Saturday, July 30, 2022

पता नहीं माँ सावन में, यह ऑंखें क्यों भर आती हैं -सतीश सक्सेना

याद है ,उंगली पापा की
जब चलना मैंने सीखा था ! 
पास लेटकर उनके मैंने
चंदा मामा जाना था !
बड़े दिनों के बाद याद
पापा की गोदी आती है
पता नहीं माँ सावन में, यह ऑंखें क्यों भर आती हैं !


पता नहीं जाने क्यों मेरा 
मन , रोने को करता है !

बार बार क्यों आज मुझे
सब सूना सूना लगता है !
बड़े दिनों के बाद आज, 
पापा सपने में आए थे !
आज सुबह से बार बार बचपन की यादें आतीं हैं !

क्यों लगता अम्मा मुझको

इकलापन सा इस जीवन में,
क्यों लगता जैसे कोई 
गलती की माँ, लड़की बनके,
न जाने क्यों तड़प उठी ये 
आँखें झर झर आती हैं !
अक्सर ही हर सावन में माँ, ऑंखें क्यों भर आती हैं !

एक बात बतलाओ माँ , 

मैं किस घर को अपना मानूँ 
जिसे मायका बना दिया या 
इस घर को अपना मानूं !
कितनी बार तड़प कर माँ 
भाई  की यादें आतीं हैं !
पायल, झुमका, बिंदी संग , माँ तेरी यादें आती हैं !

आज बाग़ में बच्चों को
जब मैंने देखा, झूले में ,

खुलके हंसना याद आया है,
जो मैं भुला चुकी कब से
नानी, मामा औ मौसी की 
चंचल यादें ,आती हैं !
सोते वक्त तेरे संग, छत की याद वे रातें आती हैं !

तुम सब भले भुला दो ,
लेकिन मैं वह घर कैसे भूलूँ 
तुम सब भूल गए मुझको 

पर मैं वे दिन कैसे भूलूँ ?

छीना सबने, आज मुझे 
उस घर की यादें आती हैं,
बाजे गाजे के संग बिसरे, घर की यादें आती है !

Thursday, July 28, 2022

शरीर में आश्चर्य जनक बदलाव पाएंगे उम्र चाहे जो भी हो - सतीश सक्सेना

सबसे पहला योगी कोई भी हुआ होगा मगर उसे योग सिखाने वाला कोई नहीं था , अकेले सुनसान जगह पर एकाग्रचित्त होकर बैठकर, सांसों पर ध्यान केंद्रित कर शरीर के अंगों तक भरपूर ऑक्सीजन पहुंचाकर आनंद अनुभव करना सीख लिया और अपने अंगों पर ध्यान केंद्रित कर, बॉडी कोर के अंगों को कम्पन देना आया , यही योग था जिससे उन्हें शारीरिक शक्ति के साथ, अपार मानसिक शक्ति की भी प्राप्ति हुई !

जिस प्रकार हम लगातार एक ही भोजन से ऊब जाते हैं उसी तरह से शरीर को भी एक जैसा लगातार व्यवहार पसंद नहीं उसे वह आदत में ढाल लेता है और उसका फायदा उठाना बंद कर देता है , ठीक वैसे ही जैसे बरसों तक साइकिल चलाने वाले को साइकिलिंग का न मिलने वाला लाभ और गांव से कस्बे जाकर नौकरी करने वाला 10 km रोज पैदल आना और जाना बरसों से करता है और उसे कोई फायदा नहीं होता !

लगातार एक जैसा भोजन और वाक में भी बदलाव आवश्यक है और लगातार करते रहना चाहिए , अगर कायाकल्प करने का संकल्प करना है तब आज से ही वह सब खाना बंद कर दें जो आपने अब तक सबसे अधिक खाया है और वह खाना शुरू करें जो आपने आजतक चखा ही नहीं ! खानपान के साथ शारीरिक आदतों में भी बदलाव लाना होगा , हाथ पैरों का अधिकतम उपयोग करना होगा और यह सब अपने शरीर को आहिस्ता आहिस्ता मगर निर्ममता से सिखाना होगा ! आप अपने शरीर में आश्चर्य जनक बदलाव पाएंगे उम्र चाहे जो भी हो !

Wednesday, July 27, 2022

होमियोपैथी एक मज़ाक़ या चमत्कारिक औषधि ? -सतीश सक्सेना

आजकल के ताकतवर एलोपैथिक व्यवसाय के प्रभाव में, होमियोपैथी एक मज़ाक़ बनकर रह गयी है और इसके लिए जिम्मेदार कोई और नहीं इसके चिकित्सक खुद हैं जो अपने आपको विद्वान तो होमियोपैथी का बताते हैं मगर खुद रोगी का इलाज गलत तरीके से करते हैं शायद उनके बस का ही नहीं कि इसका सही उपयोग कर, किसी को रोग मुक्त कर पाना और अगर वे प्रयास भी करें तब इसके लिए समुचित समय नहीं उनके पास ! 

