अनुत्तरित हैं प्रश्न तुम्हारे
कैसे तुमसे नजर मिलाऊं
असहज कष्ट उठाए तुमने
कैसे हंसकर उन्हें भुलाऊं
कैसे तुमसे नजर मिलाऊं
असहज कष्ट उठाए तुमने
कैसे हंसकर उन्हें भुलाऊं
युगों युगों की पीड़ा लेेेकर
पूछ रही है नजर तुम्हारी
मैं तो अबला रही शुरू से
तुम सबने, चूड़ी पहनाईं !
हर दरवाजा जीतने वाला , इस दरवाजे हारा क्यों है।
बचपन तेरी गोद में बीता
कितनी जल्दी विदा हो गई !
मेरा घर क्यों बना मायका,
कैसे घर से जुदा हो गई !
तुम सबने, चूड़ी पहनाईं !
हर दरवाजा जीतने वाला , इस दरवाजे हारा क्यों है।
बचपन तेरी गोद में बीता
कितनी जल्दी विदा हो गई !
मेरा घर क्यों बना मायका,
कैसे घर से जुदा हो गई !
अम्मा बाबा खुश क्यों हैं ?
ये आंसू भर के नजरें पूछें !
आज विदाई है, आँचल से
कैसे दुनियाँ को समझाए !
हिचकी ले ले रोये लाड़ली, उसको ये घर प्यारा क्यों है ?
जिस हक़ से अपने घर रहती
जिस हक़ से लड़ती थी सबसे
जिस दिन से इस घर में आयी
उस हक़ से, वंचित हूँ तब से
भाई बहिन बुआ और रिश्ते
ये आंसू भर के नजरें पूछें !
आज विदाई है, आँचल से
कैसे दुनियाँ को समझाए !
हिचकी ले ले रोये लाड़ली, उसको ये घर प्यारा क्यों है ?
जिस हक़ से अपने घर रहती
जिस हक़ से लड़ती थी सबसे
जिस दिन से इस घर में आयी
उस हक़ से, वंचित हूँ तब से
भाई बहिन बुआ और रिश्ते
माँ और पिता यहाँ भी हैं पर
नेह, दुलार, प्यार इस घर में
मृग मरीचिका सा बन जाये !
सदियों बादल थके बरसते ,सागर का जल खारा क्यों है !
नेह, दुलार, प्यार इस घर में
मृग मरीचिका सा बन जाये !
सदियों बादल थके बरसते ,सागर का जल खारा क्यों है !
जबसे आयी हूँ इस घर में
प्रश्न चिन्ह ही पाए सबसे !
मधुर भाव,विश्वास,आसरा
रोज सवेरे, बिखरे पाए !
कबतक धैर्य सहारा देता
जलते सपनों के जंगल में
किसे मिला,अधिकार जो
प्रश्न चिन्ह ही पाए सबसे !
मधुर भाव,विश्वास,आसरा
रोज सवेरे, बिखरे पाए !
कबतक धैर्य सहारा देता
जलते सपनों के जंगल में
किसे मिला,अधिकार जो
मेरे आंसू को नीलाम कराए
अपनापन बह गया फूट, अब उनका चेहरा काला क्यों है !
अपनापन बह गया फूट, अब उनका चेहरा काला क्यों है !
वाह ... हर बार की तरह बहुत ही कमाल की रचना ...
ReplyDeleteस्वागत एवं आभार नासवा जी
Deleteवाह हमेशा की तरह लाजवाब अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteस्वागत है प्रोफ़ेसर
Deleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteशुक्रिया आपका
Deletebahut badya!!
ReplyDeleteस्वागत आपका
Deleteबहुत सुंदर,हर चीज़ प्रश्नवाची है लेकिन जीवन उत्तर के लिए रुकता नहीं
ReplyDeleteरुकना भी नहीं चाहिए !
सहमत हूँ आपसे
Deleteबहुत सुंदर।
ReplyDeleteस्वागत नीलेश जी ...
Deleteअबला तेरी यही कहानी .. मर्म तक भेदती हुई ।
ReplyDeleteआभार आपका
Deleteवाह लाजवाब सृजन.
ReplyDeleteशुक्रिया अनीता जी
Deleteआदरणीय सतीश जी , नारी जीवन के बढ़ते मर्मान्तक प्रश्नों को कितनी सहजता और सरलता से शब्दांकित कर दिया आपने | निशब्द हूँ ! अत्यंत उत्कृष्ट रचना -हमेशा की तरह | हर नारी इन्ही प्रश्नों से दो चार होती हुई , जीवन भर इन प्रश्नों के हल तलाशती रहती है | जिस घर में जन्मी वो भी पराया और जिस घर में आई वो भी बेगाना |
ReplyDeleteस्वागत एवं आभार
Deleteस्वागत एवं आभार आपका
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