Wednesday, May 25, 2022

प्रज्वलित संकल्प लेकर धीमे धीमे दौड़िये -सतीश सक्सेना

रोज सुबह एकाग्रचित्त होकर टहलने / दौड़ने निकलना तभी संभव होगा जब आपमें एक धुन या जिद बन जाए कि मैंने मरते समय तक अपने शरीर को फुर्तीला बनाये रखना है यकीनन बीमारियां आपके खूबसूरत गठे हुए शरीर के निकट नहीं आएँगी , वे सिर्फ सुस्त शरीर के मालिकों को ही ढूंढती हैं !

मेडिकल व्यवसाय से मदद की आशा छोड़कर अपने शरीर की आंतरिक रक्षाशक्ति पर विश्वास रखें , आप जीतेंगे !
साथ कोई दे, न दे , पर धीमे धीमे दौड़िये !
अखंडित विश्वास लेकर धीमे धीमे दौड़िये !

Thursday, May 19, 2022

कहीं गंगा किनारे बैठ कर , रसखान सा लिखना -सतीश सक्सेना

इन दिनों भयंकर गर्मी पड़ रही है , काफी समय से दौड़ना बंद कर, आराम करने की मुद्रा में चल रहा हूँ ! हानिकारक मौसम में शरीर पर नाजायज जोर न पड़े इस कारण यह रेस्ट आवश्यक भी है मगर सम्पूर्ण आराम के दिनों खाने के चयन पर अतिरिक्त सावधानी बरतनी होती है ! अन्यथा ट्रकों के पीछे सही वाक्य लिखा ही रहता है कि सावधानी हटी दुर्घटना घटी !

कल दिन में दो बार खाना खा लिया सुबह 11 बजे और रात 8 बजे , आज सुबह घर से निकलते ही, कल की हुई बेवकूफी पता चल गयी ! बेसन की मोटी रोटी और खुद बनाये हुए स्वादिष्ट दम आलू की सब्जी और छाछ, खाने की कीमत पता चल रही थी साथ ही, मेरे कुछ दुबले पतले मित्रों का हाल में बढ़े हुए वजन का राज भी पता चल रहा था ! सो आज उपवास रखना होगा केवल तरबूज के साथ साथ ही अगले पंद्रह दिन सुबह की चाय और बिस्किट भी बंद ताकि प्रायश्चित्त हो इस लालच का !

लम्बे जर्मनी प्रवास में , सुबह सुबह डिपार्टमेंटल स्टोर में जब अस्सी से ऊपर की महिलाओं पुरुषों को अपना सामान साईकिल पर लादकर साइकिल ट्रेक पर तेजी से जाते देखता तो अपने देश के बुजुर्गों की दयनीय दशा अवश्य याद आती थी कि हम मानसिक तौर पर आज भी कितने अविकसित हैं !

जब तक हूँ तब तक कुरीतियों अनीतियों और अन्याय के खिलाफ लिखना तो होगा इस विश्वास के साथ कि लिखा अमर है और रहेगा ताकि जाते समय खुद को यह कष्ट न हो कि हम संक्रमण काल में भी निष्क्रिय रहे !

इस हिन्दुस्तान में रहते , अलग पहचान सा लिखना !
कहीं गंगा किनारे बैठ कर , रसखान सा लिखना !

दिखें यदि घाव धरती के, तो आँखों को झुका लिखना
घरों में बंद, मां बहनों पे, कुछ आसान सा लिखना !

विदूषक बन गए मंचाधिकारी , उनके शिष्यों के ,
इन हिंदी पुरस्कारों के लिए, अपमान सा लिखना !

किसी के शब्द शैली को चुराये मंच कवियों औ ,
जुगाडू गवैयों , के बीच कुछ प्रतिमान सा लिखना !

व्यथा लिखने चलो तब, तड़पते परिवार को लेकर
हजारों मील, पैदल चल रहे , इंसान पर लिखना !

तेरे मन की तड़प अभिव्यक्ति जब चीत्कार कर बैठे
बिना परवा किये तलवार की, सुलतान सा लिखना !

Friday, May 13, 2022

68 वर्ष में मेहनत के बाद का सुख -सतीश सक्सेना

आज पूरे घर और कार की सफाई धुलाई के बाद का संतोष चेहरे पर साफ़ दिखता है ! मुझे याद है जब मैं 30-35 का था तब वृद्ध लोगों को आदर भाव से देखता था और सोंचता था कि इनकी मदद करनी चाहिए जबकि आज मैं सोचता हूँ कि इन जवानों की मदद करनी चाहिए !
प्रणाम आप सबको !