जब कोई रोगी होमियोपैथ के पास आता है तब होमियोपैथ का सबसे पहला उद्देश्य रोगी के गहरे मानसिक व्यवहार के मुख्य मुख्य पहलू जानना और उनकी लिस्ट बनाना होता है जैसे रोगी की खानपान की आदतें ,उसका अन्य लोगों के प्रति व्यवहार , उसकी पसंद नापसंद , रहन सहन के तौर तरीके , उसके शरीर पर गरमी, जाड़े और बरसाती मौसम का प्रभाव , समुद्र तट और पहाड़ों पर शरीर की प्रतिक्रिया ,  गुस्सा , बेचैनी , झूठ और सत्य के प्रति रुझान , लापरवाह , खुशमिजाज या दुखी ,हिम्मती या डरपोक , भयभीत या निडर, भुलक्कड़ ,आलसी , मेहनती , जलन ,झगड़ालू , जिद्दी आदि जानकारी इकट्ठे कर इन गुण / अवगुणों के आधार पर उसे मटेरिया मेडिका से इन्ही गुण दोषों वाली (drugpicture) होमियोपैथी औषधि ढूंढनी पड़ती है ! इस उद्देश्य के लिए होमियोपैथी उन महान  एलोपैथ्स चिकित्सकों की शुक्रगुज़ार है जिन्होंने अपना पूरा जीवन, होमियोपैथी दवाओं की मानवों पर प्रूविंग कर ,उसके असर को लिपिबद्ध कर, रिपर्टरी की रचना की ! आज की होमियोपैथी में योगदान करने वाले चिकित्सक ढूंढे भी नहीं मिलते हाँ अगर हैं तो उस योगदान से धन कमाने की असफल कोशिशें जिसके लिए होमियोपैथी बनी ही नहीं !

किसी भी भयानक एवं जीर्ण रोग के इलाज के लिए , एक चिकित्सक को सबसे पहले रोगी का भरोसा जीतते हुए उसका मानसिक अवस्था का सही आकलन करना होता है , और इस कार्य में उसे अपना काफी समय देना होता है , उसके बाद सावधानी से चुने गए महत्वपूर्ण मानसिक लक्षणों , के आधार पर एक एक करके उसकी ड्रग पिक्चर वैल्यूज तलाश करनी होगी और अंत में हजारों दवाओं में से , टॉप दस दवाओं पर अपना ध्यान केंद्रित कर , उनमें उसके रोग लक्षण तलाश करने होंगे ! जिस दवा में रोगी के अधिक मानसिक लक्षण मिलेंगे वही उसकी मुख्य दवा मानी जायेगी ! उसके बाद उस दवा की शक्ति का चुनाव बेहद सावधानी से किया जाता है , और इस प्रकार सही शक्ति की सही दवा की मात्र एक बूंद, उस भयानक बीमारी का नामोनिशान मिटाने में सक्षम होती है !

मगर इतना समय एक चिकित्सक अगर एक रोगी को देगा तब पूरे दिन में वह मात्र दो रोगी ही देखने का समय निकाल सकता है ! हमारे देश में होमियोपैथ की कदर न के बराबर है उनका खर्चा निकलना भी मुश्किल होता है इस मेहनतकश प्रैक्टिस में ! सो वे अधिकतर रोगियों को दवा देने में 10-15 मिनट लगाते हैं और दिन में कम से कम 30 रोगी आसानी से देख लेते हैं ! इन रोगियों को वे होमियोपैथी के निर्देशानुसार इलाज न करके , क्रूड मेडिसिन उनके कॉम्बिनेशन द्वारा करते हैं जो आजकल आसानी से बाजार में उपलब्ध हैं , साथ ही बायोकेमिक दवाओं को साथ देते हैं ताकि जैसे तैसे ही सही मगर रोगी को कुछ आराम तो हो ताकि कुछ दिन उसकी चिकित्सा द्वारा खर्चा निकलता रहे !

होमिओपैथी की शक्ति, उनकी शक्तिकृत सिंगल दवाओं में ही निहित है , मगर उनका सिलेक्शन करना एक मुश्किल और बेहद एकाग्रचित्त होकर करने वाला कार्य है अन्यथा असफल होने की गुंजायश अधिक रहती है , और यह अकेली दवा , एक साथ शरीर को अधिकतर बीमारियों से मुक्ति दिलाने में समर्थ होती है !

