अपना ईमेल लिखकर सब्स्क्राइबर करें !
सादर
satish jee kabhee samaty mile to ek post meree 15 Aug 2009 kee aastik / nastik ? pad kar apanee ray deejiyega .
ReplyDeletemanav dukho ko sahne kee kshamata bhee sahej hee leta hai aur samay to hai hee balvan.......
होनी बलवान
ReplyDeleteबिना शरीर
पहलवान।
मैं जा रहा हूं आपके चिट्ठे की सदस्यता लेने।
आप कभी नहीं गए परन्तु मित्र की सेहत के लिए मंदिर गए प्रार्थना बहुत ही अच्छी तैयार की थी आपने |चढ़ावा देने ,मित्र की प्राण रक्षा का वर लेने , ज्योति जलाने शरणागत बन कर तुझे मनाने आया |एक बहुत अच्छा भक्ति गीत जो दिमाग से नहीं दिल से निकला
ReplyDeleteआपने अबू बिन आदम की कहानी को सच कर दिखाया ..जिसमें फरिश्ते ने खुदा को चाहनेवालों की फहरिश्त बनाई थी, लेकिन उसमें अबू का नाम न था... लेकिन जब दुबारा वो फहरिश्त सामने आई तो उसका नाम अव्वल था.. क्योंकि खुदा के बनाए बंदे की खिदमत करने वाले ही खुदा के चाहने वाले होते हैं... इस महान कार्य के लिए आपको नमन करता हूँ..स्वीकार करें..
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteबहुत ही मार्मिक, शुभकामनाएं.
ReplyDeleteरामराम.
मन से लिखे गए शब्द /मन से कही गयी प्रार्थना में बहुत शक्ति होती है.
ReplyDeleteजब असहाय हो जाते हैं चारों तरफ से -तब परमपिता का ही स्मरण आता है.
बहुत भावभरी रचना[पुकार] है.
आपकी पोस्ट पढ़ी बहुत दुःख हुआ संवदनाओं से भरपूर है
ReplyDeletelijiye ji ab slip nahi hongi apki post.follower jo ban gaye hai apke. :)
ReplyDeleteबहुत ही भावपूर्ण मार्मिक रचना है।
ReplyDeleteयाद करने योग्य बहुत ही सुन्दर रचना.
ReplyDeleteलयबद्ध तरीके से गाई जायेगी तो आनंद आएगा. :)
श्रद्धा भाव मन में हो तो हर मंजिल मिल ही जाती है फिर किसी के सहारे की भी जरुरत नहीं होती
ReplyDeleteकितने कष्ट सहे जीवन में
ReplyDeleteतुमसे कभी न मिलने आया
कितनी बार जला अग्नि में
अपना मस्तक नही झुकाया
आज भक्त की रक्षा करने, साईं तुझे मनाने आया
is pavitra bhav par sar natmastak ho gaya ,bahut sachchi vinti hai .sabka malik ek hai ,jai sai nath .
Today I read this on your blog.I really liked it very much.
ReplyDeleteसुन्दर रचना
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