आदरणीय ध्रुव गुप्त की दो पंक्तियाँ इस रचना के लिए प्रेरणा बनी हैं , उनको प्रणाम करते हुए ……
यदि रूठोगे कहीं तुम्हें हम , रोज मनाने आएंगे,
चाहा सिर्फ तुम्हीं को हमने, ये बतलाने आएंगे !
यदि रूठोगे कहीं तुम्हें हम , रोज मनाने आएंगे,
चाहा सिर्फ तुम्हीं को हमने, ये बतलाने आएंगे !
भूल न जाना मुझको वरना, हौले हौले रातों के
अनचाहे सपनों में, अक्सर खूब सताने आएंगे !
सुना, चाँदनी रातों में तुम भूखे ही सो जाते हो
अनचाहे सपनों में, अक्सर खूब सताने आएंगे !
सुना, चाँदनी रातों में तुम भूखे ही सो जाते हो
थाली मीठी यादों की ले संग खिलाने आएंगे !
खूब सताएं दुनियाँ वाले, वादे छीन न पाएंगे
खूब सताएं दुनियाँ वाले, वादे छीन न पाएंगे
जितना काटें बांस, हरे हो, नए सामने आएंगे !
कैसे निंदिया खो बैठे हो, अवसादों के घेरों में
कैसे निंदिया खो बैठे हो, अवसादों के घेरों में
सनम सुलाने तुम्हें , हमारे गीत ढूंढते आएंगे !
ऐसे कैसे तड़प उठे हो,इतनी सी तकलीफों में
ReplyDeleteअभी तो रोने के कितने ही और बहाने आयेंगे !बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति! आदरणीय सतीश जी! साभार!
धरती की गोद
बहुत सुन्दर !
ReplyDeleteभूलना चाहता हूँ !
कैसे जीतें,जलने वाले,दिल में पंहुच न पायेंगे,
ReplyDeleteजितना काटो बांस, नए हो हरे सामने आएंगे !
बहुत खूब ! यह आखिरी दो पंक्तियाँ सोने पर सुहागा !
बहुत सुन्दर...
ReplyDeleteबहुत सुंदर एवं भावपूर्ण रचना.
ReplyDeleteबहुत खूब
ReplyDeleteकैसे निंदिया खो बैठे हो, यादों के उजियारे में
ReplyDeleteसनम सुलाने तुम्हें, हमारे गीत ढूंढते आएंगे --क्या खूब अभिव्यक्ति दिये हैं --वाह
याद न करना मुझको,वरना हौले हौले रातों के
ReplyDeleteअनचाहे सपनों में,अक्सर खूब सताने आएंगे ..
बहुत सुन्दर ... हर शेर भावपूर्ण ... मन को छू के गुज़रता हवा ...
याद न करना मुझको,वरना हौले हौले रातों के
ReplyDeleteअनचाहे सपनों में,अक्सर खूब सताने आएंगे !
बहुत सुन्दर रचना , सतीशजी
प्यारे उद्गार हैं ,प्यारी सी चाहत--उम्दा
ReplyDeleteबहुत प्यारी लगी यह रचना कुछ कुछ रूमानी लोरी सी :)
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