उदाहरण के रूप में मैं नक्स वोमिका का मानवीय चित्र दे रहा हूँ ऐसा मानव /मानवी जो तेज तर्रार , नेता, बड़े ओहदे पर , आधुनिक व्यसनों सिगरेट , शराब का शौक़ीन , आलसी , धनी , अपने क्षेत्र में प्रसिद्ध, चालाक , कुर्सी पर बैठकर काम करने वाला , गैस्ट्रिक, कब्ज आदि का शिकार व्यक्ति के अधिकतर रोग , नक्स वोमिका के कुछ डोज़ से गायब हो जाते हैं ! होमियोपैथी में किसी भी दवा की ड्रग पिक्चर को पढ़ने से लगेगा कि किसी इंसान के चरित्र को पढ़ रहे हैं ! इसी लिए अगर कोई व्यक्ति खुद इसे समझने का प्रयास करेगा तब आसानी से वह अपने को रोग मुक्त कर पायेगा !

 
 

Monday, July 25, 2022

होमियोपैथी औषधि और मानवीय व्यवहार -सतीश सक्सेना

होम्योपैथिक उपचार में उपयोग की जाने वाली शक्तिकृत दवाओं को दवा का दर्जा देना उचित नहीं क्योंकि दवा , एक केमिकल पदार्थ होता है जिसमें केमिकल का होना साबित किया जा सकता है जबकि होमियोपैथी की शक्तिकृत दवाओं में केमिकल गुण मिलने का प्रमाण किसी भी साइंस लैब द्वारा नहीं जाना जा सकता एलोपैथिक सिस्टम की नज़र में यह असंभव है जब वे आर्सेनिक की सूक्ष्मीकृत होम्योपैथिक दवा में आर्सेनिक का टेस्ट करते हैं तो उन्हें नहीं मिलता ! क्योंकि एलोपैथिक लैब एक बूंद केमिकल के एक करोड़ वें भाग को खोजने में असमर्थ है जबकि होम्योपैथिक दवाओं में उससे भी हजारों गुना कम दवा का अंश होता है , जिसे वे उस ड्रग की शक्ति कहते हैं और जिसके होने का प्रमाण आधुनिक संसार खोज नहीं पाता !

जहर ही जहर को मारता है, यही सिद्धांत होमियोपैथी का भी है , बस होमियोपैथी दवाओं में क्रूड मेडिसिन इतनी कम मात्रा में करते जाते हैं कि उसका अंश मिलना भी असम्भव हो जाए ! यही कारण है कि आर्सेनिक एल्बम नामक दवा की 3 शक्ति तक तो आधुनिक लैब बता देगी कि यह दवा आर्सेनिक नामक जहर से बनायी गयी है मगर आर्सेनिक 12, 30 , 200 या अधिक शक्ति की दवा के टेस्ट में उनका रिजल्ट शुद्ध अलकोहल आता है जिसमें आर्सेनिक का नामोनिशान नहीं मिलता मगर यही दवा होमियोपैथी में बेहद कारगर है , जिसे एलोपैथी क्वेकरी का दर्जा देती आयी है !

डॉ जगदीशचंद्र बसु का एक प्रयोग था जिसमें उन्होंने पौधों में जीवन की पुष्टि की थी और उसे विश्व के वैज्ञानिकों ने स्वीकार भी किया था ! उन्होंने प्रूव किया था की उनमें मानव जैसा ही जीवन एवं जनन चक्र है और वे अपने आसपास के वातावरण के प्रभाव का वही असर महसूस करते हैं जैसे कि हम और इसमें सुख दुःख क्रोध भय आदि सबका अहसास शामिल है ! विश्व में लगभग हर पैथी में दवा निर्माण अधिकतर इन्हीं प्लांट के रस, जड़ और पत्तों से होता है , बस उनका बनाने का तरीका और चरित्र भिन्न होता है ! एलोपैथिक तरीके में अधिकतर क्रूड मेडिसिन की सीमित मात्रा उपयोग में लायी जाती हैं , जबकि होमियोपैथी में इसी सिद्धांत का उपयोग करते हुए उस दवा की न्यूनतम मात्रा , इतनी कम कि उसे किसी लैब में तलाश न किया जा सके , का उपयोग करते हैं , जिसे होमियोपैथ उस प्लांट की शक्ति कहते हैं !

होमियोपैथी में दवा निर्माण करने से पहले उसका मानवों पर प्रयोग किया जाता है , उसकी बेहद कम मात्रा की एक खुराक रोज कुछ दिन तक देने के पश्चात उसकी मात्रा को धीरे धीरे बढ़ाया जाता है और उसके परिणाम को मानवों के ऊपर सावधानी से नोट किया जाता है , जहरीली दवा की मात्रा बढ़ाने से जो बीमारियां उस इंसान में उत्पन्न हुईं और उसकी मानसिक दशा में जो बदलाव आये उनका सावधानी पूर्वक लिखा गया विवरण ही दवा बनाने का सिद्धांत है ! 