अकर्मण्यता की आदत से, है कितना लाचार आदमी !
जकड़े घुटने पकड़ के बैठा , ढूंढ रहा उपचार आदमी !

Wednesday, May 11, 2022

मॉर्निंग वाक मैडिटेशन -सतीश सक्सेना

आपकी कॉलोनी एवं परिचितों में एक भी व्यक्ति ऐसा नहीं होगा जो वाक न करता हो , 40-45 के होते होते हर व्यक्ति हृदय रोग के भय से यंत्रवत वाक करना शुरू कर देता है , और हर चौथे व्यक्ति को इसके बावजूद भी हार्ट अटैक होता है !

कुछ लोग वाक नहीं करते जिसका कारण वे अपने जोड़ों के दर्द को बताकर अपनी मजबूरी बता देते हैं सच्चाई यह है कि शुरू में आलस्य के कारण वाक को तरजीह नहीं दी और अब शरीर इस योग्य नहीं रहा कि वे वाक कर सकें !

वाक करने का समय बेहद महत्वपूर्ण होता है , उसे दोस्तों के साथ अपनी कहानियां सुनाते हुए करना, कोई फल नहीं देगा बल्कि उस वक्त अपने शरीर के हर अंग से बातें करना होता है ! उठते गिरते क़दमों , हाथों, और सांसों में एक तारतम्य होना आवश्यक है उस वक्त इन अंगों और मस्तिष्क में लगातार समन्वय रहना चाहिए और भरपूर ऑक्सीजन मस्तिष्क तक पहुंचती रहनी चाहिए ! चलते हुए मस्तिष्क इन अंगों को लगातार मैसेज भेजता रहे और उन्हें विश्वास दिलाये कि वे ठीक और सुचारु रूप से कार्य कर रहे हैं और करेंगे ! आपस में उठती हुई इन विचार तरंगों का सम्प्रेषण, उन अंगों पर ध्यान केंद्रित रखते हुए लगातार होना चाहिए ! यह शक्तिशाली विचार सम्प्रेषण सुस्त और ख़राब होते अंगों को सक्रिय और स्वस्थ कर देगा !

सबसे पहला योगी कोई भी हुआ होगा मगर उसे योग सिखाने वाला कोई नहीं था , अकेले सुनसान जगह पर एकाग्रचित्त होकर बैठकर, सांसों पर ध्यान केंद्रित कर शरीर के अंगों तक भरपूर ऑक्सीजन पहुंचाना सीख लिया और इन्ही पर नियंत्रण कर बॉडी कोर के अंगों को कम्पन देना आया , यही योग था जिससे उन्हें शारीरिक शक्ति के साथ बौद्धिक शक्ति की भी प्राप्ति हुई !

जिस प्रकार हम लगातार एक ही भोजन से ऊब जाते हैं उसी तरह से शरीर को भी एक जैसा लगातार व्यवहार पसंद नहीं उसे वह आदत में ढाल लेता है और उसका फायदा उठाना बंद कर देता है ! सो लगातार एक जैसा भोजन और वाक में भी बदलाव आवश्यक है और लगातार करते रहना चाहिए ! बचपन से फिक्स आईडिया का त्याग करना आना चाहिए इससे मन में फुर्ती और प्रसन्नता आएगी !

साथ कोई दे, न दे , पर धीमे धीमे दौड़िये !
अखंडित विश्वास लेकर धीमे धीमे दौड़िये !

दर्द सारे ही भुलाकर,हिमालय से हृदय में
नियंत्रित तूफ़ान लेकर, धीमे धीमे दौड़िये !

जाति,धर्म,प्रदेश,बंधन पर न गौरव कीजिये
मानवी अभिमान लेकर, धीमे धीमे दौड़िये !

जोश आएगा दुबारा , बुझ गए से हृदय में
प्रज्वलित संकल्प लेकर धीमे धीमे दौड़िये !
तोड़ सीमायें सड़ी ,संकीर्ण मन विस्तृत करें
विश्व ही अपना समझकर धीमे धीमे दौड़िये !

समय ऐसा आएगा जब फासले थक जाएंगे
दूरियों को नमन कर के , धीमे धीमे दौड़िये !
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