होमियोपैथी का यह विश्वास है कि जितने तरह के इंसान दुनिया में पाए जाते हैं उनके व्यवहार से हूबहू मिलते हुए पौधे भी मौजूद हैं , अगर हम किसी इंसान का व्यवहार का सही अध्ययन कर उसी व्यवहार के पौधे की खोज कर लें तब उस पौधे से बनायी गयी होम्योपैथिक औषधि उस व्यक्ति के लिए संजीवनी का कार्य करेगी फिर बीमारी का नाम कुछ भी क्यों न हो !

अब एलोपैथिक सिस्टम के रोने का कारण समझने का प्रयास करते हैं , होमियोपैथी में मान लो बेलाडोना पौधे के रस की एक बूँद दवा को 100 बूंद अलकोहल में मिलाकर जो दवा बनती है उसे बेलाडोना -1 कहा जाता है ! अब बेलाडोना -1 का एक बूंद 100 बूंद एल्कोहल में डालने पर जो दवा बानी उसे बेलाडोना -2 कहा जाएगा ,  बेलाडोना -2 की एक बूंद 100 भाग शुद्ध अल्कोहल में डालने पर जो दवा बनी उस पर बेलाडोना -3 कहा जाएगा ! इस प्रकार अगर बेलाडोना -3 को किसी लैब में टेस्ट कराने हेतु भेजा जाए तो उसमें वन ड्राप बेलाडोना का 100X100X100 वां  हिस्सा ही मिलेगा , मगर इसके बाद इसी प्रकार बनायी गयी बेलाडोना 4 अथवा बेलाडोना 30 में विश्व की कोई लैब उसमें केमिकल पदार्थ नहीं पा सकती ! जब कि क्रोनिक या तथाकथित लाइलाज बीमारियों का इलाज करते समय हमें सबसे बेहतरीन रिजल्ट इन्ही शक्तियों से मिलते हैं !

क्रमश: 


Friday, July 22, 2022

अगर परमात्मा, इन्सान होता -सतीश सक्सेना

गरीबों पर बड़ा अहसान होता 
अगर परमात्मा, इन्सान होता !

न जाने कब के हम आज़ाद होते,
भुलाना भी उसे , आसान होता !


पहुँचते उसके दरवाजे भिखारी ,
बगावत का, वहीं ऐलान होता !

दिखाते भूख से,  बच्चे तड़पते 
उसे कुछ भूल का अनुमान होता

नफ़रती अक्षरों को तब तो शायद !
सजा ए मौत का , फ़रमान होता !

Wednesday, July 20, 2022

मिट के ही जायेंगे,गुमां मेरे -सतीश सक्सेना

समझ न पाओगे, बयां मेरे !
मिट के ही जाएंगे, गुमां मेरे !

कैसे दिल से मुझे हटा पाओ 
उसकी हर ईंट पे, निशां मेरे !

तुमने बे घर ,मुझे बनाया था,
कितने दिल में बने, मकां मेरे !

कैसे काबू रखूं , ख्यालों पर 
दिल के अरमान हैं, जवां मेरे !

गर कुरेदोगे, जल ही जाओगे
राख में हैं दबे , जहां  मेरे  !

Tuesday, July 19, 2022

होमियोपैथी, प्रचार शक्ति के अभाव में, एक आश्चर्यजनक प्रभावी मगर उपेक्षित विधा -सतीश सक्सेना

आधुनिक युग में प्रचार साधनों का जिसने भी बेहतर उपयोग कर लिया वही ज्ञानी और समृद्ध माना जाता है ! समाज में अधिकतर लोग लकीर के फ़क़ीर होते हैं जहाँ सब जाते हैं उसी रास्ते जाना सही समझते हैं , प्रमाण के रूप में प्रसाधनिक जैसे फेस पाउडर को लीजिये इसका फायदा गिनाते हैं सुंदरता बढ़ाना , पसीना रोकना , शरीर से बदबू भगाना और हम यह फ़ायदा, बिना सोचे, स्किन के महीन छेद बंद करके पाते हैं जो खुद में एक हेल्थ ब्लंडर है ! 

इसी तरह से विशाल विश्व में स्वास्थ्य सुधार की तमाम विधाएँ प्रचलित रही हैं , जिनको आधुनिक धनवान मेडिकल व्यवसाय ने, प्रचार के जरिये खा लिया , विश्व में न जाने कितनी खूबसूरत स्वास्थ्य विधाएँ या तो लुप्त हो चुकी हैं या दम तोड़ रही हैं ! ताकतवर एलोपैथी ने होमियोपैथी को समझने की बिना कोशिश किये उसे फेथ हीलिंग का दर्जा दे दिया वे यह भूल गए कि जिन जिन एलोपैथिक डॉक्टर्स ने उसे समझने और आजमाने की कोशिश की वे एलोपैथी को छोड़कर , होमियोपैथी को अपना चुके हैं , बहुत कम लोग जानते होंगे कि होमियोपैथी का जनक खुद एक एलोपैथिक डॉक्टर थे ! इससे बड़ा प्रमाण और क्या होगा कि आज विश्व में हजारों एलोपैथिक प्रैक्टिशनर होमियोपैथी के जरिये अपने रोगियों का उपचार करते हैं मगर एलोपैथिक दवा व्यवसाय इसे स्वीकार करने को तैयार नहीं क्योंकि उनके व्यवसाय का अस्तित्व ही खतरे में आ जाएगा क्योंकि होमियोपैथी में कोई बीमारी असाध्य नहीं है जबकि एलोपैथी में तमाम बीमारियों यहाँ तक कि जुकाम का इलाज ही नहीं वे सिर्फ एंटीबायोटिक /स्टेरॉयड का उपयोग कर शरीर की जीवाणुओं को मारकर इलाज करते हैं जिसमें शरीर एक बीमारी से मुक्त होकर अन्य बीमारियों का शिकार हो जाता है ! 

आज से लगभग 42 वर्ष पहले मुझे सर्वाइकल स्पोंडोलाइटिस हुआ था , तमाम एलोपैथिक जांच और इलाज के बावजूद ठीक नहीं हुआ , डॉ विरमानी मशहूर डॉक्टर के अनुसार अब यह बोन डेफ्लेक्शन ठीक होना असंभव है , केवल एक्सरसाइज के जरिये मसल्स मजबूत बनाइये एवं मसल्स कमजोर होने पर अधिक उम्र में कॉलर का उपयोग ताउम्र करना होगा ! उन दिनों रात रात भर दर्द से तड़पता रहता था ! इंफ्रारेड लैंप के जरिये सिकाई करने पर आराम मिलता था मगर बढ़े दर्द के समय इंफ्रारेड लैम्प का अधिक उपयोग करने से गर्दन के पिछले हिस्से में बर्न हो गए थे और स्किन जल कर काली हो गयी थी तब घबरा कर मैंने होमियोपैथी की शरण ली , करोल बाग़ में दो मशहूर डॉक्टर बनर्जी और चटर्जी के पास इलाज कराया जिनके यहाँ लम्बी लाइन में लगने के बाद नंबर आता था ! दो माह में बहुत कम आराम मिला मगर उनकी दुकान से ही लाइन में लगे लगे होमियोपैथी की दो किताबें खरीदी और पढ़ना शुरू किया तो पता चला कि उनकी दी हुई दवाएँ तो होमियोपैथी के मूल सिद्धांत के खिलाफ थीं और इससे मैं कभी ठीक नहीं हो सकता !

अपने जिद्दी स्वभाव के अनुसार मैंने रात रात भर जागकर वो दोनों किताबें ख़त्म कर होमियोपैथी सिद्धांत से अपना इलाज खुद करने का फैसला लिया और अगले दो महीने में पूर्ण स्वस्थ हो गया उसके बाद आज 40 साल बाद भी वह दर्द दुबारा नहीं हुआ !  

होमियोपैथी के जरिये अगर कोई डॉ अपनी रोजी रोटी चलाना चाहता है तब यह बहुत मुश्किल होगा कि वह रोगियों के साथ न्याय कर सके क्योंकि होमियोपैथी में एक रोगी पर पहले दिन ही डॉ को बहुत समय देना होगा वह पूरे दिन में मात्र एक या दो रोगियों का उपचार करने हेतु ही समय निकाल पायेगा जिसमें उसका खर्चा निकलना भी असम्भव होगा अगर वह पूरे दिन में 20 या अधिक रोगियों को ठीक करने का प्रयत्न करेगा तब उसे कम से कम 24 घंटे काम करना होगा जो असम्भव होगा और डॉ अपना खर्चा निकालने को यही करते हैं और वे अक्सर आंशिक तौर पर ही रोगी को ठीक करने में कामयाब होते हैं एवं होमियोपैथी का नाम खराब करते हैं !

होमियोपैथी सिद्धांत के अनुसार संसार में हर रोग का इलाज प्रकृति में उत्पन्न पौधों में छुपा है , उनका विश्वास है कि संसार में जितने प्रकार और व्यवहार के मानव, मानवी हैं उतने ही प्रकार या व्यवहार के पौधें हैं जो जाग्रत ,पूर्ण जीवित और इनसान के आचरण के हैं ! अगर इंसानों और पौधों के स्वभाव और आचरण का सही अध्ययन कर लिया जाए तब रोगी के आचरण के पौधे के रस से बनी दवा , उसी आचरण के इंसान के लिए संजीवनी बूटी का काम करेगी चाहे उस रोगी के रोग का नाम कुछ भी क्यों न हो ! 

ध्यान रहे होमियोपैथी में दवा का नाम नहीं होता , अलग अलग व्यक्तियों में किसी भी बीमारी की दवा, उनके विशेष स्वभाव के अनुसार अलग अलग होगी अतः एक व्यक्ति की कैंसर की कामयाब दवा दूसरे व्यक्ति के कैंसर में काम नहीं आएगी अगर उनका स्वभाव अलग अलग हुआ ! होमियोपैथी रेपर्टरी में मानव के लाखों गुणों का समावेश किया गया है जिससे व्यक्ति विशेष की दवा निकालना संभव है उसके लिए अस्वस्थ इंसान के गुणों का सावधानी से चयन आवश्यक है और असम्भव रोग का इलाज भी ! 

अपने स्वभाव का अध्ययन कर मैंने अपनी होम्योपैथिक संजीवनी की आसानी से तलाश कर ली , फलस्वरूप 68 वर्ष की आयु में भी मैं रोग मुक्त रहता हूँ काश मित्र लोग होमियोपैथी का अध्ययन करने की सलाह मान लें तो मेरे अधिकांश मित्रों का कल्याण होगा उन्हें किसी डॉ के पास जाने की आवश्यकता नहीं होगी ! 
 

Sunday, July 17, 2022

एक शाम जर्मनी की, राज भाटिया के घर -सतीश सक्सेना

विदेश में कोई अपना सा दोस्त मिल जाय तो बल्ले बल्ले हो जाती है , पुराने ब्लॉगर साथी राज भाटिया के घर आज शाम जाना हुआ

, उनकी जिद थी कि आप सपरिवार खाना साथ आकर खाएंगे सो हम लोग लगभग 4 बजे घर से निकल लिए , जर्मनी हाईवे पर हाई स्पीड गाड़ी चलाना आनंद दायक है ! गौरव की बीएमडब्लू 200 km प्रति घंटा की स्पीड पर भी स्टेबल थी, मैं खुद तेज ड्राइवर हूँ फिर भी मैंने उन्हें धीरे चलाने को कहा , इलेक्ट्रिक/ हाईब्रिड कार होने के कारण इसका पिकअप दिमाग को हिला देने वाला था ! 

जर्मनी में मानवीय सुरक्षा के सख्त कानून हैं , मैंने ट्रैन स्टेशन पर SOS साइन के साथ बेहतरीन इंतज़ाम देखे हैं , आकस्मिक हार्ट अटैक के समय यह इंस्ट्रूमेंट जान बचाने में सहायक हैं खतरे में पड़े व्यक्ति को मात्र बटन दबाना है !

राज भाई बेहद मिलनसार इंसान हैं , वे अपने जर्मन विलेज के दरवाजे पर पत्नी सहित इंतज़ार करते मिले, शांत स्वच्छ जर्मन गाँव जहाँ धूल का नामोनिशान नहीं , उम्र दराज लोगों के लिए ऐसी जगह पर रहना एक वरदान है ! चाय नाश्ते के बाद वे हमें गांव घुमाने ले गए , रास्ते में जो भी परिवार दिखे एक दूसरे से आत्मीयता से अभिवादन कर हालचाल पूछते नज़र आये ! 

यहाँ एक चीज हमारे यहां से अलग है घर के मेंटेनेंस से सम्बन्धित हर काम परिवार को खुद करना होता है बाहरी मदद इतनी महंगी होती है कि आम आदमी बर्दाश्त ही न कर सके ! बेटे के घर में सिंक टैप से एक एक बूँद पानी टपकता था जिसे ठीक कराने के लिए 60 यूरो दिए गए जिसमें सिर्फ वॉशर बदलना था सो घर में रहने वाले पेंटिंग, गार्डनिंग से लेकर घर की मरम्मत तक के कार्य खुद करते हैं , इसकी पुष्टि राज की होम वर्कशॉप को देख कर आसानी से हो गयी !

राज भाई बड़े जीवट के इंसान हैं , घर में काम करते समय कोई नहीं कह सकता कि उनके हृदय के चार चार ऑपरेशन हो चुके हैं , मजबूत जीवनी शक्ति , इंसान की मजबूत इच्छा शक्ति पर निर्भर करती है , राज भाटिया इसके जीते जागते उदाहरण हैं , सो आज का दिन सफल हुआ एक बेहतरीन इंसान के साथ !

Saturday, July 9, 2022

सहज मुस्कान , मुक्त हंसी, ही जीवन हैं -सतीश सक्सेना

फेसबुक पर मेरे तमाम दोस्त अपनी 10 वर्ष पुरानी फोटो लगाए रहते हैं , कई मित्र यह जानबूझकर नहीं करते बल्कि उन्हें ऐसा करना अच्छा लगता है सो वे अपने मित्रों को अपना वही आकर्षक रूप दिखाना चाहते हैं जो उनका बेहतरीन था ! मुझे लगता है कि समय के बदलाव चाहे वह समाज में आये अथवा चेहरे पर उन्हें स्वीकार करना चाहिए , अधिक उम्र लोग भी कई बार बेहद आकर्षक लगते हैं , मेरे कई हमउम्र 
महिला एवं पुरुष  फेसबुक मित्र , मुझे बहुत आकर्षक एवं गरिमामय लगते हैं  इतने कि उनकी तारीफ करने का मन करता है !

मेरा विश्वास है कि आकर्षक लगने के लिए चेहरा मोहरा कोई ख़ास रोल नहीं निभाता बल्कि उस चेहरे पर आये भाव , वस्त्र एवं बैकग्राउंड का रोल उतना ही महत्वपूर्ण रहता है ! चेहरे पर आयी उस व्यक्ति की एक सहज और गैर बनावटी मुस्कान किसी का भी दिल जीतने के लिए पर्याप्त है , चेहरे का रंग और बनावट चाहे कुछ भी क्यों न हो अफ़सोस यह है कि मुस्कान में सहजता आजकल दुर्लभ हो गयी है , अपने आसपास के तमाम तनाव के कारण लोग उन्मुक्त हंसी छोड़िये मुस्कराना भी भूल गए हैं !

मैं मूलतः एक कवि व्यक्तित्व हूँ , फोटोग्राफर होने के कारण हँसते खिले चेहरे बहुत अच्छे लगते हैं और खुद भी अपनी हंसी और मुस्कान को कभी थकने नहीं देता जबकि समय के साथ कई मित्रों की मुस्कान फीकी हो गयी या गायब हो चुकी है ! 

अक्सर लोगों की विपरीत परिस्थितियां उनके चेहरे पर आयी उदासी का कारण होती हैं जबकि उन्हें यह तथ्य आत्मसात कर लेना चाहिए कि खुशियां उत्पन्न करने की क्षमता उनके अपने शरीर में हमेशा होती है केवल उस वक्त की सोच हंसती हुई होनी चाहिए कष्ट खुद ब खुद भाग जाएंगे क्योंकि वह एक अस्थायी मानसिक अवस्था है ! अफ़सोस कि हम बहुत कम समय इस पर देते हैं !

लोग अक्सर मुझसे पूछते हैं कि आप 67+ उम्र में दौड़ कैसे पाते हो , मेरा जवाब संक्षिप्त है क्यों कि मेरा दौड़ने का दृढ़ निश्चय , मेरी प्रफुल्ल मानसिक अवस्था लेती है और इस अवस्था को मैं हमेशा ज़िंदा रखता हूँ !
मेरा अनुरोध है कि अपनी बच्चों जैसी हंसी वापस लाइए और बीमारियां भगाइये !

Tuesday, July 5, 2022

मोटापा एक अनचाही समस्या -सतीश सक्सेना

साठ के बाद अधिकतर लोग खुद को वृद्ध मानना और तदनुसार व्यवहार करना शुरू कर देते हैं जिसका परिणाम उनके शरीर पर तत्काल दिखना शुरू कर देता है ! आसपास के लोग उनसे अधिक गंभीरता और संजीदगी को उम्मीद करते हैं , उनके कपड़ों, रहन

सहन एवं भोजन में बदलाव आ जाता है ! अब इस उम्र में क्या ? का दयनीय भाव लिए ये लोग धीरे धीरे आने वाले समय में , अपनी संभावित मृत्यु की और अग्रसर होते हैं और शरीर भी इस दयनीय दशा को स्वीकार करते हुए तेजी से अपना कसाव भूलकर थुलथुल होना शुरू कर देता है !

मेरे रिटायर होने के बाद , पिछले आठ साल में मैंने खुद अपने बेहतरीन मित्रों को असमय मौत के मुँह में जाते देखा है , डायबिटीज, मोटापा और उसके कारण हृदय आघात उसका बड़ा कारण थे ! मैंने साठ वर्ष के बाद कोई और कार्य न करके, अपने कायाकल्प का संकल्प लिया था और धीरे धीरे खुद को रनिंग (हाई इम्पैक्ट एक्सरसाइज ) सिखाना शुरू किया जिसमें सफल रहा और शरीर में अत्यधिक बदलाव महसूस किया और वजन तो घटना ही था ! सुबह सुबह एक घंटे का तेज वाक अथवा रनिंग , इन्सुलिन के प्रति बॉडी सेंसिटिविटी बढ़ाने में बड़ा रोल अदा करती है ! मेरे तमाम रनर दोस्त डायबिटीज को वर्षों पहले विदा कर चुके हैं !

बढ़ते हुए वजन से सबसे बड़ा खतरा हार्ट आर्टरी में खून के थक्के जमने से हृदय पर पड़ता बोझ है जो अधिक उम्र में घातक होता है , अगर आप सौ कदम तेज चलने से हांफ रहे हैं तब आप खुद को खतरे में मानिये , मेरे अपने विचार से साठ वर्ष में साठ और अस्सी वर्ष में अस्सी प्रतिशत आर्टरी ब्लॉकेज संभव है , यही प्रकृति का तरीका है और इस उम्र के बाद हमें स्वयं को जाने के लिए तैयार कर लेना चाहिए ! साठ वर्ष में किया गया मेडिकल ऑपरेशन आपके जीवन को बढ़ाएगा नहीं बल्कि कुछ नयी समस्याएं ही पैदा करेगा सो बेहतर यही होगा कि अंत तक शरीर को फुर्तीला बनाये रखने का प्रयास किया जाए , इससे न केवल ब्लॉकेज कम होगी बल्कि आप शारीरिक , मानसिक बुढ़ापे से भी मुक्ति पाए रहेंगे !

इन बुरे दिनों, हर किसी की शारीरिक एक्टिविटी घटी है घर में लगातार बंद रहने के कारण, बिना मेहनत किये बढ़िया खाने की मात्रा में बढ़ोतरी, बढ़ते वजन का बड़ा कारण रहा ! मेरी खुद का वजन लाख कोशिशों के बाद भी 2 किलो बढ़ा है , हालाँकि इन दिनों मैं अपने देश में बढे  पॉल्यूशन के कारण कम एक्सरसाइज कर पाया सो खाना भी बेहद कम खाया नतीजा अपने अन्य मित्रों के मुकाबले वजन कम बढ़ा उम्मीद है जर्मनी के स्वच्छ वातावरण में अगले तीन माह अधिक दौडूंगा एवं वजन घटाने में सफल रहूँगा !    

अगर आप मेहनत नहीं कर पा रहे तब खाने पर आपका कोई अधिकार नहीं होना चाहिए , केवल एक समय का भोजन करें , सुबह हल्का नाश्ता एवं डिनर शाम को 4 बजे , रात आठ बजे ग्रीन टी के साथ 4 फीके बिस्कुट काफी होंगे ठाठ से जीने के लिए और यक़ीनन वजन कण्ट्रोल रहेगा ! सुबह स्वच्छ हवा में गहरी साँस भरकर छोड़ने की आदत डालें , एवं जब भूख लगे तभी पानी अवश्य पियें , पूरे दिन में 10-12 गिलास पानी आपकी पुरानी मस्ती वापस लाने में सहायता करेगा , शुगर और मिल्क प्रोडक्ट का त्याग सोने में सुहागा होगा !

अंत में , आखिरी बात नए आधुनिक चुस्त खूबसूरत कपडे पहने बिना इसकी परवाह किये कि लोग क्या कहेंगे  ? अपने बालपन को मत खोने दें उसे वापस लाएं नए मित्र और नए शौक बनाने होंगे और आप इस उम्र में जाग्रत बदलाव देखेंगे !   

प्रणाम आप सबको !
 

Sunday, July 3, 2022

म्युनिक की तीखी धूप में 10 km रन -सतीश सक्सेना

आज म्युनिक में बेहद गर्म दिन था 27 डिग्री मगर सूरज की तीखी किरणों के कारण महसूस 32 डिग्री हो रहा था , ऐसे में पहले किलोमीटर दौड़ते हुए ही महसूस हो गया था कि आज दौड़ना आसान नहीं होगा और शर्ट उतारकर दौड़ना शुरू किया इससे पेड़ों की छाया में दौड़ते हुए, हवा के ठंडे झोंके कुछ आराम दे रहे थे ! आखिरी 300 मीटर में एक जर्मन लड़की ने मुझसे आगे निकलने के लिए चिल्लाते हुए तेज दौड़ना शुरू किया तो मैंने खुद को चैलेंज दिया कि हारना नहीं है और पूरी ताकत से दौड़ते हुए अपने से कम से कम 45 साल छोटी इस लड़की को हरा दिया मतलब अभी इतने बुड्ढे नहीं हुए कि बच्चे आगे निकल जाएँ !

बहरहाल 10 km रन 77 मिनट में पूरा हुआ !


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